Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 105
________________ एक जगह इन्द्र की उस ऋति का वर्णन किया गया है जि ऋति को लेकर वह राजा दशार्ण के समय भगवान महावीर को वन्दन करने आया था। वहां पर बतलाया है कि उस इन्द्र के ६४००० (१) हाथी थे, प्रत्येक हाथी के आठ २ दॉद थे, प्रत्येक दाँद पर आठ २ वापिकाये थी, प्रत्येक वापिकामे आठ २ कमल थे, जितने कमल थे उतने ही प्रमाण मे उनकी कर्णिकाये थीं, प्रत्येक कर्णिका पर एक २ प्रासाद इद्रानियो के साथ एक २ इंद्र बैठा था और उस प्रत्येक इद्र के सामने बत्तीस प्रकार का नाटक हो रहा था, जिस में एक सौ आठ देवकुमार और एक सौ आठ देव कन्यायें पार्ट करती थीं अभिनय करती थी। (देखो - वृद्ध ऋषिमडलस्तव, आवश्यकचूर्णि और श्राद्धविधि पृ० ५०५२)। इस वर्णन के सामने तो पुराण के वर्णन भी फीके मालूम देते हैं। इसमे हाथी के दाँतो पर पानी की वापिकाये होने का जो उल्लेख किया है वह तो सर्वथा ही असत् मे सत् करने जैसा, शिलापर कमल जमाने के समान और देश, काल शास्त्र एव रूढी विरूद्ध है। उसमे मुख वगैरह की अन्यान्य सख्या मे भी विचारणीय हैं। परन्तु यह तो कल्पना का विषय होने से कदाचित् अमर्यादित अतिशयोक्ति में समाविष्ट हो सकता है, किन्तु दाँतो पर जलवापिकाओ का होना तो बिल्कुल ठडे पहर की गप्प मालूम होती है। वर्तमान समय में इस प्रकार की अनेक कथाओ द्वारा उपाश्रयो मे बैठकर रेशमी, खीन - खाब और जरी के तिगडे मे पाट पर विराजमान होकर हमारे कुल श्रोताओं को रजित कर रहे हैं, यह देखकर मुझे तो चौपाल मे बैठकर अफीम किसानो के सामने गप्पे मारते और हूँकार करते चारणो की स्मृति आ जाती है। आश्चर्य तो यह होता है कि व्यापारविद्या मे अतिनिपण वणिक समुदाय बिना विचार किये धन्वाणी और तहत वचन की गर्जनाये किस तरह करना होगा? पुण्यवपाक और पापविपाक की कथाओं एवं अन्य कथाओ के अधिक विभाग में मैने ऐसे २ अनेक वर्णन देखे है, इससे इन कथाओ को इस वर्णन से उतरती कैसे कहा जाय? जिस साहित्य मे चरित विभाग भी पौराणिक स्वरूप की स्थिति भोगता हो उसके कल्पित कथ विभाग का तो कहना ही क्या है ।" कल्पित कथाओ में उनके रचनेवालो ने साहित्यशास्त्रो की मर्यादा और कार्यकारण की व्यवस्था का भी पूरा ख्याल नही रक्खा। वे कहते है कि जो परिग्रह का परिमाण करता है वह अतुल धन सम्पत्ति के परिग्रह का भोगी बनेगा, माधुओ को दान देने से दान देने वाला चक्रवर्ती जैसा सम्राट होगा। जो यहा पर ब्रह्मचर्य पालन करेगा वह फिर हजारो देवियो का चिर सगी बनेगा। इन बातो पर यदि आप विचार करेगे तो मालूम 96

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