Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 17
________________ अकुशल दस प्रकार का है और अकुशलमूल तीन प्रकार का है (१) प्राणातिपात (हिंसा) (२) अदत्तादान (चोरी) (३) काम (स्त्रीसंसर्ग) में मिथ्याचार (४) मृषावाद (झूठ बोलना) (५) पिशुन वचन (चुगली) (६) परुष वचन (कठोर भाषण) (७) संप्रलाप (बकवास) (८) अभिध्या (लालच) (९) व्यापाद (प्रतिहिंसा) (१०) मिथ्यादृष्टि (झूठी धारणा) हे आवुसो ये अकुशल हैं। (१) लोभ (२) द्वष (३) मोह-ये तीन अकुशलमूल हैं । जैन दृष्टि से साधना का मूल सम्यग्दर्शन है और साधना का बाधक तत्त्व मोहनीय कर्म । राग और द्वेष ये मोह के ही प्रकार हैं। इसी प्रकार मज्झिमनिकाय में बुराइयों की जड़ लोभ, द्वेष और मोह को बताया गया है। ___ तत्त्वार्थ सूत्र में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के अधिगम और निसर्गये दो कारण बताये हैं।०८ मज्झिमनिकाय'०९ में एक प्रश्नोत्तर मिलता है कि सम्यग्दृष्टि ग्रहण के कितने प्रत्यय हैं ? उत्तर में कहादो प्रत्यय हैं-(१) दूसरों के घोष-उपदेश श्रवण और (२) योनिशः मनस्कार-मूल पर विचार करना । जैन दृष्टि से साधना को पांच भूमिकाएँ हैं। व्रतों से पहले सम्यक् दर्शन को स्थान दिया गया है । उसके पश्चात् विरति है । मज्झिमनिकाय के सम्मादिट्टि सुत्तन्त में दस कुशल धर्मों का उल्लेख है ।११० उनका समावेश पाँच महाव्रतों में इस प्रकार किया जा सकता है । महाव्रत कुशल धर्म १. अहिंसा (१) प्राणातिपात (९) व्यापाद से विरति २. सत्य (४) मषावाद (५) पिशुन वचन ३. अचौर्य (६) परुष वचन (७) संप्रलाप से विरति ४. ब्रह्मचर्य (२) अदत्तादान से विरति ५. अपरिग्रह (३) काम में मिथ्याचार से विरति (८) अभिध्या से विरति भावना-प्रश्न व्याकरण सूत्र में पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का उल्लेख है।१११ अन्यत्र अनित्य, अशरण, संसार आदि द्वादश , भावनाओं का भी उल्लेख १२ है। तत्त्वार्थ सूत्र आदि में मैत्री, प्रमोद, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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