Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
४. आचारांग १|४|४
५. गौडपादकारिका, प्रकरण २, श्लो० ६
६. आचारांग १/५/६
७. केनोपनिषद्, खण्ड १, श्लोक ३
८. कठोपनिषद्, अ० १, श्लोक १५ ९. बृहदारण्यक ब्राह्मण ८, श्लोक ८ १०. माण्डूक्योपनिषद्, श्लो० ७
११. तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली १२. ब्रह्मविद्योपनिषद्, श्लोक ८१-९१ १३. आचारांग १६:३
( २४ )
१४. नारदपरिव्राजकोपनिषद् ७ उपदेश १५. संन्यासोपनिषद् १ अध्याय
१६. स्थानांग ६
१७. अंगुत्तरनिकाय ४।७७
१८. ( क ) स्थानांग ५, ४/१९; ( ख ) समवायांग ५
१९. अंगुत्तरनिकाय ३।५८, ६।६३
२०. मज्झिमनिकाय १।१।२
२१. तत्त्वार्थ सूत्र अ० ६।१ - २
२२. स्थानांग ५६९
२३. अंगुत्तर निकाय १०, ६९
२४. स्थानांग ९६
२५. अंगुत्तरनिकाय ३।३
२६. वही ३।९७, ६।३९
२७. (क) स्थानांग ६०६, (ख) समवायांग ८
२८. अंगुत्तरनिकाय ३०३९
•
अनुवाक् ४
३२. अंगुत्तरनिकाय ८ २५
३३. स्थानांग ५३४
३४. अंगुत्तरनिकाय ४२
Jain Education International
२९ (कु) स्थानांग ४२७, ५९८, (ख) समवायांग १२५
३०. अंगुत्तरनिकाय ६ । ६३
३१. स्थानांग ३८९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90