Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 01
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 490
________________ ४८२ . जनगाहित्यका इतिहास भेद गहण (अ) कृत्वा यत् गागान्गगणं ग्यरुपमागावभागन तदर्शनमिति परमागगे भण्यते । घग्नुम्बम्पमामगहण कर अन् वाहपदार्यान् अविरोग्य जातिव्यगुणक्रिया कारपिय ग्यपगतानभागन पणनमित्यर्थः । वामदेवका सस्तात' भावराग्रह प्राकृत भाव गगहो गगत अनुयार माग गाव नग्रही रनना हुई है। दोनो गन्गोको आगने गागर्न गार पानेगे गाठ नान गष्ट हो जाती है। यहाँ दोनोगे गुछ उलग्ण देना उनित होगा। परिग गुग्नेणणग गणिगणानविय महावीर । गोन्द्रामि भावनगमिणमी भन्यपयोग ॥१॥ श्रीमार्गर गिनाभोग गली दिदगानिनम् । नया भयप्रयोग व गन्नं भागगग ॥१॥ जीवन्न तानि भावा जीवा पण दुविहभेगमत्ता । मता गुण गमागे गत्ता मिसा गिललेगा ॥२॥ भावा जीवपरीणामा जीवा भैयाश्रिता । माता गमारिणना मुगना मिला निरत्यया ॥२॥ लोयग्गगिहरवागी फेगलणाण गणिगनलोया। अरारोग गारहिगा गुणिन्चला गुन्नावट्टा ॥३॥ कर्माष्टपरिनिर्गगता गुणाष्टकविराजिता । लोकानवागिनो नित्या प्रौव्योत्पत्तिन्यगान्विता ॥३॥ यह शब्दश अनुवाद नहीं है, भावानुवाद है जो प्राकृत भाव राग्रहको सन्मुष रखकर मस्कृत भापाम अनुष्टुप् श्लोसोके द्वारा किया गया है । रचयिताने प्राकृत भावसग्रहका अक्षरश अनुकरण नहीं किया है, जगह जगह उममें परिवर्तन, परिवर्धन और सगोधन आदि भी किये है। उसके भी यहां कुछ उदाहरण दे देना उचित होगा। १ प्रा० भा० स० मे (गा० १६) मिथ्यात्वके पांच भेद इस प्रकार बतलाये है-एकान्त, विनय, सशय, अज्ञान और विपरीत । ये ही पाच भेद जैन परम्परामें प्रसिद्ध है। किन्तु स० भा० स० में (श्लो० ३२) उनके नाम इस प्रकार दिये है-वेदान्त, क्षणिकत्व, शून्यत्व, विनय और अज्ञान । प्रा० भा० स० में ब्राह्मण१ सस्कृत भाव सग्रह भी प्राकृतभावसग्रहके साथ श्रीमाणिकचन्द दि० जैन ग्रन्थमाला वम्बईके २०वे ग्रंथ भावसग्रहादिमे प्रकाशित हो चुका है।

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