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गाला 110 ure
तुम अगाध जिनदेव चित्त के गोचर नाहीं। निःकिंचन भी प्रभू धनेश्वर जाचत सांई । भये विश्व के पार दृष्टिसों पार न पावै। जिनपति एम तिहारि जगजन शरणै आवै ॥३५॥ नमो नमौं जिनदेव जगतगुरु शिक्षादायक । निज गुण सेती भई उन्नति महिमा लायक ॥ पाहनखण्ड पहार पछै ज्यो होत और गिर । त्यो कुलपर्वत नाहिं सनातन दीर्घ भूमिधर ॥३६॥ स्वयं प्रकाशी देव रैन दिनकं नहिं वाधित । दिवस रात्रि भी छतें आपकी प्रभा प्रकाशित ।। लाघव गौरव नाहिं एकसो रूप तिहारो। कालकलाते रहित प्रभूसँ नमन हमारो ॥३७॥ इहविधि बहु परकार देव तव भक्ति करी हम । जानूं वरन कदापि दीन है रागसहित तव ॥ छाया बैठत सहज वृक्ष के नीचे है है। फिर छाया को जाचत यामें प्रापति है है ॥३८॥ जो कुछ इच्छा होय देन की तौ उपगारी। यो बुधि ऐसी करूं प्रीतिसौं भक्ति तिहारी ॥ करो कृपा जिनदेव हमारे परि है तोषित । सनमुख अपनो जानि कौन पण्डित नहिं पोषित ॥३६