Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 351
________________ ( ३२९ ) वादशाहने ब्रह्म, सच्चागुरु, और सच्चे धर्मके बारे तहकीकात शुरुकी, सूरिजी वोले जो आईनें ( दर्पण) के मानिंद साफ दिलहै ओर तमाम दुनिया मनोविकारसे आजाद है और १८ पापोंसे रहितहै वही नमस्कार करनेके लायक और सचा ब्रह्महै । सचा गुरु वहीहै -जो सवपर समदृष्टि और भूत दया रक्खे और जन समाजको सचा मोक्षका मार्ग पतला और द्रव्य वगरा चीनोंसे नफरत रक्खे सत्य धर्म वही है.-जो सरको समदृष्टि मार्ग दर्शावे और आखिर युक्ति प्राप्त करदें। बादशाह इन सालोसे खुश होकर कुछ धर्मोरे पुस्तके लापको नजर करने लगा परतु आप इनकार करने लगे किन्तु अशुलफजल और थानासिंहके कहनसे रखलिये और लोटते वक्त आगरेके पुस्तकालयको भेट करदिये. शाहसे इजाजत लेबर आप लौटे और फिर ईस्वी सन् १५८० में फतेपुर आये और अबुलफजलके मकानपर शाहसे यार्मिर चर्चा हुई गरशाह निहायत सुगहुए और बहुत सा द्रव्य वगैरा देनेलगे परतु आपने नहीं लिया ओर यही

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