Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 77
________________ Peautane indinelionhin . [7. जैन लिंग निर्णय // ... | को सुन मुख बांधने वालोंने कहाकि श्री गोतमस्वामी ने मृगा राणी के कहने मे मुख बांधतो श्री गोतमस्वामी आपनी इच्छासे सूत्र विना मुखको बांधातो यह दूषण उनमेंभी आया ( उत्तर ) भोदेवानुप्रिय अपना एब गणधर आदिकमें मत लगावो कुछ बुद्धि का विचार करो कि श्री गोतमस्वामीने रानीके कहने से व्यवहार निमित्त मुख बंधन किया कुछ लिंग थापन न किया अथवा साधुका भेष जानकर मुखको न बांधा अथवा डोरा घाल कर तुम्हारी तरह अष्ट प्रहर मुखपर मुखपत्ती न बांधी क्याकि देखो साधुका माथा दुखनेसे कपड़े से माथा बाधता है वा फोडा आदिक होयतो उस जगह पाटा आदिक बांधा जाताहै परंतु साधुका लिंग जानकर नहि बांधते इसालये बुद्धिका विचार करो जो वर्तमान कालमें मुख बाधतेहैं सोतो साधुका लिंग जानकर बांधतेहैं और अपने में मुख बांधने से साधु पना ठहरातेहैं हाथमे रखने वाले लिंगी भ्रष्टाचारी हिंमा धर्मी बतलाते हैं कारण से जो कोई बांधताहै वो कारण मिटने के बाद खोल देताहै और उसको थापन नहीं करता इसलिये मुखपत्ती को मुख से खोलो सूत्रके अर्थ को तोलो मिथ्यात्वको खोलो जिससे अनंत संसारमें न डोलोजिन वाणोको सुध करके बोलो क्यों खातहो जकजोलो जिससे जैन धर्म हाथ लगे अमोलो औरभी देखांकि आवश्यक निरयुक्ति अध्येन 5 में काउसग के समय मुखपती हाथमें रखना कहाहै सो पाठ दिखाते है॥ चउरं गुलमो हपोता एउज्जुए पह थिरय हरणं वोस दृचत दहो काउस गांकर जाहिः॥ टीका चत्यायंग लानी पाद पोरंतर कार्य उ• मुखपत्ती कादक्षिण हस्तेन ग्राह्या वाम हरतेन रजौहरणं कार्य एतेन विधिना व्युत्सृष्टय यक्तदह कायोत्सर्ग कुर्यात् दोष द्वारमाहें. ये अर्थ तथा अर्थ भाषामदोन पग से खडा हो कर चार अंगुल का बीच अर्थात जगह बखे और मुखपत्ती m -

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