Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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प्रस्तावना.
(१०) (७) प्राचीमराजवंसावलिः कर्ता पं. पुरुषोतमदास गौड. (८) टॉडराजस्थान हिन्दी अनुवाद कर्ता पं. बलदेवप्रसाद. (९) पडिहारोंका इतिहास कर्ता-मुन्शी देवीप्रसादजी. (१०) जैनगोत्रसंग्रह कर्ता-पं. हिरालाल हंसराज. (११) जैनमत प्रबंध कर्ता-प्राचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरिः (१२) उपकेशगच्छ बृहत्पटावलि (१३) खरतरगच्छ वंसावलि पक्षक.
अन्यभी केई प्रमाणिक ग्रन्थोका प्रमाण दीया गया हैं । वि० इतना नम्र निवेदन होनेपर भी कीसी भाइयोंको इस समालोचनासे राजी-नाराजी हो तो उसका कारण यतिजी रामलालजी ही है नकि में मेने तो फक्त यतिजीकि लिखी मुक्तावलिपर सप्रमाण पालोचना ही करी है इसपर भी अनुचित हो तो जमाकी याचना करता हुवा में इस प्रस्तावनाकों समाप्त करता हुं.
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