Book Title: Jain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala
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चोरडिया गौत्र.
(३१) बाफमा, वेदमुत्ता, चोरडिया, करणावट, संचेती, समदडिया, गदइया लुणावत कुमट भटेवरा छाजेड़ वरहट श्रीश्रीमाल लघुश्रेष्टि मोरखपोकरण रांका डिंडु इतरी खापांवाला सारा भट्टारक सिद्धसूरि और इणोरा चेला हुवे जिणोने गुरु कर मानजो अने गच्छरी लाग हुवे तीका इणोने दीजो. अबार इणोरेने लुकोंरा जतियोरे चोरडियोरी खापरो असरचो पडियो जद अदालतमें न्याय हुवो ने जोधपुर नागोर मेडता पीपाडरा चोरडियोरी खबर मंगाई तरे उणोने लिखीयो के मोरे ठेटु गुरू कमलागच्छरा है तीण माफीक दरबारसु निरधार कर परवाणे कर दीयो है सो इण मुजब रहसी श्री हजुररो हुकम छै सं. १८७८ पोस वद १४ (नकल हजुररा दफतरमें लीधी छै) इस परवाणासे भी यह ही सिद्ध होता है कि चोरडिया जाति कमलागच्छकी है जब चोरडिया कमलागच्छके है तब चोरडियोंसे निकले हुवे गुलेच्छा पारख सावसुखा बुचा भटनेरा आसाणी आदि ८५ जातियोंके गुरु भी कमलागच्छवाले ही है यतिजीने कीतनेक स्थानपर पारख गुलेच्छादि खरतरगच्छकी क्रिया करते देख उनको विश्वास दीलानेके लिये यह ढंचा खडा कीया ज्ञात होता है तात्पर्य फक्त रोटी पीछोवडीके लीये कीतना असत्य लेख लिख जगत्में अपनि कैसी हाँसी करवाइ है क्या जगद्विख्यात चोरडिया जाति कमलागच्छोपासक है इसे कोइ अन्यथा कर सकेगा? अपितु कभी नहीं इस जातिका वडवृक्ष देखो " जैन जाति महोदय" कीताबमें इत्यलम् ।
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