Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 10
________________ मेरी समस्या : मेरा समाधान अनभ्यासे विष विद्या अर्थात् अभ्यास के अभाव में विद्या भी विष हो जाती है । शास्त्र विद्या का वैज्ञानिक अध्ययन अनुशीलन जब मौलिकता का उद्घाटन करता है वस्तुतः तभी वह अनुसंधान की वस्तु बन जाती है । अतीत कालीन शास्त्र-वाणी का अभिप्राय विशेष व्याख्या - विधि की अपेक्षा रखता है क्योंकि भाषा विज्ञान के स्वभाव की दृष्टि से शब्द का अर्थ कालान्तर में स्वचालित होता जाता है । शास्त्र-परम्परा का प्राचीनतम रूप भारतीय शास्त्र भाण्डारों में विद्यमान है । इस दृष्टि से जिनवाणी की सम्पदा जैन भाण्डारों में सुरक्षित है । हस्तलिखित जैन शास्त्रो की भाषा तथा लिपि विज्ञान एक विशेष विधि-बोध की अपेक्षा रखता है । इस दृष्टि से प्राचीन हस्तलिखित साहित्य का पाठानुसंधान और अर्थ - अभिप्राय आधुनिक प्राचीन लिपि में आबद्ध करना आवश्यक हो गया है । आधुनिक अनुसंधित्सु के समक्ष अनेक कठिनाइयाँ उसे जैन विषयों पर गवेषणात्मक अध्ययन-अनुशीलन करने पर आती हैं। सर्वप्रथम उसे विषय का विद्वान निर्देशक ही नही मिल पाता है। जो देश में विषय के विद्वान हैं वे प्रायः शोध तकनीक से अनभिज्ञ होते हैं, साथ ही विश्व विद्यालयी निकष पर खरे नहीं उतरते। जो विश्व विद्यालय अधिनियम के अन्तर्गत समर्थ शोध-निर्देशक है उन्हें जैन शास्त्र तथा वाणी का सम्यक् ज्ञान नहीं होता । इसी क्रम में विषय का art और तत्सम्बन्धित सामग्री संकलन अनुसंधित्सु के लिए शिर-शूल बन जाता है । जैन भाण्डारों में लुप्त-विलुप्त शास्त्रों की खोज लिपि - विज्ञान को न समझ पाने की बीज वस्तुत उसे नैतिक स्खलन तथा सत्य हनन करने-कराने के लिए विवश करता है । जो स्तरीय शोध प्रबन्ध तैयार हैं, जिनकी विधिवत परीक्षा हो चुकी है और जिन्हें उत्तीर्ण घोषित किया जा चुका है, किन्तु उनके प्रकाशन की समस्या है। इन सभी समस्याओ ने एक ऐसे संस्थान की स्थापना करने के लिए मुझे प्रेरित किया जहाँ उपलब्ध हों शोध विषयक सभी समस्याओं I ( } ) toutes sesuatu.

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