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प्रश्न ये उक्त्त पुण्य प्रकृतियाँ क्या अपने आप फल देने में समर्थता रखती है ?
उत्तर -- र कर्म बाधने या भोगने का समय उपस्थित होता है तन उस समय आत्मा वाल, स्वभाव, निर्यात कर्म और पुरुषार्थ इन पाच समवायों को एकन कर ऐता है। और जब ये पाच समवाय एक हो जाते
ईतर आत्मा इनके द्वारा फ्ला का अनुभ
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करने लगता है
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प्रश्न – इन पाच समयाया की सिद्धि में कोई दृष्टात देकर समझाओ ?
उत्तर -जिस प्रकार + कृपिपल ( बिसान ) पो अपने सेम धान्य बीना है सो प्रथम तो उस वान्य
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के बीजने का समय (काल) ठीक जन काल ठीक है तर धान्य शुद्ध क्योंकि जिस छीन का अकुर देने यही बीज्ञ सार्थक हो सकता है अन्य नहीं ।
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होना चाहिये ।
होना चाहिये का स्वभाव है
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जन स्वभाव शुद्ध हे तत्र निर्यात अर्थात बाहिर की
निया भी शुद्ध होनी चाहिये। इसी प्रकार उस पीजने आदि का कर्म भी यथावत होना चाहिये ।
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