Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 186
________________ ब्रह्मचर्य। जिस प्रकार आकाश मय पदार्थों का आधार है और मव पदार्थ आकाश में आधय रूप में ठहरे हुए हैं ठीक उसी प्रकार मर्व गुणों का आधार एक प्रह्मचर्य ही है । तथा जिस प्रकार एक वृक्ष के आश्रित अनेक पर पुष्प आर फल ठहरते है ठीक उसी प्रकार प्रत्येक गुण का आश्रयभूत एक प्रक्षचर्य तथा जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को जगती का आश्रय है ठीक उसी प्रकार प्रत्येक गुण प्रवचर्य के आश्रयभून होर रहता है। __ तथा जिस प्रकार सब ज्योतियों में सूर्य की ज्योति अत्यत प्रकाशमान है ठीक उमी प्रकार प्रत्येक गुणों में ब्रह्मचर्यरूप गुण अतीय प्रकाशमान है । तथा जिम प्रकार प्रत्येक शान्तमय पदार्थों में चन्द्रमा शात और प्रकाश गुण के धारण करनेवाला है ठीक उसी प्रसार प्रत्येक प्रतों में अपने अद्वितीय गुण के धारण करनेयाला ब्रह्मचर्यनत है। तथा जिम प्रकार समुद्र गभीरता गुण से युक्त है ठीक उभी प्रकार सर्व गुणों का आश्रयभूत एक ब्रह्मचर्य व्रत है।

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