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(५) शब्दनय - जो व्याकरण की गीति से शब्द को कहे । जसे पुल्लिंग द्वारा शब्द को स्त्री के अर्थ में कहना । ( ६ ) समभिरूढ़नय - जो शब्द का अर्थ न घटते हुए भी किसी पदार्थ के लिये ही किसी शब्द को लोक मर्यादा कं अनुसार प्रयोग करे ! जैसे गाय को गौ कहना ।
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(७) एवंभूतनय - जिस पदार्थ के लिये जितने शब्द हो उनमें से जब वह जिस शब्द के अर्थ के अनुसार क्रिया करता हो तब वहही कहना । जैसे दुबली स्त्री को शब्द श्रवला कहना | +
स्याद्वाद - स्यात् अर्थात् किसी अपेक्षा से वाद अर्थात् कहना सो स्याद्वाद है । एक पदार्थमें बहुतले विरोधी सरीखे स्वभाव भी होते हैं। उन सबका वर्णन एक समय में हो नहीं सकता । एक २ ही स्वभावका होसकता है। तब जिस स्वभाव को कहना हो उसमें स्यात् यानी कथंचित् या किसी अपेक्षासे ( from some point of view ) यह ऐसा है कहना सो स्याद्वाद है । जैसे एक पुरुष एक ही समय में पिता, पुत्र, भाई, भानजा मामा आदि अनेक रूप है, तब कहना कि स्यात् पिता है अर्थात् किसी अपेक्षा से ( अपने पुत्र की दृष्टि से ) पिता है, स्यात्पुत्रः - किसी अपेक्षा से (अपने पिता की दृष्टि से) पुत्र है। स्यात् भ्राता - अपने भाई की अपेक्षा भाई है; इत्यादि । इसी तरह यह श्रात्मा श्रस्ति स्वभाव, नास्ति स्वभाव, नित्य स्वभाव, अनित्य स्वभाव, एक स्वभाव, अनेक स्वभाव + गम् संग्रह व्यवहार ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढैवं भूतानयाः ॥ ३३ ॥
( तत्वार्थ सूत्र श्र० १)