Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ BE ऊर्ध्वलोक, तिरछेलोक तथा अधोलोक इन तीनों लोकों में कुल आठ करोड छप्पन लाख सत्ताणवे हजार चार सौ छयासी (85697486) शाश्वत चैत्य है उनको मैं वंदन करता हूँ। उपर्युक्त सब चैत्यों में विराजमान नौ सो करोड (नौ अरब) पच्चीस करोड, त्रेपन्न लाख, अट्ठाईस हजार, चार सौ, अट्ठासी (9255328488) शाश्वत जिन प्रतिमाओं को मैं वंदन करता हूँ। * जंकिंचि सूत्र * . जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए। जाइं जिण बिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि ||1|| * शब्दार्थ * जं किंचि :- जो कोई। जाई :- जो। नाम तित्थं :- नाम मात्र से भी प्रसिद्ध ऐसे तीर्थ है। जिण बिंबाई :- जिनबिम्ब है। सग्गे :- स्वर्ग में। ताई :- उन। . पायालि :- पाताल में। सव्वाइं :- सब को। माणुसे लोए :- मनुष्य लोक में। वंदामि :- मैं वंदन करता हूँ। भावार्थ :- (सामान्य जिन तीर्थों तथा जिन बिम्बों को नमस्कार) स्वर्गलोक, पाताल लोक और मनुष्य लोक में (उर्ध्व, अधो तथा मध्यलोक में) जो कोई नाम मात्र से भी तीर्थ है तथा उनमें जो प्रतिमाएं विराजमान है, उन सबको मैं वंदन करता हूँ। * णमुत्थुणं (शक्रस्तव) सूत्र * ' णमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ||1|| आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं ||2|| पुरिसुत्तमाणं, भगवंताणं पुरिस - सीहाणं, पुरिस - वर पुंडरीआणं, सर्वोत्तम ऐश्वर्य रूप यश श्री पुरिस - वरगंधहत्थीणं ।।3।। णं, लोग - नाहाणं, लोग - हिआणं, लोग - पईवाणं लोग - पज्जोअगराणं ।।4।। णमुत्युणं अरिहंताणं सुरासुरेन्द्र पूजित व अष्ट प्रातिहार्य युक्त धर्म प्रवर्तक आइगराणं श्रुत धर्म द्वादशांगी के प्रारम्भकर्ता तित्थयराणं चतुर्विध संघ को स्थापित करने वाले For Persona etohy mereeeeeeeeeeeeeeeeeeeee www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146