Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 106
________________ * शब्दार्थ * अरिहंत चेइयाणं :- अर्हत् चैत्यों के, अर्हत प्रतिमाओं के। बोहिलाभ वत्तियाए :- बोधिलाभ के निमित्त से चैत्य बिम्ब, मूर्ति अथवा प्रतिमा निरुवसग्ग वत्तियाए :- मोक्ष के निमित्त से करेमि :- करता हूँ, करना चाहता हूँ। सद्धाए :- श्रद्धा से, इच्छा से काउस्सगं :- कायोत्सर्ग। मेहाए :- मेधा से, प्रज्ञा से वंदण वत्तियाए :- वंदन के निमित्त से। धिईए :- धृति से, चित्त की स्वस्थता से पूअण वत्तियाए :- पूजन के निमित्त से धारणाए :- ध्येय का स्मरण करने से, धारणा से सक्कार वत्तियाए :- सत्कार के निमित्त से अणुप्पेहाए :- बार बार चिंतन करने से सम्माण वत्तियाए :- सम्मान के निमित्त से वड्डमाणीए :- वृद्धि पाती हुई, बढती हुई ठामी काउसग्गं :- मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। भावार्थ :- अर्हत् प्रतिमाओं के आलम्बन से कायोत्सर्ग करने की इच्छा करता हूँ। वंदन का निमित्त लेकर पूजन का निमित्त लेकर, सत्कार का लेकर, सम्मान का निमित्त लेकर, बोधिलाभ का निमित्त लेकर, तथा मोक्ष का निमित्त लेकर बढती हुई, इच्छा से बढती हुई प्रज्ञा से, बढती हुई चित्तकी स्वस्थता से, बढती हुई धारणा से और बढती हुई अनुप्रेक्षा से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। * णमुत्थुणं शक्रस्तव सूत्र * . णमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ||1|| .. आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं ||2|| पुरिसुत्तमाणं, पुरिस - सीहाणं, पुरिस वर पुंडरीआणं, पुरिस वरगंधहत्थीणं ।।3।। लोगुत्तमाणं, लोग नाहाणं, लोग हिआणं, लोग पईवाणं लोग पज्जोअगराणं ।।4।। अभय - दयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं ।।5।। धम्म दयाणं, धम्म देसयाणं, धम्म नायगाणं, धम्म सारहीणं, धम्म वरचाउरंत चक्कवट्टीणं ||6|| दीवोत्ताणं सरणगइपइट्ठाणं अप्पडिहय वर नाण दंसण धराणं, विअट्ट छउमाणं ||7|| जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ।।8।। सव्वन्नृणं, सव्वदरिसीणं, सिव - मयल - मरुअ - मणंत मक्खय मव्वावाह मपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं जिअ भयाणं ।।9।। ....44401111... |101

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