Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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३. न कर्ता न भोक्ता/ न कर्ता- सांख्य मत
४. न भोक्ता - वेदान्त मत
५.
नास्ति निर्वृति - मीमांसक मत
६. अस्ति मुक्ति: परं तदुपायो, नास्ति
सर्वभावानां नियतत्वेनाकस्मादेव भावादिति । - नियतिवादी
यहाँ नियतिवादी का मन्तव्य है कि मुक्ति तो है, किन्तु उसका उपाय नहीं है। सभी भावों (पदार्थों/ कार्यों) के नियत होने से सब कुछ अकस्मात् ही होता है। तिलोकऋषि द्वारा निबद्ध काव्य में नियतिवाद
आधुनिक युग के सन्त श्री तिलोकऋषि (वि.सं. १९३०) ने 'नियतिवाद' को इस प्रकार पद्यबद्ध किया है१४२_
भवितव्यवादी कहे सुणरे स्वभाव मूढ, भवितव्य बिना कोउ काज न सरत है। अंब मोर बसंत में लागत है केई लाख, केई खिरे-खोटो केई अंब के परत है ।। उदधि तिरत फुनि भ्रमत जंगल बीच, करत जतन कोउ भावो न टरत है। होतब के वश बिनचिंतव्यो मिलत आप
बिन ही नियत होणहार न टरत है। मन्दोदरी समझायो रावण को भाँत भाँत, मानो नहीं बात स्वयं चक्र थी मरत है। मदिरा प्रसंग द्वारामति को दहण सुण, करत जतन हरि तोई भी जरत है। परशुराम फरसी से मारे क्षत्री केई लाख, सम्भु मार लियो ताकूँ, फरसी हरत है।
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नियतिवाद २७३
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