Book Title: Jain Darshan ki Ruprekha
Author(s): S Gopalan, Gunakar Mule
Publisher: Waili Eastern Ltd Delhi

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Page 14
________________ बैन दर्शन स्वतंत्र धर्म था और इसके स्रोत पहले के युग में रहे हैं। एक प्राचीन बौद्ध सूब सामगाम सुत्त में उल्लेख है कि पावा में एक निणंड मातपुत की मृत्यु हो गयी है। बौद्ध अन्य मन्तिम निकाय में एक स्थान पर बुद्ध और मिठ के एक पुत्र के बीच हुए वाद-विवाद का प्रसंग है। इस प्रकार बोट अन्यों में बनों के एक वर्ग के बारे में जानकारी मिलती है, इसलिए इस मान्यता को बल मिलता है कि बौद्धों के अन्तर्गत जैनों का निश्चय ही कोई उपवर्ग नहीं था। विशेष बात यह है कि बौद्ध ग्रन्थों में कहीं पर भी जानकारी नहीं मिलती कि निम्रन्यों का यह सम्प्रदाय नवसंस्थापित था। अतः निश्चय ही बुद्ध के काफी समय पहले से जैन धर्म का अस्तित्व रहा होगा। याकोबी लिखते हैं : "बोटयों में. पिटकों के प्राचीनतम अंशों में भी. अक्सर नियों के उल्लेख मिलते हैं। परन्तु किसी भी प्राचीन जैन सूत्र में मुझे बौद्धों का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिला है, यद्यपि उनमें जमालि, गोशालक तथा अन्य नास्तिक उपदेशकों के बारे में लम्बी कथाएं मिलती हैं। चूंकि यह स्थिति दोनों सम्प्रदायों के कालान्तर के परस्पर सम्बन्धों की स्थिति से बिलकुल उलटी है, और क्योंकि यह हमारी इस मान्यता से मेल नहीं खाती कि दोनों सम्प्रदायों का उदय एक ही समय में हुआ है, इस. लिए हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि बुद्ध के समय में नियों का सम्प्रदाय नया नहीं था। पिटकों का भी यही मत जान पड़ता है, क्योंकि उनमें भी हमें किसी विपरीत मन्तव्य की सूचना नहीं मिलती। इससे हमारे इस तर्क को समर्थन मिलता है कि बुद्ध और महावीर के पहले जैन धर्म का अस्तित्व था। जैन धर्म की प्राचीनता सम्बन्धी हमारी इस मान्यता की पष्टि के लिए एक और महत्त्व का उल्लेख मिलता है। बुद्ध और महावीर के समकालीन उपदेशक गोशालक जिन छह अभिजातियों का उल्लेख करते हैं, उनमें में एक निगंठों की है। यदि गोशालक के समक्ष ही जैन सम्प्रदाय का जन्म हुआ होता, तो वे निश्वप. ही निगंठों की एक प्रभावशाली अभिजाति स्वीकार नहीं करते। इस संदर्भ में याकोबी महत्त्व का एक और मुद्दा प्रस्तुत करते हैं। उनके मतानुसार जैन धर्म के बारे में इस भ्रांति का कारण यह है कि जैन तपा बार दोनों ही धर्मों में कुछ समान शब्दों का व्यवहार होता है। बुद्ध और महावीर दोनों के लिए दिन, महंत, महावीर, सब सुनततवागत, सिकर, सम्बुद्ध, मुक्त इत्यादि अभिधानों का उपयोग हुआ है, यद्यपि जैन परम्परा में चौबीसवें तीर्थकर के लिए सिर्फ कुछ ही शब्दों का इस्तेमाल हवा है और बौर परम्परा में कुछ अन्य शब्दों का। अतः अनुमान यह लगाया जाता है कि बैनों ने ये शब्द बौद्धों से लिये हैं। 10.6.ए., 1x, पृ. 161 .

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