Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 63
________________ ( ५९ ) रस्ते में कांटे शूल लगाना नहीं अच्छा || ३ || काटे जो गला और का अपना कटायगा । धोके में आके सरका कटाना नहीं अच्छा ॥ ४ ॥ करते शिकार जीवोंका आती नहीं दया । यों खून बे जुबांका बहाना नहीं अच्छा ॥ ५ ॥ अपनी सी जान जानिये औरों की जानको । न्यामत किसी के दिलको सताना नहीं अच्छा ॥ ६ ॥ ८५ तज़ ॥, किस विध कीने करम चकचूर | उत्तम छिमापे जिया चम्भा म्हाने आवे || किस० ॥ सुनियो मेरी बिपति जिनराज । कर्म महा बैरी दुख देवें ॥ सुनियो० ॥ टेक ॥ पाप पुन्य मिल बेड़ी डारी । चौरासी में किया बे लाज ॥ चारों गतीनें मैं फिर आया । बन आया नहीं कोई इलाज || सुनियो० ॥ १ ॥ सात विषय में मोह लगाया । भूल गया निजराज समाज ॥ ज्ञान ध्यान धन सब हर लीनो । करदिया कौड़ी को मोहताज ॥ सुनियो० ॥ २ ॥ त्रिभवन नाथ सुना: जश तेरा ।

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