Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 22
________________ चपला नाम सिंघ दुखदाई। ___ जल बन शैल अगन के माहीं॥ काम न आवे बंधु भाई। होता है इक धर्म सहाई ।। धर्म है मार, मुखकरता, दुख हरतार, मददगार। न्यामत तुझे आधार, करताकरता है यह पतितनका उसार ॥ शरण० ॥१॥ (चाल) कवालो (ताल-कहरवा) करल मत करना मुझे तेगो __ नवर देखना जुल्म करना छोड्दो साहेव खुदा के वास्ते । जुल्म अच्छा है नहीं करना किसी के वास्ते ॥ १ ॥ रहम कर गौवों पै बस मत जुल्म पर बांधो कमर ।. क्यों सताते हो किसी को चार दिन के वास्ते ॥२॥ कुछ दया दिल में धरो गौ मात की रक्षा करो । दूध घी देतो है यह पीरो जवां के वास्ते ॥३॥ सच कहो खुद गजे और जालिम है वह या कि नहीं। वे जुबां को मारते अपने मजे. के बासले ॥४॥ काट गल औरों का मांगें खैर अपनी जान की ।

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