Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha Author(s): Shreechandmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ संपादकीय प्रज्ञापना सूत्र का शब्दानुक्रम और छाया बनाते समय वनस्पतिपरक शब्दों की छाया व अर्थ की समस्या उपस्थित हुई। * उसकी टीका को देखा तो कुछेक शब्दों की छाया प्राकृतशब्दसम रूप में मिली। उसका अर्थ स्पष्ट न होने से प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा रहा। * मन में भावना जागी। इन वनस्पतिवाचक शब्दों की छाया व अर्थ का अन्वेषण करना चाहिए। * मैंने अपनी भावना आत्मीय सहयोगी मुनि श्री दुलहराज जी के सामने रखी। * उन्होंने प्रोत्साहन की भाषा में कहा-“यदि यह काम आप करते हैं तो अमर हो जायेंगे।" * उनके उत्तर में प्रेरणा सहित समर्थन था। भावना को बल मिला। युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ (आचार्य श्री महाप्रज्ञ) के सामने अपनी भावना रखी तो उत्तर मिला “काम हो जाए तो अच्छा * मन में निश्चय किया यह काम अब करना ही है। भावना प्रबल थी पर मार्ग स्पष्ट नहीं था। आर्युवेदीय शब्दों का ज्ञान नहीं के समान था। * टीकाओं को देखा तो मार्ग स्पष्ट नहीं हुआ। * बृहतहिन्दीकोश को देखा। उसमें कुछ शब्दों की पहचान मिली। * हिन्दी भाषा के कोश में उन शब्दों का अर्थ भी मिला, जो संस्कृत कोश में नहीं मिला। मन में संतोष की रेखा उभरी। * किसी का सुझाव आया श्रीचंद्रराज भंडारी का वनौषधिचंद्रोदय जो दस भागों में है, उनका निरीक्षण करना चाहिए। ★ उनको देखा। उनमें वनस्पतियों के शब्दों का अनक्रम है पर पयार्यवाची नामों की अल्पता है। जो शब्द मैं खोजना चाहता था वह उनमें नहीं के समान है। * उत्साह आगे नहीं बढ़ा पर निराशा को भी स्थान नहीं दिया। * खोज की भावना प्रबल थी. चाह को राह मिली। * युवाचार्य भी महाप्रज्ञ की सेवा में श्री झूमरमल जी बेंगाणी (बिदासर) बैठे थे। संयोग से मैं भी सेवा में पहुँचा। आपने फरमाया झूमर का सहयोग लिया या नहीं? * मेरा उत्तर था अभी तक तो नहीं। * वे आयुर्वेदीय डिग्री प्राप्त वैद्य नहीं हैं, किन्तु हमारा अनुभव है कि वे बड़े से बड़े परिपक्व वैद्य से कम नहीं हैं। __ उन्होंने आचार्य श्री तथा अन्य साधु-साध्वियों की चिकित्साएं की हैं, करते हैं। * निघंट और शब्द कोशों तथा अन्यान्य आयुर्वेदीय साहित्य का उनके पास विपुल भंडार है। भावप्रकाशनिघंटु शालिग्रामनिघंटु, शालिग्रामौषधशब्दसागर आदि कई ग्रंथ उन्होंने मुझे उपलब्ध कराए। * ग्रंथों की उपलब्धि होने पर मेरे गति को बल मिला। मैं उत्साह के साथ चल पड़ा। * कुछ चला फिर अवरोध आया। निघंटुओं में शब्दों की अनुक्रमणिका भिन्न-भिन्न पर्यायवाची नामों से है। करेली शब्द के लिए धन्वन्तरि निघंटु में काण्डीर शब्द है, सोढलनिघंटु में गंडीर शब्द है, अन्य निघंटुओं में दूसरा शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |Page Navigation
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