Book Title: Jagatkartutva Mimansa
Author(s): Balchandra Maharaj
Publisher: Moolchand Vadilal Akola

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Page 52
________________ महाशय ! आप के जगत्कर्ता हर्ता त्रिगुणात्मक अवतारों के संबन्ध में भर्तृहरि जी का अभिप्राय तो आप को उक्तश्लोक से विदित . हुआ होगा। आश्चर्य है कि जगत् के कर्ता हर्ता होकर भी जब कामदेव के वशीभूत होगए, तो जो कामी क्रोधी होगा वह दोषरहित कैसे हो सकता है ? . दैत्यों की छाती पर पग रख कर रौद्र रूप से सशस्त्र खड़े हैं ऐसे देवों को शान्त, दान्त, समाधिस्थ कौन कह सकता है ! यदि तटस्थ होकर देखा जाय तो उक्त देव सर्वज्ञ किंवा राग द्वेष रहित नहीं कहे जासकते । और सृष्टि के कर्ता हर्ता भी उनका मानना सर्वथा अनुचित होगा । पक्षपाती जन चाहे बेशक ! मान लें क्योंकि मानना अपने २ मन पर निर्भर है। परंतु न्यायशील मनुष्य तो न्याययुक्तही बात को स्वीकार करेगा। प्रस्तुत भारतवर्ष में अनेक धर्म दिखाई देते हैं। कोई लोगों की यह समझ है कि, वैदिक धर्म और बौद्ध धर्म प्राचीन है और दूसरे सब धर्म इन दोनों से पीछे स्थापित हुए हैं और जैन धर्म बौद्धों की शाखा किंवा बौद्धों के समान होने से बौद्ध के समकालीन माना जाय तो कुछ हर्ज नहीं। इस बात में हमारी समझ से ऐसे ज्ञान रखनेवालों की पूरी भूल है क्योंकि जैनधर्म इन दोनों (वैदिक बौद्ध ) धर्मों से भी बहुत प्राचीन है यह बात हम सप्रमाण प्रथम लिख आये हैं इसलिये यहाँ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है । जैनधर्म को बौद्धों की शाखा किंवा बौद्धौं के समान समकालीन मानना अज्ञता का सूचक है। हाँ, शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य आदि द्वैतवादी, वेदान्ती, सांख्य,' पातंजल, जैमिनीय, काणाद, गौतमीय, रामानुज, बल्लभ, माध्व, गुरु नानक, कबीरं, आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, खामीनारायण इत्यादि मतों की गणना विशेष करके वैदिक मत में ही हो सकती है और उक्त पंथो को वेदों की शाखारूप किंवा वैदिक धर्म के पीछे के कहने से कोई हर्ज नहीं। यद्यपि उक्त पंथों का मन्तव्य वेदों से कुछ कुछ नहीं भी मिलता और ग्रंथ भी प्रत्येक पंथ वालों ने १ प्राचीन सांख्य आदि कोई २ दर्शन वाले ईश्वर को नहीं भी मानते हैं

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