Book Title: International Jain Conference 1985 3rd Conference
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International
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आचार्य श्री सुशील कुमार जी
महाराज
शुभाशीर्वाद
तीसरी अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस जैन समाज और अहिसा अनुयायियों की एकता के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है। मेरा यह दृढ़ विचार रहा है कि भगवान महावीर के आदर्श और सिद्धांत किसी एक देश के लिए नहीं प्रत्युत समस्त विश्व के लिए हैं । उस महापुरुष की वाणी को भौगोलिक सीमाओं में नहीं बांधा जाना चाहिए, बल्कि उसका उपयोग होना चाहिए समस्त विश्व की अणु की विभीषिका से भयाक्रान्त जनता को प्रेम, सहअस्तित्व एवं अभय का अमोघ मंत्र प्रदान करने के लिए ।
जनवरी २४, १६८५
ओर से अथक प्रयास एकता का प्रयास करने
इसी संकल्प और उद्देश्य को ले कर मैंने आज से १० वर्ष पूर्व इस कार्य को करने के लिए विदेशों में जाने का निश्चय किया था । मेरा सारा जीवन प्रभु महावीर के आदर्शों एवं जैन समाज की एकता एवं उत्थान के लिए समर्पित रहा है। मैंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कभी व्यक्तिगत सुख या प्रशंसा की परवाह न करके अपनी किया है । मुझे सन्तोष है कि आज जैन समाज विश्व के स्तर पर की सोच पा रहा है। पहली दो अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेन्सों से इस उभरी है, उसे इस तीसरी कान्फ्रेंस से सशक्त बल मिलेगा । मेरी यह कामना है कि जैन समाज अपनी एकता के लिए, विश्वशान्ति में भगवान महावीर के सिद्धांतों की उपयोगिता के प्रचार के लिए प्रयास करे और प्रयत्न करने का यही सर्वाधिक उपयुक्त समय है । इस कान्फ्रेंस से अहिंसात्मक पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय एकता व विश्वशान्ति का सार्वभौम रुप जन चेतना का रुप ले ।
एकता की जो चेतना
अरिहंतों के धर्म और अहं विज्ञान की अभिनव विधा से विश्व मानव आध्यात्मिक मूल्यों के साथ जुड़ कर विश्व को सत्यं शिवं सुन्दरं रूप प्रदान करने में अपना योगदान दे । इन सद्प्रयासों में मेरा प्रयत्न और मेरा आशीर्वाद आपके साथ रहा है, आपके साथ रहेगा ।
आचार्य मुनि सुशील कुमार
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