Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( २०२ ) कितदृष्टिनुं ए लिंग, उचित उपरें राखे रंग ॥ ३७ ॥ चोमासें श्रालस परिहरे, अष्टप्रकारी पूजा करे ॥ नित्य नैवेद्य करे सुसार, विनैवेद्य करे नहिं आहार ॥३८॥ चोमासे दीपक दिन शिरें, अष्ट मंगल देहेरामां करे ॥ चाले तो नित्य मुनिने देह, पोतें पण ते श्राहार करेह ॥ ३९ ॥ नहिं कर पवें दीये ते जला, वरषमांहि दिव सकेटला || श्री देव गुरुनी जक्तिज करी, पढें आ हार लिये परवरी ॥ ४० ॥ चाले तो नित्य करे स नात, नहिं कर मासें वावरे हाथ ॥ एक सनात वरसें पण करे, ध्वजा चढावे ते नर तरे ॥ ४१ ॥ चाले तो नित्य पूजे प्रासाद, चोमासें म करो पर माद ॥ नहिं कर वरसें केटलीक वार, पूजी पामे न वनो पार ॥ ४२ ॥ वालाकूंची वस्तर धरे, चाले तो नित्य दीवो करे ॥ धूपादिक देहरे मूकीयें, धर्मामें नर नवि चूकीयें ॥ ४३ ॥ नोकरवाली नें चरवला, पोशालें मूको ऊजला ॥ पाट पाटला पोतें करे, ध र्मामें पंतां तरे ॥ ४४ ॥ प्रजावना संघवात्स ल्य करे, केटलो एक काउस्सग्ग नित्य धरे ॥ त प सफाय करे पच्चरकाण, सचित्त तजे ते पंक्ति जाण ॥ ४५ ॥ धाणा जीरुं श्रजमो धान, राई
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