Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BES lapurna ॥ हितशिदानो रास ॥ श्रावक झषन दासजी विरचित. ॥ तेनी ॥ द्वितीयावृत्तिने समस्त श्रावकजनोने अत्यंत उपयोगी जाणीने. श्रावक नीमसिंद माणकें. श्रीमुंबापुरीमां. निर्णयसागरनामक मुद्रायंत्रमा मुद्रित करावी छे. संवत् १९५२. सन १८९५. आ ग्रंथने फरी छापवानो हक्क छपावनारे. पोताने स्वाधीन राख्यो छे. For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ नमः सिझम् ॥ ॥ अथ ॥ ॥श्रावक झपनदासजीविरचित हित शिदानोरास प्रारंनः॥ -- - कासमीर मुखमंगणी, नगवति ब्रह्मसुताय॥तुं मा तुं नारती, तुं कविजननी माय ॥१॥ तुं स Fair तुं शारदा, तुं ब्रह्माणी सार ॥ विउषा माता ही,तुक गुणनो नहिं पार ॥२॥ हंसगामिनी तुं वाघेश्वरी तुं होय ॥ देवि कुमारी तुं सही, तुक श्रवर न कोय ॥३॥ नाषा तुं ब्रह्मचारिणी, तुं दे वाणी ॥ हंसवाहिनी तुं सही,गुण सघलानी Kar ॥४॥ ब्रह्मवादिनी तुं सही, तुं माता मति । तुं रमजे मुख माहरे,चिंत्युं काज करेह ॥५॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ । चिंत्युं काज करेगुं आज, तुक नामें सर्व For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सरियां काज ॥ तुक नामें बुद्धि पा, सार, ज्ञान विना जीवित धिक्कार ॥ १॥ ते दारिखी जगमां न ला, झान सहित दीसे गुणनिला ॥अर्थ सहित ने शास्त्र रहित, ते नर नावे महारे चित्त ॥॥ ज्ञानी कापडी आगल कस्यो, मूरख महोटो नूषणनयो॥ बहु आजरणे शोने नहि, ज्ञान जलो तो शोने त हीं ॥३॥ ज्ञानी नर संघले पूजाय, नरपति निज नगरेंज मनाय ॥ ज्ञानी जलो नर जोहु कुरूप, कोण जुवे कोयलनुं रूप ॥४॥ कोयल रूप स्वर म धुरो जेह, तपस्वीरूप दमाज कहेह ॥ पतिव्रता ना रीन रूप, कुरूपने विद्याज सुरूप ॥५॥ अधिकुं रूप ते विद्या कही, गुप्त धन ते विद्या सही ॥ यश सुखनी देनारी एह, वाटें बांधव सरिखी जेह ॥६॥ विद्या राजनवनें पूजाय, विद्याहीन अज पशुत्रा गाय ॥ लक्ष्मी पण जुगतो शोजती, जो उपर बेठी सरखती ॥ ७॥ नाणा उपर अदर नहिं, ते नाएं नवि चालेकहिं॥जिहां अक्षर तिहां महत्त्व ते बह, उत्तम अंगने पूजे सहु ॥ ७॥ तिण कारण अधिकी सरखती, जेहथी गणधर हुआ यती ॥ आचारिज ग उवसाय, पंमित पद ते तुझथी थाय ॥ ए॥ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुगति तणी पदवी पण होय, ज्ञान समुं नहिं दूजूं कोय॥जेहथी सकल नेद जल लहे, स्वर्ग नरगनी वातो कहे ॥१०॥ कहे पृथिवी सायरनां मान, नदी मंगर ने नगर निधान ॥ जीव अजीवना नांखे नेद, नांखे विवरी त्रण्ये वेद ॥ ११॥ जाणे पुण्य पापनी वात, साधु धर्मश्रावक अवदात ॥जव्य अन्न व्य ज्ञानी उलखे, मूरख श्रणसमजु सहु नखे ॥१२॥ तेणें ज्ञान अधिक कहेवाय, लहे शारद तणे पसाय ॥ वेद पुराण पिंगल तो थयु,प्रथम नाम शारदर्नु ग्रह्यु ॥१३॥ कवित काव्य ने गाथामांहि,नाषा विण नवि चाले क्यांहि ॥आगम चरित्त रास ने नास, सचराच र जग ताहारो वास ॥१४॥ तुं पुत्री बो ब्रह्मा तणी, ताहारी शोना दीसे घणी ॥ सखरूं रूप सुकोमल अंग, तुं माता मुफ राखे रंग ॥१५॥ गुण ताहारा नवि लाधे पार, तुं करजे कविजननी सार ॥ आज 'हुट हैडे उबास, नीपालं हित शिदारास ॥ १६ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ कान्ह वजाडे वांसली ॥ ए देशी॥ ॥राग आशावरी तथा सिंधूडो ॥ ॥ रास रचुंरंगें करी, मांहे नाव जलेरा ॥ नीति For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) शास्त्रना बोलडा, सिझांतज केरा ॥१॥ चरित्रनेद कहुं जला, मांहे लौकिक बोलो ॥ सुणतां पंमित पणुं वधे, नर टले निटोलो॥२॥वैदक शास्त्रमांहि सटी. कविघटना केती॥ज्योतिष नेद कहेशं सह।, विधि श्रावक जेती ॥३॥ साधुपंथ कहुं सही, वली खपन विचारो॥विधियें विनति सांजलो, गुण वाधे सारो॥४॥ विधि जाणे जाग्या तणी, नव पद किम गणियें ॥ नोकरवाली किसि कही, ते विधि पण सु णियें ॥ ५॥ केम पडिक्कमणुं कीजिये, पच्चरकाण सणीजें ॥ केम शंकाशल्य टालिये, केम वस्त्र धरी में ॥६॥ किम जिनमंदिर जूहारियें, किम वंदन कीजें॥पूजाविधि सुणजो सहु, विधि जोजन सुणी जें॥॥ दान केही परें दीजीयें, केम वणज करीजें ॥ सनामांदे केम बेसीयें, जल किणिविध पीनें ॥७॥ दौरकर्म केही परें करे, सुण विधि अंघोलो ॥ शरम केही पेरें कीजियें, सुण विधि अबोलो ॥ पुरुषं केही विध बोलवं, किम लोग जजेवो ॥ सेवकनी वि धि सांजलो, साहेब पण केहवो ॥ १० ॥ केही परें मारग हीमीयें, शुज करणी केही गर्न तणा नेदज सुणी, जीव चेतो तेही ॥ ११ ॥ वाणीही दंग नेद For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) ज कहुं, बोल बीजा सुणजे ॥ श्रावक हितने कार णे, गुण पांत्रीश गुणजे ॥१॥ सर्व गाथा ॥ ३३ ॥ ॥ ढाल ॥ बे कर जोडी ताम रे,लना वीनवे ॥ ए देशी॥ ॥श्रावक गुण पांत्रीशो रे, व्यवहार शुरु सही ॥ शिष्टाचार प्रशंसतो ए ॥१॥ कुलाचार एक धर्मो रे, अने अन्य गोत्रमा ॥ विवाह काज करे सही ए॥२॥ चोथो गुण अंग धार रे, पापथकी बीये ॥ देशाचार विधि श्रादरे ए ॥ ३ ॥ अवर्णवाद म बोल रे, श्रतो ने बतो॥ निश्चे राजादिक तणो ए ॥॥ जो निलो पामोश रे, शुजस्थानकें रहे ॥ बहु बारे घर वरजीयें ए ॥५॥ करिजें उत्तम संग रे, ए गुण आ उमो ॥ मात पिता गुरु मानवा ए ॥६॥ उपव के संगम रे, श्रावक परिहरे ॥ निंदनीय कारण तजे ए ॥७॥ आयपतने अनुसार रे, श्रावक व्यय करे॥ वेष धरे चित्त जो करी ए ॥॥ श्राठे बुझिनोजा ण रे, ए गुण चउदमो ॥ धर्मकथा नित्य सांजले ए ॥॥ जोजन करे सहि त्याज्य रे, पुरुष अजीरणे ॥ ए गुण जाणो शोलमो ए॥ १०॥ कालें जोजन नाव रे, शाता जोश करी ॥ लोलपणे जाजु नहिं ए For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१॥ धर्म अर्थ ने कामो रे, त्रण वर्ग साधतो॥ एक एक प्रति नवि हणे ए ॥१५॥ अतिथि साधु जेह रे, दीन दीण प्रति वली ॥ उचित साचवे निर्म ए ॥ १३ ॥ अननिनिवेशी एह रे, परप्रनाव त णो ॥ प्रणाम नहिं वली जेहने ए ॥ १४ ॥ श्रादर करे अत्यंत रे, देखी गुणवंता ॥ पक्षपाति होय तेह नो ए ॥ १५॥ हीं नहिंज अकालें रे, वरजे ते दे शडो ॥ गमन करे नहिं त्यां वली ए ॥ १६ ॥ वलि पोतानो चिंती रे,कार्यारंज करे ॥ ज्ञानवृद्धने पूजीयें ए॥ १७ ॥ पञ्चवीशमो गुण जोय रे, बंध स्त्रियादि क ॥ मे करे गुणवंतनो ए ॥१०॥ दीरघदृष्टि होय रे, आगलथी वली ॥ सर्व कामें बालोचतो ए॥१॥ कृत्याकृत्य विशेष रे, श्रावक जाणतो ॥ कीधो गुण नवि विसरे ए ॥ २० ॥ विनयादिक गुण जेह रे, कु ललजा धरे ॥ देखी दीन दया धरे ए ॥१॥ सौ म्याकार मुख सौम्य रे, कोमल वचनशुं॥पर उपका री परगडो ए ॥२॥ काम क्रोध मद लोल रे, श्रा नंद मानशं ॥ अंतरंग वैरी तजे ए॥२३॥ जीते ई जिय पांच रे, ए गुण पांत्रीश ॥ सामान्य पणे में श्रा णिया ए॥ २४ ॥ गुण समकित विशेष रे, व्रत बा For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे वली ॥ आगमथी सुणि श्राणजो ए॥ २५॥ सघ ला गुण संपूर रे, आणंदादिक ॥ सरखा ते नर जाणवा ए ॥ २६ ॥ सर्व गाथा ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ नर जे कडवां तुंबडां, गुणें करीने मीठ ॥ ते माणस केम विसरे, जेह तणा गुण दी ॥ १ ॥ ते अजाण्यां माणसां, रूपें जे राचंत ॥ दीवा ज्योति पतंग जिम, पंख सहित दाजंत ॥ ५ ॥ सखी सुगुण गुण माणसां, फरी न दीजें पूंग ॥ जो धार मलीयें नहिं, तो बेगथी ऊ॥३॥ वाला तुंहिं वरां सियो, गुण ढांक्या धूखेण ॥ जो गुण श्राणत पांदडे, तो न खणंत मूलेण ॥४॥ तेणें गुण अंगें श्रादरो, जांख्या जे पांत्रीश ॥ श्रावकधर्म योग्यज थश, श्रा राधो निशि दिस ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ६४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी॥ ॥शक श्रावकनां लक्षण एह, किम दिनकरणी कहियें तेह॥ किणि परें जागे पश्चिम राति,सुणजो पुरुष तजी परतांत ॥१॥श्रीश्रावकना विधिमां लद्यु, रत्नशेखर सूरीश्वर कडं ॥ निशासमय कार्यादिक जेह, मधुर खरेंज जगाडे तेह॥२॥पण गाढे नर For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (0) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोले नहिं, खोखारो पण वरज्यो सहि ॥ हुंकारो ने शब्द अत्यंत, ते न करे जे उत्तम जंत ॥ ३ ॥ कार सोय सुणो नर नारी, जागे रांधणी ने पाणिहारी ॥ व्यापारी पंथी कर्षणी, तस्कर चाले चोरी जणी ॥ ४ ॥ ति कारण बोल्यो रही, पश्चिम रातें जागे सही ॥ घोर निद्रायें नवि जागतो, दोय वें ते दो हिलो तो ॥५॥ धर्मार्थ ने त्रीजो काम, वि राधे नरनां नाम ॥ ज्ञान ध्यान करजो वली जाप, जिम टले जन्म मरण संताप ॥ ६ ॥ ७० ॥ ॥ श्लोक ॥ जन्मडुःखं जराडुःखं, मृत्युडुःखं पुनः पुनः ॥ सं सारसागरे दुःख, तस्माज्जागृत जागृत ॥ १ ॥ माता नास्ति पिता नास्ति, नास्ति जाता सहोदरः ॥ श्रर्थो नास्ति गृहं नास्ति, तस्माज्जागृत जागृत ॥ २ ॥ श्र शाहि लोकान् बाति, कर्मणा बहुचिंतया ॥ श्रायुः दायं न जानाति, तस्माज्जागृत जागृत ॥ ३ ॥ कामः क्रोधस्तथा लोजो, देहे तिष्ठति तस्कराः ॥ ज्ञानखङ्गप्र हारेण, तस्माज्जागृत जागृत || || सर्व गाथा ॥ ७४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ राति गमाई सोवतें, दिवस गमाया खाय ॥ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीरा जेसो मनुष्य नव, कवडी बदले जाय ॥१॥ काम क्रोध तृष्णा घणी, कंधल जाजो आहार ॥ मान घणुं निमा बहु, मुर्गति जावण हार ॥२॥ निषा आलस परहरी, करजे तत्त्वविचार॥ शुनध्याने मन राखजे, श्रावक तुक श्राचार ॥३॥ सर्वगाथा ॥७॥ ॥ ढाल ॥ ए ठिमी क्यां राखी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्स्युं विचारीने उठीजें, निजनाकें मन दीजें॥ वहेती होये ते गमनो पग, प्रथम नूमि ग्वीजें हो ॥१॥ नविका, शीख देखें तुम सारी ॥ ए यां कणी ॥ पवित्र गमें उन्नो रहे बेसे, पूरव उत्तर सा मो॥ नमस्कार जपे मंत्रादिक, मूकी घरनां कामो हो ॥२॥ नवि० ॥ निजमन ठाम राखवा गुणतो, नंदावर्त नवकारो ॥ कमलबंध शंखावर्त कहिये, अंगुलि अग्र अपारो हो ॥३॥ नवि॥ स ॥ ७ ॥ ॥दोहा॥ ॥सार वचन श्रवणें सुणि, पढ़ेरी अंबर सार॥ षन कहे नित्य समरियें, आदिमंत्र नवकार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ राग प्रजाती॥ ॥पंच परमेष्ठी नवकार जप जीवडा, जाप ‘सम पुण्य नहिं श्रवर कोई ॥ ध्यान नवकार मन निश्चल For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राखतां, तेहने मुक्तिनो माग होई ॥ तेहनो पंथन हिं अवर कोइ॥ पंच० ॥१॥ए आंकणी ॥ श्रा दि अनादि नित्य सिझनुं समरवू, जपतायरिय उवशाय सारो ॥ सकल मुनि समरतां पुण्य पहोंचे बहु, जीव सुखीयो सदा होय ताहारो ॥ मान तुं बोल ए पुरुष महारो ॥ पंच० ॥२॥ जपत अरि हंत जे हाथ माला विना, तेहने पुण्य ते सबल होई ॥ शंखमाला ग्रही जाप जिननो करे, सहस गुj फल तास जोश॥ काय आलस करो पुरुष कोश ॥ पंच॥ ३ ॥ वली विषुम ने रक्त रतांजली, क रिय माला को हाथ जाले ॥ सहस गुणुं फल ते हने त्यां हुवे, फटिक रत्ने दस सहस आले ॥ जश घणो तेहनो जगमाहे चाले ॥ पंच० ॥४॥ माला मोती तणी लाख नवकार फल, चंदनमाला फल कोडी देही ॥ दश कोडी नवकार फल हेममाला कही, कमलबंधे कोडाकोडि लेही ॥ वात धरजे मन मांहि एही ॥ पंच० ॥ ५॥ नोकरवाली जे गुणे रु प्रादनी, असंख्य नोकार फल तेह आपे ॥ अनंत नोकार फल तेह नर पामता, पत्रजीवानी जे हाथ थापे ॥ पापनां पमल ते त्यां न व्यापे ॥ पंच० ॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६ ॥ पूरुंज फल तस होय जिनवर कहे, हाथ लेतां जिके सूत्रमाला ॥ मुक्ति नगरी तणो तेह राजा सही, प्रथम पामे झछि रमणी बाला ॥ तेहनें पुर गज कोडि काला ॥ पंच० ॥ ७॥ आप अंगुष्ठ उ पर लेश नित्य गुणे, जेह मुक्ति तणो पुरुष अर्थी ॥ तर्जनी एह उपचार पण उपरें, मध्यमा आपती धन धन धरथी॥तेह नवि नीकले आप घरथी॥पंच०॥ ॥७॥ जेह अनामिका उपर लेई गुणे, तेहने घर नित्य शांति थाय ॥ कहीय कनिष्ठिका आकर्षण उ परें, वस्त गणनार साहामीज ध्याय ॥ शत्रु श्रावी नमे तेहना पाय ॥पंच०॥॥नर जिकोन कहे पातक तेह दहे, सागर सात फुःख सोय जाय ॥ आ जे पद गणे पंचास सागर लणे, फुःखने पाप ते दूर थाय ॥ दिवस थोडामांहे मुक्ति जाय ॥ पंच० ॥ १० ॥ पांचशे सागर पाप फुःख सहि गयु, श्रीनवकार मुख पूर्ण नांख्यो ॥ अडशह अदर पद नवे उच्चरे, मुक्त तरुफलरस तीणे चाख्यो ॥ जीव चिहुँ गति तेणें जमत राख्यो ॥ पंच ॥११॥ नवकरवालियें जेह नव पद जपे, तेहथी अधिकफल श्रानुपूर्वी ॥ त पह मास संवत्सर कर्म दहे, तेटलुं कर्म खपे क For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) हत कवी ॥ एह जिन शासनें वात कहेवी ॥ पंच० ॥ ॥ १२ ॥ पाटला उपर जेह नव पद जपे, आनुपूर्वी थकी अधिक जाणो ॥ अरिहंत बार गुण श्राप तिम सिझना, गुणह बत्रीश श्राचारज वखाणो, गुण पचवीश उवसाय थाणो, गुण सत्त्यावीश मुनि ना प्रमाणो, एटले एक शो आठ आणो ॥द म णिका लही माल ताणो ॥ पंच० ॥ १३ ॥ नवकर वाली था दग्ध माटी तणी, लाकडं हाड ने जेह पाणो॥अल्प फल आपशे तेह माला गुणी, गुणत मूरख तजे तेह जाणो॥तेणें मानी अरिहंत आणो ॥ पंच० ॥ १४ ॥ अंगुलि अग्रने मेरु उलंघतां, शू न्यचित्तें फल अलप आपे ॥ शब्दथी मौन जवू मौ नथी मन नहुँ, जाप करतो नवदोर कापे ॥ षन कहे जीवने मुक्ति थापे ॥ पंच० ॥ १५ ॥ ए६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जाप जपंतो थाकतो, ध्यान धरे तेणी वार ॥ ध्यान थको थाको जदा, जपे जाप नवकार ॥१॥ बेहु थकी थाको जदा, स्तोत्र गुणे तिण वार ॥ पूजा कोडी समुं वली, जांख्युं पुण्य अपार ॥२॥ स्तोत्र कोडि सम जप कह्यो, जाप कोडि सम ध्यान ॥ध्या For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) नकोडि सम लय कह्यो, लहे नर केवल ज्ञान ॥३॥ नरत दुई एम केवली, आठ पाट पण एम ॥ मरुदे वा केवल लही, मुक्ति पहोंची केम ॥ ४ ॥ १०० ॥ ॥ गाथा ॥ श्रसंबरो सेयंबरो वा, बुद्धो अहवा अन्नो वा ॥ सम जाव जाव अप्पा, लहइ मुरको न संदेहो ॥ १ ॥ कौरव हणे पांव थुणे, राग द्वेष नहिं त्यां ॥ दम दंत मुनि सम जावना, जो कृषि मंगलमांदे ॥ ॥ २ ॥ क्रोध हो उपशम धरी, मृडुयें मानज दोष ॥ सरलपणें माया हो, लोज करी संतोष ॥ ३ ॥ महीपति चक्री सुर हरि, सबल जोग सुर सार ॥ पण समतारस सुख तणा, कोइ न पामे पार ॥४॥ मत्सर मूकी जिन जपे, धरे ध्यान एक ठाय ॥ जो मति यावे निर्मली, तो जीव मुक्तें जाय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ मुक्ति तथा जे अर्थी होय, नवपद लय लगा वे सोय ॥ पढें पुरुष पडिक्कमणुं करे, जोडी हाथ व्रत अंगें धरे ॥ १ ॥ हाथ हथेली जिमणी जेह, नर परजातें जोतो तेह ॥ गाबो कर ते नारी जोय, जाग्य ती परीक्षा पण होय ॥ २ ॥ श्रणबोल्यो For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) चीवर नर धरे, मल मूत्र उत्तर दिसि करे ॥ रातें द क्षिण सामो रही, शरीर शंका टाले सही ॥३॥ जस्म गण गोशाला जहिं, मिल मातरं न करे त हिं॥राफो मल मूतरनां गम, तरुवर अग्नि जल श्राराम ॥ ४ ॥ नदी मारग वरजे समशान, वरजे स्त्रीलोचन जो शान॥पुरुष वडेरा नजरें नहिं, जाए प बर मुंगर जहिं ॥५॥ उतावलो नर त्यां नवि होय, गुह्य गम माटीयें लोय ॥ जलें हाथ ते पहेलो धो य, पढ़ें देह पखाले सोय ॥६॥ मिल वेगलो प्रां यें जाय, जली नूमि नहिं जीवह गय ॥ विवेकवि लासमांहे कह्यो विचार, मौनें वस्त्र धरीज निहार॥ ॥ ॥ वमी रहित नवि बेसे गाय, थं मिल जाएं तेणें गय ॥उघनियुक्तिमांहे पण कह्यु, आगममांहे मुनिवरने कडं ॥७॥ नीचां घर वसति बहु ज्यांह, थंमिल मुनि नवि जाशे त्यांह ॥ जिहां उपधान उ दाह नवि थाय, साधु मिलें त्यांकणे जाय ॥५॥ विषम नूमिका तृण ज्यां बहु, ते थानक नर टालो सहु ॥ ऋतु मही वर्ण पलटाय, तेणे थानकें थं मिल नवि जाय ॥ १० ॥ जघन्यथकी अंगुल महि चार, अचित्त हुए जाणे निर्धार ॥ घर वाडी देउल ने For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) बिल्स, घोर रहित ते थानक नव ॥ ११॥ अति वे गला त्रसादिक जीव, बीज हरि त्यां नहिं जस दी व ॥ यं मिल ज वोसिरावे सही, उपर रज घालेवी कही ॥ १२ ॥ संमूर्बिम मानव तिहां उपजे, चउद गम जाणे ते तजे ॥ अढी छीपमांहे ते होय, पन्नवणा पहिले पद जोय ॥ १३ ॥ अंतरमुहर्त ते हनुं श्राय, अशुचि गम उपजतां जाय ॥ तेणें का रणे नर जयणा करो, जेम त्यां जश्ने नवि अवत रो॥ १४ ॥ पढ़ें बेसीये शीतल गम, निजदेहज शातानें काम ॥ शरीरतणी जे रक्षा करे, तेर वानां नर ते परिहरे ॥ १५ ॥ आंसू नूख तरषने वाय, बींक बगासां ने शंकाय ॥ वमन वीर्य श्वास ने श्रम, म रोकिश निषा खांसीनुं कर्म ॥१६॥ टाले नवि नी रोगी सार, चेते बोल मिले जब चार ॥ शुक्र बीक मल मूत्र सम काल, तुज श्रायु त्रूटयुंज निहाल ॥ १७ ॥ गाज न गाजे श्रवणे यदा, वीज न वाजे आखें तदा ॥ मूत्रधार खेंची न रहाय, त्यारें पूरुं थ युं तुक आय ॥ १७ ॥ तव चेते नर समजी मर्म, वेलो थर कांश करजे धर्म॥सर्व बोल हैयामां धरे, षन कहे बालस परिहरे॥१॥सर्व गाथा ॥१४॥ For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) ॥ दोहा ॥ ॥ मरणसमय चेत्यां नहिं, न कस्यो उंचो हाथ ॥ श्राराधना सण विना, चाट्यो जीव अनाथ ॥१॥ जिहां बे पोर जगामणुं, तिहां जीव संबल लेह || जिहां चोराशी लरक भ्रमण, तिहां नर विलंब करेह ॥ २ ॥ जावजीव धन मेलियं, कोइ न यावे साथ ॥ धन मूकीने चालियो, भूमि पड्या बेहु हाथ ॥ ३ ॥ पुहवी नित्य नवेरडी, पुरष पुराणा थाय ॥ वारें ल अप्पणे, नाटक नाची जाय ॥ ४ ॥ पुहवी रंग विरंगिणी, कदि नवि पूगी यश ॥ केता राय रमाडि या, केता गया निराश ॥ ५ ॥ सर्व गाथा ॥ १२५ ॥ ॥ सोरठा दोहा ॥ ॥ चाल्यो जाये साथ, को केने पडखे नहिं ॥ वा वरि जो हाथ, वारे वहेते आपणे ॥ १॥ गई सवा र वय, वार सबली यावे नहिं ॥ हियडा हाथ घसी स, बेठो वड कलियो थई ॥ २ ॥ जब लगे रोग जरा नहिं, जब लगे इंद्र परम्म ॥ दशवैका लिकमांहे कयुं, तब लगें कीजें धर्म्म ॥ ३ ॥ जे दीजें कर अ प्पणे, ते लद्धे परलोय ॥ दीजंतां धन संपजे, कूर्ज व हंतो जोय ॥ ४ ॥ वारे लद्धे श्रप्पणे, वाहे जडफड For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) जोबन हुवे अवल ह || बलि हरिचंद रावणो ॥ ५ ॥ ढुंते मूरख चेत धन, म धरिश बानुं रेक ॥ सोवन को सतोरणी, रावण मूकी लंक ॥ ६ ॥ यौवन कवण न बेतयुं, भूखें कवण न खद्ध ॥ लोजी कवण न वाहियो, कानें कवण न दद्ध ॥७ ॥१३६॥ ॥ ढाल ॥ एणी पेरें राज्य करंत रे ॥ ए देशी ॥ ॥ कालें सहको दद्ध रे, तिणें नर चेतजे ॥ अंत समय वली प्रति घणुं ए ॥ १ ॥ कही शिखामण सार रे, मनमां धारजे ॥ निज देरासर जूहारजे ए ॥ २ ॥ पढें पुरुष सुण वात रे, जिनमंदिर ज‍ यें ॥ निसहि त्रण तिहां कहियें ए ॥ ३ ॥ मनह व चन जे श्राप रे, कायायें करी ॥ संसार काम निषेध जे ए ॥ ४ ॥ मुऊ देहरानुं काम रे, करवुं ते सही ॥ अवर काज कल्पे नहिं ए ॥ ५ ॥ निसहि मध्य त्रण वाम रे, मन वचनें करी ॥ देवल काम निषेधतो ए ॥६॥ करूं जिनप्रतिमा काज रे, पूजुं पूजावुं ॥ त्रि विध ध्यान निश्चल धरूं ए ॥ ७ ॥ पूजी निसही त्र एय रे, कहेतो स्तुति करे, पूजाद्रव्य निषेधतो ए ॥ ८ ॥ एम जिन जुहारो आप रे, आयें मूकतो, फल नाएं मूके सही ए ॥ ए ॥ श्रशातना उत्कृ हि० २ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ष्टी रे, टाले चउराशी॥ जघन्यथकी दश टालियें ए ॥ १० ॥ पन्नही मुख तंबोल रे, जल नवि धूकवू ॥ मैथुन तिहां कणे वरज, ए ॥१९॥ लहडी नीति नि षेध रे, वडी वेगें थकी ॥ जोजन सोवण जूवर्टी ए ॥१॥ श्राशातना एम टाली रे,चेश्वंदन करे॥शाप हाथ अलगो रही ए ॥१३॥ जघन्यथकी नव हाथ रे, अलग रही करी॥चैत्यवंदन करजे सही ए ॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ जिन पूजंतां पामियो, मुक्ति पुरीनो वासना गकेतु निर्मल थयो, पूगी मननी आश ॥१॥ जि न जुहारि गुरु वंदतो, करतो कांश पञ्चरकाण ॥ गु रु सामो बेसी करी, नव रस सुणे वखाण ॥२॥ करे वखाणज नव नवां, रागें कथन कलाय ॥ गाहा गाथा दूहडो,सुणतां पंमित थाय ॥३॥ श्लोक ॥ मुंभे मुंमे मतिर्जिन्ना, कूपे कूपे नवं पयः ॥ देशे देशे न वाचाराः, नवा वाणी मुखे मुखे ॥४॥ अदर मंत्र विना नहिं, धन विण महीय न होय ॥ मूल नाहि उषध विना, उर्लन थाम्ना सोय ॥ ५ ॥ शास्त्रनाव पंमित खहे, न लहे मूढ अजाण ॥ चंद्रकांत श्र मृत जरे, न जरे बीजा पाषाण ॥६॥ जमरो For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) जाणे रस विरस, जे सेवे वनराय ॥ गुण शुं जाणे बापडो, शूकां लक्कड खाय ॥ ७ ॥ सकल नेद पंकि त लहे, नव रस करे वखाण ॥ श्रगम चरित्र दोहा कहे, कर सकल प्रमाण || ८ || ( सूत्रवृत्ति जायज प्रमुख, पंचांगी परमाण 1) सकल शास्त्र सुणवुं सही, आगम चरित्र सुसार ॥ एक गाथायें बूकियो, देखो क्षुल्लक कुमार ॥ ए ॥ हलुकर्मी समजे सही, करतो पातक रोध ॥ देवगिरि जग शिव वसे, वदुधी लहे प्र तिबोध ॥१०॥ जे पर सरिखा नरा, ते नवि बृजे क्यांही ॥ मानी मूरख गलें, धर्म न कहेवो प्राहि ॥ ११ ॥ अंधेकुं क्या वारसी, बहिरेकूं क्या बात ॥ जाण समजावे जाणकुं, सामो होय संताप ॥ १२ ॥ पापीने प्रतिबोधतां, पत पोतानी जाय ॥ टपलो सरा णे चढावतां, रीसो नवि थाय ॥ १३ ॥ ( नंदीषेण मति निर्मलो, शोनी मन न सोहाय ) रक्त पृष्ट मूर ख नरा, पूर्व व्युदग्रहियो जास ॥ धर्मयोगि चारे नहिं कथानकदेवी तास ||१४|| सर्व गाथा ॥ १६४॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ तेहने नवि देवो उपदेश, राग धरे गुण नहिं लवलेश ॥ सुजट एक परण्यो स्त्री दोय, सुरंगी ने कु For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १७ ) गी जोय ॥ १ ॥ लागो राग कुरंगी साथ, सुरंगी शुंनवि करतो वात ॥ रात दिवस कुरंगीसंग, रमे पुरुष पो ताने रंग ॥२॥ एक दिवस कटकें गयो राय, साथै सुन टने लेइ जाय ॥ बारे वरसें परगट थाय, सेवक ज इने वधामणी खाय ॥ ३ ॥ नारी कुरंगी अतिहिं उ , खाधुं धन बहु मेली लंठ ॥ जोजननो तव कस्यो विचार, शुं रांधुं आव्यो जरतार ॥ ४ ॥ बुद्धि केलवी नरने कहे, नारी सुरंगी अलगी रहे । वधामणी खाउ तिहां जई, तुऊ घर नर आवे बे सहि ॥ ५ ॥ गयो पुरुष सुरंगी पास, बोल्यो त्यां मनने उल्लास ॥ वधामणी श्राव्यो जरतार, सामग्री कीजें शणगार ॥ ६ ॥ कहे सुरंगी धन्य अवतार, मुऊ जरतारें कीधी सार ॥ दीये वधामणी रांधे अन्न, नर उपर वे निरतुं मन्न ॥ ७ ॥ सुनट वही श्रव्यो तेणे वार, मानेती ज्यां कुरंगी नार ॥ सूती गोदडुं उढी करी, बोले सामी जिम कूतरी ॥ ८ ॥ तुमसे वक आव्यो जे श्रहिं, मुकने वलगो मूके नहिं ॥ शी लवती हुं तारी नारि, वेली काढ्यो में घर बारि ॥ ए ॥ तुमें उतारयो मुशुं प्रेम, वधामणी प र मोकली केम ॥ हवे जाउं तुमें तेहने घरे, प Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) रीक्षा लीधी में बहु परें ॥ १० ॥ चाव्यो पुरुष सुरं गी जणी, मनमां चिंता कीधी घणी ॥ सुलक्षणी छ हवाणी आज, जेहमां शील सत्य गुण लाज ॥११॥ एम चिंतवतो नर संचरे, जगति सुरंगी बहु परें करे ॥ लाडु खाजां बहु पक्वान्न, घणां शाकशुं पिरश्यां धान ॥ १२ ॥ ढोले वींजणो राखे मन्न, पण नरने नवि नावे अन्न ॥ कहे पुरुष त्यां जश्ने श्राव, कांश क कुरंगी हाथर्नु लाव ॥ १३ ॥ सुरंगी जाये कुरंगी घरे, मांगी मात कहे बहु परें ॥ पीरश्युं अन्न नवि जावे किस्युं, तुम उपर मन तेहनुं वस्युं ॥ १४ ॥ कांश्क तुम घरनुं द्यो शाक, नगति तुमारी माने लाख ॥ कपट कुरंगी त्यारें करे, वह राख बेश चूले धरे ॥ १५ ॥ बाटो मरि पुट लींबु तणो, बीजो संच कस्यो तिहां घणो ॥कोडि वाटका मांहे धरे, आपे ताम लेश संचरे ॥ १६ ॥ आवी मू क्यो सोवन थाल, मारे सरडका न जूए निहाल ॥ घणुं प्रशंसे बापडीना हाथ, कशी कहुं केलवणी वात ॥ १७ ॥ एहवा रागना पुरुष जे होय, अ वगुण गुण करी माने सोय ॥ तेहने धर्म न कहेवो वली, रुषल सुणतां मति निर्मली ॥ १७ ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( 22 ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल ॥ महीडं वलोवे हो गोपी ॥ ए देशी ॥ ॥ राग गोडी ॥ सुरसुंदरी की चाल ॥ ॥ मति निर्मल हो थाय, सुणो दुष्ट तणी कथाय ॥ क एबी जीरण हो जे हो, करे जली पटेली तेहो॥ १ ॥ तेह ने अजीरण हो ठेली, ते उपर करेज पटेली ॥ कालें जीरण हो जाएं, श्राव्यं दैव तणुं तस एं ॥ २॥ नाख्यो नू मियें हो रूप, सुत पूढे बेसाहामुं जुइ ॥ कोण दुःख तुमने हो तातो, ते नांखोजी श्रमने वातो ॥ ३ ॥ तुला तुमारी हो कीजें, कहोतो दान विप्रने दीजें ॥ दीजें गवरी हो दुःख हरणी, उतारे नदी वैतरणी ॥ ४ ॥ पुं शय्या हो तलाई, पोढी सरगें सुख भर जाइ ॥ तव ते बोल्यो हो तातो, जीव सुपरें तो सहि जातो ॥ ५ ॥ अर्थ एटलो हो मुऊ सारो, पटेल जी रणने ज‍ मारो ॥ सुत कहे शुं ए हो कामो, तें लीयो रामनो नामो ॥ ६ ॥ श्रपे जी रण हो उत्रो, नहीं मुऊ कुलनां तुमो पुत्रो ॥ न करो, एतुं जो काजो, जीव सुखें जाये किम जो ॥७॥ तात ते फूरे हो अपारो, सुत बोल्यो तेणी वारो ॥ एहनी करशुं हो घातो, तव बोल्यो वेगें तातो ॥८॥ केम होशो हो पुत्रो, प्रगट मारतां जाय घरसूत्रो ॥ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३) मरे तुमारो हो बापो,लेश खेतर जाजो आपो ॥ए॥ ए मुफ करशे हो घायो,तुमो जालजो एहने धायो॥ लेजो पाडं हो वयरो, मनमां न आणशो कांश म हेरो ॥ १० ॥ पुत्र दीधो हो बोलो, पुष्ट पापी मुर्ड निटोलो ॥ नवि त्यांहे रूवे हो कोयो, मूक्यो खेतर मां जश् सोयो ॥११॥ एक थांने हो अटकाव्यो, श्र जीरण कणबी तिहां श्राव्यो ॥ दीगे पटेल हो ज्यारें, देखी वैर सांजलुं त्यारें ॥ १५ ॥ आधु पाळ हो जोश, घाव करे न देखे कोई ॥ पड्यो नूमि हो मोसो, धाया पुत्र चारे धरी घोसो ॥ १३ ॥ काली बांध्यो हो बंधे, लेई चाल्यो राउल संधे ॥ एणे मास्यो हो तातो, तव बोल्यो वलतो नाथो ॥१४॥ श्रा न्यो तुमारे हो साथें, मारतां न वढे को तुम साथें ॥ काली निकल्या हो चारे, तात वचनें तेहने मारे ॥१५॥ एहवो ते पुष्ट हो निरखो, पटेल जीरण कणबी सरखो ॥धर्मकथा एहने नवि कहिये, शषन कहे ए साचूं लहियें ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥१९॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ लहियें मूढ नवि कहियें कथाय,विप्र एक काशीयें जाय ॥ घणो काल तिहां नाख्यो सहि, घर आव्यो For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( २४ ) पढी गरढो धइ ॥ १ ॥ पाणी ग्रहण करे तव बंज, घर आणी नवयौवन रंज ॥ रूपवती ने चंचल घणुं, मन रंजे जरतारह तां ॥ २ ॥ कपट केलवे त्यां बां जणी, तिम तिम आनंद पामे धणी ॥ मूढ न जाणे स्त्रीनी वात, पीये नीर जेतुं स्त्री पात ॥ ३ ॥ १०१ ॥ ॥ दोहा ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir በ जे शूरा जे पंकिता, जे होय बहु गंजीर ॥ नारी सबै नचाविया, जे होय बावन वीर ॥ १ ॥ स्त्री प्रायें सब वंकडी, मत को करो विश्वास ॥ माथे घट चडावी करी, पछे दीये गले पास ॥ २ ॥ जिस कारण शिर कट्टीयें, धरणी ढले जब देह ॥ रुधिर पिये ततक्षण महि धिग धिग त्रिया सनेह ॥३॥ नारी मदन तलावडी, बूडो सब संसार ॥ काढण हारो को नहिं, बूड्यां बूंब न वार ॥४॥ वाघणी वग डामांदेली, जबहिं मिले तब खाय ॥ नारी वाघण व पड्यो, वसतियें फाडी खाय ॥ ५ ॥ कूड कपटा नी कोयली, स्त्री होय निठुरी जाति ॥ देखी न शके रूडुं करे पियारी तांति ॥ ६ ॥ नारीदेह दीवो कस्यो, पुरुष पतंगी होय ॥ जग सघलो खूंची रह्यो, निकले विरलो कोय ॥ ७ ॥ नारी नहिं रे बापडा, , For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५) जाणो विषनी वेलि ॥ जो सुख वंडे देहने, तो तस संगति मेल ॥ ॥जीतर विषनी वेलडी, बाहिर अमृत उदार॥ गुंजाफल सम जाणवा, स्त्रीना नाव विकार ॥ए। जस घर महिला मंत्रएं, उर्जन केरी शीखासजान साथें रूषणुं,ए त्रणे मागे नीख ॥१॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ मागे नीख ते पागल घj, माने कहेण जे असती तणुं ॥ बांजण मूढ नण्यो नहिं किस्यु,नारी वचन हियडामां वस्युं ॥१॥ एक दिवस परदेशी राय, यज्ञ मंगाव्यो तेणे गय ॥बांनणने संजायो तहिं, सुजट तेडवा आव्यो सहि ॥२॥ बांजणने कहे चालो खामी, हरखें सहु तुमारे नामी ॥ काशीखंग ना वासी तुमो, तुमने तेडी जाशुं अमो ॥३॥ पंके पूढी घरनी नार,तव सुंदरी बोली तिणि वार ॥ म हारे तुम\ घणो सनेह, तुम विण मुक दण न रहे देह ॥४॥ सर्व गाथा ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ रक्तपणुं रयणां तणुं, ते पण कबहिक जाय ॥तु मशुं बांधी प्रीतडी, पाठी किमहिं न थाय ॥१॥ दीठे सजान आपणे, मन रलियायत थाय ॥ दिवसें For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( २६ ) विकसे कमल जिम, मन पंजरे न माय ॥ २ ॥ सा रुं फूल सेवंत, जोमि पड्युं करमाय ॥ ते न कहि जें मानवी, जे प्रीति करीनें जाय ॥ ३ ॥ सखि दे तें केम विसरे, जे मनमांहे पश्5 || हियडाथी जो उतरे, तो सुपनांतर दीठ ॥ ४ ॥ स्वामि तुम चालो सही, मुजनें लीजें साथ || दिवस दोहेलो करी निर्ग मुं, पण नवि जाये रात ॥ ५ ॥ बांजण कहे रे बा पडी, लावीश जाजुं धन्न ॥ सुख जर रहेशुं बेठ ज यां, पढे जिम ताहरु मन्न ॥ ६ ॥ नारी कहे तुमें चालतां, कोण होय मुज सहाय ॥ बांजण कहे तुम सांजलो, गोविंद करे चिंताय ||७|| इस्युं कहीने संच यो, घर रहि चंचल नार ॥ नव यौवनवय चालियो, केइ परें मन रहे वार ||८|| स्त्री विए अंकुश नईत रुं, मंत्रिविद्वणुं राज ॥ ए बहुकाल रहे नहिं, कषन कहे न रहाज ॥ ७ ॥ न रही शीलें बांजणी, करे गोविंद जोग ॥ मनमें चिंते बेदु जणां, जलो मि ब्यो संयोग ॥ १० ॥ रूडां माणस कारणें, जो जग वैरी होय ॥नमर न ढंके केतकी, जो शिर कप्पे को य ॥ ११ ॥ विषहर वाडीने विषम घर, पंचाश्ण र कंति ॥ जो जम बेसे बारणे, रत्ता तोडु मिलंत ॥ १२ ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) रंगें रातां बेहु मिले, गोराणी ने बात्र ॥एणे अवसरें जरतारनी, हुश् श्राववा वात ॥ १३ ॥ नारी कहे नीशालीया, आपण बेहनो रंग॥आव्यो पापी मोक रो, रंगमां करशे नंग ॥ १४॥ सर्व गाथा ॥२॥ ॥ चोपानी देशी॥ ॥रंग मांहे करशे ते जंग, हुं नवि मूकू ताहारो संग ॥ जो तुं कहेण अमारं करे, तो सहु काम तु मारं सरे ॥१॥बे मृतक तुमें लावो खरा, घर बाली जाशं बे परां ॥ सुणी वचन जग्यो गोविंद, बे मृतक ते लाव्यो रंद ॥२॥ घरमांथी धन लीधुं सहु, प. श्रावास सलगाड्युं बहु॥जणां दोय गयां नीकली, लोक कहे मू ए बली ॥३॥ पश्चात्ताप करे बहु परें, पडे बांजणो आव्यो घरे ॥ बली मुझ दीठी जब नार, रुदन करे सबढुं तेणे गर ॥ ४ ॥ पो गयो मृतकनें पास, हाथ फेरवे मन उदास ॥ कूटे रुदन करे कलकले, बापडी नारी निशालीयो बले ॥५॥ हवे को तेहवो करूं उपाय, जिम ए बेहुने सजति थाय ॥ गयो हाड लेश गंगा जणी, तिहां नारी दीगे निज धणी॥६॥ निशालीयो जर लाग्यो पाय, तुंतो खामी मात पिताय ॥ था तुम For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारी ने हुँ गोविंद, तीरथ कीजें अति थानंद ॥७॥ नारी विनति कीधी घणी, पूरव कथा नांखो आप णी ॥ बांजण कहे जारे पापिणी, कोनी नारी ने कुण तुक धणी ॥ ॥ नारीने निशालीयो यहां क्यांहि, बली मुआं जे मुफ घरमांहि ॥तुमो डोव्यं तर मानव नहिं, शुं डलवा मुक अव्यां अहिं ॥ए॥ घणां वचन गोविंदें कह्यां, मूरख बांजणे नवि सद्द ह्यां ॥ रुषन कहे एहवा नर जेह, धर्म योग्य नवि दीसे तेह ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ २३ए ॥ ॥ ढाल ॥ न मोह्यो रे वीरवचन ॥ ॥रसें रे ॥ ए देशी ॥ राग श्राशावरी ॥ सिंधूडो ॥ तेहने धर्म न क हिये जाणजो रे, पूर्वव्युग्रहियो रे जेह ॥एक नर पतिनो बेटो आंधलो रे, नोलव्यो मंत्रिये तेह ॥१॥ तेहने धर्म न कहिये जाणजो रे॥ए आंकणी ॥ नूष ण पहेरे दिन दिन नवनवांरे ॥ जातें सबलो दातार ॥ जाचक जन रे आवी गुण स्तवे रे, देतां न लागे हो वार ॥ ते० ॥२॥ नृपने श्रावी मंत्री तिहां ए म कहे रे, सांजलो महोटा हो राय ॥ दान सबल देतो तुम दीकरो रे, नंमार खाती रे थाय ते॥३॥ . For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) राजा नांखे रे बुझि करो इसी रे, जिम सुत नवि रे उहवाय ॥ याचक जन रे रहे तिहां मागता रे, नं मार जिम थिर थाय ॥ ते ॥४॥ मंत्री श्राव्यो कुमर कने वली रे, बोल्यो विनय करेह ॥ श्राजरण आगलनां पहेरावियें रे,जो नवि दियो कुण तेह ।ते ॥५॥ सेवा कारण मलशे जाचका रे, तुमने जोल वे तेह ॥ नूषण लोहनां \ राय पहेरियां रे, उता री नाखियें एह ॥ ते ॥६॥ कुमर कहे सुण मंत्री माहा रे,तुं दे पूर्व बाजरण ॥ जेको मुजने नांखे ए लोहना रे, मारुं तेहने लहे मरण ॥ ते ॥ ७॥ त व परधान हो चूषण पहेरावियां रे, साव लोढानां जाण ॥ कुमर ते खेले बेगे बारणे रे, उलट अधि को ते आण ॥ ते ॥ ७॥ एणे अवसरें सेवक त्यां श्राविया रे, जाचक नामे रे शीश ॥श्रा श्यां श्रारण पहेस्यां लोहना रे,चढी नृप सबली ते रीश ॥ ते॥ए॥ मस्तकें मास्यो दंग ते लोहनो रे,फा ड्युं ताम ललाड ॥ महारां नूषण जांखे लोहनां रे, मलिया मूरख गाढ ॥ ते ॥ १० ॥ एणे अव सर त्यां बीजा गोठिया रे, श्राव्या कुमरने गेह ॥ कां तुमें पहेस्यां बाजरण लोहना रे, कहेतां कूट्या For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) तेह ॥ते ॥११॥ कुमर न माने केण तिहां कोई तणुं रे, कहेतां वढवा रे धाय ॥ षन कहे जे कुबुछिने मल्यो रे, सु पुरुष कुपुरुष थाय ॥ते॥१२॥२५॥ ॥ दोहा ॥ ॥वांका जमला पाधरा, सहे परानव नूरि ॥ सिंहणी वांकी सरसमां, नाखीजें अति दूर ॥॥ रे रे परवत बापडा, वांसह वास म देस ॥ आप घसा वे पर दहे, निगुणा काहु करेस ॥२॥ मन मेला मुख ऊजला, ते नर मुह म दीव॥पोत विहूणे खूग डे, श्राले गमे मजीठ ॥३॥ कुबुद्धि कडु लींबडो, मलियो अांबा साथ ॥ अंब धरे रंग लिंबनो, कोश न काले हाथ ॥४॥ कुमर मव्यो कुबुद्धि तणे, पे गे कुमतज नरम ॥ सहुने जूठा जाणतो, मंत्री साचो परम ॥५॥ एम नर कुमतें घेरियो, पूर्वव्यु ग्रहियो जेह ॥ तेहने धर्म कहेवो नहिं, समजे पण नहिं तेह ॥६॥ सर्व गाथा ॥ २५ ॥ ॥चोपानी देशी ॥ ॥ लहे उपदेश तणा हजार, कहेतां नवि बफेज लगार॥ ब्रह्मदत्त नवि पाम्यो पार, उदाश रायनो मा रणहार ॥१॥ चपल कान गज केरो जोय, राज For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) लक्ष्मी ते एहवी होय ॥श्रण मे करमें लीपाय ॥ पटें जीव अधोगति जाय ॥२॥ रावण लखमण नी परें जोय, नवे नंद तेम हरे होय ॥ जरासंध परमुख बहु थया, अणबंमी ते नरगें गया ॥३॥ ॥दोहा॥ ॥ एक अतुं धन वंबता, लोहखरो जिम चोर॥ श्रा नव वेदन पामियो, परनवें उःख अघोर ॥१॥ एक फुःखी अणनोगवे, राजगृही जीखार॥ चांप्यो पडर पाडतां, पाम्यो नरक असार ॥२॥ एक उतुं धन मतां, मुगति तणा नजनार ॥ जंबुखामि तणी पेरें, ते नर पामे पार ॥३॥ कुपुरुष सुपुरुषने मि ख्यो, निजमति आणे गम॥ बंमधु देखी बंमतो, सु खियो प्रनवो खामि ॥॥ मणि माणक मोती नयां, शालिजा घर सार॥ शिर गकुर जाणी करी, मूक्यो निज परिवार ॥ ५ ॥ शालिना सुंदर सुखी, ताप खम्यो नवि जाय ॥ श्स्ये इस्युं तप आदमु, नवि उलखती माय ॥ ६ ॥ सर्वगाथा ॥ २६६॥ ॥चोपाश्नी देशी ॥ ॥ जे सुपुरुष जग उत्तम होय, थोडे वचनें बजे सोय ॥ जिम जगमांहि सनतकुमार, सुरवचनें For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) लिये संयम नार ॥ १॥ महापापी नर हुंता जेह, धर्म प्रजावें ब्रजया तेह ॥ सुसमाने दृष्टांतें जोय, पुत्र चिलाती धर्मी होय ॥२॥ फल्युं फूट्युं तात घरसार, ते बंमयो ढंढणा कुमार ॥ नूख तरश खमतो मन रसी, बठे मासे हुवो केवली ॥३॥हित उप देश महिमा जाणियो, अपणुं पाम्यो वाणियो ॥ कुंमल किरिट तणो धरनार, अलंकारनो न लडं पार ॥४॥ हित उपदेश कह्याथी सहु, कार्तिक शेठ सुख पाम्यो बहु॥सुधर्म इंड हु ते सार, जेह नी कि तणो नहिं पार ॥ ५ ॥ इंश समी रिकि कहि जेह, नरत चक्रवर्ती पाम्यो तेह॥ मानव लोक नो स्वामी कह्यो, हित उपदेश कथाथी थयो ॥६॥ धर्मदेशना सुणतो जदा, संदेह अज्ञान टले नर तदा ॥ कर्मे दृढ व्यसन मूकतो, मारग सूधो जाणे बतो ॥७॥टले कषाय विनय पण नजे, संगति सार कुसंगति तजे॥ समजे श्रावक मुनिवर धर्म, ते सुख पामे परगट परम ॥७॥ कुमारपाल थावच्चो सुणो, गुण हर्ड परदेशी घणो ॥ श्वेतंबिका नगरीनो नाथ, हणी जीव न धोतो हाथ ॥ ए ॥ चित्र सारथि मंत्री जेह, सावत्रीयें श्राव्यो तेह ॥ केशी गणधर तिहां For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) क मिल्यो, समकित लहि मिथ्यात्वी टल्यो ॥ १०॥ कहे चित्र तुमो गुरु सुणो, तुमने लान होशे श्रति घणो ॥ श्वेतांबिकायें तुमें यावजो, परदेशीने प्रति बोधजो ॥ ११ ॥ केशी गणधर आव्या सही, चित्र स थयो गहगही || घोडा रमाडवानो मन थयो, नृपनें पूठें लेई गयो ॥ १२ ॥ केशीने दीठा जेटले, परदेशी बोल्यो तेटले ॥ गर्व धरिने गुरुने कहे, किस्युं मूढ वनमांहि रहे ॥ १३ ॥ कष्ट करे बे फो गट यति, माता महारी श्राविका हती ॥ नास्तिक तो महारो वाप, नवि सहहतो पुण्यने पाप ॥ १४ ॥ में बेहूने मरतां कथं, कहेजो नावि जे तुम लधुं ॥ कहेवा नहिं श्रव्यां ते दोय, जीव कुगं ति नवि सरगह होय ॥ १५ ॥ श्रया चोर घणा में ग्रही, तिल तिल कटका कीधा सही ॥ जीव होय तो दीसे नहिं, एह वात साची नहिं कही ॥ १६ ॥ पुरुष जीवतो तोल्यो सही, मुया पढी तोक्यो में ग्रही ॥ जारे हलुवो नहिं ते तंत, कहे जति तों कहां बे जंत ॥ १७ ॥ घश्रामांहि नर घाल्यों ग्रही, मुख बीड्यं तेनुं में सही ॥ तेह मुर्जने कीडां पंड्या, जीव शोधतां मुक नवि जड्या ॥ १८ ॥ हि० ३ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) घडुए काणां सहि नवि थाय, कीटक जीवमाहें केम जाय ॥ मानव जीव ते किहां नीकट्यो, नथी जीव संदेह मुफ टल्यो ॥ १ए ॥ गुरु कहे सांजल लूपति सार, तुक नारीशुं कस्यो व्यनिचार ॥ ते काख्यो कहे मूको मुने, कहे महेर थावे कां तुने ॥२०॥ कहे राजा तस गेडुं नहिं, बोलवा लगे न पडद्म नहिं ॥ पूरो करुं नवि धोठं हाथ, एम नांखे परदेशी नाथ ॥१॥ नवि बूटे ते तुऊ वश पडयो, तिम नारक ते करमें नडयो ॥ नरगमांहि थी बटे नहिं, जे तक कडेवा आवे हि ॥॥ केसर चंदन लेई करी, नलां धोतियां अंगें धरी॥ जाये जिन पूजेवा जिस्ये, महत्तर पुरुष बोलावे तिस्ये ॥२३ ॥ जेम तेथी नर नागे जाय, तिम दे वा को प्रगट न थाय ॥ जोयण पंचसय गंध उबले, केम माता तुक आवी मले ॥२४॥ अरणीमां हे अमि सही, कटका करतां दीसे नहिं ॥ ति. म कायामांहे जीव ने बतो, रूप रहित ते नवि दीसतो ॥ २५ ॥ ले वायरे दहडो नस्यो, वली प ३ ते गलो कस्यो ॥ तोलंतां ते सरखो नार, काया जीवनो एह विचार ॥ २६ ॥ नरने गढवामांहि उ For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) तार, शंख वजावे तेणें गर ॥ मुख ब्रूयुं ने शब्द सु पाय, बिन दीसे तेणें वाय ॥ २७ ॥ रूपी शब्द न दीगे जाय, वाजंतो सुपियें तिऐं गय ॥ जेह श्रातमा रूप, केम निकलतां दीसे रूप ||२८|| ते माटें तुं निश्चय जाए, बतो आतमा बे निरवाण ॥ ज्ञानी गु रुने वचनें वली, हु जैन मिथ्यामति टली ॥ २ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मोढे माग्युं जे दिये, नापे राख्यो शरण ॥ पूढया उत्तर जे कहे, ए जग विरला त्रण ॥ १ ॥ बुद्धि शरीरें उपजे, दीधी केती होय ॥ जलमध्यें क छप वसे, तरी न जाणे सोय ॥ २ ॥ २७ ॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ बुद्धि नलि केशी कृषि तणी, निरता उत्तर दे नृप जणी ॥ समजावीने श्रावक कीध, वलि तेहने सुरपदवी दीध ॥ १ ॥ तेणें पुरुष त्रण भुवनें वडो, श्रमारी तो वजडाव्यो पडो ॥ जेणें नरें ए कुजीवने परम्म, समजाव्यो साचो जिनधर्म ॥ २ ॥ समकित धर्मनो जे दातार, न करी शके पाछो प्रतिकार ॥ कोडि गुणो उपकार हजार, पाठो वाली न शके नि रधार ॥ ३ ॥ परदेशी करे जक्ति उदार, धन धन For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (३६) केशी तुम अवतार ॥ माहामिथ्यात्वी पापें नस्यो, स मजावीने श्रावक कस्यो ॥४॥ परदेशी संवरी थयो जिस्ये, सूरिकता लंपट अ तिस्ये ॥ सुतने कहे मा रीले राज, सुत बोल्यो नहिं महारं काज ॥५॥ एक दिवसें पोषधवत धरे, वाहाणे पारणुं राजा क रे॥ सूरिकता लंपट नार, विष नेव्यु नरने तिणे गर ॥६॥ धर्मतणो नृप समजे मर्म, कहे ए मुफ पोतानां कमे ॥ तजी क्रोधन अणसण करे,सुरियान देव दुळ ते शिरें ॥ ७॥ सूरिकता तो सर मशी, जश्नरकमांहि ततदण वसी॥षन कहे नृप सुर गति थाय, तेतो शास्त्र तणो महिमाय ॥ ७॥ मूर ख धर्मकथा नवि कहे, कालनाव खेतर नवि लहे॥ अव्य तणा नवि समजे नाव, जिम श्रणसमजू बो ले शाव ॥ ए ॥ उत्सर्ग पंथ न जाणे रति, जे अप वाद न समजे यति ॥ उदो अधिको मुखथी नखे, शुरु उपदेश देई नवि शके ॥१॥ गुरु कहे शिष्य सांजलजे सोय, मूरख केम जतनावंत होय ॥ अगी तारथ पासें रही बाल, किस्युं चलावे गठ वृक्ष बा ल ॥ ११॥ तथा सूत्रमांहे नांख्युं एह, प्रायडित पाखें प्रायछित देह ॥प्रायछित अतिमात्रायें दिये,तो For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) आशातन महोटी लिये ॥१॥ आशातन करतां मि थ्यात, आशातना करे समकित घात ॥ आशातना करतां अपार, तव वाधे दीरघ संसार ॥१३॥ एहवा अगीतारथने दोष,नेष्टायें रह्या पातक पोष॥गीता रथ गठ मूढने देह, एहवा दोष तेहने लागेह ॥१४॥ अबहुश्रुत तपस्वी हुवे जेह, पंथ अजाणे विचरे ते ह॥ते अपराधना सहि बंध करे, करतो नवि जा णे नवि तरे ॥ १५ ॥ अल्प आगमनो जाण नहु तरे, कलेश लहे जो बहु तप करे॥सुंदर बुधि जा णी करे सोय, परमार्थे सखलं नवि होय ॥ १६ ॥ श्रुतनुं रहस्य न लहे संसार, चाले केवल सूत्र अनु सार॥श्रुत उद्यम तस हाथे नवि जडे, तप अज्ञान विषे सह पडे ॥१७॥ पंखी पंथ देखाडे रेख, पण पंथनो नवि लह्यो विशेष ॥ ते पंथी नवि थाये सु खी, तिम मुनि एकले सूत्रं कुःखी ॥१७॥ ३१५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ सूत्रनेद समके नहिं, चरित्र तणो नहिं जाण॥ अवसर सजा न उलखे, ते \ करे वखाण ॥१॥ योग्य अयोग्य जाणे नहिं, जिम तिम दिये उपदेश ॥ पंखिणी सुघरीनी परें, पामे तेह कलेश ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) ॥श्लोक ॥ ॥ छौ हस्तौ छौ तु पादौ च, दृश्यते पुरुषाकृतिः॥ शीतकालहरं मूढ, गृहं किं न करोषि जो ॥१॥ सूचीमुखी कुराचारि, रंगे पंमितवादिनि ॥ अस मयों गृहारंने, सामर्थो गृहनंजने ॥२॥ उपदेशो न दातव्यो, यादृशे तादृशे नरे ॥ पश्य वानर मूर्खण, सुगृही निगृही कृता ॥३॥रे जिह्वे कटु कस्नेहे, मधुरं किं न नाषसे ॥ मधुरं वद कल्याणि, लोकोयं मधुरप्रियः ॥ ४ ॥ सर्वगाथा ॥ ३१ ॥ ॥दोहा॥ ॥ प्रिय बोली जाणे नहिं, मांमी न लिये वखा ण ॥ मूकी पण जाणे नहिं, ताणे खाटल वाण ॥ ॥१॥ बेसी पण जाणे नहिं, कुण साहामुं नवि जोत ॥ लाजे धूजे नवि लहे, राखे मुख मुहपत्ति ॥॥ मुखें बांधि ते मुहपत्ति, हे- पागे धारि॥श्र ति हेवि दाढी थई, जोतर गले निवारि ॥३॥ एक. काने धज सम कही, खंने पडी गम ॥ के. खोशी कोथली, नावे पुण्यने काम ॥४॥श्स्यो पुरुष श्रा गल थशन करे मूढ वखाण ॥ पंमित नर दे देशना, बोले सत्य सुजाण ॥५॥ सर्वगाथा ॥ ३५६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ सत्यवादी गुरु जगमा सार, कालिकाचारिय धन अवतार ॥ दत्तराय तुरंग मणि धणी, सत्य बो व्युं जीवित अवगुणी ॥१॥ यथास्थित परगट न वि नणे, बोध लानने ते नर हणे ॥ जन्म जरा म रण उदधि, गयो सोय मरि जीव निबंधी ॥२॥ उत्सूत्र बोलतो हुँतो जंत, बांधे चिकणां कर्म अनं त ॥ संसार वधारे चिहुं गति फरे, जे नर माया मिरषा करे ॥३॥ धर्मविषे माया नवि होय, कपट कलाम म करजो कोय ॥सदोष पररंजवा म बोल, प्रगट वचन श्रणलज्जें खोल ॥४॥ धर्ममांहि नर जोजो कथी, जवका उकोडा तिहां नथी ॥ कपट वंचना बल रहि श्रेय, सुर नरने सरिझुंज कहेय॥५॥ सहुने सरि नांखे जेह, मुगतिपंथनो तारु तेह ॥ सनामांहि नर बोले जिस्यु, एकांत में जांखे तिस्यु ॥ ६ ॥ लोक देखतां जेहवं करे, एकांतिक तेहq आदरे ॥ सोवत जागत सरि ध्यान, करे वखाण तस साचुं ज्ञान ॥ ७॥ हितशिक्षा ए रुषले कही, धर्मकथा सांजलवी सही ॥ शक्ति होय तेहबुं श्राद रे, कत्या विना जग को नवि तरे ॥6॥३३४॥ For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) ॥ ढाल ॥ कायावाडी कारमी ॥ ए देशी ॥ ॥ज्ञान लघु अति निर्मवं, न करे जे किरिया॥ ते संसारें पड्या रह्या, नवि दीसे सरिया ॥ १ ॥ झान लडं अति निर्मदुं ॥ए आंकणी॥जोगतणी वा तें वली, कां खाद न आवे ॥ जाणे तरी पण नवि तरे,ते तो सुमो जावे ॥॥झा॥ ज्ञान किस्युं चारि त्र विना, किरिया करे तो वारु ॥ शुकलपदी तेहने कहूं, नवि आतम तारु ॥ ३ ॥झा० ॥ समकित दृष्टि नावें वली, मिथ्यादृष्टि होय ॥ पण किरिया वा दी नरा, सिकि पामे सोय ॥४॥ झा० ॥ ज्ञानी तप किरिया करे, कर्मक्षय बहु गाले ॥अज्ञानी तप बहु करे, अल्प पुण्य ते आले ॥५॥झा ॥ ता मल पूरणनी परें, घणुं कष्टज एहनुं ॥ इंतणी प दवी लही, फल अलपज तेहy ॥६॥ ज्ञा॥ज्ञा नी सद्दहणा विना, तप किरिया करतो ॥ अंगारमई कनी पेरें, संसारमा फरतो ॥७॥झा ॥ झान स, मकित चारित्र नला, त्रणे मोदज होय ॥ जेम सं योगी रोटली, वली थाती जोय ॥ ॥ झा० ॥ गुरुवाणी सुणी श्रादरे, एत्रणे प्रकार ॥ श्रावक पूजे वांदतां, कहुँ तेह प्रकार ॥ ए ॥ झा ॥ श्छकारी For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) सुहरा कहे, गश् सुख नरें राति ॥ तप संयमनी जा तरा, निर्वहो सुख नर जाति ॥१॥ झा ॥ शास्त्र मांहे कडं श्स्यु, गुरु साहामा जाई ॥ नमस्कार करी पूबतां, जीव हलुई थाई ॥ ११॥ ज्ञा० ॥ वांदतां विधिशुं साधुने, होय निर्मल आप॥चिरका लनुं संच्यु वली, शिथिल होवे पाप ॥ १२ ॥झा॥ विशेष वंदन कहुं तुऊ हवे, सुणि धरजे विवेक ॥ बकारि नगवन् पसा करी, कहे गाथा एक ॥१३॥ शाणायालावो॥"फासुएणं एसणिणं असणं पाणं खाश्मंसाश्मेणं वन पडिग्गह कंबल पाय पुणेणपाडि हारि पीढ फलग सिसा संथारएणं उसह नेसऊोणं जयवं अणुग्गहो कायवो ॥” एवं निमंत्रणुं नि त्य करे, वली नोतरं देय ॥ षन दिये हित शी खडी, समजे जेह सुणेय ॥ १४ ॥ झा० ॥ ३४ ॥ ॥ ढाल ॥ जिम सहकारें कोयल टहुके ॥ ए देशी॥ ॥ निश्चल मन करि सुणवा आवे, नावें नेद न ला ते पावे, मूरख पणुं तस नीकले ए ॥१॥ चल टामांहेथी जारें आवे, क्षण एक बेसे जिहां मन नावे, वस्त्र पहें उतारिये ए॥२॥ घरणी जमणी शाखा पूजे, दरिऽपणुं जिम नरनुं भ्रूजे, पूजी उंबरो For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४१ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेमशुं ए ॥ ३ ॥ जमणो पग घरमांहे मूके, उंबरो चांपे त्यां नवि यूंके, वदन पखाले प्रेमशुं ए ॥ ४ ॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ मौनवंतने निश्चल वली, सजा करे तर्क नि यांगुली | पेढी दंत घसे नरराय, जिम बत्रीशे बलिया थाय ॥ १ ॥ पढें पुरुष ते दात करे, कज जी ल कायरनुं सिरे ॥ वडलो खेर बीयो मालती, निं बे रोग रहे नहिं रति ॥ २ ॥ वांकुं गांठ नहिं ज्यां वली, जाऊं स्युंज टची आंगुली ॥ द्वादश अंगुल दीरघ जाप, अनामिकाने टचि विच राख ॥ ३ ॥ जिमणे पासेंथी नर करे, पोलुं शकुं दुर्गंध परिहरे ॥ व्यतिपातने यादित्य वार, ग्रहणसमय नहिं दातण सार ॥ ४ ॥ श्रवम नोम ने चतुर्दशी, पडवे दातण म करिश घसी ॥ श्रमास पूनम ने संक्रांति, दंत न घसवा तव एकांत ॥ २ ॥ करे कोगला त्यारें बार, उलि तो कां नहिंज विचार ॥ कनक रजत तरु जैलें करे, वांकी कांटाली परिहरे ॥६॥ अंगुल दश नी ते राखतो, दातण करि आगल नाखतो ॥ पढे नाकमां नामे नीर, गजनी परें तस होय शरीर ॥७॥ मुख सुगंध ने नावे पली, इंद्रिय निर्मल तेहनां वली ॥ For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) खर रूडो ने नहिं लीलरी, ए विधि श्रावक जूठ. करी॥ ॥ सोजो स्वर बेगे में सास, तृषावंत जीरण खास॥ शिर हियडु लोचन मुखपाक, दुःखें कान नहिं दातण नांख ॥ ए ॥ शूके मुखने तरडे होग, दांत कुःखता पुःख जस मोट ॥ खरनो नंग थतो होय जिस्ये, तेल कोगला नांख्यां तिस्ये ॥१॥ जीव रहितने निरवद्य गम, दातण फासु कीजें ताम॥ आदि कोगलो करतां जोय, गले बिंदु जल भोजन होय ॥ ११॥ जाण्या वृदनुं दातण करे, अति सुं हालुं हाथे धरे ॥ नलीनूमि तणुं श्रादरी, प्रगमावे रस चावी करी ॥ १५ ॥ उतुं रहे तो सुखनुं हेतु, प में पडे तो आहार संकेत ॥ एम दातणनो सुणी विचार, मल काढे नर तेणी वार ॥ १३ ॥ रोग ताव नेत्रीजी जरा, तेहने दातण नहिं शुनकरा ॥ जे पच्चरकाणी निर्मल बुद्धि, तेहने दातण पाखें शुद्धि ॥१४॥ विष्णुनक्तिचंयोदय सार, तिहां दातणनो कह्यो विचार ॥ पडवे षष्ठी दशमी जोय, नवमी सं क्रांति नवि होय ॥ १५ ॥ तिम वली श्राफ अने उपवास, त्यारें वायुं दातण तास ॥ शास्त्रवचन न विमाने गणे, घसे दांत साते कुल हणे ॥१६॥पूरव For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) उत्तर पश्चिम नणी, शास्तरमांहे त्रण दिशि सुणी ॥ बेसी पुरुषने दातण करे, जीव जंतु पहेलु मन धरे ॥ १७ ॥ एम नांख्यो दातणनो नेद, सुणो पुरुष क री उंघ निषेध ॥ षन कवि कहे हित शिवाय, उंघे तेहनो अक्षर जाय ॥ १७ ॥ आंखें अंजन सु रमा तणुं, करतां निर्मल लोचन घणुं ॥ थाको जो जन उजागरो करी, ज्वरनो धणी मूके परहरी ॥ ॥१५॥ मस्तक दाढी उसे नित्य, प्रर्व दिशे त्यां धारे चित्त ॥ बे हाथे माथु नवि खणे, खरड्यो हाथ न दे शिर तणे ॥ २० ॥ आरीसो नित्य जोजो जाण, मांगलिक महोटुं एधाण ॥ पूरव सामो रहिने जोय, मेल नस्यो म म निरखो सोय ॥१॥ निशा सम य नर जोवे कोय, आयु हीण होये नर सोय ॥ दातण करतां पण म म जोय, वदन पखाली निर खो सोय ॥॥ श्रारीसो जोतां जो कहिं, धड उ पर शिर दीसे नहिं ॥ पखवाडे तस मरणज होय, उत्तम नर चेते सहु कोय ॥२३॥ अंबु तेलथने तर वार, तिहां मुख म जुङ नर ने नारि ॥ रुधिर मातरा मांहि नवि जोय, क्रोधीने आय घटतुं होय ॥४॥ आरीसो शरशव दाहिं घीय, बीलां फरसे पु For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५) रुष सदीह ॥ गोरोचंद फलने माल, रुषलो देखे शुन वृक्ष बाल ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ३७७ ॥ ॥ ढाल ॥ कान वजाडे वांसली ॥ ए देशी ॥ ॥ थर हुशियार श्रमज करे, तन हलवू थाय ॥ समरथ कार्य तणे विषे, फुःख खमी शकाय ॥१॥ अग्नि वृद्धि होये घणी, वली जरा न आवे ॥ नोज न तास पचे सही, जे सबढुं खावे ॥२॥ शूलपj तेहगें टले, थिर होये मंसो ॥ वैरी तस चंपे नहि, दुशीयारी हंसो ॥३॥ जे बलवंत रूडं जमे, श्रम तेहने वारु ॥ वसंत शीयाले घj जलो, उद्यमें बल सारु ॥४॥ तेलें मर्दन नित्य कर्वा, जेणे जरा म श्रावे ॥ वायुविशेषे ते समे, थाक उतरी जावे ॥५॥ दृष्टि तेज वाधे घj, पुष्टो पण थाय ॥ म स्तक कानें चोलतो, विशेषथी वलि पाय ॥६॥ अन्ने गात्र रहे सहि,अन्नमांहि शुज रोटी॥आठ गुणुंबल अन्नथी, हुवे काया महोटी ॥७॥ आठ गुणुं बल रोटी थी, जे पीता दूधो ॥श्राप गुणुं पाके सही, एम घृतें सधोना पाठ गुणं बल घीयथी, जे चोले तेलो॥ रूप रंग वाधे सही, वृद्ध नाना बेलो ॥ ए॥ रोगीने मर्दन नहिं, बीजाने सारो ॥ पूर्व दिशि अंघोलतो, For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६) दीपे काम अपारो ॥१॥ अग्नि बल दीपे सहि,तेज कांति वधारे॥खरज थाक मेल जंघडी, तस नासे त्यारें ॥१९॥ परसेवो बलणज टले, धन पाणी गाढुं॥ सोय अंघोल करे सही, जे न करे टाटुं ॥१५॥ गलाथकी हेतुं धूवे, वली ऊने नीरें॥ निरतिवाई शिर धुवे, सुख होय शरीरें ॥ १३ ॥ बीज बह था उम दिने, दशमी नवि नाये ॥ तेरश चउदश पूनमें, अमासे नवि नाये ॥ १४ ॥ श्रादित्य नावे नहिं, नर होवे तापो ॥ सोमें कांति थापे सही, मंगल मृत थापो ॥ १५ ॥ बुझें धन पामे सही, गुरु दरि जी थाय ॥ शुक्रे दोजागी सही, शनि सिडिज थाय ॥१६॥ नागा चिंतातुरा नरा, जश् श्राव्यो गाम ॥ वस्तु साथें जोजन करे, नाहण नहिं तस गम ॥ १७ ॥ अलंकार पहेरे नहिं, करे मंगल कामो॥ सजनने वलावी वले, नाहण न करे तामो ॥१०॥ तेलें ना जे कडं, तिहां जांखि नायो ॥ अंघोल नित्य करवी सही, तिहां न कही नायो ॥ १५ ॥ तेल न चोले नर वली, दिन होय जो पडवो॥ती रथ नूमि न चोलिये, वाख्या नर सरवो ॥२०॥ व्यतिपात दृष्टि नहिं, वैधृत संक्रांतें ॥ तेल न चोले For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) तिहां वली, वाख्या एकांतें ॥१॥ नाहण तणा ने दज कह्या, नरहितने काज ॥ तेहनुं नाहण कयु खरुं, जीव राखे दाहाज ॥ ॥ तडके बेसी अं घोलियें, जिहां जीव न होय ॥ पूंजी पात्र लिये सही, पहेलुं दृष्टि जोय ॥ २३ ॥ पडना बाजोउ विषे,बे सी अंघोले ॥ जीव जंतु जोई करी, जल तडके ढोले ॥ २४ ॥ जयणा विना नर नवि तरे, पुण्य करणी करतां ॥ जीव तणी रक्षा करे, ते दीसे तरता ॥२५॥ ए अंघोल नेदज कह्या, करजो जीवरदा ॥ षन दास रंगे करी, नांखे हितशिदा ॥ २६ ॥४०३ ॥ ॥ ढाल ॥बही नावना मन धरो॥ए देशी॥ ॥ शिख देखें सुपुरुष नरा, जिनपूजा श्रदरजो रे ॥ वरजो रे ॥ उत्तर मुख चीवर नरा ए ॥१॥ उत्तर मुखें पूजा कही, पूरवें वलि विशेषो रे ॥ देखो रे ॥ वामनाग देरासरु ए॥२॥ दोढ पा णि उंचुं सही, प्रतिमा पछिम सामी रे ॥ दक्षिण रे ॥ सनमुख होये ते खलं ए ॥३॥ एम जिन पूजा कीजिये, चरण जानु कर चरचो रे ॥ अरचो रे॥ जिन दक्षिणनो जे खंनो ए॥४॥ मस्तकति लक करो सहि, तिलक नढुं कर जाउ रे ॥ गावें रे॥ For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ४८ ) जिम नवि लागे बिंडु रे ॥ ५ ॥ कंठें हृदें उर पू जियें, नवे तिलकनुं मानो रे ॥ गानो रे ॥ करतां पूजे ते तरे ए ॥ ६ ॥ चंदन विण पूजा नहिं, वासपूजा परजातें रे ॥ बहु जांतें रे ॥ मध्यान्हें पूजा कही ए ॥ ७ ॥ दीप धूप संध्यासमय, दक्षिण अंगें दीवो रे ॥ जीवो रे ॥ वाम जागें धूपज करो ए ॥ ८ ॥ फल सुंदर निवेदशुं, जिनागल ते ढोए रे ॥ खोए रे ॥ पातक पूजा करी ए ॥ ए ॥ दक्षिण अंग बेसी करी, चेश्वंदन पण कीजें रे ॥ नाविजें रे ॥ त्रण अवस्था त्रण वारो ए ॥ १० ॥ त्रय वस्था जावजे, जिन बद्मावस्था ज्यारें रे ॥ त्यारें रे ॥ जन्म राजनी दीक्षा जली ए ॥११॥ प्रतिमा प रिकरमां लिख्या, कलशा सुर आकारो रे ॥ धारो रे ॥ जिनमस्तकें सुर गिरि जई ए ॥ १२ ॥ सुगंध नीर लेई करी, कीजें देव पखालो रे ॥ बालो रे ॥ ताम अवस्था जावियें रे ॥ १३ ॥ कुसुमदाम सुर शिर धरे, पुप्फें करी पूजीजें रे ॥ धारीजें रे ॥ ताम छाव स्था राजनी ए ॥ १४ ॥ मुख मस्तक केशज विना, दा अवस्था हु रे || जेदु रे || श्रमण दुवा जिणवर वली ॥ १५ ॥ केवल अवस्था जावियें, प्रातिहार Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ४७ ) जलि आगे रे ॥ वाटो रे ॥ चिंतवतां शुज ते लहे ए ||१६|| दिव्यनादी निरखी करी, जावो जावना एहो रे ॥ जेहो रे ॥ सुखशाता अंगें लहो रे ॥ १७ ॥ सि द्ध अवस्था जावजे, पर्यंक यासन देखी रे || पेखी रे ॥ काउस्सग्ग मुद्रा जिन ती ए ॥ १८ ॥ जावो चेन वंदन करतां, एह अवस्था सारो रे ॥ पारो रे ॥ न वनो एम पामो सही ए ॥ १५ ॥ त्रण अवस्था ए कही, एणी पेरें पूजा कीजें रे ॥ तजीजें रे ॥ दोष स कल जाणी करी ए ॥ २० ॥ पुष्प पड्युं पाये ड्युं, मस्तकें चढियुं जेहो रे || तेहो रे ॥ परिहरी कुव स् ध ए ॥ २१ ॥ नाजियकी हेतुं नहिं, मलिन लोकें फरस्युं रे ॥ फरस्युं रे ॥ अलगुं कीडे जे जख्युं ए ॥ २२ ॥ कुसुम पत्र नवि खंमियें, फल नवि खंको कोयो रे || जोजो रे ॥ पूजा राग तुमने वली ए ॥ ॥२३॥ खं संयुं धोतियुं, मेलुं मूक सबेदो रे ॥ नेदोरे ॥ पूजाविधि समजी करी ए ॥ २४ ॥ पद्मास न पूरी करी, जिननी पूजा कीजें रे ॥ धरीजें रे ॥ नेत्र नासिका उपरें ए ॥ २५ ॥ मौन करी मूखें बां धियें, पडो मुख कोशो रे ॥ रोषो रे ॥ रागतजी पूजा करो ए ॥ २६ ॥ एकवीश जेद पूजा तणा, स ॥ हि० ४ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) त्तर नेद पण लहियें रे॥ कहिये रे ॥ श्राप पंच त्र ण विधि जला ए ॥ २७ ॥ ए जिन पूजा विधिक ह्यो, जावें जीव जब कीजें रे ॥ दहीजे रे ॥ पातक षन कहे सही ए ॥ २७ ॥ सर्वगाथा ॥ ४३१ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जिनपूजा जस घर नहिं, नहिं पात्रे जिहां दान॥ते केम पामे बापडो, विद्या रूप निधान ॥१॥ तिलक नहिं केशर तणां, घृत दीवो नहिं ज्यांहि ॥ तास जनम लेखे नहिं, ते घर नहिं घरमांहि ॥२॥ शिख देखं तुम शुन परें, जिनपूजा द्यो दान ॥ दाने जिनपदवी सही, चक्री देव विमान ॥३॥ एक दान तसु पंच नेद, विवरी कहुं विचार ॥ अजय सु पात्र कीर्ति लही, उचित अनुकंपा सार ॥४॥ ॥ ढाल ॥ सुरसुंदरी कहे शिर नामी ॥ ए देशी ॥ ॥ राग मालवी गोडी॥अनुकंपा महोटुं दान, गज श्राणी हैडे शान ॥ शशलो उगास्यो सार, धन्य धन्य तुं मेघकुमार ॥ १॥ श्रेणिक तणो सुत होय, शुन संयम खेतो सोय ॥ पाम्यो अनुत्तर जेह विमान, प सघु अनुकंपा दान ॥२॥ धन्य बाहुबली अव तारो, उचितदान तणो दातारो ॥ दुर्ड जरतेसर For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) नर सार, दसारण ला लहे लव पार ॥३॥हु संप्रति राजा जेह, प्रासाद वधामणी देह ॥ बाहडदे परमुख जोय, उचित दाने सुखीया होय ॥४॥ करो कीरति दाननी मोजो, सहु जपे विक्रम नोजो ॥ जस कीर ति जगमां रामो, सहु पगें पगें जंपे नामो ॥५॥ त्रण दान कह्यां वली एहो, सुख जोग तणे ते देहो ॥ चक्रवर्ती तणा जोग सारो, पामे प्रेमदा चउस ह जारो ॥६॥ पात्रदान तणो देनारो, श्रेयांस तणे संजारो ॥ दान देती चंदनबालो, कीधां कर्म विकट 'विसरालो ॥७॥ शालिना धन्नो धनसारो, नयसारें लह्यो जव पारो ॥ मूलदेव कयवन्नो जेह, धन्य तुं जंगमदाता तेह ॥ ॥ जग महोटुं पात्रं दान, तुं थाजे तिहां सावधान ॥ पांच नूषणने श्रादरजे, आणंद हियामांहि धरजे ॥ ए॥ आणी हर्ष तणां वली आंसु, अन्न पाणी दिये मुनिने फासू ॥ रोमां चित धरिय उदासो, मुखें मधुर वचननो वासो ॥ ॥ १०॥ दान देतो घणुं अनुमोदे, तेहनुं दारिख मायुं घोदे ॥ लव तेणें मुगति जाय, केई त्रीजे नवें सिद्ध थाय ॥ ११ ॥ पंथनो चाख्यो मुनि श्रायो, दान देतां नर तुं फाव्यो ॥ जगति कीधी गिलाणज For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( २ ) केरी, तेणें टाली चिहुं गति फेरी ॥ १२ ॥ सिद्धांत तणो जणनारो, प्रतिलाजी पामो जव पारो ॥ लोचकी धो मुनिवर माथे, प्रतिलाजी पुण्य व्यो साथै ॥१३॥ - महोढुं पारणा केरुं दानो, घरे होय अखूट निधानो ॥ उत्तर वारणे दान तुं देजे, धननो लाहो एम लेजे ॥ ॥ १४ ॥ गुरु यावे उजो थाजे, गुरुनी साहामो पण जाजे ॥ दान दे बोलावा जाय, तेहने पुण्य घणेरुं थाय ॥ १५ ॥ मूके बेसणुं करी परणामो, वली पूढे गुरुने कामो ॥ पढें जगति करीजें जलेरी, श्राशा पहोंचाडे मन केरी ॥ १६ ॥ नारकी सुर तिं पंचमांदे, कांई दान न देतुं प्राहे ॥ उत्तम जव मान व सारो, दान पाखें धि अवतारो ॥ १७ ॥ दान पा खें लड़े दारिद्रो, होय अपजश ने बहु बिडो ॥ दुर्भागी दास ते थाय, घणुं परहाथे कूटाय ॥ १८ ॥ दीन दुःखियो रांको रोगी, परपराजव सहे ते योगी ॥ तेणे नर उत्तम चेतो, रखे रहेतो थोडुं देतो ॥ १७ ॥ न गयो धन लेई कोई, रावण रुद्धि चाल्यो खोई ॥ नवे नंदनें मुम्मण शेव, करपी गयां नीचा नेठ ॥२०॥ जुवो करपीनी ए एंधाणी, सागरें सागर लीधो ताणी || कपिला दासी मति मूंकाणी, थर करपी Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३) नर पटराणी ॥१॥ एम करपी चरित्र अनेको, सुणी पंमित धरिये विवेको ॥ उत्तमकुंल लखमी पामी, रूप नूषणधारी हुढं स्वामी ॥ २२ ॥ जलां वस्त्र विचारी लंगो, दान पाखें दीसे जूंमो॥नवि शोने ते निर्जागो, मद वारि विना जिम नागो ॥२३॥ नाक लोचन विण मुख जेह, करपीनुं दरिसण ते हवू ॥ सुणी शास्त्र धरो नर शानो, दीयो पात्र मु निने दानो ॥४॥ वली पांचमुं दान प्रकाश्युं, नेम नाथे तेह अन्यास्युं ॥ बंमी जोगने संयम लीधो, जयदान पशुनें दीधो ॥२५॥ मुनि मेतारज वलि जेह, पंखी कारण उसे देह ॥ मेघरथ महोटो माहा धीर, जेणे आयुं श्राप शरीर ॥१६॥ धनसंगम साधु गुणवंत, नवि उदवे परनो जंत ॥ नवि बोले पीले कापे, षट्कायने नवि संतापे ॥२७॥ एम सूधो श्रावक जेह, घणुं बेदन न करे तेह ॥ पीलण पीस ण परजाल, न करे जीवनो प्रतिपाल ॥ २७ ॥ अ जयदाननो दाता तेह, जीवने उगारे जेह ॥ एम पांचे दान में नास्यां, पुण्यवंत श्रावक अन्न्यास्यां ॥ ॥२५॥ कहे रुषन कवि हितशिक्षा, देजो साधुपु For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) रुषने निदा ॥ उचित सहुकोनुं साचववू, अणदी धे नवि वावरतुं ॥ ३० ॥ सर्वगाथा ॥ ४६५ ॥ ॥दोहा॥ ॥अवसर जोर जोजन तणो, अतिथि पहोतो बार ॥ अण दीधे आ जिम्यो, गयो ते बहु नव हार ॥ १॥ सखि ए बावन अक्षरा, नण्यो का वन कंत ॥ एक ददो बाहिर गयो, ते ऊखंत ऊखंत ॥२॥ गज विघोर तटक करी, काल सम मुह वन्न ॥ एणी पेरें बप्पिहायकुं, ऊलो ते जलहर दिन्न ॥३॥ थोडं दान सोहामणुं, जे दीजें हरषेण ॥ पडी कालविलंबडे, शुंकीजें सहसेण ॥४॥ दान संव त्सरी जिन दिये, मिले पुरुष करीश्राश॥ जिन वरसे तिहां मेघ परें, को न जाय निराश ॥५॥ तुंगिया नगरी श्रावक जला, अनंग ज्वार कहाय ॥ उत्तम मध्यम सहु दिये,देतां नवि शंकाय ॥६॥ रायपसेणी केशी ऋषि, वाख्यो परदेशी राय ॥ पहेलु रमणिक थश्क र, प. अरमाणक म थाय ॥७॥ ॥ चोपाश्नी देशी॥ ॥ रमणिक पुरुष थायो सहु कोय, देई जमतां पुण्य सबढुं होय ॥ विवेक नलो हैयामां धरे, सकल For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५) जीवनी चिंता करे ॥१॥ श्रीदेव गुरु गकरने नमे, ते नूख्यां पोतें नवि जमे ॥ मात पिता बालक गर्नि णी, ते नूख्यां न जमे नर गुणी ॥२॥ रोगी सजन गरढो बाल, ते नूख्यां नवि जमे कृपाल ॥ मानव ढोरनी चिंता करे, ग्रहण समय जोजन परिहरे ॥३॥ जमे पुरुष लागे जब नूख, ते नरने कहिं ना वे फुःख ॥पहेला पहोरमांहे नवि जमे, बीजा पहो रने नवि निर्गमे ॥४॥ पदेला पहोरमांहे जे खाय, रसनी वृद्धि ते नरने थाय ॥ बीजो पहोर वटावा दे जोय, तो निश्चे बलनो दय होय ॥५॥तरस्यो जिमे तो गोलो थाय, टाटुं जिमे तो होये वाय ॥ लघुशं कायें पाणी पिये, जगंदर रोग ते अंगें लिये ॥६॥ अजीर्णमाहे जोजन जेह, विष समान नर कहिये तेह ॥ वली परोढियो संध्याकाल, रातें जमे ते मूर ख बाल ॥ ७ ॥ हाथ उपर लेई नवि खाय, -हाथ न दीजें माबे पाय ॥ तावड अगासुं ने अं धकार, जाड हेवें नहिं निरधार ॥ ७ ॥ नवि टाले तर्जनी आंगुली, मुख पग हाथ धूए नर वली ॥ न जमे नागो मेले चीवरें, लखमीवास न हिं ते घरे ॥ए॥ जमे पुरुष थाली कर धरे, पहेतूं For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) वस्त्र न बांधे शिरें ॥ एक वस्त्रे न करे आहार, अप वित्र पणे जोजन नहिं सार ॥ १० ॥ लोलुपवे हो पग खासडां, तज अपलक्षण त्रण ए वडां ॥ केवल नूमि नहिं खाटले, पूर्व दिशि बेसे पाटले ॥१९॥ त्तर साहामो आसण जले,पग नवि दीजें नर पाटले॥ मेलो नूमो लाग्यो थाल, न जमे नरजे बुद्धि विशाल ॥१॥अत्यंत माकिण ने कूतरा,श्ण नजरें न जमे शुन नरा॥रुतुवंतीयें फरस्युं जेह, उत्तम थाहार करे नहिं तेह ॥१३॥ पंखी श्वान ने त्रीजी गाय, तेहनुं सूंघ्यु नर नवि खाय ॥नूख नजरें पापी पाडियु, ते नोजन उत्तम मियुं (बीजी वार राध्यु ते नहिं)॥१४॥ जिमतां शब्द करे नहिं एक, गणे नोकार तो सबल विवेक ॥ समे गमे बेठे सुख घj, मगमगतुं बंको बेसणुं ॥ १५ ॥ अणबोल्यो ते नोजन करे, जद सघढुं गंधी मुखें धरे ॥ कोनी दृष्टि न लागे वीर, जोजन श्रादें न पीये नीर ॥ १६ ॥ अग्नि मंद होये तुम तणी, मध्ये पीजे अमृत जणी ॥ बेडे विष स माणुं जाण, प्रधानपुरुष तणी ए वाणि ॥१७॥ प्रथम वस्तु गली चीकणी, मध्ये खाटुं खासै गुण जणी ॥डे तीखां कडवां सार, एणी पेरे कीजें उ For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७) त्तम श्राहार ॥ १७ ॥ शूल रोग जेहने वली होय, विदल आहार करे नहिं सोय ॥ कुष्टि न जूवे मांसज नणी, घृत मे जे ज्वरनो धणी ॥ १५॥ पुरुष घj नवि पीजें नीर, विषमुं श्रासन मे वीर ॥वडीलहुडी शंका परिहरो,दिवसें सूq ते म म करो ॥२०॥रातें जागq एह कुयोग, ए षट् बोलें होये रोग ॥ गरणां चारे निप्राशुं तजे, जल तडको ने लोग नवि नजे ॥ ॥१॥ वर्षारतें नर खाएं खाय, शरद रतें घट पा णी पाय ॥ दूध नबुं हेमंत रतुमांहिं, तेहने रोग न थाये प्राहिं ॥ २२॥ शिशिर रतें कटु खाटुं खाय, वसंत रतें घृत जिमे नरराय ॥ ग्रीषम रतें गलियुं ते सार, रूप कांति बल वधे अपार ॥ २३॥ अति ऊ नुं ते बलने हरे, अति टाढुं ते वायुने करे ॥ खाटुं खारं तेज अवगणे, अति कामी जीवितने हणे ॥ ॥२४॥हेमंत रतें नर सेवे काम, शिशिर तडका ते अनिराम ॥ वसंत रतें नर सेवे वन्न, ग्रीषम रतें जल पीये सुख तन्न ॥ २५ ॥ वर्षारतें घर सेवे शुद्ध, शरद रतें गवरीनुं दूध ॥ आषाढ मास श्रावण जव होय, तव पंथी म म चालो कोय ॥२६॥ जादरवो ने श्राशो मास, तव पाणीनो करे अन्यास ॥ कार्ति For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७) क मागशिर मासे जोय, मले दूध पीयो सहु कोय ॥॥ पोष मास माघ महिनो जिसें, जासक जिम q नांख्यु तसे ॥ फागुण चैत्रे क्रीडा करे, वैशाख जे ठमां निखा शिरें ॥ २७ ॥ ग्रीष्मरतें हरडे ते सार, सरखे गोले होय गुणकार॥ वर्षारतें सैंधव मेलियें, शरद कालें साकर नेलियें ॥शए॥ हेमंतरतें हरडे ने सूत, पबर नांजे मारे मूठ ॥ शिशिर रतें पीपरी शुं खाय, तेहने रोग कदिये न थाय ॥३०॥ वसंत मांहे मध साथें कही, सकल रोग दय करती लही ॥हरडना गुण बहु कहवाय, नहिं जननी तसु हर डे माय ॥ ३१ ॥ अतिसार नर जेहने होय, नर्बु धान्य नर मे सोय ॥ नेत्ररोगीयो मैथुन तजे, तुरत व्याहीतुं दूध नवि नजे ॥३॥ उत्सुक पंथी एकदा जमे, निरवद्य आहार अचित्त मन गमे ॥ एवडं न वि सचवाये जोय, नोकारसी तो कीजें दोय ॥३३॥ वादु करी करवं पञ्चरकाण, चार आहार मे नर जाण ॥ नवि चाले तो पाणी पिये, त्रण आहार ते मुख नवि दिये ॥३४॥ कांश्क नित्य करे पच्चरकाण, चउदे नियम संजारे जाण ॥ अनंतकाय अनदय नवि जमे, अनंत मरण करी ने नमे ॥ ३५ ॥ जाजूं For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (एए) बोले जाजूं खाय, ते मानव सहि दोहिलो थाय ॥ चिंतायें जोजन नवि करे, अमृतनुं विष होये शिरें ॥३६ ॥ वमन करी नोजन नवि करे, माबे हाथे जमवू परिहरे ॥ उंची थाली लेई नवि जमे, नबढुं श्रासन कोहोने गमे ॥३७॥ दक्षिण चार विदिशि परिहरे, पग उपरें पग नर नवि धरे ॥ जमतां बच बच नर नवि करे, वांकी नूमि पहेली परिहरे ॥३०॥ हाले नमे तो शुं बेसणुं, उचिंगतां मूरख होये घणुं ॥ मात स्त्रिया दिकें रांध्यं जेह, प्रायें पुरुषं जमवु तेह ॥ ३५॥ जिण पात्रे पापी करे आहार, सुपुरुष तिहां न जिमे निर्धार ॥ मूको झतुवंतीनो थाल, जनुं पात्र तजो ततकाल ॥४०॥ अणजाणे पात्रे नवि खाय, चाटे सूंघे घोडो गाय ॥ पंखीयादिकेंजे बोट्यां होय, तिणे पात्र म म जिमशो कोय ॥४॥ जमणी नासिका वहेतां जिमे, अति खारु नोजन नि गमे ॥ अति खाटुं इंजियने हणे, अति जनुं बलहा नी जणे ॥४२॥ घणुं शाक नर नवि आदरे, शाक विना नोजन नवि करे ॥घृत घणुं जिमे दूध ने कूर, जूनो जमतां वाधे नूर ॥४३॥ प्रोडे नहिं वाहन परिहरे, थोडी एक वेला श्रम नवि करे॥ साधु परें For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोजन श्रादरे, खोट वखाण तेहनुं नवि करे ॥४॥ एक चबु बेई कोगलो, उतारे घटमांहि निर्मलो॥ बाकी कोगला नाखे सही, पशु परें जल पीएं नहीं ॥ ४५ ॥ पीतां पाणी रहे वली जेह, नूमि उपर खेशनाखे तेह ॥जल जाजु नवि पीजें वीर, मोढे बोक न दीजें धीर ॥ ४६॥ जोजन करीने कहे नो कार, चैत्यवंदन ते जगमां सार ॥ नीनो हाथ बीजा हाथरां, न घसे पाय अने मोहरां ॥४७॥ फेरे हाथ ढीचण पर धरे, लोजन करी बालस परिहरे ॥ वडी नीति तजे तिणि वार, नवि बेसे उघाडे बार ॥४॥ सनान शीद करे गुणवंतो, माबे पासें सूवे जागतो ॥के सो मंगलां नरवां वेठ, जमी बेसतां वाधे पेट ॥४॥ चित्तो सूतो बलखो थाय, माबे पासें वाधे आय ॥ शास्त्रंथी जोजन विधि लही, रुषन्ने तुम हितशिदा कही ॥ ५० ॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥सांसो कीधो शामविया ॥ए देशी॥ ॥राग गोडी॥एणी परें आरोगीने उग्यो, खावां फोफल पान ॥ अति बलवंत होये तंबोलें, वाले देहनो वान ॥ १॥ सबल सवीर्यने पित्तकर होये, शमे कफ ने वाय ॥ खर वाधे ने अगनी दीपे,मुख For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ६१ ) सुंदर गंधाय ॥ २ ॥ मेल टले मुखनो नर निश्चें, पान संयोगें खाय ॥ सूतो उठी जे नर सेवे, देह कसुंबो थाय ॥ ३ ॥ जिम्या पढी खावां वली निचें, थाको पुरुष पण खाय ॥ वमन करीने वलि वावरे, सकल दोष तस जाय ॥ ४ ॥ वाग्युं होय ते पान परिहरे, आंख दूखती जास ॥ पान तजो मदिरा पान कीधे, विष खाधुं नहिं तास ॥ ५ ॥ चूनो काथो ने सोपारी, केसर कपूर लविंग ॥ चिनिकबाब पान एलची, खातां दीपे अंग ॥ ६ ॥ इत्यादिक सं योगें खाय, तस घर लखमी वास ॥ सुंदर महिला मंदिर महोटां, करे पुरुष बहु आश ॥ ७ ॥ अणी पाननी ते नविखावी, सबल विरोधज थाय ॥ मध्यें लक्ष्मी ही कही जें, बीट घटाडे आय ॥८॥ रात्रें मुखें तंबोल न राखे, तिलक ने सार फूल ॥ स्त्रीनी सेज तजे नर जेता, ते पंक्ति लहे मूल ॥ ए ॥ स्त्रीसं गें बल जाये नरनुं, तिलक घटाडे आय ॥ फूलें सर्प तो संग होये, पानें प्रज्ञा जाय ॥ १० ॥ स मजे ते सुख पामे बहुलुं वडो विवेक जगमांहि ॥ विवेक तेज धर्म कहीजें, विवेक विना श्रेय क्याहिं ॥ ११ ॥ आखां पान न खावां कहियें, शिरा काढ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) वी साव ॥ षनदास हितशिदा नांखे, कहे तं बोलह नाव ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ५३४ ॥ ॥ ढाल ॥:पाट कुसमजिन प्रज्य परूपे ॥ए देशी॥ ॥दौर तणा हवे नाव जणीजें, चोथे नहिं निर धार ॥ श्रापम ने चउदश टालो, अमास नहिं दिन सार ॥ हो नविका, कीजें आप विवेकोए श्रांक णी॥१॥त्रण्य वार तजे नर निश्चे, मंगल शनि रवि जेह ॥ संध्या रातें नख उतरावे, मूरख जगमां हिं तेह ॥ हो न ॥२॥ विद्या प्रारंन उबव जारे, कौर तजे नर त्यारें ॥ यात्रा रणे परवें परिहरजे, पंकि त पुरुषा वारे॥ हो ज॥३॥पोताने हाथे नवि चूं टे, नवि वीणे वलि श्राप ॥ श्राप लूगडं नवि मांगी जें, होय दारिनो व्याप ॥ हो न० ॥॥ स्नान तेक र, एते गमे, लोग नज्यो जस विमन॥चिताधूम ने नख उतरावे, जेहनें जूंठं स्वपन्न ॥ हो ज०॥५॥ वृक्ष सेवालें ढांक्युं पाणी, त्यां नर नवि अंघोलो ॥ दोहिलो पेशी मेले नीरें, नर नाये ते नोलो ॥ हो ज० ॥६॥ टाढे नीरें अंघोली पुरुषा, न जिमे जनुं अन्न ॥ उने जलें टाटुं अन्न उमे, एम सुख पामे त न्न ॥ हो ज० ॥ ॥ स्नान करी जस तन गंधाये,अने For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ६३ ) जस दंत घसाये ॥ बाया देहनी दीसे माठी, श्रीजे दिनें मृत थाय ॥ हो ज० ॥ ८ ॥ पग हश्युं पहेलुं शूकाये, तेने जिननुं शरण ॥ चेत पुरुष षट दिनमां आयु, एणें नेदें तुक मरण ॥ हो ज० ॥ ए ॥ हित शिक्षा कारण तुज कहेतो, कविजन रुषन दास ॥ वस्त्र वार जोश्ने पढेरे, जिम पहोंचे तुज आश ॥ ॥ हो ज० ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ २४४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्राशा पहोंचे थाप अपार, पहेरो वस्त्र जदा बुधवार || गुरु शुकर चोथो आदित्त, वस्त्र उजलां पहेरो मित्त ॥ १ ॥ हस्त धनिष्ठा चित्रा स्वाति, तव चीवर पढेरो एकांत । अश्विनी अनुराधा ने पुष्य, वस्त्र वावरो रेवति डुष्य ॥ २ ॥ रेवती पुनर्वसु रोहिणी, वली विशाखा दिये रुद्धि घणी ॥ श्रगल नांखी उत्तरा त्रण, वस्त्र वावरो उजले वर्ण ॥ ३ ॥ मंगल दिन रातां वावरे, पुनर्वसु ने पुष्य परिहरे ॥ उत्तरा त्रय ने रोहिणी, रातां वस्त्र न पड़ेरे गुणी ॥ ४ ॥ कनक प्रवा रातां वस्त्र, पढेरे धनिष्ठा जास पवि त्र ॥ अश्विनी रेवती हस्तादिक पंच, वावरजे म करे खलखंच ॥ ५ ॥ विवाह ठाकुर आपे जदा, मुहूर्त्त For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ६४ ) वार न जोवुं तदा ॥ जूनुं मलिन फाटुं लूगडूं, त जीयें मंमियं जिहां श्रीगडुं ॥ ६ ॥ करे तेह लख मीनो नाश, होय अली घर तेहने दास ॥ न गमे नर नारी गुणवती, तेहनी दोलत नहीं दीपती ॥ ७ ॥ मूरख बे ते सांधे पाघडी, तेहने यापद श्रावे डी ॥ मम सांधे कहियें फालियं, जो तुनें वाहा लुं मालियं ॥ ८॥ ए में जांख्यो वस्त्र विचार, सुण्यो सोय जे नहीं दातार ॥ कांइक काज गुरु कीजियें, थोक मुनिवरनें दीजीयें ॥ ए ॥ मन दुर्बल तो एक मुहप त्ति, तेणें ताहरी होय शुज गति ॥ ए शीखामण दी वी रंक, वडा पुरुषनो श्यो बे अंक ॥ १० ॥ रत्न कं बल दीधा अतिसार, सोवन लरक तस मूल अपार ॥ विविध वस्त्र तथा दातार, देई सफल करे अवतार ॥ ११ ॥ द्विज जुजंगम यागें दुर्ज, वस्त्रदाननो दाता जु ॥ शुभगतिनो जजनारो थयो, तेणें उपदेश में तुमने को ॥ १२ ॥ वस्त्रविचार में विवरी कह्यो, जे पण कांही शास्त्रमांहें लह्यो । रुषजदास हित शिक्षा कड़े, पंकित ते साधुंसह हे ||१३|| सर्व गाथा ॥ ५५॥ ॥ ढाल ॥ दिन दिन समरुं श्री महावीर ॥ ए देशी ॥ ॥ त्रिपदी ॥ पुरुष सहदे जे शास्त्र विचारो, पगवाह Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५) णहि धरजे सारो, त्रूटो नहिंज लगारो॥हो पुरषा, त्रू टो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ त्रूटी चांच ने नहिं वाध रडी, खरा गया उंदरडा करडी, तलां गयां तस तर डी॥ हो पु० ॥ तलां ॥२॥ पग अटके पहेरतां मू ल, अबिर पेरें जमाडे धूल, पग विधाये मूल ॥ हो पु० ॥ पग ॥३॥ दरिज पुरुष तणी एंधाणी, तज सुपुरुष तुं हित जाणी, करे पग तणी ते हाणी ॥ चो पु० ॥ करे ॥४॥ अजा चरम तणी ते जाली, .पग परमाणे अतिहि सुंआली, परिहर जेह धाराली ॥ हो पु० ॥ परि० ॥ ५ ॥ जीवघात जेणे करी था ये, मोजा सोय म पहेरिश पाये, कर जंतु रदाय॥हो पु०॥ कर ॥ ६॥ नलि वारण हो धरो सदाई, तिण पगने वली रोग न थाई, लोचनने हित दाई॥ हो पु० ॥ लोच॥७॥ (नीर अन्नने त्रीजां फल) वाणही वस्त्रने त्रीजां फूल, परनां फरस्यां न रहे मूल, म धरिश पुरुष अमूल ॥ हो पु० ॥ म ध॥ ॥७॥ ए हितशिदा झषन्ने नांखी, समज्या पुरुष श्रमण रह्या राखी, मूरख रह्या नर बाकी॥हो पु० मूर० ॥ ए॥ सर्व गाथा ॥ ५६६ ॥ हि० ५ For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६६) ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ मूरखपणुं सहि तेहy टले, जे पंमितने पासें मले ॥ आगमवेदी नेद ते कहे, नीति शास्त्रनो मर म ते लहे ॥१॥ नीति शास्त्रे बोल्युं पवित्र, पुरुष धरे शिर उपर बत्र ॥ जल तडको नवि लागे वाय, शोना तणुं वली कारण थाय ॥२॥ पुरुषे दंग धरे वो हाथ, जाणुं मित्र मल्यो संघात ॥ श्रम कामें जय वारे तेह, हीमंता सुख आपे देह ॥३॥वांको दंम न आवे काम, पहोलो परिहरवो तेणें गम ॥ शल्यो खंम दह्यो शुं कीजियें, हाथे दंम ते नवि ली जियें ॥४॥एक गवं। लाठी ते सार, करे बे गंठी वे ढ अपार ॥ लाल त्रिगंठी आपे अति, चार गंठी श रणे राखती॥५॥पंच गंठी लाठी नय हरे, षटगंठी जय उन्नो करे ॥ जे लाठीने गंगी सात, ग्रहतां रोग रहित दिन जात ॥६॥श्राप गंठी लाठी धन देह, नव गंठीथी जस वाधेह ॥ दश गंठीथी सीके काज, एकादश गंठीयें राज ॥ ७॥ अंगुल चार धुरि मूकी करी, कापि लीये लाठी वन फरी॥ आंगुल श्राप पर वृशिवती, वनशूकी लाठी गुणवती ॥७॥ अस्यो दंग करमांहे धरे, राजा राजनवनें संचरे ॥ मंत्रीशर For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६७ ) मां वियें जाय, धन मेल्यानो करे उपाय ॥ ए ॥ वाणिक पुत्र वखारें जई, वणज करे पोतानो सही ॥ केता हाटें करे व्यापार, व्यवहार शुद्धिथी रुद्धि अपार ॥ १० ॥ सर्वगाथा ॥ २७६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ द्धि घणी तस मंदिरें, न करे कर अन्याय ॥ राजजवनें बेसी करी, रुद्धि मेले राजाय ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ ते गिरुया नाई ते गिरुया ॥ ए देशी ॥ राजा राजसजायें बेसे, मांगवियें मंत्री शो रे ॥ वाणि हाट बेशी धन मेले, धर्म न दुःखे लेशो रे ॥ ते नर महोटा ते नर महोटा, न्याय न करता खोटा रे ॥ ते नर० ॥ ए आंकणी || १ || धर्म विरुद्ध करे नहिं राजा, मध्यस्थपणे करे न्यायो रे | दारिद्री व्यवहा री उपरें, दृष्टि सरिखी रायो रे ॥ ते नर० ॥ २ ॥ कल्याण कटकपुर केरो स्वामी, नाम यशोब्रह्म रा यो रे || नीतिघंट बांध्यो तेणें बहारें, करतो निरतो न्यायो रे || ते नर० ॥ ३ ॥ राजतणी जे अ धिष्ठायिका, परीक्षा कारण आवे रे ॥ थइ सवष्ठा गवरी रूपें राजमार्गे जावे रे || ते नर० ॥ ४ ॥ रा जपुत्र रथ खेडे वेगें, चांपे वचना पायो रे ॥ मूर्ज For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) वाबडो दणमां त्यारे, रूपें घसके गायो रे ॥ ते नर ॥५॥लोक कहे तुंजा राजा कने, न्याय करावा काजो रे ॥ जश् दरबारें घंट बजायो, सुणीयो ते महारा जो रे ॥॥ ते नर॥६॥ भोजन करतो राजा उग्यो, दीठी श्रांगणे गाय रे ॥ पूब्युं तुजने कोण पराजवे, वन देखाड्यो राय रे ॥ ते नर ॥ ७॥ राय कहे तव जोजन कर\, मलशे जब रथवालो रे ॥ कुमर कहे वह ए में मास्यो, दंग दी नूपालो रे ॥ ते नर ॥ ७ ॥ स्मृति शास्त्र तणो जे समजू, पूज्यो दंम विचारो रे ॥ राजयोग्य एक पुत्र तमारो, श्यो कीजें तस प्रहारो रे ॥ ते नर ॥ ए ॥ कोनो पुत्र ने राज्य ते कोर्नु, न्याय करेवो महारे रे ॥ पांच बोल साधे ते राजा, नांखे नरपति त्यारे रे ॥ ते नर ॥ १० ॥ उष्टदमननें संत पोखवो, न्यायें जरे जमारो रे ॥ पदपात करे नहिं कहेनो, करे मित्र नी सारो रे ॥ ते नर ॥ ११॥ तेणें कारण मुज न्याय करेवो, पंमित बोल्या त्यारें रे ॥ जेणें काम कमु होय जेहवं, तिम करी तेहने मारे रे ॥ ते नर ॥१॥ वेगें वहेल अणावे राजा, कुमर सुश्रा स्यो त्यहिं रे ॥ राय कहे रथ खेडो वेगें, कोश् न For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६ए) हा कहे प्राहिं रे ॥ ते नर ॥ १३ ॥ नूपतिने वा यो परधानें, नरपति चित्त न जावे रे ॥ पोते रथ खेडियो पग उपरें, प्रगट देवांगना थावे रे ॥ ते नरण ॥१४॥ पुप्फवृष्टि करीने बोली, में कीधी परिदाय रे॥ पुत्रतणो मोह तें नवि राख्यो, तिहां पण कीधोन्याय रे ॥ ते नर० ॥ १५ ॥षन कहे नृप एहवा होय, ते नरगें नवि जाय रे ॥ हितशिदा सुणतां ए मा हारी,नूपति धर्मी थाय रे॥ते नर ॥ १६ ॥५ए३॥ ॥दोहा॥ ॥ खोटो न्याय करे नहिं, राम सरीखा राय॥ वि क्रम नोज ने जरतरी, जेहनो जश बोलाय ॥१॥ कर्ण कृम हरिचंद हुवो, नल नृप कुमर नरीद ॥ एहनां जश जगमा रह्यां, जब लग तरणि चंद ॥२॥ जात चलंते दाडले, गयो रावण गरिक ॥गया ते पांचे पांमवा, रहि जला तणी प्रसिद्धि ॥३॥ नवे नंद लोजी हुवा, खुए कलंकी नाम ॥ लूंटी धन कर पी मूथा, शुं साध्युं तेणें काम ॥ ४ ॥ ५ ॥ ॥ कुंमलियो ॥ ॥ कृपण नंद देखी करी, बोल्यो पंमित राय ॥ नर फीटी ईसर थयो, ते पण मुफ पसाय॥ईश For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७०) नग्न ने जटाधारी, वस्त्रहीण नर पेखि ॥ थयो मुंग मलें करी जारी, उदरें शूल कपाल करी ॥अर्धचंग दे पागे करी, कवि रुषन कहे नर बोलियो, कृपण नंद देखी करी ॥१॥ नंद सरिखा नव लक गया, करी पाप अन्याय ॥ न्याय रीति राखे जिको, ते उ त्तम विरलाय ॥२॥ सर्वगाथा ॥ एएए ॥ ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥जे उत्तम जगमां परधान, ते न करे अन्याय विज्ञान ॥ निलोनी अति योगी सार, जेम चाणा क्यने अजय कुमार ॥१॥ व्यवहार शुद्ध राखे वा णियो, ते धरमी जगमां जाणियो॥अव्य तणी पण चिंता करे, धर्म तजी ने नवि आदरे ॥२॥ मन वचन कायायें करी, व्यवहार शुचि राखे मन धरी ॥ देश विरुद्ध वाणिग परिहरे, धन उपार्जवा उद्य म करे ॥३॥ विषम वस्तु जग शी कहेवाय, जे कांई अव्ये नवि थाय ॥ आजीविका नर करे अपार, तेहना लांख्या सात प्रकार ॥४॥ व्यापार विद्यायें धन होय, कर्षण पशु पाले कोय ॥ विज्ञान सेवा सातमी नीख, आजीविकानी ए तुऊ सीख ॥५॥त्रणशे शाप करियाणां सार, वणिग करे ते For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७१) हना व्यापार ॥ काम नबुं नहिं वैदह तणुं, लान बहु पण पातक घणुं ॥ ६ ॥ सुनट विग्रहने वंडे अति, सुजिद सुख ते वांडे यति ॥ मानव मरण वांडे बांजणा, वैद्य रोग ते वांजे घणा ॥७॥ नदय अजय उशड़ ते दिये, दरिडी रोगीनु पण लिये। हारिका नगरी माहे वसे, अजष्य धनंतरी नरगें खसे ॥ ॥ एहवो वैद्य ते प्रायें होय, जीवानंद सरिखा ते कोय ॥ लोज रहित टाले कषिरोग, बेहु नवें पामे सुख नोग ॥ ए ॥ कर्षण निहुँ नेदें श्राद रे, मेघकूप उन्नय जल नरे॥ पशुआं गाय नेश घर जरे, गज अश्वें आजीविका करे ॥ १० ॥ कर्षण प शुश्रांनो व्यापार, उचित नहिं उत्तम नर सार ॥ विज्ञान कर्मनां जोय प्रकार, कर्मनेद कहुँ तुक चार ॥ ११ ॥ बुझि करे ते उत्तम होय, हाथे करे ते मध्यम जोय ॥ अधमजीव पाए आदरे, अधमा धम ते माथे करे ॥ १२ ॥ बुद्धि कर्म उपर एक वात, चंपा नगरी ने विख्यात ॥ शेठ धनावो तिहां वाणियो, मदन पुत्र तेहनो जाणियो ॥ १३ ॥ बुद्धि हाट मंमाणुंज्यांहि, मदन शेव नर चाल्यो त्यांहि ॥ दाम पांच सहि आपी करी, बुद्धि एक हश्यामां For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२) धरी ॥ १४ ॥ जिहां वढतां होय मानव दोय, पासे जश्ने तुं म म जोय ॥ इसी बुधि लेई घरें जाय, हस्यो पिता मंत्री तिणे गय ॥ १५ ॥ पाठो वाल्यो सुत तिहां गयो, बुकि आपी अव्य पाठो ग्रह्यो । शीख दीधी तेणें गहगही, वढे दोय त्यां रहेजे सही ॥ १६ ॥ नूप तणा नर वढता दोय, मदन कुमर पासें जई जोय ॥ कस्यो सामियो तेह कुमार, नृप बागल तुं कहे विचार ॥ १७ ॥ सुनट दोश् जूजु आ जई, वदया पुरुष धनाने, कहीं ॥ माहारं रूहूं नवि बोलशे, मदन तणुं तो मुरणज थशे ॥ १७ ॥ धनो गयो तव बुद्धिने हाट, बुकि एक आपो पुण्य माट ॥ दाम पांचशे पहेला लियो, सुनट साख उपर बुद्धि दियो ॥ १७ ॥ नृपना नर जब श्रावे घरे, तव बेटाने धहेलो करे ॥ इसी बुद्धि ले ने फस्यो, घर आवी तसु पहेलो कस्यो ॥ २० ॥ नूपें तेड्यो जेणी वार, तब घहेलाई करे अपार ॥ मंत्रि नृप कहे गांमो एह, किसी सीख नर देशे तेह ॥ २१॥ विघन टस्युं ने देम कल्याण, बुद्धि जली जगमांहि प्रमाण ॥ एम पांचशे बुद्धि ग्रहे, एहने उत्तम नर सहु कहे ॥ २२ ॥ हाथे काम करे वा For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७३ ) गियो, मध्यम पुरुष तेहने जालियो । पायें काम करे ते दूत, ते जांख्यो नर छाडमज पूत ॥ २३ ॥ माथे काम करे ते हमाल, खाये वेंच रोटी ने गाल ॥ अधमाधम ते पुरुष असार, काम जेद कह्या ए चार ॥ २४ ॥ याजीविका सेवायें करे, चार भेद ह श्ये नव धरे ॥ नरपति मुनिवर वाणिक तणी, इतर सेवा ते चोथी जणी ॥२५॥ नरपति सेघा दो हेली कही, वचन चाटुओं कद्देवां सही ॥ सुखें न सुए विहितो रहे, तें मार शरीरें सहे ॥ २६ ॥ उपाय न सूजे बीजो जोय, तो राजाने सेवे सोय || माह्या नृपनी करी चाकरी, दुर्बलकन्नो मूको परहरी ||२७|| कीधा गुणनो जे जग जाए, गुणी नरनां करियें वखाण ॥ क्रूर व्यसनी मूढ रोगीयो, लोजी अन्यायी मूकी दीयो ॥ २० ॥ राजसनायें बेसे जाय, अति क डे बाधा था | अति वेगलो जर बेसे जेह, मा पण ही नर कहियें तेह ॥ २७ ॥ आगल अन्य पुरुष नवि गमे, पाउल मुख जोवा मन रमे ॥ हारे बेसतां वानर था, बराबरी करतां अवज्ञा थाय ॥ ३० ॥ राजाने नवि कहियें काम, थाक्यो मूख्यो तरस्यो जाम ॥ शयन समे व्यग्राइ रीश, त्यारें For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) काम न कहियें ईश ॥ ३१ ॥ एम सेवा कीजें महा राज, सेवा विण नवि चिंत्युं काज ॥ शत्रुजय मंत्री उद्धार, नृपसेवा विण नहिं निरधार ॥ ३२ ॥ इतु क्षेत्र सायरनी लहेर, होनिश जो मन या महे र ॥ योनि पोषण तूसे राय, दारिद्र पणुं तो दण मां जाय ॥ ३३ ॥ प्रधान शेव सेनापति पणुं, श्राव वक सूधो वरजे घणुं ॥ नवि चाले तो नहिं कोटवा ल, बंदी खाणो नहिं सिमपाल ॥ ३४ ॥ मंत्रिपएं जे नर च्यादरे, वस्तुपाल मंत्री परें करे ॥ प्रासाद प्रतिमा पुण्य नहिं पार, जिनधर्म याराध्यो सार ॥ ३५ ॥ ए सेवानो कह्या विचार, आजीविका कर जे नर सार ॥ वली नेद कहुं सातमो, रुषन कहे निद्रा निर्गमो ॥ ३६ ॥ सर्वगाथा ॥ ६३५ ॥ ॥ ढाल ॥ चेतन चेत रे प्राणीया ॥ ए देशी ॥ ॥ द घणा वे जीखना, चीवर लहे धन धान्य धारनूत यतितणो, दीये नूपति मान रे ॥ नेढ़ घणा बे जीखना ॥ ए कणी ॥ १ ॥ मि त्र माता बंधव जिस्या, नामें देवता शीश रे ॥ पाय नमे गज केशरी, आपे परम जगीश रे ॥ नेद० ||२|| नमस्कार करूं जीखने, तहारुं जगवती नाम रे ॥ For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७५) रे॥ वस्तु लहियें श्रण उद्यमें, नित्य नवि अचिरा म रे ॥ नेद ॥३॥ गृहस्थने नीख नूंमी कही, ल जातणुं ते हेत रे ॥ ज्ञान क्रिया गुण तेहना, गयां ते रण खेत रे ॥ नेद० ॥४॥ तिहां लगें रूप ने कुल नबुं, विनय लक्षण जेय रे ॥ तप समता स्तुति तिहां लगें, नथी कडं जब देय रे ॥ नेद ॥ ५ ॥ दे कहेतां गुण पंच जे, तनथी नाशी जाय रे॥बुद्धि संतोष कीर्ति गश्, लाज गश् शोलाय रे ॥ नेद ॥६॥ सर्वथी हलवू तृणखलुं, तेहथी आकतूल रे ॥ याचक हलवो तेहथी, सदा जे अनुकूल रे ॥ नेद ॥ ७॥ वाय न उमाडे तेहथी, रखे याचतो मोय रे॥मरण देवु बे सारि, तेणें नासतो सोय रे ॥ नेद ॥ ॥ रोगी परदेशे नमे, पर अन्ननुं शरण रे ॥ परवशे वसतो जे वली, चारे जीवता मरण रे ॥ नेद ॥ ए ॥ जीख मागी नर जे जमे, घणो तेहने आहार रे ॥ बहुध निझा ने आलसु, दारिज अपार रे ॥ नेद० ॥ १० ॥ जीखारीनापा त्रमां, घाले बल दियो मुख रे ॥ बूंब पाडे हाय हाय करे,मुऊ ए घणुं उःख रे ॥ नेद ॥१९॥ नीख जड शे मुजने घणी, घांची बेल शी पेरें रे॥ अकजा For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) थाशे एतो श्राजश्री, गलियामांहि घेरी रे॥नेद॥१२॥ नीखें न होय व्यवहारीयो, पेट कबीय नराय रे॥ व णज करंतां धन मिले, जलो एह उपाय रे ॥नेद ॥ १३ ॥ कमला कमलज वासिनी, कृमने हश्ये वा स रे ॥ शोधंतां सोय जो नवि जडे, जडे वणज तिहां खास रे ॥ नेद ॥ १४ ॥ मानव धन देशका लने, जाग्यने अनुजाय रे ॥ वणज करे माह्या वली, सुखिया ते बहु थाय रे ॥ नेद० ॥१५॥ पन्नरे कर्मा दाननो, करे नहिंज व्यापार रे ॥ नियमनी वस्तु वहो रे सही, सूत्र वणज ते सार रे॥नेद०॥१६॥ रजतने हेम नाणां लिये, एवा जेह व्यापार रे ॥ पुरुष धर्मी तेही आदरे, जिहां नहिं पाप लगार रे ॥ नेद ॥ ॥ २७ ॥ मुनिक काल होये जदा, गमे ते करे वणज रे॥तेल मी तिल वेचतो, नीलां शाक ने कणज रे ॥ नेद ॥ १७ ॥ पुरुष कुवणिजने जो करे, लाज बीक धरंत रे ॥ ससुग थई निज निंदतो, मति साधु करंत रे ॥नेद ॥रणा झषन दिये हित शीखडी, रहे जो मन गम रे ॥ वाणिज नृहुं तुम म म करो, करो पाप कोण काम रे ॥नेद ॥२०॥ सर्व गाथा ॥ ६॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७) ॥ डाल ॥ गुरु गीतारथ मारग ॥ ए देशी ॥ ॥ वणिज कुवणिज न कीजें रे नाई, लबी न्याय मेलीजें ॥ हाड चरम दुपद ने चौपद, इस्या वणज नवि कीजें रे पुरुषा, मेलो हितशिदा सारी॥गामां लोहन विष वेचतां, दीधी मुक्तिनें बारी रे ॥ पुरुषा सु० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वणिज व्यवहार करीजें रूडो, जिहां नहिं सबलज कूडो॥ मदिरा मंस मधमाखण वेची, पुरुष पाताले बडो ॥ पुरुषा० ॥२॥ वणज व्यापार माह्यो रे जोश्यें, उलखे सहु करियाणां ॥ सघली नाषा बोली जाणे, परखे संघ लां नाणां रे ॥ पुरुषा ॥३॥ हस्तसंज्ञा समजे रे सघली, करपल्लवी पण जाणे ॥ नेत्रपदवी जे नर समजे, वणज करी धन ताणे रे ॥ पुरुषा० ॥ ४ ॥ विण दी सतकार न दीजें, दीजें बहु देखतां ॥ मित्र संघातें वणज न कीजें, शास्त्रे वरज्या एता रे॥ पुरु षा ॥ ५॥ शस्त्रधारीशु वणज न कीजें, परिहर बांजण नाटो ॥ व्यलिंगीशुं काम म पाडिश, ए नहिं वणजनी वाटो रे ॥ पुरुषा ॥ ६॥ नट विट वेश्या ना जूवटिया, म करिश त्यां उधारो ॥ धर्म पोतानो नवि हेलाये, तेह वणज कर सारो रे ॥ पु For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (30) रुषा० ॥ ७॥ कूडां काटलां तुं परिहरजे, देखीतो ए लाजो ॥ एके वारे ए शिरनो जाशे, पाघडी साथे गा जो रे ॥ पुरुषा ॥ ७ ॥ कूडो करहो म म काढिश नोला, सम म म खाश्श जाका॥परधूतीने पिंजे जरता, नहिं परमारथें ताजा रे ॥ पुरुषा॥ ए॥ब दली वस्तु म आपीश कोने, बेतरतां बेतराश्श ॥दूध बीलाडीने दृष्टातें, मस्तक बुंधू खाश्श रे॥ पुरुषा॥ ॥ १० ॥ देव गुरु धर्मतणा सम मूके, सत्यनो चीलो राखे ॥ नेल संनेल म करजे वस्ते, कांश्क साधु नांखे रे पुरुषा० ॥ ११॥ खोले माथु मूक्यु जेणे, तेहगुंम करीश कूडुं॥धर्मि पुरुषने जो तुं वंचिश, तेणें लाने तुं बूडो रे ॥ पुरुषा० ॥ १२ ॥ देव गुरु गकुर म म वंचो, चोथो पुरुष सुंहालो॥जो कोश्म रण विमासे हश्ये, नो म म वंचे बालो रे ॥ पुरुषाण ॥ १३ ॥ कोनो पढु म म थाश्श नाई, नवि पूरेवि सा खो ॥ सम म म खाजे धीज तजेजो,ए शीखामण रा खो रे ॥ पुरुषा० ॥ १४ ॥ वणज व्यहार कह्यो में मांमी, रूडे धर्मति जमी॥षन कहे हित शिक्षा सुणे, तस शिर दैवनी मांमी रे॥पुरुषा॥१५॥६७०॥ For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (JU) ॥ ढाल || राम सीताने धीज करावे रे ॥ एदेशी ॥ हित शिक्षा नर लड़े तेहो रे, एक ध्यानें सुणतां जे हो । व्यवसायनो बूटको एहो रे, जीव मूकावे नर जेहो ॥ १ ॥ अन्न वस्त्र तणां दिये दानो रे, आपे घणा पुरुष निधानो ॥ नहिं करी पापें लिंपाय रे, थोडा कालमां लखमी जाय रे ॥ २ ॥ जे उत्तम नर नीरागो रे, लान खरचे चोथो जागो ॥ जाग दश मो खरचे कोयो रे, तेह पण मारग होयो ॥३॥ शेरी पुण्य तणी कांइ राखो रे, गलिया धूंसर म म नाखो ॥ व्यापारें पाप अनेको रे, कां श्राणो पुरुष विवेको ॥४॥ जमतो परदेशें जाय रे, व्यवहार शुद्धि कीसी नवि थाय ॥ गले जीवती माखी मूढो रे लख मोटा करतां कूडो रे ॥ ५॥ दा चोरी करता जाये हाथ गाय तो गले वाहे ॥ लीये सोनुं दीये माटी इस वणजें समति नाठी रे ॥ ६ ॥ हणे कुंथुआ कोड्यो रे, घणा जीवनी आणे खोडो ॥ चो मासें वलीय विशेषो रे, तिहां हणतो जीव अनेको ॥ ७ ॥ एम वणिज तणां बहु पापो रे, सुणि चेती जें सुपुरुष आपो ॥ हित शिक्षा रुपनें नांखी रे, मने धरजो निश्वें राखी ॥ ८ ॥ सर्वगाथा ॥ ६७८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल चोपाईनी देशी ॥ ॥ एक मनां सुजो नर सार, बुद्धि करीकरजो व्यापार || निर्बुद्धि जे जोलो होय, वणज करी धन खोवे सोय ॥१॥ जीर्णदत्त सुत जोलो नाम, जोल पणानुं करतो काम ॥ अंत समय शिक्षा दिये बाप, पुत्र जणी समजावे याप ॥ २ ॥ दंत वाडी तुं सघले करे, द्रव्य देइ म म जाये घरे ॥ स्त्रीनें तुं बांधी मार जे, मिष्ट जोजन जखी सुखें सोवजे ॥ ३ ॥ गाम गाम घर करवुं घणे, दुःखमांहे गंगा कांगे खणे ॥ संदेह पडे पामलीपुर जजे, सोमदत्त मित्र जणी पू बजे ॥ ४ ॥ सकल बोल तेणें आदस्या, अणसमजु तेणें अवला कस्या ॥ धन खूटयुंने निर्धन थयो, सोम दत्त मित्र तो घर गयो ॥ ५ ॥ स्वामी तातें जे मु ऊ कयुं, ते करतां धन सघलुं गयुं ॥ गजदंतें कीधी में वाडी, सोय लोक गया सहु काढी ॥ ६ ॥ पी माग्या विए गई, स्त्री बांधी मारी नवि रही मीठे खाधे रोग अत्यंत, सूते काम सहु विषसंत ॥७॥ गाम गाम घर लोकें ग्रह्मां, गंगाना तट में नवि लह्यां ॥ बुद्धिही खोया में दाम, धन विण पूजा न लहे राम ॥ ८ ॥ सर्वगाथा ॥ ६८६ ॥ 4 For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७१) ॥ दोहा॥ ॥ तेहज राम ते तापसा, तेहज था श्राश्रम॥हव णां श्रादर बहु करे, पहेलां नागे केम ॥१॥ दोल त देखी जग नमे, करे कह्या विण काम ॥ तिण का रण शछि मेलिये, सीताना पति राम ॥२॥ इछियें पूजा पामियें, धन खाधे गुण जाय ॥ अव्य विहां मानवी,मृतक सम तोलाय ॥३॥ गिरिजाकंत तणुं श्रा जरण, तस रिपुखामी जेह ॥ तस रामा जसघर नहिं, खरो विगतो तेह ॥४॥ दो जिह्वा गति वांकडी, तस रिपु स्वामी नारी ॥ तिण नारे जे परिहया,जूच्या न मे संसार ॥ ५॥ धन पाखें नूलो नमुं, कर मित्र महारी सार॥पडे काम अलगो रह्यो, किश्यो ते मित्र गमार ॥ ६॥ शुं कीजें तेणें सजनें, नीड न नांजे जेण ॥ अजाकंठ पयोहरा, दूध न पाणी तेण ॥७॥ पुरुषा तेहवा मित्त कर, जेहवा अगर बणाय ॥ पर धूपे आ दहे, सऊन लक गुणाय ॥ 6 ॥स रोवर हंस न मित्त कर, चूणी जे अलगा थाय ॥ १ चतुर्थ दोहानो अर्थः- गिरिजाकंत जे महादेव, तेनुं आभरण जे सर्प तेनो रिपु जे गरुड,तेना स्वामी जे विष्णु,तेनी रामा एटले स्त्री जे लक्ष्मी, ते जेने घेर नथी ते खरो विगतो थाय. हि. ६ For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कर पोयणशु मित्तडी, जे सरसी शूकाय ॥ए॥ कम ल कपूर चंदन जिस्यो, पिता तणो तुं यार ॥ निज बालक जाणी करी, सोमदत्त कर सार ॥१॥६ए६॥ ॥ ढाल चोपाईनी देशी ॥ ॥ सोमदत्त कहे सुण गुणखाणी, दांतवाडी ते मीठी वाणी ॥ श्रापी धन मागण म म जजे, दोद्धं गरेदणुं तुं राखजे ॥१॥ बांधी माख्या तणो विचार, ज्यारे डोकरानो परिवार ॥ मीठी वस्तु खावी मन धरे, जिहां मान तिहां जोजन करे ॥२॥ सुख जरी सूq ते एम कहे, रूडे गमें जश्ने रहे॥ निडा श्रावी सूर्बु शिरे, गाम घर ते मित्र एम करे ॥३॥ गंगा गाय बंधाये ज्यांह, गमाण आगल खणजे त्यांह, मित्र कहेण ते सघला करे, खणी नमी धन घरमां धरे ॥४॥ सुखी हु ते बुद्धि करी,धन आव्यु घर पाटुं फरी॥ गरेहणुं जानुं लेई धन देह, उधारो कहि यें न करेह ॥ ५ ॥ कदाचित् सुपुरुषने जो दिये,अ. त्यंत व्याज तिहां नवि लिये ॥ लोकमांही हेलाये घ', संतोषपणुं जाये आपणुं ॥६॥ लेनारो पण तरतज देह, वचन आपणुं शुफ करेह ॥ तस्यो नार माथे नवि लिये, आगल जातां नाखी दीये For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८३ ) ॥ ७ ॥ कदाचित् हुइ धननी हाणि, थोडं थोडं दिये निर्वाण ॥ श्र जव परजव जे दुःख देह, कोण मूर खरण राखे तेह ॥ ८ ॥ धनयागमनें शत्रुघात, निरोगनो करो निपात ॥ कन्या दान नें र बेदवुं, विलंब न करवो शीघ्रज थतुं ॥ ५ ॥ सर्व गाथा ॥ १०५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पुत्री मरण र बेद, विद्या उषध धर्म ॥ रुष कहे दुःख ते नथी, पढें दिये सुख पर्म ॥ १ ॥ कुपथ्य परिग्रह श्वान मिथुन, पाप करज ने घाय ॥ रण करतां बे सोहेलुं, निर्वदेतां दुःख थाय ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ जो नवि पामे देवा दाम, तो तेहना घरनुं करे काम ॥ करे बूटया तणो उपाय, नहिंकर परजवें दुःखियो थाय ॥ १ ॥ सो उंट गधेडो दास, थाय बलदियो आणे घास ॥ खांधे धोंसरुं खमतो मार, करडे पूडुं धरतो खार ॥ २ ॥ वींधी नाक परोई राशि, किहां जाईश रे रशिया नाशि ॥ चूके आर पेसारे घणुं, कारण ते सहु देवा तनुं ॥ ३ ॥ बेदे लदार विमासे इस्युं, जे कई देवा नहिं धन किस्युं ॥ उत्तम ते कंइ मागे नहिं, पाप बांधतुं जाणे तहिं ॥ For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) ॥४॥ कहे मुऊ होजो पुण्यने काम, वैर न बांधे तेणें गम ॥ नावड शेग्नी सुणो कथाय, ऋषन कहे तुम हितशिदाय ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥ ॥ ढाल ॥ बानो रे बूपीने कंता किहां रह्यो रे ॥ ॥ए देशी॥ ॥ शेठ जावड वडो वाणियो रे, तुंठं सुपन लहे नार रे ॥ रणसंबंधे सुत उपन्यो रे, जाण्यो मृतयोगें विचार रे ॥ शेठ जावड वडो वाणियो रे ॥१॥ए आंकणी ॥ मालण नदी तटें जश् करी रे, मूक्यो शूके जाड रे ॥प्रथम रोयो पर्नु बहु हस्यो रे, बोल्यो ज डबु जाड रे ॥ शेण ॥ ॥ बालक रोयो तेणें कार णे रे, मारे लाख टकाय रे ॥ ले। अटवीमांहे मू कियो रे, तात मूरख कांय थाय रे ॥शे ॥३॥ बाल हस्यो तेणें कारणे रे, नहिं द्यो टका लाख रे ॥ तुम घरे लुसु बहु हशे रे, जाणो साची नांख रे॥शे॥४॥ पाठो ले घर आवियो रे, खरच्यु लाख सुवर्ण रे ॥ जनम महोछव करे तिहां घणो रे, बळे दिवसें पाम्यो मर्ण रे॥शे॥५॥ बीजो पुत्र तिहां जनमीयो रे, त्रण्य लाख देवा तातें रे ॥ मूक्यो रण तव बोलियो रे, लाव्या घरे संघातें रे॥शे॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५) त्रण्य लाख टका खरचिया रे, ब दिने थयुं मरण रे॥त्रीजुं वपन ले जण्यो रे, देहनो कंचन वर्ण रे ॥ शेण ॥ ७ ॥ तेहने मांमयो वन मूकवा रे, बो त्यो मुखथी नांख रे॥ मुजने कांश तजो तातजी रे, देवा उंगणीश लाख रे ॥ शे० ॥ ॥ सुणिय वचन सुतने ग्रह्यो रे, दीधुं जावड नाम रे ॥ अनुक्रमें ते यौवन लहे रे, बहु वाध्या गुणग्राम रे ॥ शे०॥ ॥ ए ॥ मात पिता परजव जतां रे, उंगणीश लाख टकाय रे ॥ मान्या तेणें तिहां खरचवा रे, जरावी त्रण्य प्रतिमाय रे ॥शे ॥ १० ॥ षन अने पुंग रीकनी रे, चकेसरी संतुष्ट रे ॥ नव लाख टका तेह ने दिया रे, दश लाखें कीधी प्रतिष्ठ रे ॥शे० ॥ ॥ ११॥ अढार वाहाण धन लावियो रे, सोनुं श्र संख्य अपार रे॥शत्रुजय उकार करावियो रे, मणि मय बिंब सुसार रे ॥ शेण ॥ १२ ॥ एम रण बूटी उरण थयो रे, कीधां पुण्य अनेक रे ॥षन कहे देणुं नवि गमे रे, जेहने पोतें विवेक रे॥ शेण ॥१३॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ कलेश वयर वाधे रणथकी, या नव परजव थाये छुःखी ॥ तेमाटें आ नव दीजीयें, उधारे श्याने For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लीजियें ॥१॥ माली तंबोलीशुं प्रेम,उधारे देतां नहिं खेम ॥ सुखडियो सुगंधी सार, उधारानो यो व्यापा र ॥२॥ नूपति नाट अने पस्ताग, म करिश उधा रानो लाग ॥ बांजण बोडो शस्त्रह धार, महिलाशें म करीश व्यापार ॥ ३॥ धर्मी\ करवो व्यापार, साधर्मिकनी करवी सार ॥ वस्त वोहरावे देई वखा र, ए सगपण मोटुं संसार ॥४॥ धन श्रापंतां करे विचार, रहेशे तो वे ठगर सुसार ॥ जो श्रावक घर लखमी हशे, साते देत्रने ते पोखशे ॥५॥ एम जाणीने वणज करेह, मचकोडायो ते नवि देह ॥ ए मुज पुण्यनुं थानक हवं, एम जाणी धन ते मूकबुं ॥ ६ ॥ अव्य मलेछादिक कर रहे, वोसिरावे तो बहु सुख लहे ॥ जो आपे तो पुण्यने गम, ते धन नावे बीजे काम ॥ ७॥ पड़ी वस्तु गई जे हो य, वोसिरावे श्रावक पण सोय ॥ एम अनंता जव नी देह, घर कुटुंब वोसिरावे तेह ॥ ॥ पापोपक रण शस्त्र अनेक, बं उकड धरी विवेक ॥ नहिं कर चाले पूवें पाप, जगवती मांहे कह्यो जबाप ॥५॥ पारधीये मृग मास्यो जई, किरिया चारने लागे सहि ॥ धनुष पणड फल चोथु बाण, लागे पातक For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( GI) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपो सुजाण ॥ १० ॥ धन खोये दिलगिर नवि थाय, शी लखमी सूजते उपाय || उद्यमवंतनी ल खमी दास, धर्म करे मन एह विमास ॥ ११ ॥ तरु काप्यो वली या बतो, चंद खीण थई वाघतो ॥ श्रा पद संपद चाली जाय, सरखो रहे नर बेहु वाय ॥ ॥ १२ ॥ होय आपदा मोटा तणे, शूर शशीनी ल खमी हणे ॥ चादरणी सरखी ते सदा, दारिद्रीनें शी आपदा ॥ १३ ॥ ( मूरखने चिंता शी होय, पटु ते पुरुष निचिंत न होय ॥ ) त्र्यंब वृक्ष तरुवरमांहि सार, चिंतातुर दीठो एक वार ॥ पूबे पंक्ति कां मणा, फाल्गुन मास लिया गुण घणा ॥ १४ ॥ कहे पंमित चैतर वैशाख, त्यारें फल होशे तुक लाख ॥ पत्र पंचवर्ण होये तदा, तुं पामीश सबली संपदा ॥ ॥ १५ ॥ सुणो कथा गरढा नर बाल, पाटणमांहे वसे श्रीमाल ॥ नागराज शेठ तिहां रहे, कोटिध्वज तस सहुको कहे ॥ १६ ॥ मेला देवी तस घरनार, गर्भवती होई जिए वार ॥ नागराजा तव पाम्यो मरण, राजायें धन कीधुं हरण ॥ १७ ॥ गई धोलके पीयर जणी, मोहलो उपन्यो तातें सुणी ॥ मा री पडह वजडाव्यो सही, पुत्र जयो तव मन गह For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1) गही ॥१॥ नाम अजय तस आजड थयो, पांच वरषनो नणवा गयो ॥ कहे लोक न बापो जदा, पूबी माय पाटण गयो तदा ॥ १७ ॥ प्रगट्युं धन ते धरती मांहे, लालदे स्त्री परण्यो त्यांहे ॥ कोटि ध्वज अनुकरमें थाय, त्रण्य पुत्र ते नारी जाय ॥२॥ जूंमे करमें निर्धन थाय, पुत्र लेई स्त्री पियरें जाय ॥ पोतें एकलो घरमा वसे, अकिक चर्मनी कोथली घसे ॥१॥ जव माणुं ते आपे एक, पोतें दलतां गयो विवेक ॥ पोतें रांधे पोतें जमे, दरिछ तणा दाडा निर्गमे ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ दण खांको क्षण वाटलो, कण लांबो क्षण लीह ॥ दैवें न दीधा चंदने, सवे सरीखा दीह ॥१॥ जग शिर अकर विधि लिखे, विधि शिर लखिया केण ॥ रावण घर कोऽव दले, एम पूज्युं हणुएण ॥२॥ नलिनी सरोवर घर कियो, दव दाऊणा नए, ण ॥ ते दाधी हिमाजलें, पूरवदत्त फलेण ॥३॥ ना कीधे ते नवि रहे, दैव करे ते थाय॥ मल रयणायर घर करे, सांके साथ वेचाय ॥४॥ अवली गति जे दैवनी, रखे पतीजो कोई ॥ आरंच्या यूंही रहे, For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( ८‍ ) वर अचिंत्यां होय ॥ ५ ॥ सुकुलें उपन्यो शुं करे, जो शिर कर्म न होय ॥ नाथ्यो विंध्यो ने हयो, शंख जमंतो जोय ॥ ६ ॥ शंख सरीखो नर नमे, आजड कोटिध्वज ॥ पुरुषां मान न कीजीयें, काल तिस्युं नहिं ज् ॥ ७ ॥ सुखीया म करिश गारवो, निर्धन पाय म ठेल ॥ कोइ कुवायो वायशे, ज्युं तुंबडी ने वेल ॥ ८ ॥ गयवर कां तुं गरवियो, देखी वड वड दंत ॥ एहज दंतह जोगथी, युं खम होइ पडंत ( कहे मु लिंद गुमानथी, केते गये गिडिंद ) ॥ ए ॥ १५६ ॥ ॥ ढाल || चोपाईनी देशी ॥ ॥ ए लखमी नवि कहेनी होय, समुद्र तातनें ainयो जोय || नारायणने सबलो प्रेम, तोहे निक ली त्यांथी केम ॥ १ ॥ वीजा पुरुष तो खरचे खाय, तिहां शुं रहे लखमी एक ठाय ॥ श्रानडने मूकी नें जाय, देखी मूरख विस्मय थाय ॥ २ ॥ हेमाचा रय पासें सार, जड उचरे बे व्रत बार ॥ थोडुं मूकवा हिंदे धन्न, सो पंचाशे श्रायुं मन्न ॥ ३ ॥ हेम कहे सुप आनड शाह, आगल मन तुक न रहे ह | यति ग्रह करे अपार, मेले मोक ला दाम हजार ॥ ४ ॥ गुरु कहे ए कहो जूठी नांख, Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) आनड दाम मूके एक लाख लोक घणां ते हांसी करे, हेम कहे एटले नवि सरे ॥५॥ मूक्या मोक ला नवलख दाम, अधिके करशुं पुण्यनुं काम ॥ पां चदाम हुँता तस गांउ, अनील बालीने कंठ ॥६॥ पांच दाम थापी ते लीध, तेहना मणिया जाजा कीध ॥ लाखें मणियो वेचे एक, एम करतां धन हर्बु अनेक ॥७॥ अनुक्रमें कोटिध्वज थाय, श्रावी सुत स्त्री लागां पाय, नगरमांहि परगयो पडो,मुनि वरने दिये घृतनो घडो ॥ ॥ सर्वगाथा ॥ ७६४ ॥ ॥दोहा॥ साहसियां लबी मिले, नहु कायर पुरुषांह ॥ काने कुंमल रयणमय, काजल लहे नयणाह ॥१॥ सतिया सत्य न डोडियें, सत्य बोडे पत जाय ॥ सतकी बांधी लबमी, बहोत मिलेगी आय ॥२॥ जमरा नाखर दाढला, लांबी चढीने ठेल ॥ काले के तकी फूलशे, वली थाशे रंगरेल ॥३॥सणा७६॥ - ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ रंगें सामिवत्सल करे, जिनवरनी पूजा श्राद रे ॥ शत्रुकार मंगावे सोय, संघ नक्ति वरसे करे दोय ॥१॥ पुस्तक देरांने उछरे, वरष चोराशी आउ For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए१) शिरे ॥वांची पुण्य तणी जे वही, लाख श्राहाणुं खर च्या सही ॥२॥ अंतकालें ए कानें सुणी, थयो विख वादने चिंता घणी॥ एक कोडी नवि खरच्या दाम, तो शुं कीधुं पुण्यनुं काम ॥३॥ त्यां पुत्रं खरच्या दश लाख, आठ लाख मान्यानी नाख ॥श्रणसण पाली सुरघर गयो, थानडप्रबंध संपूरण थयो ॥४॥ ते मारें धन जाये जदा, धैर्य न मूको मा नव तदा ॥ नवि पामो तोही न धरो रोष, रुषल व डो जगमांहि संतोष ॥ ५॥ सर्व गाथा ॥ १२ ॥ ॥दोहा॥ ॥ पवन जखंत पुष्टा अहि, तृणचर पुष्ट गयंद ॥ संतोषे तापस सुखी, खाता वनफल कंद ॥१॥ मीठगे कडवो लींबडो, जे श्रापणडे देश ॥ अाखें मं मप मोरिया, शुं कीजें परदेश ॥२॥ देखी रिकि पीयारडी, मत्सर तुं म करेश॥ वाव्युं जे नव आग लें, आणे तेह खुणेश ॥३॥ सर्व गाथा ॥ १५ ॥ ॥ ढाल ॥ लंकामां श्राव्या श्रीराम रे॥ए देशी॥ ॥राग मारु ॥ धनहीण थयो नर ज्यारें रे, ना ग्यदारने सेवे त्यारें रे॥ फुःख दारिज तेहथी जाय रे, धनवंत सुखी ते थाय रे ॥१॥ कहुं लखमीनो For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) परिवार रे, होय निर्दयपणुं अहंकार रे ॥ पात्र देखी होये अप्रीत रे, कटु वाणी ने तृष्णा चित्तरे ॥५॥ आपदायें दीन न थाय रे, विद्यावंतने नम तो जाय रे ॥ खमे समरथ हुई जेह रे, परपीडें कुःखीयो तेह रे ॥३॥ फुःख आवे बातम ज्यारें रे, हर्ष पामे उत्तम त्यारे रे ॥धन पामे गर्व न होय रे, तेहना देवता पाय धोय रे ॥४॥ धनवंत होये नर जेह रे, न वढे घj कोश्शुं तेह रे॥ घटे लजा ने धन जाय रे, ते मूरखमां कहेवाय रे ॥ ५ ॥ ज गमाहे मूरख चार रे, रोगी लोलुपवंत अपार रे॥ खासी खुखु ने चोरीनो रंग रे, निमा जाजी परस्त्री संग रे ॥६॥ धनवंत कलेशनो अर्थी रे, ए मूरख चारे धुरथी रे ॥ न करो मूरखने साद रे, धनवंत शुं करता वाद रे ॥७॥ नृप पद घणो बलवंत रे, गुरुशुं न वढे गुणवंत रे॥ तपशीने चोर रीसाल रे, वढे जे जग मूरख बाल रे॥७॥ महोटा साथ पडि युं काम रे, विनय वचनें करतो ताम रे॥ पंचाख्या ननो नाव ते लीजें रे, नमस्कार उत्तमने कीजें रे ॥ ए॥ बलवंतशुं कीजें नेद रे, दीये नीचाने न होये जेम खेद रे॥ बराबरीनो होय ज्यांही रे, बहु For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए३) पराक्रम कीजें त्यांही रे॥१०॥ जिम मयगल म होटो मूर्त रे, शीयांलनी दृष्टं दूजे रे॥ देखी खुशीय थयो तेणि वार रे, घणा दीवस लगी करुं आहार रे ॥ ११॥ण अवसरें जूख्यो सिंह रे, चाल्यो मयगल ताणी अबीह रे ॥ शीयाल तस शीश नमावे रे, स्वामि मृतकने तुं शुं खावे रे ॥ १२ ॥ उत्तमने एम करीवाल्यो रे, वली वाघ आवतो नाल्यो रे ॥ शीयाल कहे सिंह मारी रे, गयो नाहा वा मुफ बेसारी रे ॥ १३ ॥ नेद नांखतां बलवंत वलियो रे, नीच चीतरो श्रावी मलियो रे ॥ कह्यु वाघतणुं नद एह रे, कांश्क दीधुं वलियो तेह रे ॥ १४ ॥ पडे आव्यो एक शीयाल रे, उग्यो जंबुक तव तत काल रे॥बराबरीनो आमोपाड्यो रे, करी पराक्रम वेली काढयो रे ॥ १५ ॥ वढवाडीना चार प्रकार रे, मोटाने करवो जूहार रे ॥ धनवंतने धन नी श्राश रे, दमा श्रादरवी नर तास रे ॥ १६ ॥ वली दंत कलह होय ज्यांहिं रे, जुवटुं दीसे घरमां हि रे॥धातुरवादी सजनगुंछेषी रे,सदा बालसु होय विशेष रे॥१७॥आयपदने खरच न जूवे रे, नंगा दिक फाकी सूवे रे ॥ तिहां दारिज केरो वास रे, For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए४) म करो लखमीनी श्राश रे ॥ १७ ॥ वडा पुरुषने पूजे ज्यांहिं रे,न्यायनुं धन मंदिर मांहि रे॥प्रीति दीसे मांहो मांहि रे, लखमी, स्थानक त्यांहि रे ॥रणा लेणुं मागतो मीतुं बोले रे, कठिन बोलीने एब न खोले रे ॥ नूहुं कहेतां रीश जराय रे, दीवा नमां उठी जाय रे ॥२०॥ लजा जाये धननी हाणी रे,लांघणो म करो गुणखाणी रे॥धनधर्थे न लाघण कीजें रे, साहामाने जमवा दीजें रे ॥१॥ जमी लाघण करता केता रे, देणदारने जमवा न देता रे॥ अंतरायर्नु पाप अपार रे, कुःख ढंढणा सहि कुमार रे ॥२२॥ सुंदाल पणे होये जेह रे, जूंसुबोले न थाये तेह रे ॥ सुकुमाल बोलीजें जाई रे, तेह दांतनी करे रक्षा रे ॥ २३॥ कबि लदे ए॒ देवू थाय रे, जो विसरी बेहुने जाय रे ॥न वढे चार होये ज्यांहि रे, समा केश ते कांकशी मांही रे ॥२४॥ न्याय करतां जे नर चार रे, हश्ये धरता धरम विचार रे ॥ राग केष धरे नर कोय रे, बेहु जव ते पुःखीया होय रे ॥२५॥ सर्वनो न करे नर न्याय रे, सगा साहमीथी केम बूटाय रे॥न्याय करतां गुण ने बहुज रे, लोक माने जगमां सहुजरे For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए ) ॥ २६ ॥ अवगुण पण जाजा दीसे रे, घणा देखी ने दंत ते पीसे रे॥तेणें षन्न जोई करे न्याय रे,श्र पदेणे रे देणुं कहेवाय रे ॥२७॥ सर्व गाथा ॥२॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी॥ ॥अणदेणे देणुं कहेवाय, वसंत पुरमा सुबुकि साह ॥ महत्त्व वडा वांडे घj, लक्षण न्याय करेवा तणुं ॥१॥ न्याय करेवा पर घर जाय, बोल्या विण तेणे नवि रहेवाय ॥ धर्मन्याय क्यारें किम थाय, क्यारे केम खोटुं बोलाय ॥२॥ तेहने विधवा पुत्री एक, माही धर्मिणी घणो विवेक ॥ तेणें वास्यो पो तानो बाप, टालो न्याय तणो संताप ॥३॥ किस्यो लाल आपणने अहिं, एणी वातें तुम महिमा नहिं ॥ मोढे रूडं कहेतां कहे, पूठे वयर घणां ते वहे ॥४॥ वास्यो बाप न माने किस्युं, कहे अमो ग्याय करेवा जस्युं ॥ प्रतिबोधवाने काम सुताय, ऊगडो मांमे तेणें गय ॥५॥ घाली लांघण बेठी बार, मिट्यां लोक पूजे तेणें गर ॥ कुमरी कहे झुंडगे घj, कर्म जोगबुं हुं आपणुं ॥ ६ ॥ वैर वसाव्यु हाथे करी, आपे वैरिणी होय दीकरी॥ सोनैया मुफ एक हजार, लीधा तातें गणि निरधार ॥७॥ For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) जो श्रापे तो जोजन करूं, विण दीधे नवि पाली फिरूं ॥ जिणें बेटीनुं खाधुं धन्न, ते उपर नवि माने मन्न ॥ ७॥ दीये गाल बोले श्रारडी, सुबुद्धि शेग्ने चिंता पडी ॥ गयो चार न्यायवाला कने, आवीने बो डावो मने ॥ ए ॥ न्याय करेवा अाव्या चार, कुमरी रोई तेणी वार ॥ हुँ रंमा ने अबला बाल, न्याय क रेजो थई दयाल ॥ १० ॥ पुरुष चार विमासे तहिं, पुत्रीवचन ते जूतुं नहिं ॥ पुण्यवंती जूठी नहिं कदा, तात हरामी खोटो सदा ॥ ११॥ तेडी पुरुषं पूब्यु साह, लेश कांय करो अन्याय ॥ शेठ कहे में ली, नधी, न वढं ते ९ पुत्रीवती ॥ १५ ॥ पुरुष कहे मानो तमे श्राज, वढतां रहेशे नहिं तुम लाज ॥ सुता तुमारी बालक रंग, तेहने दीजें सांहमुं दंग ॥ १३ ॥ दया धरीने करजो सार, आपो सोवन एक हजार ॥ काल नाव जोई त्यां साह, आप्या सोने य्या तेण गय ॥ १४ ॥ लोकमांहि निंदा विस्तरी, लेई दामने साह गयो फरी॥ न्याय तणा करनारा जेह, प्रायें जला न होये तेह ॥ १५ ॥ लोकमांही चाल्यो उपहास,रहे बेगे घर साह विमास ॥न्याय करवा नवि जाये फरी, त्यारें बोली निज दीकरी For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (LG) ॥ १६ ॥ पिता बोल मुऊ हैयडे वस्यो, तुमो न्याय एम करता हश्यो || एह काम नहिं जग सार, श्रात्युं पाहुं सोवन हजार ॥ १७ ॥ तातें बुद्धि खरी मन धरी, न्याय करवो मूक्यो परहरी ॥ षन कहे हित शिक्षा खरी, न्याय करे विमासी करी ॥१८॥२०॥ ॥ ढाल ॥ बंधव जई लावो पाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ परनी लखमी घणी जोइ, नर मत्सर म कर शो कोइ ॥ कर्मने श्रायत बे धन्न, शीद मेलुं करो तुमें मन्न ॥ १ ॥ इह लोकें परजवें जाई, मत्सर होये दुःखदायी ॥ मूंकुं चिंतवे परने जेह, होय पो ताने घरे तेह ॥ २ ॥ मन वश राखो सहु कोय, मूं वचनें पातक होय ॥ वश होय जेहनी काया, ते जननी यें जलें जाया ॥ ३ ॥ धान्य वहोरनुं तेह जंजा लो, पण नवि वंबेज कालो । लागो श्रौषधनो कर्म जोगो, नवी वांबे जगने रोगो ॥ ४ ॥ वस्त्रादिक वहोरे ज्यारें, मोंघुं नवि वंबे त्यारें ॥ अणचिंतव्युं मोंघुं होय, अनुमोद्ये पातक जोय ॥ ५ ॥ जेहनां निश्चल मन वे सार, तेने दीठे पुण्य अपार ॥ जेनां मांगं मन सदाय, तेने दीठे पातक थाय ॥ ६ ॥ बे मित्र मलि पंथें जाय, जइबेठा रसोइकर वाय ॥ पंथी हि० ७ For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (এले) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणीने नारी पूबे, तुम कोण कामें आगे जावुं बे ॥ ७ ॥ एक मित्र बोल्यो त्यांहि, चर्म वहोरिश होये ज्यां हि ॥ बीजो कहे हुं घृतनो अर्थी, वहो रवा नीकल्यो ढुं घरी ||८|| जिमाडया घरनी मजा र, चर्म वालो बेटो बाहार ॥ बेदु वोरीने जब श्रावे, घरे रांधणीनें तव जावे ॥ ए ॥ मांदधुं बेसणुं ते घर मांहि, चर्म वालो बेठो त्यांहिं ॥ घृतवालो बाहेर काट्यो, मने चिंतवे एह कुहाड्यो ॥ १० ॥ बे मित्र ते पूढे तामो, कां फेरव्यां जोजन वामो ॥ रांधणी कहे जो घृतवालो, पहेलुं वंबतो सुनिक्ष सुगालों ॥ ११ ॥ घणां ढोरने जाजुं दूधो, हुतो तव परिणा म विशुद्ध ॥ हवे ढोर ने मूंकुं चिंते, घर चोखुं न होय लिपते ॥ १२ ॥ चर्म वालो चालतां मेलो, ढो र मुत्रां वांबे पहेलो || हवे वांबे पशुचांने श्रय, जिम चामडां मोघां थाय ॥ १३ ॥ तेथे बेसारयो में मांहि, बेहु समज्या मित्र ते त्यांहिं ॥ मन मेलानुं बहु पापो, मन चोखे तरशे पो ॥ १४ ॥ ८३४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मन मेले दल नरकनां, मेले प्रसन्नचंद राय ॥ तेहज मन निश्चल करी, तिणें नवें मुगति जाय For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (যए) ॥ १ ॥ तंडुलमत्स्य नरके वसे, मनें करे ते पाप ॥ जाणे मत्स्य सघला जखुं, खाइ न शके कां आप ॥२॥ काम जोग बहु जोगवे, त्रण पस्योपम श्राय ॥ जो मन निर्मल युगलनां, सहु सुरलोकें जाय ॥३॥ तेणें कारण नर वणजमां, राखो चोखुं मन्न ॥ ति तृष्णाने करूं, मातुं म वांबिश जन्न ॥ ४ ॥ ८३८ ॥ ॥ ढाल ॥ बंधव ज‍ लावो पाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ थयुं वस्तुनुं याकरुं ज्यारें, घणुं त्रगणे वेचे त्यारें ॥ ति जाजुं त्यांहि न जाणे, गयां करियाणां न वखा ॥ १ ॥ पासंग काटलां हीणां जेह, खाधी मांमीयें टाले तेह || रस जेलने वस्तुनो जेल, तजे तेहने सांइशुं मेल ॥२॥ कूडो करहो ने खाता लंच, अति बहु सेवंता मंच ॥ नाएं खोटुं ने साटुं जांजे, लेइ शाईने मोढुं मांजे ॥ ३ ॥ ग्राहक परना नवि जांजीजें, वाणी फेर ते किमहिं न कीजें ॥ अंधारे वस्तु नदीजें, अकरना भेद न कीजें ॥ ४ ॥ परवंच ना जे बहु पेरें, उत्तम करता एक मेरे || करी माया ने वंचे जेह, जगमांहि वंचाये तेह ||५|| देवलोकने मोदनां सुख, किम पामे पर करी दुःख ॥ परवंचना म करो कोय, सत्य चालतां बहु धन होय ॥ ६॥ For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१००) ॥ दोहा॥ ॥ बहु धन तेहने संपजे, ज्ञषन कहे निर्धार ॥जे जागे ते सांजले, कथा एक सुविचार ॥१॥४५॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥वसंत पुरमांहे शेठ होलाक, वणिग तणुं जेणे खोयुं नाक ॥ महोटा पुत्र घरमांहि चार, को न करे त्यां तत्त्व विचार ॥१॥ तोली धान दिये त्रण शेर, जांखे पंच ए महोटो फेर ॥ लिये पंचने नांखे त्रण, खूटे लोकने श्राव्या शरण ॥२॥ त्रिपुष्कर दिये सुतनुं नाम, ज्यारे होय देवानुं काम ॥ त्रिपुष्कर कही तेडे तदा, पंच पुष्कर लेअंतां सदा ॥३॥ एम करतां नाहानी वढू जेह, जाणी उबको देती तेह ॥ ससरो कहे किम कीजें वरा, निर्धनशुं होये शुजकरा ॥४॥ वहू कहे व्यवहार शुद्धिथी जोय, धर्म अर्थ सधावे दोय ॥षट् महिना तो तुमें मन धरो, रूडं थई बागल आदरो ॥५॥ व्यवहार वह वच. ने आदरे, शुभ काटलां पाउल धरे ॥ साचं बोले साद नवि करे, घणां घराक हाटें तरवरे ॥६॥ लो कमांहे कीरति विस्तरी, ए वाणिकनी दानत फरी॥ अन्न गोल घृत दीये अपार, वस्त नलीने तोले सफा For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) र ॥७॥ खातां मिल्या नवटका हेम, वहथर कहे हवे करजो एम ॥ करो काटढुं एहनुं तुमें, न्यायत को नवि जाये किमे ॥ ७ ॥ कहुं काटQ को नवि लेय, वदवचनें अहमां नाखेय॥मीन एक तणे मुख गयु, जाल्यो मत्स्य माडीयें प्रयुगए। लोह काटऱ्या दी जिसे, नामुंजईवंचाव्यु तिसे ॥ दीधु होलाक शेठने हाथ, कही वात निज वहूर साथ ॥१०॥ तहारुं वचन खलं मनमांहि, व्यवहार तणुं नवि जाये क्यांहि ॥ एह श्राशाता मनमां धरे, व्यवहार शुद्धि सदा आदरे ॥ ११ ॥ पाम्यो धन श्रावक ते थयो, कुटुंबें जिनमारग त्यां ग्रह्यो ॥राजमान्य थयो वाणियो, सत्यवादी जगमां जाणियो॥ १२ ॥ श्रा ज लगें तस गोखे जाण, होलासा कही ताणे वा हाण ॥ ते कारणे खोटें परिहरो, सत्यमार्ग सहुये श्रादरो ॥ १३ ॥ श्रावक जन एतां परिहरे, सामी साथ बल नवि करे ॥ विश्वासी देव गुरु वृद्ध बाल, जोह करंतां पातक जाल ॥ १४ ॥ तेहनी थापण नवि उलवे, तेह साथे जूतुं नवि लवे ॥ न करे वंच ना तिहां लगार, कर्मचमाल कह्या के चार ॥१५॥ कूडी साख दिये निशि दीस, घणो काल रहे जस For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०२) रीश॥ विश्वासघाति कृतघ्नी जेह, कर्म चंमाल कह्या नर तेह ॥ १६ ॥ जाति चंमाल कहियें पांचमो, तुम चारे जईतेहने नमो ॥ तुमथी तेह जलेरो होय, षनकथा एक नांखे जोय ॥ १७ ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ॥ प्रनु पासर्नु मुखडं जोतां ॥ ए देशी ॥ ॥ विशाला नगरी ज्यांही, नंदराजा बेगे त्यांही ॥ जेहने नानुमती पटराणी, बोले अमृत मुखथी वाणी ॥१॥ विजयपाल ते सुतनुं नाम, बहुश्रुत मंत्री करे काम ॥ नृपने राणीशुं रंगो, नवि बंने तेहनो संगो ॥२॥ सनामांहे पासें बेसारे, मं त्रीसर बोल्यो त्यारें ॥ वैद मीग बोलो जेह, विण साडे नरनी देह ॥३॥ गुरु बोले मीठी वाणी, पुण्य चके उत्तम प्राणी ॥ मंत्री बोले मुखें सार, तो विणसे सहि नंमार ॥४॥ तेणें कारणें कहे पर धानो, नथी रहेतुं सजानुं मानो॥तुम पासें स्त्री प टराणी, नली सांजलो महारी वाणी ॥५॥ गुरू अनि नरपति नारी, वेगलां फलपति नहिं सारी॥ ढकडां रहेतांजविणास, मध्य नागें सेवियें खास॥६॥ पासें बेठे तुमें नहीं फावो, नवि चाले तो रूप लिखा वो॥ एणे वचनें राजा हर्षे, लख्युं रूप ते बेगे निर For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०३) खे ॥॥ शारदानंदन गुरु जास, रूप लेइ देखाड्यु तास ॥ पंमिता जणावा बोले, माबु तिलक होय तो खोले ॥ ॥ राजा मन विकलप थाय, तेड्यो बहुश्रुतने तेणें गय ॥ शारदानंदनने मारो, रखे फेरी त्यांहि विचारो ॥ए॥ परधान विचारे ताम, वि चारी कीजें जे काम ॥ ते बहु सुखदायी थाय,तनपुःख सघलु जाय ॥ १० ॥ करे कारिय अणह वि चालुं, तेतो सालज सरिखं धायुं ॥ हृदय बाले संना रतांश, में फोगट की, कां ॥११॥ श्स्युं आप विचा रेत्यांहि, बानो राख्यो घरमांहि ॥ एक दिन राजानो पुत्त, रमे आहेडो अदनूत ॥ १२ ॥ सूअरने पूज जाय, पड्यो एकलो वनमां राय ॥ सांकें तलपि च ढ्यो जाडे, नहिंकर वाघ खाय तस फाडी ॥ १३॥ कपि एक त्यांहां देव अदृष्टे, बोलाव्यो प्रेमनी दृष्टं ॥ म म बीहे रहे रात रंगें, तुज मूकीश पुरने संगें ॥१४॥ फल श्रापी वचनें गस्यो, करी मित्रने खोले सुबास्यो॥ वाघ नूख्यो आव्यो त्यांहिं, नाख वानर नरने आंहिं ॥१५॥ वानर कहे हुँ नवि नाखू, मुफ जीव तणी परें राखं ॥ न करुं हुं विश्वासघात, बल मथी नरकें पात ॥१६॥ नवि नाख्यो वानरें ज्यारे, For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४) पढी कुंअर उठ्यो त्यारें ॥ खोले सुन तुमें कपिराय, जिम सुखनरें रयणी जाय ॥ १७ ॥ कपि सूतो खो लामांहि, गाजी वाघलो बोल्यो त्यांहि ॥राजपुत्र तु ने नवि खालं, नाख वानरने लेई जाउं ॥ १७॥ ना ख्यो वानरो कुमरें ज्यारें,वाघ देवरूपी हस्यो त्यारें ॥ गयो निकली ते मुख फाडी, बेठो रुदन करंतो काडी ॥ १ए ॥ कहे वाघलो हसिय कां रोय, रह्यो जीवतो वानरो जोय ॥ कहे वानरो सांजल वात, कृतघ्ननी विधि शी थात ॥ २० ॥ श्राप वरग तजी परजातें, राचे केता पर नातें । तेहनी गति के थाशे, तेणे रोतो वानर नासे ॥१॥ पशु मानवशुं शीप्रीति,कीधी में सबल अनीति ॥ सुणीने लाग्यो तेणें गय, वान रें घहेलो कस्यो राय ॥२२॥ जपे विशमेरा विशमे रा, दीये वनमां घहेलो फेरा ॥ शोधी तातें घरे आण्यो, थयो घहेलो नूपें जाण्यो ॥२३॥ करे औष ध जाजां राय, सुत साजो तोहि न थाय॥ शारदा नंदन संनास्यो, तेहने तो पापीयें मास्यो ॥॥ प डहो वजडावे महाराज,अरध राज देखें तस बाज॥ जे टाले कुंअरने घेलो, ते पडहो बबजो वहेलो ॥३५॥ पडहो बबतो त्यां परधानो, वालुं राज कुंभ For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) रनो वानो ॥ मुफ पुत्री कांश्क जाणे, ते रोग तणो अंत आणे ॥ २६ ॥ श्राण्यो कुमर तणे घरे ज्यारे, श्राडी परिश्रचि बांधी त्यारें ॥ शारदानंदन मांहे बोले, एव कुमर तणी त्यां खोले ॥ २७ ॥ विश्वास धरे जे नाई, तेहने वंचतांशी पंमिताई ॥ खोले सुतो हणे जे गमारो तेहनो श्यो पुरुषाकारो ॥ २० ॥ एवां वचन सुणे नृप ज्यारें, वि अदर मूके त्यारे॥ शमेरा मुखथी ते नांखे, बीजी गाथा पंमित दाखे ॥श्ए ॥ समुतणे तटें जाय, गंगा सायर जलते न्हाय, ब्रह्महत्या तिहां मूकाय, मित्रमोही न चोखो थाय ॥३॥ श मूक्यो मेरा गोखे, त्रीजी गाथानो जाव पोखे॥ मित्रोही कृतघन चोरी, विश्वास घाती तेह अघोरी ॥३१॥ ए नरकें जाये चार, चंद सूर ऊगे तिहां सार॥मे मूक्यो ने रा राख्यो, पढ़ी चोथो बोल ते नांख्यो ॥ ३२ ॥ राजन वांडो सुत कल्या ण, दी पात्रने दान सुजाण ॥ गृही दाने चोखो थाय, सुणतां रा मूक्यो तेणें राय ॥ ३३ ॥ टल्यो घहेलो सुसतो थाय, त्यारें कुमरेंज कही कथाय ॥ कह्यो वानरनो अधिकार, कृतघन हुँ मित्र असा र ॥३॥ नंदराजा विस्मय आणे, वनवात कुंअरी For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०६) केम जाणे ॥बोले कुमरी साजल राय, देव गुरुनो ए महिमाय ॥३५॥ जिव्हाग्रे शारदा वासी, तेणे हु ज्ञान प्रकाशो॥ नवि जां उडो अधिको, जिम जानु मतीनुं तिलको ॥३६॥ तव नंदें खुशी हो जोयो, ए तो शारदानंदन होयो॥करि परिअचि उंचीमलीया, मन तणा मनोरथ फलीया ॥३॥ एह वचन सुणी मन वाले, वंचना कृतघन पणुं टाले॥टाले विश्वास घात ते श्राप, कहे रुषन वडुं ए पाप ॥३॥ ए० ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ पाप तणा कहुं दोय प्रकार, गोप्य प्रगटनो सुणो विचार ॥ गोप्य तणा वली नेद डे दोय, एक न्हा, एक महोटुं होय ॥ १॥ कूड तोल ने कूडां माप, एह कयु में न्हा, पाप ॥ जे नर करता विश्वास घात, कहुं गुप्त ए महोटुं पाप ॥२॥प्रग ट पापना दोय प्रकार, प्रथम नेद कुलनो आचार ॥ म्लेट मंस तणे नित्य खाय, तेहने पाप थोडं कहे वाय ॥३॥ निर्लज पणे एक करतां पाप, सीधो वेश यतिनो श्राप ॥ प्रगट पाप करेज अपार, तेहने अनंत कह्यो संसार ॥॥ जे सत्यवादी होये श्राप, ते न करे नर गर्नु पाप ॥ निसुग पणे ज्यारे श्राद For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) रे, असत्यपणुं त्यारें मन धरे ॥५॥ असत्य तj बे महोटुं पाप, एक त्राजुवे मूके आप ॥ सकल पाप एकमांहेधरे, योगशास्त्र ज अधिको करे ॥६॥ ते माटे सत्य मारग नजो, रखे न्याय कोए नर तजो ॥न्याय तणुं धन थोडं घरे, दय नहिं जेम कूवानी सरें ॥ ७॥ अन्यायें बहु लखमी मली, खरचे नहिं जीवतो होय वली ॥ थिर न रहे रिकि तेहने घरे, मरु देश तलावनी पेरें ॥ ॥ दीसे नीर नरानुं वली, सहु घेसुंमांहे जाये चली ॥ तरड्यो घट लिये पूवें वारि, अंतें बूडे तेणें गर ॥ ए॥ पाप करीने मेव्युं धन्न, न रहे थिर थर सोवन्न ॥ मेलण हारो बडे सही, त्यारे शिष्य बोल्यो गहगही ॥१०॥ न्यायें रह्या नर दीसे जेह, कां फुःखिया जगमोहे तेह ॥अन्यायी सुखीया ते कांश, लील करंता दीसे आंहीं ॥११॥ गुरु कहे शिष्य सांजल कहुँ मर्म, ए नो गवे ने पूरवकर्म॥कर्म तणाडे चार प्रकार, धर्मघोष गुरु कहे विचार ॥ १२॥ पुण्यानुबंधी पुण्य ने एक, जरत तणी परें रिकि अनेक ॥ जैनधर्म श्राराधी करी, जव समुन गयो ते तरी ॥ १३ ॥ पापानुबंधी पुण्य पण होय, रोग रहित तन पामे सोय ॥ कोणि For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) क परें रिकि करतां पाप, मरण लही नरकें वहे आप ॥ १४ ॥ पाप पुण्यानुबंधी पण होय, दारि जी नर थाये सोय ॥ जिन मारग पामी होय सुखी, संप्रतिराय जिम कुमकह रिषि ॥१५॥ पापानुबंधी होये पाप, ते दरिडी लहे संताप ॥ पा रातो छ गति वरे, कालग सूरिश्रानी परें फरे ॥ १६ ॥ चार नेदनो नांख्यो मर्म, पामे सुख ते पूरव कर्म ॥न्यायें फुःख ते पूरव पाप, आगल सुख जोगवशे श्राप ॥१७॥ ज्यां न्याय तिहां लखमी जाण, सुपुरुष न करे परनी हाण ॥ ते घर हाट वखार पण त्यजे, जिहां परिताप परने उपजे ॥१॥ परना नीशासा जिहां होय, तिहां लखमी सुख न हुवे दोय ॥ उक्ति सुणो पंमित मुख जणे, वं मैत्री धूरत पणे ॥ १ ॥ सुखें शास्त्रने कपटें धर्म, तेनवि वां समने मर्म ॥ कठण थर स्त्रीने वांबतो, ते दीसे जग फुःखी थतो ॥२०॥ पर संतापें वंडे धन्न, ए पांचे ते मूरख जन्न ॥ लोक जलो कहे ते विधि करे, सत्यपणं नर सही श्रादरे ॥१॥ सत्यवादीने शिक्षा दे एह, धन खोयूं नवि लांखे तेह ॥धन वाध्युं मन जाणी रहे, संग्रही वस्तु न कोने कहे ॥ २२ ॥ स्त्रीनी वा For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) जोजन अवदात, धन गांठे ने गुण विख्यात ॥ हुं काम पोतानुं पुण्य, एणे थानकें तुं करजे मौन ॥३॥ मरण म आपणो मरण प्रकाश, कहेतां अवगुण होशे तास ॥ कदाचित् को पूछे खप करी, कवण काम तुम कहे श्म फरी ॥ २४ ॥ गुर्वादिक पूरा जाय, सत्य वचन बोले तिण गय ॥ साचे सिकि होये जगमांह, सुण दृष्टांत कडं एक त्यांह ॥२५॥ दीक्षी नगरमांहे जाणीयो, मोहनसंघ वसे वाणी यो ॥ सत्यवादी तस नाम धराय, एक दिवस पूजे पादशाय ॥ २६ ॥ कहे वाणिक तुज केतुं धन्न, बोल्यो शेठ तिहां थश्ज प्रसन्न ॥ स्वामी ले जोश्ने कडं, अणप्रीव्युं सूधुं नवि लहुँ ॥॥ जोश ना मुंने सीधुं रहस्य, सोवन टका चोराशी सहस्स ॥म हारे एटलुं धन सही, वात पादशाह बागल कही ॥२॥ तव हरख्यो चिंते सुलतान, थोडं जाण्यु हतुं निधान ॥ एवं अव्य तो जाजो कह्यो, जगा ए सत्यवादी लह्यो ॥॥ हुई पादशा हरख अपा र, सोप्या तस सघला नंमार ॥ वाधी दोलत सुख पाम्यो घj, सहु आदरो सत्यवाद। पणुं ॥ ३० ॥ खंजनयरमां सोनी जीम, सत्य वचननो राखे नीम For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११०) ॥श्रावक जगत चंदसूरि तणो, तपो तेह अव्य ते हने घणो ॥३१॥ महिनाथने देहरे गयो, जातां तेहने चोरें ग्रह्यो ॥ पालीमांहे लश् गया तेह, चार हजार सोवन मागेह ॥३॥ नीम तणो बेटो सजा थयो, खोटा सोनैया ले गयो॥खत्रीने कहे परखी लीन, नीम पिताने मूकी दी ॥ ३३ ॥महो टो खत्री त्यां श्म कहे, सोवन पारखं अंही कुण लहे॥ नीम कने परखावो एह, सत्यवादी कहेवाये तेह ॥३॥ नीम कने परखावी जिस्ये, निरखी सो वन बोल्यो तिस्ये ॥ ए सोनैया खोटा सही. श्राप पाबा एहवं कही ॥ ३५ ॥ महेवासी हरख्यो घणुं त्यांहि, एहवा पुरुष अ जगमांहि ॥ संकट पडे ए साचुं कहे, सत्य काले धन परिसह सहे ॥३६ ॥ पुत्र तणे पण जूगे कस्यो, एह विचार हिये नवि धस्यो । कलिकालें ए पुरुष रतन्न, कुण पापी लहे एहनुं धन्न ॥ ३७॥ मूक्यो नीम गयो निज घरे, पहेरामणी कीधी बहु परें ॥ साचे सिकि हुश् तस घणी, षन कहे हितशिदा जणी ॥३०॥ ए३०॥ ॥दोहा॥ ॥षज चावे सत्यनाम हुश्रां, मूक असत्यनो For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १११) घोल ॥ पुर्गति जाये श्रातमा, तेहथी रूडो खोल ॥१॥ चावो सत्यनां पानडां, मूकी असत्यनां पान॥ जे पांचे रूडो कह्यो, पाम्यो सकल निधान ॥२॥ धन्य लही सत्य आदरे, समराये परलोक॥ हितशि क्षा सुपुरुषने, कुपुरुष कहेवं फोक ॥३॥ ए४१॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ वली हित शिक्षा नांखू एह, राखे सेवक सुंदर जेह ॥ नहीं वंचकने थिर गुणवंत, माह्यो मधुर वचन बलवंत ॥१॥ पवित्र अलोनी ने उद्यमी, खामीजक्त चालतो नमी॥श्रापधर्म समानी कह्यो, जलो नहिं घर बीजो रह्यो ॥२॥ निंदे धर्म जैननो जेह, श्राशातना जिननीज करेह ॥ साधपंथ वि खोडे सिरे, बेगे घणुं उगंबा करे ॥३॥ करे सोय संसारर्नु काम, तेहथी न लहे पुण्यनुं नाम ॥ श्राव क सेवक जगमांहे सार, जेह सुणावे धर्मविचार ॥ ॥ जीव अजीवनी वातो कहे, पुण्य पापना नेद पण लहे ॥ अनंतकाम अनदयनां पाप, शेठ तणे समजावे श्राप ॥ ५॥ बार व्रतनी वातो करे, सम कित नेद समजावे सीरे ॥ मिथ्यामतिथी ते फेरवे, शुद्ध धर्ममाहे मेलवे ॥ ६ ॥ पूजा पडिक्कमणानी For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२) वात, कहे मुनि जिनवरना अवदात ॥ संसार काम करे मन धरे, खांम खेली नली बेहु परें ॥७॥ जे श्रावक दाता धनवंत, एक सेवक राखे गुणवंत ॥ सकल शास्त्रनी वातो करे, विण कीधे सुणतां शुज वरे ॥॥ तेणें श्रावक सेवक ते सार, श्रावक शेठ जलोज अपार ॥ पाडोशी श्रावक सारथि, धर्म सु णावे जे नर कथी॥ ए॥ सेवक केरो कह्यो विचार, सांजलतां मति होये सार ॥ वात करे श्राघेरो रहे, शेषन कहे हितने नवि लहे ॥१०॥ सर्व ॥५२॥ ॥ ढाल ॥ राग रामग्री ॥महावनमांहे मृगलो॥ ॥ए देशी॥ ॥षन कहे नर सांचलो, एकमित्र कीजें सार॥ विषम कामें काज श्रावे, साह्यनो दातार ॥१॥ तेमाटें एक मित्र करवो, समान जेहनो धर्म ॥धन प्रतिष्ठा जस आप सरिखो, तेहशुं मैत्री परम ॥२॥ गुणबुद्धि जेहनी आप सरिखी, लोनें हीणी जेह ॥ एक मित्र एसो करे जे, सुखी होये तेह ॥३॥ महो टो मित्र जो घरे आवे,करे ते धननी हाणी ॥ आपण ने बहु मान न दीये, मान मनमांहे आणी ॥४॥ प्रीति सहेजें वडा संघातें, होय गुणनुं हेज॥ विषम काम For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९३) तेह आप करतां, राज मंत्री तेज ॥ ५॥ नहानो मित्र ते वडा केरुं, करे विषमुं काज ॥ उक्त जे पंचा ख्यानमांहे, सुणो नां श्राज॥६॥ यूथहस्ती जंदर वनमां, श्रावियो एक वार ॥ हिरण्यगर्न तिहां कहे उंदर, करो नाग विचार ॥ ७ ॥ आ वनमांहें कां ऊतरो, उंदरा बहु चंपाय ॥ न्हानो मित्र तुम काम श्रावशे, मानजो गजराय ॥ ७॥ करी मैत्रीने नाग चाट्यो, अवर वन ते मांहि ॥ राज सुनटें खाडाख णीया, गज सकल पडिया त्यांहि ॥ए॥हिरण्य गर्न तेणें वेगें समस्यो, श्राव्यो वनमाहें गि॥ कोडीबद्ध उंदरा केडे, फस्या गजनी पूंठ ॥१०॥ पगें माटी सबल ठेली, उंदरे पूरी खाड ॥ गज सकल ते गया नाशी, जिहां पर्वत जाड ॥ ११ ॥तेमाटें जो मित्र न्हानो, आवे महोटे काम ॥महोटो मनमांहे चिंतवे पण, न चाले तिणे गम ॥ १२ ॥ सुचि तणुं वली काम नालो, करे केही पेर ॥ युगंधरीनुं काम जारे, मोती न थाणे घेर ॥ १३॥ मीठगनुं जे काम होवे, करे न सखरी खंग ॥ सती तणुं जे काम होवे, करे केही परें दंग ॥ १४ ॥ पाणी तणुं वली काम दूधे, नवि होये निरवाण ॥ न्हाना तणुं तेम काम महोटे, हि. ८ For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९४) नवि होये तुं जाण ॥ १५॥ तेणें भैत्री राख सहुशु, म म वढो वयरी साथ ॥ किश्युं काम किहां तुहिं थाये, चढे लूंगा हाथ ॥ १६ ॥ पंमित खलने करी आगल, आप साधे काज ॥ जीन दंतने लंठ जाणी, करे आगल आज ॥ १७ ॥ नांजे करडे दंत चूसे, चावी करी रस देह ॥ कठिण नरने करी आगल,खा द जिला लेह ॥१७॥ प्रांहि कंटाला विना वलि, न होय विषमुं काम ॥ तीखा कांटा क्षेत्र राखे,आराम घरने गाम ॥ १५ ॥ तेमाटे तुं जाणजे, वढवू नहिं कुण साथ ॥ व्यापार काजें न दीजीयें धन, मित्र केरे हाथ ॥२०॥ पाडोशीशु वढवू पडे जिम, तिम जाण वणजह मांहि ते माटे नवि कीजीयें, व्यापा र मैत्री ज्यांहि ॥२१॥ मित्रघरे धन कदा मूके, साक्षी राखे त्यांहि ॥ षन कहे हितशीख माटें, कथा आणी मांहि ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ए७३ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥शेठ धनेश्वर धननो धणी, रत्न आठ लीधांति हां गणी॥ एक कोडी सोवननुं सही, मित्र घरें मूक्यां गहगही ॥१॥ नारी पुत्र न जाणे कोय, सा खी लखत नहिं वली कोय ॥ मूकी तिहां गयो पर For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाम, मांदो शेठ पड्यो तेणें गम ॥२॥ सगां लोक मिटयां तिहां बहु, पूजे धन किहां ताहरु सहु ॥ शेठ कहे धन गरो गर, मुफ विण ते नवि आवे बार ॥३॥ पण एक मित्र अडे मुफ गाम, रत्न आउ मूक्यां तेणें गम ॥ अपावजो ते सुतने सही, मरण लहे साह एहवं कही ॥४॥ लखत लेख श्राव्यो तस घरें, नारीपुत्र रुए बहु परें ॥ शोक नि वारी वांचे लेख, मित्र बोलाव्यो विनय विशेष ॥५॥ रत्न आठ माग्यां जेटले, बोल्यो नहीं मुखथी तेटले ॥ वढे पुत्रने जय देखडे, करी लांघणुं तीहां कणे पडे ॥ ६ ॥ पिता मित्र कहे था जो नवं, ताहारा बापने शुं धन हईं ॥श्म रत्न नाखंतो फस्यो, लख त साखीयो को नवि कस्यो ॥ ७ ॥ श्म वलगे नवि आपे कोय, गयो रायनी पासें सोय॥ करी वात मां मीने बहु, लखत साख विण वारे सहु ॥ ॥ धन खोइ श्राव्यो निज घरें, तेणें षनो वारे बहु परें ॥ लखत साख विण नवि दीजियें, मैत्री नीचशुं नवि कीजीयें ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥ २ ॥ ॥दोहा॥ ॥ काची ए केरी जली, पाको जलो न बील ॥ For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११६) जांगो तो नूपति जलो, मातो जलो न नील ॥१॥ सखी सहोदर मिये, जे होय हश्ये पुष्ट ॥ श्रा क्युं नहिं कट्टीयें, अहि मश्यो अंगुष्ठ ॥२॥ गेरु बेरु सारिखा, वहेरो नहिं नरपाल ॥ गेरु पान रातां करे, बेरु करे कपाल ॥३॥ गंगा सायरमांहि वसे, मत्स्य फुगंधो देह॥अवगुण जास शरीरमां, फेस्यो न फीटे तेह॥४॥ दूधे सींच्यो लींबडो, थाण उस करी धूलेण॥ तोहि न मे कडुआ पणुं, जातितणे गुणेण ॥५॥ ॥परजीया रागमां ॥ दोहा ॥ . ॥पहेला प्रीति करेह, ऊंखें आलोच्यु नहिं ॥ जीखाव्यांज नवेह, मीठग बोले माणसें ॥१॥जेह, रातुं बोर, तेहबुं हैयुं उर्जन तणुं ॥ जीतर कग्नि कठोर, उपर दीसे रलियामणुं ॥२॥ एनए॥ ॥दोहा॥ ॥ सुरतरु जाणी सेवियो, अरे निगुणा पलाश ॥ जब तें मुह काबुं की, तब में बंमी आश ॥१॥ जमरे रान नमंतडां, अगरज कोस्यो कोय ॥ तास तणे जोलामणे, वंशज कोरे सोय ॥२॥ एक पा से उर्जन जलां, सजन न वसे चित्त॥ बाया गुण तो जाणीयें, जोतां वडला गत्त ॥३॥ अग्नि जिस्यो For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११७) मित्रज हुवो, राख्यां रत्न तेणें आपातेणें नीचा नरने तजो, राखो संतनी वाट ॥४॥ साचा साथें मैत्री करो,कदिएक पाडो काम॥लखत साखि विना वली, सहि नवि दीजें दाम ॥५॥ सर्व गाथा ॥ एए४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ लखत करीने दीजें दाम, साख विना नवि की जें कामशास्त्र कहे साधु कीजियें, साखी चोर कने लीजीयें ॥ १॥ एक दृष्टांत हां जाणियो, धन बेई चाल्यो वाणियो ॥ धूर्त विचकण ने वाचाल, वाटें चोर मल्या ततकाल ॥२॥शेठे हरखी कस्यो जूहार, बोल्या चोर थई हुशियार ॥ लाव्य अव्य सघलु अम देह, पढें जूहार लांबोज करेह ॥३॥ शेव कहे ल्यो साखें करी, अवसरें पाईं देजो फरी ॥ चोर कहे ए नोलो घणुं, किहां खोलशे घर आपणुं ॥४॥ हांसी काजें श्रागल धस्यो, रान बीलाडो साखी कस्यो । लेश अव्य मूक्युं वाणियो, श्राव्यो घेर लेप्राणीयो॥ ॥५॥ केटले कालें तस्कर त्यांह, श्राव्या वाणिग नगरीमांह ॥ घणी वस्तु करियाणां बहु,चोर उलख्यो वणिके सहु ॥ ६ ॥ जाली अव्य माग्युं जेटले, नृप आगे पहोता तेटले ॥ न्याय करेवा बेगे राय, ल For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११७) खत साखी मागे तेणें गय ॥ ७॥ साखी रानबी लाडो अबे, साह घेरथी लश् श्राव्यो प॥एक चोर कहे न होये एह, ए कालो तस काबर देह ॥७॥ वचनें बंधाणा जेटले, कूटी अव्य लीधुं तेटले ॥ वा णिकने घर लखमी थज्ञ, साखी तेणें राखवो सही ॥ ए॥ बानी थापण नवि मूकवी, साखि विना ते नवि राखवी ॥ थापण धन वावर, नहिं, वणिज करेवो वास्यो सही ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥१००४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ थापण धन नवि खरचियें, राख्यो पाप अपा र॥ परधन वातें वेगला, जस घर धर्म विचार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ धर्म विचार नर ते पण तरे, धन पुण्य गम श्रावे तेम करे ॥ धर्म विलंब करे नाहि कदा, थोडूं थोडामांहे खरचे सदा ॥ १॥ घणुं मले तो खरचुं हवे, मूरख मन एहवं चिंतवे ॥ चिंती लखमी कहि ये मले, कहियें धर्म मार्गमा जले ॥२॥ ते माटें होय कालिनुं काज, पंमित नर तुं करजे आज ॥ मरण न कोने पडखे कदा, धर्मकाम पहेलुं कर सदा ॥३॥ उद्यम म मूकीश वणजह तणो, थोडे लानें For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११५) म म अवगुणो ॥ अतिहिं लोन न करवो कह्यो, सागर शेठ सागरमांहे गयो ॥४॥ शक्ति सारु कीजें श्वाय, जीखारी चक्री नवि थाय॥ कदाचित् जोजन पामे सार, बहु वांब्यु नवि मले लगार ॥५॥ कलेश सोय पामे नर नेठ, जेम जगमां धनावो शेठ ॥ लाख नवाणुं सोवन धणी, करतो कोडि थयो रे वणी ॥ ६॥ पाम्यो कष्ट न हुइ कोडी, अति लोग्ने तस होये खोडी ॥ कदाचित वांग्युं पामे कोय, तो तृष्णा वाधंती जोय ॥ ७॥ तेणे लोन पंमित परि हरो, धर्म शकि थाये तिम करो॥धर्म अर्थ ने साधे काम, ते पंमित जगमां अजिराम ॥ ॥ कोश्क एकलो सेवे काम, गले रूप तस देही श्याम ॥ वन हस्ती परें खाडे पडे, विषय विटंब्यो बहु रडवडे ॥ ए ॥ कोश्क एकलो साधे अर्थ, तेहनो कुजको खाये गर्थ ॥ पोतें पापर्नु नाजन थाय, जिम सिंह गज़ मारीने खाय ॥१॥ कोश्क एकलो सेवे धर्म, नवि पोसाये ते विण कर्म ॥ केवल धर्म यतिने जाण, श्रावकने त्रण वर्ग वखाण ॥ ११ ॥ धर्म न श्राराधे नर कोय, अर्थ काम सेवे ते दोय ॥ बीज विना कणबीनी परें, ते सुखीयो नवि होये घरें For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १२० ) ॥ १२ ॥ इह लोकें परलोके सुखी, नहिं कदि नरने जांख्यो दुःखी ॥ ते सुख पामे धर्म पसाय, धर्म विना सदु दुःखीयो धाय ॥ १३ ॥ कोई एक साधे धर्म ने काम, तो रण वाधे मूके ठाम ॥ धर्म अर्थ सेवे जो दोय, संतान सुख तस केइ परें होय ॥ १४ ॥ धर्मार्थ नेत्री जो काम, त्रण वर्ग साधे नर जाम ॥ पूरो पुरुष जग ते कड़ेवाय, उठो सेवे जंढो थाय ||१५|| तादाविक नर कहियें तेह, मन चिंते धन धर्मे देह ॥ एह पुरुष सघलामां सार, बीजो मूलह रति सा ॥ १६ ॥ बाप तणुं धन दिये कुठा म, कदरी पुरुषनुं नावे काम || नवि खाये सेवकने दिये, धर्म में ते नवि खरचीयें ॥ १७ ॥ धर्म अर्थ न सेवे काम, कदरी पुरुष तेहनुं नाम । तेहनुं धन गोत्री मागेह, हरे चोरने राजा लेय ॥ १८ ॥ अगनि नीर जोमि विणसशे, पुत्रादिक मली खय घालशे ॥न वि खाये दाटयुं उल्लसी, त्यारें पृथवी मनमां इसी ॥१॥ कुण दाटे कोनुं वे एह, एहने मोढे धूलि पडे ॥ इम पृथवी चिंते तस गर, जिम कुशी लिणी हसती नार ॥ २० ॥ सुतने बाप रमाडे जिसे, नारी कुशी लिणी हसती तिसे ॥ कुण हुलरावे कोणनो जयो, Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) तेम पृथ्वी करपी गण्यो ॥ २१ ॥कीडी माखी करपी तणुं, संच्युं बीजा खाता घj॥ तेमाटें माह्यो नर होय, त्रण वरगने साधे सोय ॥२॥ अर्थ का मनुं जो नहिं कर्म, तो आराधे एकलो धर्म ॥ पुण्य वश्नव पामे जदा, चार नाग धन करतो तदा ॥ ॥२३॥ एक नाग धन नोमें धरे, वणज नलो एक जागे करे ॥ एक नाग पुण्य गमें जोय, खरच करे एक नागें सोय ॥२॥ श्या माटें ए कडं में कथी, धन बातम कुण वहालां नथी॥ तोहे पुरुष धीरज आदरे, श्राठे गम नवि लेखु करे ॥ २५॥ सजन मित्र शुन्न स्त्रीने काम, निर्धन बांधव धर्मह गम ॥ विवाद व्यसनें रिपुखय जदा, न करे खरचनुं ले तदा ॥ २६ ॥ कुमार्गे जाती कोडी कही, हजार सोवन परें राखे सही॥रूडे ठगमें लख खरचे जोय, तिहां विचार करे नहिं सोय ॥२७॥ इसी धात होये जेहनी, लखमी न मूके केड तेहनी ॥ एक दृष्टांत हां आणियो, वसंत पुर सुबुझि वाणियो॥ ॥२०॥ सुत परण्यो धन खरची करी, श्राणी महो टानी दीकरी ॥ तेल तणुं टीपु एक पडे, ससरो पाग रखे चोपडे ॥३ए। वह चिंते मुफ लागुं पाप, दीसे For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२२ ) करपी वरनो बाप ॥ खावुं पदेयुं ने खरचं, ए ससराथी ते नहिं हनुं ॥ ३० ॥ संदेह जांगवा काजें वढू, कहे मुज मस्तक दुःखे बहु ॥ मांग मांग करे कंद, ससरे मेल्यां वैदज वृंद ॥ ३१ ॥ आण्यां औषध तिहां अनेक, करे पोटली केरा शेक ॥ शिर दुःखतुं न रहे जदा, ससरो वहूने पूढे तदा ॥ ३२ ॥ सदाये शिर दुःखे के आज, वह बोली मुख मूकी लाज ॥ क्यारें क्यारें शिर दुःखतु, मोती खरडे ते रहे तुं ॥ ३३ ॥ ससरो ताम खुशी त्यां हवा, मोती याल लागा जरडवा || त्यारें बहू कहे रधुं दुःखतुं, टल्युं शल्य जे मनमां हतुं ॥ ३४ ॥ पूब्धुं तेलनं टीपुं पड्युं, ते तुम पागरखे चोपड्युं ॥ हमणां मोती जरडो बहु, ए मुज संदेह टालो सहु ॥ ३५ ॥ सस रो कहे सांजल रे वहू, वशीकरण ए धननुं सहु ॥ कामें लाख सोवन खरचियें, कुमार्गे टीपुं नवि दीजी यें ॥ ३६ ॥ एणें वचनें वहू हर्ष अपार, ससरानी बुद्धि सुविचार || रुषन कहे हित शिक्षा एह, होय सुबुद्धि सुणे नर जेह ॥ ३७ ॥ सर्वगाथा || १०४१ ॥ || ढाल || हवे राणी पदमावती ॥ ए देशी ॥ ॥ जेह सुणे नर शुभ परें, वाधे बुद्धि श्रपार रे ॥ For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२३) शुनथानक धन खरचतां, न घटे ते निरधार रे ॥१॥ ए जिनवरतणी देशना ॥ ए आंकणी ॥ कूप आराम थी काढतां, देतां महीषीने गायो रे ॥तिम न घटे कदिये वली, वाधतुं सहि धन जायो रे ॥२॥ए॥ जिम रे विद्यापति शेग्ने, लखमीनो नहिं पारो रे ॥ नवि खरचे शुजथानकें, श्रावी कमला तेणि वारो रे ॥३॥ए॥ कहे स्वप्नांतर शेग्ने, दश दिन तुम घर वासो रे ॥ पढें तुम मंदिर नवि रहुं,कर सुख जोग विलसो रे ॥४॥ ए० ॥ शेवें सकल धन वावगुं, पोख्यां खेत्र तो सातो रे॥दीन जझार ते बहु किया, कीर्ति हुई विख्यातो रे ॥५॥ ए॥ लखमी श्रावी बीजे दिने वली, बोलाव्यो नर त्यांहि रे ॥ वणिक कहे रंग बाहेर हिंम, शीद आवी ने तुं ही रे ॥६॥ ए ॥ सुख नरी सुवे ने जेरडे, नृप चोरनी बीहीको रे ॥ जंबूयें गंमी कुलकणी, प्रनवें सीधी दिको रे॥ ७॥ ए॥ लखमी कहे जई नवि शकुं, तें पग घाली ने बेडी रे ॥ घर जलुं दी पहिला परें, श्रावी लखमी अण तेडी रे ॥ ७॥ ए॥ वली खरचे धन वाणीयो, नहिं मुझ लखमिनु कामोरे॥ फरी फरी घर नरे लाउडी, मूके नहिं तस गमो रे For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) ॥ ए ॥ ए० ॥ दश रे दिवस लगें खरचतो, लखमी वाधती जायो रे ॥ लही कहे हुँतो श्हां रही, सेवी श तुम तणा पायो रे ॥ १०॥ ए ॥ वणिक कहे बोट्युं दोयनु, होशे सहि अप्रमाणो रे ॥ तेणें घर बोडीने वन गयो, पाम्यो राज सुजाणो रे ॥ ११॥ ॥ ए॥ अनुक्रमें दीक्षा ते ग्रहे, जव पांचमे मो ख्यो रे ॥ तेणें कारण धन खरचियें, पात्र जोश्ने पोखो रे ॥ १२ ॥ ए॥ ॥जो धन खरचतां गयुं घटी, शोक ते न करे लगारो रे ॥ धैर्य धरे गये आवते, धर्माधर्म विचारो रे ॥ १३ ॥ ए॥ शोक धरे पापी पुरुषडो, गयुं मुफ खरचतां धन्नो रे ॥अथवा उनु पड्युं देयतां, मूरख चिंते निश दिन्नो रे ॥१४॥ ॥ ए० ॥ पुण्यवंत इस्यु नवि चिंतवे, खरचे धन शुन गमें रे ॥ व्यवहार शुकै धन मेलतो, थोडं होय बहु कामें रे ॥ १५॥ ए॥ श्हां दृष्टांत बे वणिकनो, नाख्ने षजनो दासो रे ॥ ए हितशिक्षाने जे सुणे, पहोंचे तेहनी आशो रे ॥ १६ ॥ ए० ॥ १०५७ ॥ - ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ देव जशो नर एहवे नाम, बेहु मित्र चाट्या धनने काम ॥ कनक कुंमल पड्युं वाटें एक, देखे For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) देव ते सबल विवेक ॥१॥ व्रतवती नवि खेतो तेह, देखी पाडगे वेगें टलेह ॥ बीजे वंची लीधुं त्यांहिं, पड्या तणुं पातक नहिं क्यांहि ॥२॥ देव उपर हवो अति खुशी, एणे कुंमल नवि लीधुं धंशी ॥ एहने नाग हुं श्रापीश सहि, इस्युं विचारी वली यो ग्रही ॥३॥ वेगें श्राव्या बीजे गाम, वेच्यु कुंभ ल तेणें गम ॥ वहोरी वस्तु तिहां बेहु जणे, चाली श्राव्या गाम आपणे ॥४॥ वहेंचे वस्तु देखे तव अति, देव कहे आवडी क्या हती ॥ जशो कहे में कुंमल लियु, ते वेच्युं धन वेंची दीयु ॥ ५॥ देव कहे नवि ले एह, जाये मलगुं महारूं जेह ॥ पो तानुं तव वेंची लिये, बाकी सह ते मित्रने दीये ॥६॥ रातें चोर लेने जाय, पडे वसाणां मोघां थाय ॥ वाध्युं धन सुखीयो हुवो देव, व्यवहार तणी जो हूंती देव ॥ ॥ जशोमित्र हुवो अति दुःखी, देवमित्र ते कीधो सुखी ॥ श्रावक थयो व्यवहारक शुधि, वाध्यं धन जो निर्मल बुकि ॥७॥ ते माटे न्यायें मेलबुं, बीजो दृष्टांत थाही केलतुं ॥ चंपा नगरी सोम नरेंद, दीये दान ते मन आनंद ए॥ सूर्यग्रहण होये एक वार, तेड्यो मंत्री कस्यो विचा For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) र ॥ पात्र जलुं कोण या गाम, दीजें दान तस पुण्यने काम ॥ १० ॥ कहे प्रधान एक विप्र पार, पण न्याय द्रव्यतणोज विचार ॥ राजाने तो वली विशेष, जेदनां पाप तपो नहिं बेक ॥ ११ ॥ देना रानुं चित्त विशुद्ध, बेनारो अति निर्मल बुद्ध ॥ दो हिला दोय मिले जगमांय, जोह मिले तो पुण्य बहु त्यां ॥ १२ ॥ जनुं त्रने बीज सुसार, तिहां कणे अन्ननो होय अंबार ॥ क्षेत्र बीज जो होय असार, तिहां न पुण्य तणो विचार ॥ १३ ॥ इस्यां वच न मंत्रीनां सुणी, खरो विचार करे पुरधणी ॥ थ‍ हमाल करे वहित, व्यवहार शुद्ध धन मेले खरुं ॥ १४ ॥ सूर्य ग्रहणनो अवसर थयो, त्यारे राय नि ज राजें गयो । तेड्या ब्राह्मण मल्या अनेक, अने क दान दिये धरी विवेक ॥ १५ ॥ एक निलजी तो जेह, पाड चडावी तेड्यो तेह ॥ राजा पाय न मीने कहे, कोई धन महारुं नवि ग्रहे ॥ १६॥ विप्र कहे सुए जांखं तुक, राजपिंग नवि कल्पे मुऊ || लोजी जेहने लेव्रं रुचे, ते ब्राह्मण सहि नर गें पचे ॥ १७ ॥ मधु मिष्ट विष सरिखो पिंग, लेइ विप्र म म यतम दंग ॥ पुत्र मांस जखे ते सार, For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) राजपिंग ते अतिही असार ॥ १७ ॥ दश सोनार सम हिज एक, जेहनां पापतणो नहिं बेक ॥ द्विज दश सम एक चक्री होय, दश चक्री सम आहेडी जोय ॥१॥ दश आहेडी सम वेश्याय, दश वेश्या सम एक राजाय ॥ ते माटें सुण नूपति कडं, राज पिंम निथें नवि ग्रहुं ॥ २०॥ पगे लागी ने कहे रा जान, व्यवहारशुळे देउं तुम दान ॥ श्राप दाम पर सेवा तणा, लेतां गुण तुक मुझने घणा ॥२१॥ नृप वचने दाम सीधा जिसे, अन्य विप्र मन खीज्या तिसे ॥ तेडी तेहने सोवन देह, खाइ रह्या थोडे दिन तेह ॥ २५ ॥ आठ दाम लेई जे गयो, मूकी कोथलीमाहे रह्यो ॥ खाये खरचे देतो दान, नवि खूटे जेम नवे निधान ॥२३॥ ज्ञानव्रत वाध्या नट दोय, नृप नंमार वधंतो जोय ॥न्यायव्य तणो महि माय, षज कहे नृप सोम कथाय ॥२४॥ १०॥ ॥ ढाल ॥प्रनु चित्त धरीने अवधारो मुक वात ॥ ए देशी॥ ॥कडं चोनंगी दाननी जी, न्याय तणुं वित्त सार॥ दान सुपात्रे जो दिये जी, उत्तम नंग अपार ॥सोना गी सुणो चोनंगी रे एह ॥१॥ए आंकणी ॥ देव For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) मनुज रिजि पामियें जी, व्रतसिजि गति तस होय॥ धन सारथवाह परें जी, शालिन परें जोय ॥ सो ॥२॥ वित्त वारु ते शुं करे जी, सलियो पात्र असा र ॥ लरकनोजी बांजण परें जी, ते नवि पामे पार ॥सो॥३॥ जव जव जमतां पामियो जी, थोडाथो डेरो जोग ॥ सेचनक हाथी ते थयो जी, श्वेत ना तन योग ॥ सो० ॥४॥ जे ब्राह्मण आगले थप जी, करतो जमणजवार ॥ उगरतुंतो आपतोजी, पात्र मुनिने आहार॥सो ॥५॥नंदीखेण नर तेथयोजी, श्रेणिकनो सुत जेह ॥ पंच सयां नारी वस्यो जी, पात्र दान फल एह सो॥६॥ हस्तिवनें ग्रही श्राणियो जी, श्रेणिकने घरे सोय ॥ नंदीखेणने निरखतो जी, जाति समरण होय ॥ सो ॥ ७॥ हस्ती तोये बू डियो जी, पहेली नरगें जाय ॥ पात्र दोष तणो वली जी, बीजो नंगो कहाय ॥ सो॥ ॥ वित्त नूपातर नदु जी,त्रीजो नांगो एह ॥ देता बहु सुख पामतां जी, सुण दृष्टांत कहेय ॥ सो ॥ ए॥ बीज विजेद इषुकंदनुं जी, जाये जेणी रे वार ॥ का शबीज तिहां वावतां जी, उगे शेलडी सार ॥ सोग ॥१॥ नूमि नली माटें वली जी, ऊगे इषुरस कंद ॥ For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) पात्रदान जगमां वडूं जी, टाले चगति फंद सोग ॥११॥ जिम खड देतां आपती जी, दूध सकोमल गाय ॥ दूध पड्युं मुख सापनें जी, ते विष विरुवं थाय ॥ सो० ॥ १५ ॥ खाति नक्षत्र तणुं वली जी, जल अहिना मुख मांय ॥ ते विष जगमां नीपन्यु जी, मोती शीपशुं त्यांय ॥ सो ॥१३॥ जू विमल ते वाणियो जी, अव्य नहिं तस सार॥जिन प्रासा द करावतां जी, शुन्ज गति पाम्यो अपार ॥ सो॥ ॥ १४ ॥ धन कुमारग तणुं वली जी, नवि खरच्यु शुज काय ॥ ते पुर्गति पामे सदा जी, अपजश गामो गाम ॥ सो ॥ १५ ॥ मुम्मण नंद ने सागरो जी, मेली धननी रे कोड ॥ खरच्या विण नरगें गया जी, म म हो एहनी जोड ॥ सो ॥ १६ ॥ वली चोथो नेदज कहुँ जी, अन्याय तj धन जास ॥ पोखे तेह कुपात्रने जी, सुख नवि होवे तास ॥ सो ॥ १७ ॥ हणी धेनुने पोखतो जी, काग तणे नर जेह ॥ फल नवि पामे दान- जी, शुजगति न लहे तेह ॥ सो ॥ १७ ॥ अन्याय तणे अव्ये व ली जी, करे श्राइज बाल ॥ पूर्वज तृपता त्यां नहिं जी, होय तृपता चंमाल ।सो॥रणाप्रायें धन अन्या हि० ९ For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३०) यर्नु जी, तेहथी पाप अनिमान ॥षन कहे रांका परें जी, सुणजो जसु शिर कान ॥ सो० ॥ २० ॥११७ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥सुणजो सुपुरुष जस शिर कान, रांके मेव्युं पा पनिधान ॥ घणा तस्या करी अन्याय, करी पाप पुर्गतिमां जाय ॥१॥ तेणें कारण नर माद्यो जेह, अकर अन्याय करे नहिं तेह ॥ देश विरुद्ध टालतो सुजाण, नवि खंभे राजानी श्राण ॥॥ लोकविरु कनर तुं टालजे, काल विरुद्धश्री अलगो थजे ॥ धर्म विरुक करो म म कदा,जैनधर्म आराधो सदा ॥३॥ दान शील अने तप नाव, आराधो नर मन ने नाव ॥ धर्म तणा कह्या चार प्रकार, नाव जलो तो पुण्य प्रकार ॥४॥ सर्वगाथा ॥ ११०६ ॥ ॥ ढाल ॥ कायावाडी कारमी ॥ ए देशी॥ ॥ नाव नलो तो पुण्य घj, सुणी एक कथाय ॥ नगर विशाला मांही वली, वीर विहरता जाय॥नाव जलो तो पुण्य घणुं ॥ ए आंकणी ॥१॥ प्रतिमा धर उन्ना रह्या, तप तिहां चउमासी॥जीरण शेष निमंत्र j, करी जाये प्रकाशी ॥ ना०॥॥ अति घणी नावे नावना, धन्य हुं जग माही ॥ चार मास, पारj, For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३१) वीर होशे आंहीं ॥ जाण ॥३॥ बारमा देव लोकें श्राउ, तेणें बांध्युं ज्यारें ॥ उंचो चढे सोातमा, सुणी कुंडनि त्यारें ॥ ना० ॥ ४॥ अभिनव मिथ्या त्वी घरे, नीखारी पेरें ॥ अडद अपाव्या त्यां सहि, वृष्टि दुश् बहु पेरें ॥ ना ॥५॥ जीरण शेठ सुण तो नहिं, देवकुंकुनि कान ॥ थोडी वारमाहे फल हलत, तो केवल झान ॥ ना ॥ ६॥ नाव अधि को ते वती, नावे तोहे पुण्य ॥ एणी परें देतां नो तलं, ते जगमां धन्य ॥ ना० ॥ ७॥ एवं निमंत्रणुं नर करे, अन्नादिक जेह ॥औषध काज गुरु मुनि, तमो करजो तेह ॥ ना ॥ ॥ वले मंदिर एह नहोतरु, मुनि वरने देह ॥राजन पूजा आवे तेडवा, मन हरख धरे ॥ जाण ॥ए ॥ नाम लिये बहु व स्तुनां, विण वहोमु पुण्यो ॥ मनें चिंते पुण्यज सही, वचनें वली मान्यो ॥ ना ॥ १० ॥ दीधे कल्पपुम फल्यो, नवि पुण्यनो पारो ॥ नाम न ले घणी वस्तुना, तेहनी हाणि अपारो ॥ ना॥११॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ जावें आहार नर आपे जेह, शालिन रिकि पामे तेह ॥ औषध दीये श्राविका रेवती, तीर्थंकर For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३२) गति पामे सती ॥१॥ रोग निवारे मुनिवर तणो, तेहनो महिमा गांख्यो घणो ॥ जीवानंद परें तुं जोय, गोत्र तीर्थकर बांधे सोय ॥२॥ वसति दान नुं पुण्य विशाल, तस्यो अवंती जे सुकुमाल ॥ वंक चूल जयंती सार, कोश्या पामी जवनो पार ॥३॥ इस्यां दान नावें करी देह, आ नव परजव सुखीया तेह ॥ जावें शील धरे सुकमाल, होये नीर टली अग्नि जाल ॥४॥ शीलं नारद सिका सह।, जं बनी कीर्ति गहगही ॥ थूलिना मुनि जीते काम, चौराशी चोवीशी नाम ॥५॥ शेव सुदर्शन सूधो कह्यो, शिवकुमार नर शीलें रह्यो ॥ एणी परें पाले जावे शील, वंकचूल परें पामे लील ॥ ६ ॥ नावें तप त पतां सुख थाय, पांव परमुख मुक्तं जाय ॥ काकं दी नगरीनो धणी, तप तपतो निश्चल एकमनी ॥ ॥ सर्वार्थ सिकि पाम्यो सार, वली सुख पाम्यो सनत कुमार ॥ नंदीषेण तप लब्धि करी, सोवन ष्टि करे घर खरी॥७॥ अर्जुनमाली ने दृढप्रहार, त करी ते पाम्या पार ॥ नाव सहित जे तप श्रा दरे, मुक्ति तणे मारग संचरे ॥ ए ॥ नावे जावना चोथी जेह, केवलज्ञान लहे नर तेह ॥ जरत हु For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३३) जावें केवली, मृगलांने सुरनी गति फली ॥ १० ॥ वलकलचीरिय परमुख सहु, नावें केवली हा बदु ॥ नाव वडो एणे संसार, जावें तरियां नर ने नार ॥ ११ ॥ धर्म तणा ए चार प्रकार, आराधतां पामे नव पार ॥ वली सांजले आगम सार, मुनिवर देखी हरख अपार ॥ १२ ॥ श्रागम साधुनी निंदा करे, श्रावक शक्ति वारंतो तरे ॥ अजयकुमार वास्या सहु, तेहने पुण्य हर्बु त्यां बहु ॥ ॥ १३ ॥ जीखारी दुवो संयम धणी, तेहनें लोक करे रे धणी ॥ & उ कोडि आणे मूकी सही, स्त्री, घरवात न जाये कही ॥ १५ ॥ बुकि विचारे अजयकुमार, पंच रत्न लीधां तेणें सार ॥ नगर लोकने तेडी कहे, पांच तजे ते पांचे ग्रहे ॥१५॥ पृथ्वी पाणी तेउ वाय, वन स्पति मूके जे जाय ॥ पांच रत्न नर पामे तेह, एक तजे तो एकज लेह ॥ १६ ॥ कोनो जीव न चाले त्यांहि, ए मूक्या नवि जाये क्यांहि ॥ अजयकुमा र कहे कहुं तुम्ह अमो, निंदा साधु करो कां तुमो ॥ १७ ॥ पांच रत्न नवि हाथे धस्यां, विण लीधे पांचे परितस्यां ॥ त्रसकाय तेणे नवि हणे, कंचन पनर सरिखा गणे ॥ २७॥ काम जोग जेणें परिह For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३४ ) ख्या, वणज सकल जेणें दूरे कस्या ॥ तिस्था साधुने निंदो कांय, लोक सकल लाज्या मनमाय ॥ १५॥ न करे निंदा को साधुनी, स्तुति करता साहामुं ते हनी॥ साधु तणी एम रदा करे, अजय कुमार परें ते तरे ॥२०॥ श्रागम तणी बहु रदा करे, ग्रंथ अपूरव शीखे शिरे ॥ गोत्र तीर्थंकर बांधे तेह, जणा वनार पुण्यनो नहिं बेह ॥१॥ थोडी प्रज्ञा जो पण होय, तोहे उद्यम न मूके सोय ॥ माषतुषा दिक साधुनी परें, उद्यम मन राखे बहु परें ॥॥ पदेखे जव बंधव ते दोय, माष तुषा ते लोढो होय ॥ जणतां ज्ञान घणुं तेणें ग्रह्यु, श्राचारिय पद त्यारें थयुं ॥ २३ ॥ अनेक पुरुष पूजे तेणी वार, बेसी न शके एक लगार ॥ मन चिंते लागो संताप, घणुं लण्यं पदवीनुं पाप ॥ २४ ॥ ज्येष्ठ नात मूरख ते सुखी, पंमित पद महारे थयो फुःखी ॥ श्स्युं चिंतवी कीधो काल, मानव नव पाम्यो ततकाल ॥२५॥ बीजे जवें लीधी दिकाय, परवकमै मृरख थाय ॥ उद्य म न मे तोही लगार, पद गोख्युज संवत्सर बार ॥ २६ ॥ मा तूसो मा रूसो वली, गोखंतां हू के For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३५) वली ॥ तेणें उद्यम मेवो नहिं, षन कवि एम बोल्यो सही ॥२७॥ सर्वगाथा ॥ ११५४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ बोले साचुं मुखथकी, न्यायें मेले धन्न ॥ व्यव हार शुकि ज्यारें हवी, आहार शुद्धि तव जन्न ॥१॥ मन चोखू होये तदा, बोले मधुर अत्यंत ॥ लोक व बन होये तदा, समकित बीज वधंत ॥२॥ सम कित सूधुं राखतो, श्रीदेव गुरुने धर्म ॥ तत्त्व त्रण आराधतो, धोतो आठे कर्म ॥३॥ रुषल देव चर णे नमे, गुरु गौतम गुणवंत ॥ जैनधर्म थाराधीयें, लहियें सुख अनंत ॥४॥ एत्रण तत्त्व आराधियें, दूषण पांच टालेह ॥ जूषण पांचे श्रादरे, समाकित दृष्टि तेह ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १२४ए ॥ ॥ ढाल ॥ चाल चतुर चंञाननी ॥ ए देशी ॥ ॥ समकित मूल सोहामणां, ग्रहे व्रत ते बार रे॥ तेहने देवता नित्य नमे, गति नहिंज असार रे ॥ समकित मूल सोहामणां ॥१॥ ए आंकणी ॥ बेदन नेदन नवि लहे, लहे दीरघ आय रे ॥ देव तणी गति ते लहे, वहेलो मुक्तिमां जाय रे॥ स ॥२॥ अविरतिनाम कर्मज जशे, नहिं अगड अजाण रे॥ For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) वीर संयोगिक श्रेणिक नरो, नहिं काग मंसपञ्चका ण रे ॥सण॥३॥ एह अविरतिज देवता, नव जोगमा जाय रे ॥ जीव अभ्यास जेहवो करे, तेहवो आगो थाय रे ॥ सम्॥४॥ जेणें व्रत पालियां निर्मलां, आगलेंव्रत संयोग रे॥बत विना तुक नविगले, विष म कर्मना रोग रे॥ स०॥५॥तेणें व्रतनंग न कीजी ये, कदी जोहि खंमाय रे॥तेहिजागल व्रत पालि ये, जेम कर्म धोवाय रे ॥ स॥६॥ नियमी वस्तु श्रण सांजरे, धरी जो मुखमांहे रे ॥ तेह पानी नर नाखतो, व्रतनंग नहिं त्यांहि रे॥ स ॥७॥जोहि खाधा पली सांजरे, बीजे दिवसें पालेह रे ॥ मिला मुक्कड दे करी, आराधक होय तेह रे ॥ स०॥॥ वस्तु अचित्त संशय पडी, नर वावरे जेह रे॥तेहने जंग हुई सही, व्रतनो वली तेह रे ॥ स ॥ ए॥ घणोज मांदो ने जूतें दम्यो, यो परवश जंत रे॥सर्प मसे थनिग्रहें वली, पाले तो गुणवंत रे ॥सार॥ नवि पले तोहि नियमज तणो, नंग ते नवि होय रे॥ चार श्रागार कह्यां सही, सकल नियममा जोय रे॥ सम्॥११॥ सहेजें वातनो नंग करे, विराधक कह्यो तेह रे ॥ तेणें निज गुरु हेलीयो, दुःख पामतो देह For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) रे ॥ स० ॥ १२ ॥ वस्तु वडी जग याखडी, राखेज थिर मन्न रे ॥ कमल शेठें जोइ तालने, कढा लढे सोवन्न रे ॥ स० ॥ १३ ॥ कमल शेठ हतो मो कलो, न लड़े धर्मनी वात रे ॥ अंत समय दीये आ खडी, कमल शेठनो तात रे ॥ स० ॥ ॥ १४ ॥ निरख जे ताल कुंजारनी, पढें जोजन काज रे ॥ कमल शेठ लीये खडी, आणी बापनी लाज रे ॥ स० ॥ १५ ॥ तात परलोके पहोतो सही, पाले कमल ते व्रत रे ॥ एक दिवसें बेठो गुंजवा, सांज तस तुर्त्त रे ॥ स० ॥ १६ ॥ ध विचें उठीने ते धस्यो, कुंजारने बार रे ॥ घेर कुंजार दीगे नहिं, गयो सीम मकार रे ॥ स० ॥ १७ ॥ ताल जोइने पोकारीयो, दीवी दीठी में एह रे ॥ इण वसरें कढा काढतो, प्रजापति जेह रे ॥ स० ॥ १० ॥ मनमां बीहीनो ते यति घणुं, तेडे व गिने तेह रे ॥ तेह मूख्यो जोडी यावियो, करे जोजन गेह रे ॥ स० ॥ १९ ॥ प्रजापति तिहां चिंतवे, ए वे वाणीयो रंद रे ॥ रखे जइ कहे दीवान मां, कढावे पढे कंद रे ॥ स० ॥ २० ॥ कनक कढा इ श्रावियो, शेठ कमलने घेर रे ॥ व्यो ए वहेंची स्वामी लीजीयें, करे विनति बहु पेर रे || स० ॥ For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३०) ॥२१॥सोवन कढा धरी उरडे, संतोष्यो ते कुंजार रे॥ कमलशेठ मन हरखीयो, जग अगड ते सार रे॥ स०॥॥ श्रमिय समाणीज जाणजो, माय ताय गुरु शीख रे ॥ जेह माने नहिं बापडा, मागे ते नर नीख रे ॥ स० ॥ २३ ॥सर्वगाथा ॥११७२ ॥ ॥दोहा॥ ॥समकितअ॒धरि श्राखडी,मनमंकड वश राख॥ मानव जव ने दोहिलो, जमतां नवनी जाख ॥१॥ सुर विषयी नारक दुःखी, तिर्यंच विवेक विनाय॥ धर्म अजे मानव जवें, जीव न चेते काय ॥२॥ काम जोग विष शल्य समा, करे ते सुखनी हाणि ॥ष ज कहे नर सेवतां, लहियें दुर्गति खाणि ॥३॥ इंघिय घोडा चंचला, जन्मारग चावंत ॥ राखे तुंसा रथि थई, वारे नरग पडंत ॥ ४ ॥ बांजण धोय म धोतियां, पत्नर चीर म फाड ॥धो नर इंडिय श्राप णां, जे जुजूई मोहाड ॥ ५॥ जिह्वा मोह कोट डी, जीत्युं न जाये मन्न ॥षन कहे जे वश करे, ते नर जगमांहे धन्य ॥६॥ आंख म मींचीश मीच मन्न, नयण निहाली जोय ॥जो मन मींचीश आपणुं, अवर न दूजो कोय ॥ ७॥ राति गमाई For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३ए) सोवतें, दिवस गमायो खाय ॥ हीरा जिस्यो मनुश्र जव,कोडी बदलें जाय ॥७॥ सर्वगाथा ॥ १९७० ॥ - ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ एजें जनम खोयो नर तेह, व्रत अंगें नवि धरता जेह ॥ नियमधरा जगमें पूजाय, वली परलो के सुखीया थाय ॥१॥ धरी नियमने समकित धरे, उचित जालव तुं बहुपरें॥ उक्ति सुणो म म होजो बाल, एणी परें बोले उपदेशमाल ॥२॥ पामे लो कमांहि कीर्ति तेह, उचित कस्यानो महिमा एह॥ पिता माता नाइ स्त्रीतj, उचित साचवे सुतर्नु घणुं ॥३॥ सऊन गुरु पोतानी नात, परतीर्थी नांख्या बहु नांत ॥ उचित एहना जे साचवे, रुपन कवि गुण तेहना स्तवे॥४॥ सर्वगाथा ॥११॥ ॥ ढाल ॥ सोय अनाथी परनवे होय ॥ ॥अथवा ॥ जं सुरसंघा॥ ए देशी ॥ ॥ गुण तेहना नर सहुको रे गाय, जेह पिता ना पूजे रे पाय ॥ उचित पितानुं त्रणे प्रकारें, मन ह वचन काया करी गरे ॥ गुण ॥ १॥ शरीर त णी शुश्रूषा करतो,सेवक परें बोल शिर पर धरतो॥ पाय धोवे नवि सामुं बोले, सोय पुत्र कह्यो षनने For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४०) तोले ॥राणा ॥ मर्दन करे कर साही उगडे, वचन कडं ते नोमि न पाडे ॥ वचन प्रमाण करेवा काम, प्रमाण देशोटो कीधो रे राम ॥ गुण ॥ ३ ॥ सुणी अ वचन मन आनंद धरतो, चित्त न बेसे तोही पण करतो॥ सखर सेवा करे गुरुने पितानी, रहस्य प्रका शे वात जे बानी ॥ गुण ॥४॥ थोडं नण्यो करे वृछनी सेवा, ते होय बुधि लोकोने देवा ॥ जेह q लहे गरढो को एको, तरुण कोडिमांही नहिंज विवेको ॥ गुण ॥५॥ उक्त पूब्युं नृप पाटु मारे, कवण दंम देवो तस त्यारें ॥ तरुण कहे मारेवो तेहने, नृप नि मनमांहि एहने ॥ गुण ॥६॥ गरढो कहे तस पूजा कीजें, वस्त्र पहेरावीने नूषण दीजें ॥ नरपति हरख्यो तेणी वारो, पूजी बाल पहे राव्यो रे हारो ॥ गुण ॥ ७॥ तेणें कारणे नर माह्यो जेहो, वृद्धवचन माने सहु तेहो ॥ एक हंस सुत एकशो आगे, चुनि करवाने लीये जव वाटो॥ गुण ॥ ७॥ साथे बाप गमे नहिं गरढो, तरुणा पूवें श्यो ए जरठो, वात कहे सुणो पुत्र गमारो ॥ कबि एक गरढो करे तुम सारो ॥ गुण ॥ ए॥ एक दिन सघला पाशमाहे पडता, पूजे तातने हंसा For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १४१ ) रे रडता ॥ तात कड़े अचेतन थाजो, काढी नाखे तव ऊडी रे जाजो ॥ गुण० ॥ १० ॥ काढे पारधी पाखें रे जाले, संध्या श्वास नवि हाले ने चाले ॥ जाणी मुखा तस दूर नखावे, मली एकता सढु उडी रे जावे ॥ गुण० ॥ ११ ॥ पुत्र पिताना गुण बहु गावे, तात पसायें जीवता रे जावे ॥ रुषन कहे गरढानी रे माने, ते हनी कीर्त्ति नवि माये रे पाने ॥ ० ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ ११६ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पानामां कीर्त्ति नवि माय, जे नर माने मात पिताय ॥ ते सुख पामे जगमांहि सार, श्रेणियथी जिम अजय कुमार ॥ १ ॥ मात पितानें कहे गढ़ गढ़ी, तमो जिनवरने पूजो सही ॥ गुरुसेवा पडिक्कम करो, सात खेतरें धन वावरो ॥ २ ॥ दीन उद्धार तीरथनी जात्र, पुण्यें पोषो महोटां पात्र ॥ सकल मनोरथ पूरा करो, इस्युं कहे उत्तम दी करो ॥ ३ ॥ शास्त्रमां कयुं बे नेट, मात पिता गुरु सूधो शेठ ॥ जिननो धर्म करावे जोय, तेह पुरुष शिंगण होय ॥ ४ ॥ ते उपर बे युगतिय घणी, कहुं त्रिनंगी ठाणांग ती ॥ त्रणनो शिंगण नवि For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) थाय, शेठ धर्मगुरु मात पिताय ॥ ५॥ तेल सत सहस पाकने ग्रही, करे अन्यंगन पोतें सही। सुगंध पीठी अंगें करी, तेल उतारे सुत बल धरी॥६॥ सुगंधनीरें धूए शरीर, लूहे ले निर्मल चीर ॥ पहे रावे शोले शिणगार, विचरे नांखे षन विचार॥॥ ॥बप्पय ॥ ॥ कुंड मुंब सम राय, मर्जन कुंमल कानें ॥ वस्त्र तिलक वाणही, मुकुट मुख शोने पानें ॥खड्ग मुनि का हाथ, चंदन अंगें लगावे॥कमरें पटंबर सार, बु रिका त्यांहि बनावे ॥ विद्या विनीत शीलें जला, शोल शणगार शोहे नरा ॥ कवि शषज एणी परें उच्चरे, पु एय पुरुष पामे खरा ॥१॥ सर्वगाथा ॥ १२०४ ॥ ॥ ढाल चोपानी देशी॥ ॥जला पुत्र होये जग जेह, एणी परें जगति करे ले तेह ॥पूबी वात करे नित्य नमे, नूख्यो तात पोते नवि जमे ॥ १॥ रूपा तणी मूके श्रा मणी, जोजननी मांगे मांगणी ॥ मूके कनक तणो त्यां थाल, अति उज्ज्वलने अतिहि विशाल ॥२॥ मन गमता पीरसे त्यां पाक, सुख पामे जिनाने नाक ॥ बहु पक्वान्न न लाधे पार, सिंघ केसरिया मोद For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) क सार ॥३॥ श्लोक ॥ “चउसहि कुसुमरसा, चल रासी राय दव नेयवा ॥ सोल सुगंधा वासा, दस विहा हुँति केसरिया ॥४॥” पीरसे एम जगति करे लाख, शाल दाल अढारे शाक ॥ वली करें वास्यां पान, अति मी संजलावे गान ॥ ५ ॥ जाव जीव खंने ले फरे, एणी परें जगति जलेरी करे ॥ पूजे गौ तम सुणि जिनराय, तेह पुत्र शिंगण थाय ॥६॥ ना शिंगण तोहि न थाय, पूबे गौतम कहो उपा य ॥ नांखे वीर पमाडे धर्म, उशिंगण थावानो मर्म ॥७॥ को एक महा व्यवहारी जेह, श्रावी वखारे बेगे तेह ॥ वाणोतरनो बहु परिवार, आव्यो माग वा एक कुमार ॥ ७ ॥ शेठ तणे मने आवी दया, पूबी वात करी मन मया ॥ कुमर कहे मुऊमात पि ताय, बाल पणे परलोकें जाय ॥ ए ॥ धन खोयु तव शी विधि करूं, ते कारण हुं परघर फरूं ॥ सुंदर जाणी राख्यो घरे, जोजन वस्त्र दिये बहु परें ॥१॥ यौवन वय परणाव्यो सही, अलगो सोय रह्यो गह गही ॥ सुबुद्धि पणुं तेहमांहि अपार, तेणें तेहने हाथे व्यापार ॥ ११॥ वाणोतरी टाले तेणी वार, सुत चोथ करतो व्यापार ॥ नर परदेशे गयो ते जिस्ये, For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४४) बहु लखमी पाम्यो ते तिस्ये ॥ १२॥ सरव शेठ तj मोकले, मांमयो वणज पोतें एकले ॥ धन उपार्जी आव्यो घरे, करे विनय शाहानो बहु परें॥१३॥नामुं करी नदावा लेह, बीजे नगरें रह्यो जर तेह ॥ कालें शेठ ते नांग्यो घणुं, अडवा लागुं जमवा तणुं ॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ दिन सघला सरखा नहिं, म करो पुरुष गुमा न ॥ ब्रह्मदत्त चक्री जिस्या, जमतां न मिले धान ॥१॥ दाधी नगरीधारका, नाग बांधव दोय॥तर श्यो त्रिकम वन मुर्म, मान म करश्यो कोय ॥ ॥२॥ समय कर्षण समय धन, समय सह समर ब॥ गोपन राखी अर्जुनें, तेह जाथा तेह हल ॥३॥ लजा मति सत्य शील कुल, उद्यम वरत पलाय ॥ ज्ञान तेज मानज वली, ए धन जातां जाय ॥४॥ सायर पुत्री त्रिकम पियु, चंद सरीखा नाज॥ लबी हीमे घर घरें, महिला नीच सजाउ ॥ ५ ॥ लही ग वाणिग तणी, हियडे करे विचार ॥ हवे घर बेसी झुं रहूं, अन्यदेश मुफ सार॥६॥ दंत केश नख अधम नर, निज थानक शोनंत ॥ सुपुरुष सिंह गयंद मणि, सघले मान लहंत ॥ ७॥ श्स्युं विचा For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) रीनिकव्यो, गांठे नहिं काय धन ॥ पंथे थाये दोहि लो, फुःखें पामे अन्न ॥७॥ सर्वगाथा ॥ १५२६ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥श्रतिहि दोहिलो थाये जिस्ये, वाणोतर ते श्राव्यो तिस्ये ॥ देखी शेठ असंत्रम थाय, साहामो जश्ने लागो पाय ॥ १ ॥ वलगी कोटें रोयो घणुं, किस्युं रूप दीसे तुम तणुं ॥ सुवन रत्न मणि मोति जेह, नूषण वस्त्र गयां क्यां तेह ॥२॥ शेव कहे तुं अलगो थयो, त्यार पढ़ें अव्य सघलो गयो। खूटयुं पुण्य पूर्व- जदा, राख्युं किस्युं रहे नहिं तदा ॥३॥ वाणोतर रोतो नवि रहे, तव मेंता सघला एम कहे ॥ घेला शेठ थया सहि होय, जीखारी गले वलगी रोय ॥ ४ ॥ वाणोतरने वास्या वढी, एहणे पोषी मुझ चांमडी ॥ एहने कोलिये हुँ उबस्यो, एणे मुऊ व्यहारी कस्यो ॥ ५॥ वाणोतर ए मुक शेत, गुण न समाये मारे पेट ॥ एम करि घर तेडी करी, इंड सरीखो कीधो फरी॥६॥ एक दि वस मेव्यो परिवार, पेमु पोतियुं तेणी वार ॥ स रख वखारी धन नूषण हार, आपे शेग्ने तेणी वार ॥ ७॥ पूजे गौतम त्यां गहगह्यो, वाणोतर उशिंग हि.१० For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) थयो | जिन कहे तो शिंगण थाय, जैन धर्म पमा ताय ॥ ८ ॥ वाणोतर कहे शाहने फरी, रिद्धि पाम्यो जिनधर्मे करी ॥ तुमें याराधो जिननो धर्म, थोडे दिवसें फले तुम कर्म ॥ ए ॥ यति पासें ते तेडी गयो, सुणे सूत्र तिहां गहगह्यो । पडिक्कम गुं सामायिक करे, जिन पूजी जिनने मन धरे ॥ १० ॥ वाणोतर करतो व्यापार, वाधे वादलो शे वनो सार ॥ श्रवे लाज थापे शेठने, थोडे दिवसें वाध्य ते धनें ॥ ११ ॥ श्रावी असता जिन उपरें, खरच्युं धन तेणें बहु परें । तें दीक्षा लीधी सार, सति पायो तेणी वार ॥ १२ ॥ पूढे गौतम जि नवर तणे, शिंगण हू एम जणे ॥ वीर कहे शिंगण थयो, बीजो भेद कवि रूप कह्यो ॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ कदलीवननो रे सूडलो ॥ ए देशी ॥ ॥ गौतप स्वामी रे पूढता, सांजलो जिनवर राय के ॥ जेणें जिनधर्म पमाडियो, शिंगण किम तर थाय के || गौतम० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ यति य तिनी श्रावक श्राविका, सुणि तस धर्मकथाय के ॥ पामी धर्म थयो देवता, करे हवे एटला उपाय के ॥ गौ० ॥ २ ॥ धर्माचारय आपणो, पीड्यो रोगें For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४७) वली कोर के ॥ सुर समाधि आवी करे, तो उशिंग ण होय के ॥ गौ० ॥३॥ पुर्निदमांहीथी काढ तो, मूके सुनितमाही के ॥ अटवीमांथी उस रे, मूके वसति होय ज्यांही के ॥ गौ ॥४॥ एम उशिंगण थाये प्रनु, जांखे वीर तिहां नाय के॥क बीथ पड्यो गुरुधर्मथी, आणे तेहने गय के ॥ गौ० ॥५॥ जिम आषाढाचारज मुनि,अणसण बहुने उच्चरावे के ॥ कहे तुमें होश्यो रे देवता, कहे जो मुझने शहां श्रावी के ॥ गौ ॥ ६॥ को कहे वा नवि श्रावीयो, व्यग्र मुनि तिहां होय के ॥ तव एक चेलो रे आपणो, वाहालो सबलज सोय के ॥ गौ ॥ ७॥ मरण समय थयो तेहने, अणसण उच्चराव्युं त्यांहिं के ॥ गुरु कहे चेला थर देवता, क हेवा आवजे आंहिं के ॥ गौ ॥ ७॥ ते पण ना व्यो रे गुरु जणी, उपन्यो ताम संदेह के ॥ धर्म नहि मजगमांही सही, खोटा देवता तेह के ॥ गौ ॥ खाधुं पीधुं ते आपणुं, खोटो संयम वास के ॥ उठी पंथें रे नीकल्यो, घर मांगवानी श्राश के ॥ गौ ॥ ॥१॥ चेले देवतायें तेलयु,श्राव्यो अटवीनी मांहि के ॥ नूषण जरियो रे बोकरो, थर वांदतो त्यांहि For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४७) के ॥ गौ ॥ ११ ॥ पूज्युं नामज तेहनु, पृथ्वीकायि यो कुमार के॥ नूषण लोले रे मारियो,चालियो तेणी वार के ॥ गौ ॥ १५ ॥ आगल अपकायियो में ब्यो, मारी लीधां आचरण के ॥ पढ़ें तेउकायियो मारियो, वायुका यियाने मरण के ॥ गौ ॥१३॥ वनस्पति त्रसकायियो, मास्या कुमार ते दोय के ॥ पडे सुर संघ विकूर्वतो, वंदन आवे सहु कोय के ॥गौ॥ १४॥ वांदी वलगा रे बोकरा, जोडी जोली ते ताम के ॥ पूजे गुरु किस्यां नूषणां, मुनि कहे एहनुं काम के ॥ गौ ॥ १५ ॥ एम कही मुनिवर चालियो,दीनाटक ताम के॥जोतां खट मासवही गया, न कझुं बीजं कांश काम के ॥ गौ ॥ १६ ॥ आगल जातां रे आवियो, शिष्य करी मूलगुं रूप के॥ वांदी देवता एम कहे, आ शुं तुमह सरूप के ॥गौ ॥ १७ ॥ गुरु कहे तुं शिष्य नावीयो, पडिळ अपार के ॥ शिष्य कहे नाटक जोअतां, तुम होय केटली वार के ॥ गौ ॥ १७ ॥ गुरु कहे थोडीशी वेला दुश्, चेलो कहे षट मास के ॥ नाटक मोह्यो नवि आवियो,तुमो मन राखोह गम के ॥गौारणा For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) तुमें खट कुमारज मारिया, विरुवा घरवास काम के ॥ गौण ॥२॥ सर्वगाथा ॥ १२५ए ॥ ॥ ढाल ॥ठानो रे बूपीने कंता क्यां ॥ ॥ रह्यो रे ॥ ए देशी॥ ॥ इंडियवश पहोतो जीवडो रे, एटलां वानां खोय रे ॥ तप ने कुल शोना देहनी रे,पंमितपणुं गयुं जोय रे॥ मुनिवर कीपे जिय श्रापणां रे ॥१॥ ए आंकणी ॥ पामे कलंकने आपदा रे, संग्रामनां कुःख सोय रे ॥ इंजियवशें कुल वालु रे, बहु कुःख पाम्यो जोय रे ॥ मु॥२॥ रूडे शब्दें नवि राचि ये रे, रूडं रूप म जोय रे ॥ गंध फरस रस जलें तजे रे, धर्म उद्यम करे सोय रे॥मु ॥३॥ १५६५ ॥ ॥दोहा॥ ॥काचो पिंम न पोखियें, अनय न कीजें श्रा हार॥धन मे इंजिय दमे, ते नर पामे पार ॥१॥ मंदिर महिला सुत सुता, एणे मोद्यो सहु लोक ॥ पांच दिवसने कारणे, पाप करे जीव फोक ॥२॥ क्रोध घणो निझा बहु, थाहार तणो नहिं पार ॥ जोगें तृप्ति न पामतो, तस पुर्गति निर्धार ॥३॥ विषय विडंब्यो रावणो, खोया वसा ते वीश ॥ For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५०) खोयुं राज लंका तj, खोयां सघलां शीश ॥४॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी॥ ॥ ते धन्या ते साधुज नाम, तेहने नित्य कीजें परणाम ॥ जेह अकारय विरमी रह्या, अखंग व्रत पालंता कह्या ॥ १॥ थूविना जिम साचो यति, अकार्य काम न की, रति॥वेश्याघर चोमासुंरही, व्रत अखंग पाले गहगही ॥२॥ वडं व्रत जे पर्व त प्राय, उपाडवा तत्पर ऋषिराय ॥ श्स्यो साधु युव ती संग जोय, संयम भ्रष्ट बहु परें होय ॥३॥ मुनि तपियो मस्तक लोचतो, एकासण वांकल पढेरे तो॥पण ते अब्रह्म जाचे पडें, ब्रह्मा होय तो मुफ नवि रुचे ॥४॥ नण्युं गण्युं तेहy परिमाण, जे चेत्या ते पंमित जाण ॥ कष्टं पड्या प्रारश्रीया यति, जेद अकार्य न करे रति ॥ ५॥ सुदरिसण शेठ. तणी परें रहे, पाडे कष्ट अनया तस कहे॥ नवि बोल्यो नवि खंम्युं शील, या जवें परजवें पाम्यो लील ॥६॥ ॥दोहा॥ ॥ नवयौवन स्त्री देखी करी, नयन रहे जस गम ॥ रुषन कहे जन जश् करी, तस चरणे शिर नाम ॥१॥ काम जोग उपजोग बहु, पाम्या अनंती For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५१) वार ॥ तोहे अपूरवनी परें, माने सुख संसार ॥२॥ जोगाधि फल धर्मनां, जाणे एह जंत॥तोय मूढ हृदय धणी, पाप कर्मे राचंत ॥३॥ नंदीषेण नीचे कुलें, पण तप संयम सार ॥ नृप वसुदेवज ते थयो, हरिवंश कुल शणगार ॥४॥ राजसुता विद्याधरी, बहोतेर सोय हजार ॥ काहन पिता परण्यो सही, अहो तपनुं फल सार ॥ ५॥ तप संयमथी म म चलो, स्वामी श्यो घरवास ॥ चेतो गुरु पाबा वलो, हुं चेलो तुम दास ॥ ६ ॥ सर्वगाथा ॥ १७ ॥ ॥ ढाल ॥ कदली वननो रे सूडलो॥ ए देशी ॥ ॥ नाटक ए में देखा डियुं, विकुरव्यो संघ सार के॥ कुमर तणुं रूप में धखं, ममखु संयमनार के।गौतम स्वामी रेपूबता ॥१॥ ए आंकणी॥धर्मविषे मुनि थापि यो, दीधो प्रतिबोध त्यांहिं के॥पश्चात्ताप गुरु त्यां करे, लाज्यो घणुं मनमांहि के ॥गौ॥२॥ कहे धिक्कारज मुऊ हुवो, हुई जाणतोहि गमार के ॥ सूत्रना तां तणा कारणे, त्रोड्यो रयणनो हार के ॥॥ गौ ॥३॥ नहिं मुफ चेलो रे गुरु सही, ए हु बंधव तात के ॥ जेणें पुर्गति रे पडतां थकां, श्रावी ग्रह्यो मुक हाथ के ॥ गौण ॥४॥ पाडो संयम आदरे, पात For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५५) क आलोए सोय के ॥ गौतम पूढे रे वीरजी, शिष्य उशिंगण होय के ॥ गौ०॥५॥ शिष्य उशिंगण ए थयो, नांखे वीर जिणंद के ॥ षन कहे हितशी खडी, मुणजो श्रावकवृंद के ॥ गौ ॥६॥ १२ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ वीर कहे श्रावक आदरो, मात पितानी नक्ति ज करो ॥ धर्म पमाडो धर्मी धूरे, आर्यरहित सूरि नी परें ॥ १॥ दशपुर नगर अनोपम कहे, पुरोहित सोमदेव त्यां रहे ॥ सोमरुजा नारी जेहने, धारिय रक्षित सुत तेहने ॥२॥ चउद विद्या नणी श्राव्यो जिस्ये, खूशी माय न हुई तिस्यें ॥ पूढे पुत्र नहिं हर्ष थपार, माय कहे सुण पुत्र सुसार ॥३॥ पूरव चउद जणो तो जब, पातक रूपियां काढो शव ॥ पुत्र कहे ते पामुं क्यांहीं, माय कहे मुक मामो ज्यांहिं ॥४॥ तोसलीपुत्र जणी ते चल्यो, साढी नव शेलडी लश्मव्यो॥ विप्रकुमरने दिये तसु गय, कुमर मोकले जिहां निज माय॥५॥देखी शेलडी कस्यो विचार, पूर्व साडा नव जणे कुमार ॥ कुमर गयो तव गुरुनी संग,उपाशरामांपेगेरंग॥६॥दृढ श्राव कने पूवें गयो, शीखी वांदे त्यां गह गह्यो॥सघली विधि For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) श्रावक परें करी, लखी गुरु बोलावे फरी ॥७॥ कुमर कहे चउद पूरव जेह,मया करीने नणावो तेह॥ तोसलीपुत्र कहे सुणो कुमार, संयमविण नहिं पूरव सार ॥ ७॥ लीधी दीक्षा बंमयुं सहु, श्रुतसिद्धांत जणाव्यो बहु ॥ गुरु कहे पूरवनो खप करो, वयर खामी चरणे अनुसरो ॥ ए॥ गुरुवचने त्यांहांथी चालियो, उडोणीमांदे श्रावियो ॥ जगुप्त श्राचा रय जिस्ये, आर्यरहित निजामे तिस्ये ॥१०॥ शीख दीये आचारिय सही, वयरस्वामीथी अलगो रही॥ जणजे पूरव तुं गहगही, सुणी वचन चाख्यो ते वही ॥११॥ वयरखामी अवंतीमांहि, वादी नणवा लाग्यो त्यहि । पूर्व साडा नव नणियो जिस्ये, आर्यरक्षित मुनि थाको तिस्ये ॥१२ ॥ फदगुरक्षित जाई जेह, श्राव्यो शोधवा वेगें तेह ॥प्रतिबोधी तस दीदा देह, बिहुँ दसपुर नगरें आवेह ॥१३॥ नूपति बहु सामश्युं करे,नगरमांहि मुनिवर संचरे॥ कुटुंब सकल वांदे गहगही, प्रतिबोधी दीये संयम सही ॥ १४ ॥ पिता न बजे तेणें गम, धोती विण न नमुं परगाम ॥ जनोश बत्र अनेज उपान, हाथ कमंगल ते शुजवान ॥ १५ ॥ अतिशयवंत गुरु For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५४) मुखें कही, सोमदेवने दीदा सही ॥ शिष्य सघला ने एम शीखवे, कोइ म वांदश्यो तातने हवे ॥१६॥ एक एकने वंदन करे, सोमदेवथी पागा फरे ॥ तव खीजीने जांखे श्स्युं, वड लोढाई नहिं तुम किस्युं॥ ॥ १७ ॥ मुनिवर कहे नहिं वांडं अमो, त्रादिक केम राखो तुमो ॥ संघलां वानां मे तहिं, पण गोचरीयें जाये नहिं ॥१७॥ गाम गया गुरु शिष्यने कही, तातने आहार म देजो सही ॥ श्राणे वस्तु मुनि बेगे जोय, सोमदेवने न दिये कोय ॥१५॥ एक बहमन पाखे होय, पढें गुरु मुनि श्राव्या सहु कोय ॥ तातें राव करी त्यां जिस्यें, चेला उपर खीजे तिस्यें ॥॥ गुरु कोली घाली सङ थाय, लाजी बोल्यो गुरु पिताय ॥ हुँ पोतें जाइश गोचरी,चाल्यो आहार दाय त फर। ॥२१॥ सर्व गाथा ॥ १३०५॥ ॥दोहा॥ ॥मुनिवर करतो गोचरी,मधुकरनी परें आहार॥ सार करे संयम तणी, खरचरी करे खूधार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ एक व्यवहारीने घर गयो, खेश लाडने ते श्रा वीयो ॥ वहेंची दीधा मुनिने फरी, वली चाल्यो मुनि For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५५) वर गोचरी॥१॥ तेहज व्यवहारी ने घेर, जातां लजा थ बहु पेर ॥ बारीनी वाटें ते जाय, बत्रीश लाडु लहे मुनिराय ॥२॥ निमित्त विचारे गुरुजी तिस्य, बत्रीश पाट महारा चालशे ॥ श्स्युं विचारी तातने त्यांहि, सबल प्रशंस्यो मुनिवरमांहि ॥३॥ साधुपंथ पाले सहु तजी, एक धोतियु राख्युं हजी॥ एक दिन एक मुनिवर करे काल, परग्ववा चाव्या ततकाल | गुरु कहे साधु तणुं ए शरीर, पररवि आवे मुनिवर धीर ॥ तेहना लान तणो नहिं पार, उठयो तात तव सुणी विचार ॥ ५॥ सोमदेवने गुरु त्यां कहे, मनह तुमारं गमें नवि रहे॥ देव दा नव जद बलशे जदा, शब नाखीने बेसो तदा ॥६॥ सोमदेव कहे नाखुं नहिं, वेगें शब उपाड्युं तहिं ॥ त्यारे गुरु शिष्यने शीखवे, काढो धोतीयुं ताणी हवे॥ ॥७॥ ताणी धोती चेलो लावियो, सखर चलोटो पहेरावीयो ॥ शरीर परठवी आव्यो जिस्ये, तातें ठबको दीधो तिस्य ॥ ॥ वारे गुरु शिष्य न लहे किस्युं, पहेरो धोतियुं जो मन वस्युं ॥ सोमदेव कहे शी हवे धोती, जेहनी मुनिवर करता येती ॥ए॥ प्रतिबोधी कीधो जल यति, जेहने पाप न लागे For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) रती ॥ पूजे गौतम वीरने वली,तव वलतुं जांखे केव ली॥१०॥ ए उशिंगण तातने थयो, आर्यरक्षित वांदेवो कह्यो ॥ षनदास कहे हितशिवाय, उत्तम मानो मात पिताय ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ १३१७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ मात पिताने मानियें, जिम जग कुरमा पूत॥ गृहस्थपणे जस ऊपन्युं, केवलज्ञान अद्लूत ॥१॥ गृहस्थ तणे वेशें रह्यो, सेतो निरवद्य आहार ॥मात पिता प्रतिबोधियां, दीधो संयमनार ॥२॥ राज गृहीनो राजीयो, महेंअसिंह नरीद॥पटराणी कुरुमा तिस्य, करतां बेहु आनंद ॥३॥ कुरुमा पुत्र सुत तेहनो, धुरथी नहिं जन्मत्त यौवन वय पाम्यो जदा, तब ते विषय विरत्त ॥ ४ ॥ एक दिन साधु जणतां सुणी, देतो प्रेमें कान ॥ जातिसमरण पामियो, की, हैडे ज्ञान ॥५॥ देवतणो नव देखतो, मानव हुई हुँ आंहीं। गर्जतणां दुःख दोहिलां, चेत्यो चित्तशुं त्यांहि ॥ ६ ॥ असार स्वरूप संसारगें, देखे तिहां कुमार ॥ शुक्ल ध्यान ध्यातो तिहां, विरुन काम विकार ॥ ७॥ ध्यानरूप अग्नि करी, कर्म इंधण बा लंताकेवल झाने फलहव्यो, जाणे नाव अनंत ॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) मन चिंते चारित्र ग्रहुं, तो दुःख मात पिताय ॥ न खमे विरह ए माहरो, हंसा ऊडी जाय || केवल ज्ञानथके रह्या, आणी अनुकंपाय ॥ मात पिता माहारां वली, रखे दोहिलां थाय ॥ १०॥ अनुक्रमें इंझें वली, दीयो यतिनो वेश || मात पिता विस्तारियां, नाहं सुत गुणनो बेक ॥ ११ ॥ कुरमापुत्र कथा सुणी, माय ताय नमी पाय ॥ एक कहे समजे सहु, किसी दिये शिक्षाय ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ १३२ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ शीख देनं कवि कहे ते वती, कबी एक चूक वडाने अति ॥ सीतानो पति चूको राम, मृग देखीने धायो जाम ॥ १ ॥ जग निपायो पोतें सहु, सोवन मृग नी पायो नहु || पण चूक्यो जे पूछें धस्यो, अवसर चूके महोटा इस्यो ॥२॥ रामें वनमें मढी करी ली ह नावे घो वनचर सिंह ॥ सीता लीह लोपी कां इ, एणें थानकें ए चूकी सही ॥ ३ ॥ सिंहनाद मूके रावणो, सुणतां व्यग्र हुई लखमणो ॥ जाएयुं साद करे बे राम, हास्यो जाणी धायो ताम ॥ ४ ॥ मूकी मढी ने श्राघो गयो, एह वरांसो महोटो थयो । एह विचार करो नहिं ताम, केम हारे सीतापति For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५७) राम ॥ ५॥ चोथो चूको हनुमंत वीर, संका वन पहोतो गंजीर ॥ सिताशु जेणे कीधी वात, देश नाव्यो ते चूक विख्यात ॥ ६ ॥ अवधिज्ञान हवू आणंद, नवि माने गौतम गुणचंद ॥ वीरतणे पूडे तो सही, मिबाउकड देतो जई॥७॥ चूको महि पति शंख नरनाथ, कलावतीना काप्या हाथ ॥श्रम रकुमारें मूकी नार, वणिकपुत्र चूको तेणे गर ॥॥ विप्रवचनें चूक्यो नूपाल, नंदें उहव्यो मंत्री सक माल ॥ रामचंद्र नृप चूको सहीज, सीता पासें करा वीधीज ॥ ए ॥ दमयंती जव मूकी रान, त्यां नल चूक्यो निश्चय मान ॥ विमल वरांस्यो तिहां कणे कह्यो, अश्व चढी जिन आगल रह्यो॥१०॥ अनेक एम नर चूका सही, धर्मउपदेश देवो गहगही ॥सम जे ते माहापण आदरे, मात पितानी नक्ति करे॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ ते कारण नर सांजलो, नक्ति करो निजता त ॥ तेहथकी अधिकी कही, जेह पोतानी मात ॥१॥ सेव करे उवद्यायनी, नक्ति करे दश दीय ॥ एकदा श्राचरज तणी, पुण्य सरी थाय ॥२॥ आचारियने पूजतो, कोश्क पुरुष सोवार ॥ तात न For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५ए) गति एकदा करे, तेनुं पुण्य अपार ॥३॥ पिता तणी पूजा करे, फरी फरी वार हजार ॥ मात नक्ति एकदा करे, पुण्य तणो नहिं पार ॥४॥ पशुयां मात तिहां लगें, धावे जव लगें जाय ॥ अधमा नारी नावे जदा, तव लगें माने माय ॥५॥ मध्यम मात तिहां लगें, हाथे नहिं घर बार ॥ उत्तम मात जीवित लगें, सदा करे तस सार ॥६॥ पशुओं मात खुशी तदा, नानो पूंठे जाय ॥ मध्यम मात खुशी तदा, ज्यारे कुमर कमाय ॥ ७॥ उत्तम मात खुशी तदा, सुणती सुत अवदात ॥ लोकोत्तम माता खुशी, जस त्रिहुँ जुवनें जात ॥ ॥ पंच मात शास्त्र कही, नृपनारी निज माय ॥ गुरुपत्नी सासू कही, उरमान नमी पाय ॥ ए ॥ पांच पिता परें मानवा, पंड्यो जनम पिताय ॥ अन्नदाता विद्यागुरु, हणतां जे राखताय ॥ १० ॥ पंच जात शास्त्रे कह्या, मित्र अने मायजात ॥ रोगपालग सांथें नण्यो,मार में कीधो साथ ॥ ११॥ उचित एहनुं साचवे, पूजे मननी वात ॥ सकल कला तस शीखवे, मुंजे सरी खा जात ॥ १२ ॥ हितबुधि शिक्षा दीये, जोह न समज्यो जात ॥ निरवहेवो तो सहि, पीये नीर For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६०) तस पात ॥ १३ ॥ न वढे बांधवगुं कदा, राखे वडा नी लाज ॥ त्रात अहाणुं जरतना, मूके पृथ्वीराज ॥ १४ ॥ जातें तेड्या बल करी, मिली षन कहे जात ॥राज दीयो कीजें वडा, नांख्यो खामीतात ॥ १५ ॥ अहाणुं गाथा तणुं, कह्यु अध्ययनज त्यां हिं॥ श्री सूयगडांग धुरें सही, जु सिद्धांतज मांही ॥ १६ ॥ पुत्र अहाणुं वारिया, म वढो बंधव साथ॥ वढो कषायज चारशें, नावो जमने हाथ ॥ १७ ॥ बंधव अहाणुं बूफिया, मूके लोन कषाय ॥ वढवा नागा वातशु, लोधी तेणें दीदाय ॥ १० ॥ सुख मां सांजरे नारया, पुःखमा सांजरे माय ॥ बांधव त्यारे सांजरे, मस्तकें वागे घाय ॥ १५ ॥ नूख्यां जोजन समरिये, तरश्यां समरे नीर॥रणमांहीबांधव समरियें, माडीजायो वीर ॥२०॥ रयणी थोडी रण घणां, पूजें चढ्यां केकाण ॥ बांधव होय तो मां मिये, नहि कर उमवी पराण ॥१॥ व काको माउलो, नाणेजो जतरीज ॥ उचित एहनुं साचवे, जगति जलेरी कीज ॥ २२ ॥ उचित नारीनुं साच वे, ते सुखीयो संसार ॥ षन कहे हित शीखडी, को म म उहवो नार ॥२३॥ आणंद कहे नर For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६१) सांजलो, स्त्रीय समी नाहं बाथ ॥ रसोइ निपावे रतन जणे, शके तो श्रावे साथ ॥ २४ ॥ पुण्ये ला धे पदमिनी, अने गुणवंती नार ॥ शीलवती ने सुं दरी, रम ऊम करती बार ॥२५॥ सर्वगाथा॥१३६५॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ उचित नारी तणुं साचवे, रात दिवस मुख म धुरं लवे ॥ मीगं वचन समुं वली जोय, वशीकरण जगमां नवि होय ॥१॥ कला ऊपर को धन न हिं, जीवदया सम धर्म न कहिं । संतोष जपर सुख को नश्री, मधुर वचननो गुण तिम अति ॥२॥ वचनें संतोषे निज नारी, कुटुंब लक्ष्मी दिये सो अनु रागी॥ अलंकार पहेरावे सार, स्त्रीशोन्ने शोने जर तार ॥ ३ ॥ निशासमय फरती ते वार, कुसंगथी विणसे शुज नार ॥राजपंथने परघर बार, बहु नम तां विणसे ऋषि नार ॥ ४॥ दूती जात नर दूरे वार, न रहे पियरें धोबी बार ॥ जागरण जानें जावु निवार, नारी कंत नहिं जस बार ॥ ५॥ उपाशरे देहरे जो जाय, त्यारे वडेरी पूजें थाय ॥ घरनों कारज नलावे सहु, ते घरसूत चलावे बह ॥६॥ नवरी ते चपलाई करे, हास्य विनोद धर्मति हि० ११ For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६२ ) दरे || पैशाचक वाणिगनी कथा, जांखुं सोय सुखी में यथा ॥ ७ ॥ पैशाचक वाणिग कहेवाय, ए कदा जाड तलें थं मिल जाय || एक देव रहे तेणें काड, दुर्गंधी दुःख लागुं हाड ॥ ८ ॥ देव बलेवा करे उपाय, पण वाणिगने बढ्यो न जाय ॥ ऋणु जाह जस्सग्गो कही, नित्यें थं मिल जाये सही ॥५॥ सुर चिंते एणें लोपी लाज, उपाय करीने मारुं श्राज ॥ थं मिल वेगे वाणिग जिस्ये, मागो सुर तूठो कहे तिये ॥ १० ॥ जे तुं काम कहे ते करूं, खूंटे काम तो प्राण तुक हरुं ॥ गले पाश देवें या लियो, बेतस्यो नवि जाये वायो ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ १३७६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ तो कसे देतो मसे, उपर चढावे पाड ॥ वली विषधरने सेवायें, पण नवि सेवियें किराड ॥ १ ॥ गें बुंटेरा बेतरा, खुदी हुंबडो दोय ॥ लेइ हथी यार तस्कर हण्या, वणिग समो नहिं कोय ॥ २ ॥ वाणिक घर तस्कर गयो, बांट्यो कोगल ताम ॥ नाह क धोयो बापडो, लेइ न शक्यो तस दाम ॥३॥ नजा भूप अंगमा, ए मुख दोहला हुंत ॥ वैरी वींटी वा थियो, पूछें दाह देयं ॥ ४ ॥ सर्वगाथा ॥ १३८० ॥ For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६३) ॥ ढाल ॥ सो सुत त्रिशला ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रांगल मूकी मांगल वासे, मांगल मूकी मूल प्रकाशे ॥ जो जाणे तो पाडे हासें, वणिगकला थी दैवे नासे ॥१॥ सर्वगाथा ॥ १३७१ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ वणिक तस्यो ते नवि जाय, तेणें देवने कह्यो उपाय ॥ सात नूमि घर आहीं कणे करो, मणि मोति हीरे ते नरो ॥ १॥ देव कहे में की, सही, वेगो बोले वणिग गहगही ॥ वली करो ही मोला खाट, उपर पाथरो मशरु पाट ॥२॥ वली निपा उ चार वखार, नरो करियाणां तेणे गर॥देव कहे में की, एह, नांखो बीजुं जोश्य जेह ॥३॥ हेम वंत परवत वन जई, सात ताड उंचो ते सही ॥ अस्यो वांस आणो ते अहिं, उपर आडूं लाकडं तहीं ॥४॥ रोपी वांसने सांकल थाणी, सात ताड लांबी ते जाणी ॥ एक बेडो उचो बांधजे, पनी मांक डो तुं पण थजे ॥ ५॥ सांकल आप गलामांहि जडो, वांस उपर जश् उतरो चढो ॥ बीजुं काम होये ते करे, नहिंकर सदा लगें एम फरे ॥६॥ देव कहे हुँ मोहोकम हतो, मुफथी वाणिग ए दीप For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६४) तो ॥ पुण्य पाधलं वणिक अपार, न शक्यो सुर डे तरी लगार ॥ ७॥ कामथकी परवारे नहिं, चूंमो करी शके ते कहिं ॥ साधु जलो एम वलगो काम, नवरो मन न रहे तस गम ॥॥ तिम नवरी वली न रहे नार, काम विबुद्धी मन तस गर ॥ वा णिग कथा कही में सही, अवर कथा सुणजो गह गही ॥णा श्रीपुर नगरें जिनदत्त शाय, वडो पुत्र पर देशें जाय ॥ श्रीमती नामें तेहने नार, यौवनवंती तेह विचार ॥ १० ॥ नर चाल्यां दिन जाजा होय, तव नाकामातुर सोय॥गरढ। स्त्रीने कहे तेग वार, को एक पुरुषने प्राणो बाहार ॥ ११ ॥ १३ए ॥ ॥समस्या दोहा ॥ ॥ गजरिपु तस रिपु तास रिपु, रिपु रिपु वृक्ष मिलाय ॥हरिशय्या पुत्री तणो, सुत पीडे मुझ माय ॥१॥अर्थः-काम पीडे ने ते॥ सर्वगाथा ॥ १४५३ ॥ ॥उप्पय ॥ ॥ सत्यनामा घरे काहान, श्राव्यो पछीम रातें। पूछे नारी तुं कोण, हुं माधव निज जातें ॥ माधव तो वनमाही, चक्री चक्री तो कुंभारह ॥ धरणी धर तो शेष, अहिरिपु गरुड अपारह ॥ हरि कहेतां For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६५) तो वानरो, कवण पुरुष श्राव्यो अहीं ॥ कवि शष न कहे नर कामवश, श्यां श्यां वचन खमे नहिं ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ कंजप पाखें जग वडो, मूत्रानो मारणहार ॥ इंडिय पंच हीणां पड्यां, तोहु नजे विकार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ पाट कुसुम मालती ॥ ए देशी॥ ॥ विषय विकार अडे चिहु गतिमां, इंश नमय स्त्री पाय ॥ महोटा मुनिवर मीण मगाव्या, पशुयें नवि मूकाय ॥हो देवा विषयने कादवें कलिया ॥ पापी काम थकी जे विरम्या, ते जगमांहि बलिया ॥ हो देवा ॥ ए आंकणी ॥१॥ कालो श्वान कोयो दोय कानें, नूख्यो कदा न धराय ॥ अधम जीवविषयनो विहल, शूनी देखी युं जाय ॥ हो देवा ॥२॥ पगे खोडो घरडो ने काणो, कीडा पड्या बहु अंगें ॥ रू पहीण चांदी तस वांसे,रहेतो शूनी संगेंहो देवा॥ ॥३॥मानवने पापी एपीडे, नारीने पाये पाडे ॥इंडिय पांच पडयांजो ढीलां,मोह्यो कंचुकी साडें ॥ हो देवा ॥४॥ मागी नीख ठगेवरमांहि जिमतो, ते पण नी रस आहारो॥ स्त्रीसेवा कारण ते हीसे, विरु काम विकारो ॥ हो देवा ॥ ५ ॥ श्राहार कवेला रहेवे For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६६) मशाणे, जूमि सूवे नर घेलो ॥ मूरख मर्म नजाणे कां, जोगकामें ते पहेलो ॥ हो देवा ॥६॥ वस्त्र हीण हिंझे नर नागो, हाथ पाय परिवारो॥बहेरो बोबड आंधो चीबो, जीते नहिंज विकारो ॥ हो देवा ॥॥ जरादंग वागो कटिमांहि, शिर पलियां सूगालो ॥ विषय तणी हजी वात न मूके, जो हुर्ड विण दंतालो ॥ हो देवा ॥॥ सर्वगाथा ॥१४॥३॥ ॥दोहा॥ ॥ विषयविवल नारी हुई,कहे कोइ नरने आण॥ नवरी मन दह दिशि फरे, होय गुण केरी हाण ॥१॥ ॥समस्या ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ कन्या काय कुमारी घणी, कृपण लही वाधे श्या नणी ॥ चाडी तांत कहो केम करे, त्रण उत्त र यो एक अस्करें ॥१॥ अर्थ ॥ नवरी ॥ नवरी नारी नहिं घर कंत, धन यौवन ने रूप अत्यंत ॥ महोंढे मंदिर सार सजाय, कहे मोशीने काम क थाय ॥२॥ तेणें नारें ससराने कडं, वहूनुं मन नवि जाये रह्यं ॥ नवरी न रही यौवनवती, सोय शील केम राखे सती ॥३॥ ससरे बुद्धि विचारी त्यांय, मेव्यां माणस निज घरमांय ॥ सरव काम करो For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६७) नर जेह, वढूने पूर्वी करजो तेह ॥४॥ वहूने तेडी तेणें विचार, सोंप्यो सघलो घरनो नार॥दण एक तिहां परवारे नहिं, निश्चल मन नवि जाये काहं ॥५॥ घरढी स्त्रीयें पूज्यं त्यांहिं. नर तेडी लावू घरमांहिं॥ वढू कहे कोण परवारे घडी, चूंमी वात करे एवडी ॥६॥ ते नारें ससराने कह्यु, निश्चल मन तुम वहू नुं रह्यं ॥ कामें विलगी रहे मन गर, तेणें नवरी नवि राखे नार ॥ ७॥ तेम मुनि श्रावक धर्मने काम, वलगे तो तस रहे मन ठगम ॥ नवरो हामी बाजी करे, नवरानुं मन दह दिशि फरे ॥७॥ एक ली नवरी जो वह हती, शील नांजवा थर ते सती॥ खूती पोताने घर काम, तो निश्चल मन रह्यं तस गम ॥ए॥ षन कहे तुम हित शिदाय, सांजलतां गुण सबला थाय ॥ जंघे अलगो बेसी आरडे, तेहने बुझिएको नवि जडे ॥१॥ सर्वगाथा ॥ १४१४ ॥ ॥ ढाल ॥ तुंगिया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी॥ ॥जडे बुझि जो सुणे सुपरें, नहु उहवो घरनार रे॥ प्रियवचनें प्रिया प्रीति वधारे, सुख लहे संसार रे ॥१॥ जडे बुकि जो सुणे सुपरें ॥ ए आंकणी ॥ पांचे बोले प्रेम बांधे, गुण बोलतां ताय रे ॥ वोला For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६७) वे बहु दान देवे, बंदें न चाले काय रे ॥ ज० ॥२॥ पांचे बोलें प्रेम नासे, घणे काल मिलंत रे ॥ अत्यंत जाजु मले ज्यारें, तेहनी प्रीति पलंत रे ॥ ज० ॥ ॥३॥ वात बानी जेह राखे, करे सबढुं मान रे ॥ प्रेम नासे तदा तेहनी, दीये वली अपमान रे॥ ज० ॥४॥ पांचे बोले पुरुष मूके, प्रियाशु प्रेम वधार रे ॥ धर्म कर्म जिम सुखें चाले, चढे मुनिवर बार रे ॥ ज० ॥ ५॥ कोएक वेला अतिहि नूहुँ, बोली जो घर नार रे॥ माह्यो जाणी रहे मनमां,कहे नहिं हारगर रे॥ज ॥६॥वांक होय तो विधे वारे, रूठी मनावे नारी रे॥ हाणि वृद्धि धनगुपत वातो, वयर वात निवारी रे ॥ज ॥७॥ थोडे वांके शोक नाणे,मूरख म धरो रीश रे॥स्त्री उपर स्त्री वरेबीजी, पुःख लहे निशि दिस रे ॥ ज० ॥ ७ ॥बे नारीनो कंत क्यारें, नूख्यो तरश्यो जाय रे ॥ क्यारे कंत प गधोण न मिले, वैर वाधे तिण गय रे ॥ ज०॥॥ देशांतर जाखसी रूडी, नरगें जावं सार रे ॥ पण कही बे नारी जूंमी, उःख लहेज अपार रे ॥ज॥ ॥ १० ॥ कदाचित् बे नारी परण्यो, धरे सरीखो राग रे ॥ नारी वारो नर न लोपे, जोजन सरिखो For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६ए) जाग रे ॥ ज० ॥ ११॥ वांक सारु शीख दीजें, मनावे पण सहिय रे ॥ कदाचित् जो चढे कोघे, पडे कूपें जश्य रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ नीतिशास्त्र कह्यु एहवं, हुआ पंमित चार रे ॥ सवा लाख एक करे वैदक, एके धर्म विचार रे ॥ ज० ॥ १३॥ एकें तो नीतिशास्त्र कीधुं, एके शास्त्र शिणगार रे ॥ नूप श्रा गल जश्नांखे, नृप कहे तेणी वार रे ॥ ज० ॥१४॥ संदेपो तो सुणी शकिये, वैद्य बोल्यो ताम रे ॥ अजीर्णमांहे तजे नोजन, नहिं तस औषध काम रे॥ ज० ॥ १५ ॥ कपिल धर्मर्नु मूल नांखे, धुर दया जीव खास रे ॥ बृहस्पतें नीतिशास्त्रे नांख्यु, कहोनो म कर विश्वास रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ पांचाली शणगार शास्त्रे, स्युं श्राण्युं घेर रे ॥ स्त्री आगल सुकुमाल अश्ये, चाले घर शुज पेर रे॥ज० ॥१७॥ घर तो घरणी थकीज शोने, पुरुषतुं नहिं काम रे॥ तोलडी थाल नर धोवे ढांक, हसे आ गाम रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ षन कहे हित शीख तुमनें, सांजलतांबहु बुधि रे॥ कलेश कंदल न होय घरमां, वाधे सबली रिछि रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ १४३३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १७० ) ॥ ढाल || चोपाईनी देशी ॥ ॥ सुपरें बुद्धि वाधे नर शिरें, महिला मंत्रएं जे नवि करे ॥ नरनुं काम करे ज्यां नार, तेहनुं घर विणसे संसार ॥ १ ॥ धारानगर जिहां अन्याय त्याज्य, राजा जोज करे त्यां राज्य | तिहां एक सा त भूमि यावास, व्यंतरदेव अधिष्ठे तास ॥ २ ॥ रहे वा यावे मंदिर कोय, व्यंतर देवता पूढे सोय ॥ चार बोलनो करे जबाप, ते इस मंदिर रहेशे आप ॥ ३॥ शारद कुटुंब व्युं तिहां सही, राजाने पूयं गह गही ॥ कहो तो वियें नगरीमांहिं, दूध कचोलुं पाठव्युं त्यांहिं ॥ ४ ॥ दूध कचोलुं जिम ए जयुं, तेम नगरी माणस तरवयुं ॥ नगर कचोलामांदे नहिं गम, कहां वी लेश्यो विशराम ॥५॥ शा रद कुटुंब त्यां बोले इस्युं, जोज सरिखो चूके किस्युं ॥ सहु मानव सरिखा नवि होय, अंतर कीधा कमैं जोय ॥ ६ ॥ पथर पथरमांहि अंतर कस्यो, एक र हे केसर पुष्पें जो ॥ एक उपर मूके सहु पाय, वागे वेश तो चढे कषाय ॥ ७ ॥ करी करी मांहे अंतर कियो, एक गर्दजनी परें लादियो । एकने सो वन घूघरा फूल, करे आरति पूजे फूल ॥ ॥ श्वान Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १७१ ) श्वान मांही अंतर कियो, नवि जाये पूरवनो दियो ॥ दत्तवती बेसे पालखी, एक तो श्वान होये यति डुःखी ॥ ए ॥ पंखी जातिमांहे अंतर वडो, इंटथें ज माडे जर कागडो ॥ कोकिल पूजा पामे बहु, वचन तो ते महिमा सहु ॥ १० ॥ मानव मानवमांहि अंतर करयो, रत्न भूषणें दी से जस्यो । एकने तरुया तणी मुडिका, लगा हीं नर ते थका ॥ ११ ॥ एक पहेरे रेशमी धोतियुं, एकने नहिं फाटुं पोतियुं ॥ एकने तेडे सजा मजार, एक ठेलाणो जाये बहार ॥ १२ ॥ एक ते गमेंज समाय, एक बते वामें फरी जाय ॥ सकल जीवमांही इम प्रांत, राजा जोजने कहे जे खरुं ॥ १३ ॥ दूध कचोलुं तें मोकल्युं, ते जाये बेसहि ऊगव्युं ॥ पण खंग एमां हींज समाय, नवि उंचुं थई दूध न खाय ॥ १४ ॥ इस्युं कहीने पंक्ति त्यांहिं, मूके पतासां दूधज मांहिं ॥ सोय समाणां दीवां जिस्यें, आएंयुं कचोलुं जोज कने तिस्यें ॥ १५ ॥ पूबी जोज दीये आदेश, नगरमांहिं कीधो परवेश || जाणो नाम तिहां उत रो, मुऊ नगरी तुमें रहे करो ॥ १६ ॥ शारद कुटुं ब नगरमांहिं जाय, कुमरी एक मली तस वाय ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( १७२ ) "" कहे बेनी कोनी दीकरी, ते कन्या बोली त्यां फरी ॥ १७ ॥ श्लोक ॥ " पर्वताग्रे रथोयाति, भूमौ ति ष्ठति सारथिः ॥ चलति वायुगेन, तस्याहं कुलबालि का" ॥१८॥ परजापतिनी ए दीकरी, पण विद्यायें पूरण जरी ॥ हरखी पंक्ति यघा जाय, कुमरी एक मेला पक थाय ॥ १७ ॥ " श्लोक ॥ अजीवा यत्र जीवं ति, निःश्वसंति मृताश्रपि ॥ कुटुंबकलहो यत्र, तस्याहं कुलबालिका ॥ २० ॥ ए बूहार तणी बालिका, मधुर बोल बोले मुख्यका ॥ जोज नगर विबुधें परव, हरखी गल जानुं कयुं ॥ २१ ॥ कुमरी एक मिली फूटरी, बोलंती जननां मन हरीरी ॥ श्लोक एक कह्यो तिहां रही, पुरुष सो सुष्यो गहग ही ||२२|| " " लोक ॥ शिरोहीना नरा यत्र, द्विबाहु करवर्जिताः ॥ जीवंतं नरं जति, तस्याहं कुलबा लिका ||२३|| " जाणी दरजीनी दीकरी, यागल पुरु प गया परवरी ॥ कुमरी एक मली जेटले, बोलावी वेगें तेटले ||२४|| " श्लोक ॥ जलमध्ये दीयते दानं, प्रतिही न जीवति ॥ दातारो नरकं यांति, तस्याहं कुलबालिका ॥ २५ ॥ " जाणी माबीनी ते धीय, स मकी पंदित चाल्या तेय ॥ आव्या व्यंतर वाले घेर, Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७३) एणे थानकें रहियें शुन्न पेर ॥२६॥ बोल्यो व्यंतर देव सुसार, चार बोलनो कहो विचार ॥ त्यार पढ़ें ए थानक रहो, कहिंतर मार्गे श्राघा वहो ॥२७॥ व्यंतर देव प्रथम एम कहे, सर्व पुरुष कने ते अ॥ पंमित अर्थ कहे ते पडे.सुमति कुमति ते सहुको अ॥ ॥ २०॥ सुमति संपदा केलं हेत, कुमति आपदा श्राणी देत ॥ पाणिनीय व्याकरणतुं पद ज्यां हि, इस्यो अर्थ कह्यो जे त्यांहिं ॥ए॥ सुणी अर्थ अति हरख्यो देव, बीजं पद नांख्युं ततखेव ॥गोत्र विष नर एकज जलो, नांख्यो अर्थ एहनो गुणनिलो ॥ ३० ॥ जेह कुटुंबनो निर्वाह करे, तेह पुरुष होये एकज शिरें ॥ घणा पुरुष मलिया दलिदरी, पोतें पेट न शके जे जरी ॥३१॥ सर्वगाथा ॥ १४६४ ॥ ॥सोरो॥ ॥ न जोश्ये ते लाख, जोश्ये ते एकज नहिं ॥ एके एकज लाख, लाखे मले एके नहिं ॥१॥ ॥दोहा॥ . ॥ हंसा केरे बेसणे, बगला बेग वीशा करता र वडा किया, तेशु केही रीश ॥१॥ क्युं कीजें श्र रहद्दडे, वहेजे बारे मास॥जलधर वरसे एकज घडी, For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७४) पूरे जननी आश ॥२॥ कहो म चढ एरंग तुं, देखी गिरुयां पन्न ॥ फलह धडका जे खमे, ते तो तरुवर अन्न ॥३॥ सर्वगाथा ॥ १४६७ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ एकलो पेट जरे लख तणां, तेणें पुरुषं शोने श्रांगणां ॥ इस्यो एक जलो सहु गय, सुणी वचन हरख्यो जकराय ॥१॥ त्रीजो बोल कह्यो त्यां सार,वृद्धोजना तुमें कहो विचार॥ नाहाना पुरुषशुंप रिचय थाय, गंमी वृद्धने नारी जाय ॥२॥ तेणें वृझें परणवु नहिं, सुणी जरक हरख्यो मन तहिं ॥ चोथो बोल कहो जस घरे, नारी प्रवर्ते पुरुषनी परें ॥३॥ शारद कटुंब बोले तस गर, तेहy घर विणसे निरधार ॥ गुह्य कहे जो स्त्रीने जई, तेह पु रुष घर विणसे सही ॥४॥ जिम कुंमल पुर नगर मजार, मंथर कोलिक रहे तेणे ठार ॥ ताणा पांज णी ते नर करे, एक दिन ते वनमां संचरे ॥ ५ ॥ इंधण काज शीशम तरु चढे, व्यंतर वारे अति श्रा रडे ॥ काप म तरुवर शांहिं मुफ वास, उत्तर पागे पूर्वं श्राश ॥ ६ ॥ नवि माने जाडे दिये घाय, कठ ण तिणे सहु लागे पाय ॥ गज सुकमाल हु जो For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७५) घj, मोहोत धटयुं जगमाहिं ते तणुं ॥७॥ १४७५॥ ॥दोहा॥ ॥अवगुण एक न शीखीयो, गुणग्राही नहिं कोय ॥ घरे बांध्यो कुंजारने, सार न पूजे सोय॥१॥ अवगुण शीख म शीख गुण, शीख्या गुण वीसार॥ लांजी चाक कुंजारर्नु, बांधे राज दरबार ॥२॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ गज पराक्रम देखाडे त्यांहिं,चरे शेलडी राउल मांहीं ॥ नर उर्दत जाणी जकराय, कहे सुर तूगे तेणें गय ॥१॥ माग जरक कहे तिहां फरी, आईं नारीने पूबी करी ॥ घेर श्रावता मित्र एक मिल्यो, मुक सुरवर फल्यो ॥२॥ मित्र कहे 'ज, मंथल कहे स्त्री पूर्बु श्राज ॥ घर ते कथाय, सुर तूगे शुमायुं जाय ॥३॥ म मागीश राज, आपण चार नुजाशं .नां बे शिर थाये जेम, जकराय कने म ॥ ४ ॥ बमणुं काम आपण घर थशें, लखमी मंदिरमा हशे ॥स्त्री, वचन हश्यामां धरी, जकराज कने आव्यो फरी॥५॥बेना चार करो मुफ हाथ, दोय मस्तक कीजें सुरनाथ ॥ देवें For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७६) मस्तक थाप्यां हाथ, थयुं कुरूप नगरीमांहिं जात ॥ ॥६॥ जूत जिस्यो श्रावतो जाणियो, फस्यां लोक बूंधे थाहण्यो॥ मास्यो इंटे पाड्यो मही, मंथल ज मघर पहोतो सही ॥७॥ शास्त्रमांहे कयु डे कथी, जेहने पोतें बुधि नथी॥ कहेण न माने मित्र ज तणुं, स्त्रीने गुह्य पूजे आपणुं ॥ ॥ ते खय पामे वहेलो घरे, मंथल कोलिकनी ते परें ॥ प्रायें दीसे एह वली, निश्चे नवि जांखे केवली ॥५॥ उ त्तम स्त्रीने पूज्या वती, गुण थातो पण दीसे श्रति ॥ वस्तुपालने गुण हु तिस्ये, अनुपम देवी पूजे जिस्य ॥१॥ कुलवंतीने व्रत आकरां, बोले वचन सदा ए खरां ॥ राग होये जिनधर्मने विषे, नरने । करतो रखे ॥ ११॥ कुलवंती एहवी ने चित् गुह्य कहे तिण गर ॥ उचित ते दरे, रोग होय तो औषध करे ॥ १५ श्रागल रही, तप, ऊजमणुं ते सह। पूजा जातरा, उत्साह वधारे ते नर खरा थाले अव्य न करे अंतराय, थोडूं पुण्य ते नर य॥ करे करावे अनुमोदे ज्यांहिं, वीरें पुण्य कर्वा में त्यांहिं ॥ १४ ॥ षन कहे नर उत्तम जेह, स्त्रीने For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७७) पुण्य करावे तेह ॥ हितशिदा मन धरतो हवे, नारी उचित नर ते साचवे ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ १४ए । ॥ ढाल ॥ ते गिरुश्रा नाश्ते गिरुथा ॥ ए देशी ॥ उचित पुत्रतणुं साचवतो, ते नर पागल फावे रे॥पांच वरसते लाले पाले,दश वरसें नणावे रे॥ए हितशिक्षा ए हितशिक्षा, सुणतां होय चतुराई रे॥ न सुणे ईर्ष्या मान धरीने,न गई तस मूर्खाई रे॥१॥ ए हित ॥ए श्रांकणी ॥ शोल वरसनो ज्यारे थाये, जाणे मित्र समानो रे ॥ श्री गुरुदेवने धर्म पमाडे, सुपुरुष पासे श्राणो रे ॥२॥ ए हि०॥ नहानपणाथी जला पुरुषनो, संसर्ग कीधो वारु रे ॥ वलकलची रीने गुण थाये, हुठ ते श्रातम तारु रे ॥३॥ए हिण॥ धर्मवंत संघातें मलता, नापी श्रापद जाय रे ॥ धर्म पमाडे समकित थापे, अजयकुमार जिम राय रे ॥ ॥४॥ एहि ॥ देश अनार्यमांहि हजे, तेणें नवें सिकि लीधी रे ॥ आर्षकुमारने अजय कुमारश्यु, प्रीति जलेरी वाधी रे ॥ ५॥ एहि ॥ादन देश नो श्रादन राजा, मगधदेश श्रेणिको रे॥ बिहुमां हे प्रीति दुइ जाजी, मोकले वस्तु अनेको रे ॥ ॥६॥ एहि ॥ अजयकुमारें नेट मोकली, हय हि० १२ For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) गय वस्तु अनेरी रे ॥ एण पेटीमां षन देवनी, प्रतिमा कंचन केरी रे ॥७॥ एहि ॥ पूजानां उप गरण मोकल्यां, शीख देश सेवकनें रे॥आईकुमार ने हाथे देजो, जोवा म देशो कहोने रे ॥७॥ ॥एहि ॥ सुनटें नेट कुमरने आपी, प्रतिमा पेटी माहे रे ॥ उघाडी जोतां अति हरख्यो, अपूरव दरि सण त्यांहे रे ॥ए ॥ एहि ॥ विचारवा लागो नृप त्यारें, कशी वस्तु ए हो रे ॥ हाथे कोटें प्रति मा बांधी, मस्तकें मूकी जोई रे ॥ १० ॥ एहि ॥ एको गमें न प्रतिमा शोने, आगल मामी जोई रे॥ पोतें साहामो सुपरी बेगे, श्ण विधि सखरी होई रे ॥ ११॥ एहि ॥ ऊहापोह करतां तिहां पाम्यो, जाति समरण सारो रे॥पूरव नवें बे मित्रज हुँता, लीधो संयमनारो रे ॥१२॥ एहि ॥ पूरव पुण्य योगें धरम पाम्यो, तो हवे मुनिवर थालं रे ॥ देश अनारजमां नहिं दीदा, धारय देशमा जाउं रे ॥ १३ ॥ एहि ॥ वीरहा| तेणें दीक्षा लीधी, धन्य तुं थार्यकुमारो रे ॥ अजयकुमारने ते तिहां मलि यो, वाध्यो प्रेम अपारो रे ॥ १४ ॥ एहि ॥ तफ तपता हु केवल नाणी, पंचसया संघातें रे ॥ मुग For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५) ति नगरीमां ते पहोतो, मलियो सुपुरुष साथै रे ॥ १५ ॥ एहि० ॥ एणें दृष्टांतें पिता पुत्रने, सुपुरुष साथै जोडे रे ॥ इद्धि रमणी जस कीरति पामे, चढी फरे गज घोडे रे ॥ १६ ॥ एहि० ॥ ए हित शिक्षा ते नर सुशे, जेहने निद्रा थोडी रे ॥ विक या हास्यथकी जे लगा, रह्या मान मद मोडी रे ॥ १७ ॥ एहि ० ॥ सांगणसुत कवि रुषन प्रकासे, ए हित शिक्षारासो रे ॥ जांख्या बोल धरे मनमांहे, पहोंचे तेहनी शो रे ॥ १८ ॥ एहि० ।। १५१० ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ पुत्रतणे परणावे सही, सरीखे रूपें कन्या कही ॥ सरखं वय सरिखुं कुल कर्म, सरिखे सरिखुं सुख दिये पर्म ॥ १ ॥ विडंबना श्रण मिलते होय, प्रकृति बोल मन न मले दोय ॥ त्यारें नारी करे व्यजिचार, परस्त्रीगमन करे जरतार ॥ २ ॥ धारा नगरी त्यां जोज नरिंद, सकल लोक करे आनंद।। तस्कर एक त्यां चोरी करे, रातें खातर देतो फरे ॥ ३ ॥ एक घर खातर पाडी करी, घरमांहि पेठगे परवरी || स्त्री जरतार वढे बे घणुं, वचन न सांखे को केह त ॥ ४ ॥ नर कहे मूंकी घरथी जाय, स्त्री For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) कहे जृमी तारीमाय ॥ नर कहे बोले माकण जिसी, तुऊ नवि खाधो माकण कसी ॥५॥ शुं बोले जे रेशं खिणी,मुशंखिणी तुमनी जणी ॥ सापण केम दिये सामी गाल, रूडो साप तुऊ जीव्युं बाल ॥६॥रहे कहे रांगमारं मूशलें, स्त्री कहे शिर फोडं पाटले ॥ण व चनें नर चढियो काल, काल्या मस्तकना मोबाल ॥७॥ पुरुष तणो तव करड्यो हाथ, कूटा कूटी थ जिम जात ॥ वढतां थाकां दोय जण जिस्य, पु रुष नूमि जश् सूतो तिस्यें ॥७॥ स्त्री महोटा घर नी दीकरी, रूपहीण करमें तस करी ॥ ते सूतीस खरे ढोलिये, घोरे सोय सुख निझा लिये॥॥ चोरें कौतुक दी घj, न लेउ ए नर फुःखीया तणुं ॥ बीजे घरेखातर जश् देह, गणिकानुं घर जाएयुं तेह ॥१०॥ कोटि पुरुषशुं क्रीडा करे, मधुर वचन मुख थी उच्चरे ॥ चोर कहे एहनुकोण लेह, धनका जे विडंबे देह ॥ ११॥ त्रीजे घर खातर दिये ज्यांहिं, ब्राह्मण सूतो दीगे त्यांहिं ॥ उंदरडो हाथे मूतस्यो, स्वस्ति शब्द मुखथी उच्चस्यो ॥ १२ ॥ ए लोजीर्नु कोण धन लेह, लेतां ना नवि नांखे जेह ॥ ए मर शे धन लीधा पनी, अडतां गुण बोली लिये खड़ी For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७१) ॥१३॥ असतीने कहे तुं महासती, निगुणीने जांखे गुणवती ॥ कायरने नांखे वड वीर, तुब पुरुषने कहे गंजीर ॥१४॥ दासीपुत्रने कहे कुलवंत, नर डाने नांखे नगवंत ॥ सोम पुरुषने नांखे कर्ण, अंध पुरुषने ऊपम तरणि ॥ १५ ॥ रंकतणे जांखे नर राय, मूरखने पंमित करी गाय ॥ पुर्जर पेट ते एणी पेरें जरे, याचक धन पापी हरे ॥ १६ ॥ तेणें न खेड ए बांजण तणुं, मुफ परमेश्वर देशे घणुं ॥ चोथे घर जश् खातर देह, तिहां नर नारी दोय वि बेह ॥ १७ ॥ नर कुरूप महोटानो जण्यो, करपी का मी ने अवगुण्यो ॥ लकण हीण वढे दिन रात, नवि बाजे नारी संघात ॥ २॥ नारी न्हानानी दीकरी,रूप अपूरव ते सुंदरी॥ पुखिणी सूती नूमि तेह, सूतो ढोलिये नर वली जेह ॥ १५ ॥ चोर कहे नूलो किरतार, सुंदर नारी जूमो जरतार॥पहे ले घर नारी वढकणी, रूपवंत सूंहालो धणी ॥२०॥ दाहाडी पोता काजें लेजं दाम, आज करुं हुं परनुं काम॥आ सुंदरीने मूकुं परें, तिहां कुहाड ते आणुं अरे ॥२१॥ अदला बदली कीधी नार, खातर बूरी श्राव्यो ठगर ॥सुंदर नारी नर सुकुमाल, जाग्यां For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) तव हरख्यां ततकाल ॥ २२ ॥ नर चिंते ए देवें फरी, रूपवती कीधी सुंदरी॥ लकण परगट वचन सुसार, सरव फखं तूगे किरतार ॥३॥ नारीयें नर निरख्यो ते सरूप, किहां गयो ते पापी कुरूप ॥वच न विनय श्रा नरमा बहु, दैवें दूषण टाट्युं सहु ॥२४॥ बेहु नर नारीनां मन मिल्यां, पढ़ें बेहु लुगा सल सत्यां ॥जाग्यो नरने निरखी नार, तु रंमा केम श्राणे गर ॥ २५ ॥ विंगणरंग जिसी उजली, जल कोठी सरखी पातली ॥ नीची ताड जिसी तुं नार, क्याहांथी आवी मुऊ घरबार ॥ २६ ॥ न्हानुं पेट जिश्यो वादलो, लमो हीण जिस्यो कांबलो ॥जीन सुहाली दातडा जिसी, देखी अधर उंट गया खसी ॥२७॥ शनयणी श्रावी क्यांहथी, पखालजल की जा खप नथी ॥ पग पीजणीने वांका हाथ, बाव लशं कोण देशे बाथ ॥ २० ॥ लांबा दांत ने ट्रंकुं नाक॥Jटकनी मुख कडवां वाक्य ॥ढूंकी लटीयें घो घर साद, जा जृमी तुऊ किश्यो सवाद ॥णा बोली ग्रैमी रांमना रहे, अणहूता अवगुण मुऊ कहे ॥ ता हारं रूप तो वानर जिस्युं, तुं कोण जे मुझ कौतुक वस्यं ॥३०॥ वलगां दोय गयां दिवान, नारी कहे For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७३) नृप साचुं मान॥माहारो ए न होवे चरतार, रूपवंत ते हुँतो सार ॥३१॥ पुरुष कहे सुण राजा नोज, मुफ नारीनो करज्यो खोज ॥ ए नारी न होय मुक तणी, ए नवि दीनी कानें सुणी ॥ ३२ ॥ राजानोज विचक्षण घj, मूल न जाणे ते न्यायज तणुं ॥राजा कहे नर को गुणी, नरती करे जे ए न्याय तणी ॥३३॥ बेगे चोर ते सना मकार, अलंकार पहेस्या सुविचार ॥ बोल्यो न्याय करुं हुं एह, मुऊने एक वर माग्यो देह ॥ ३४ ॥ राय कहे वर दीधो सही, एक बोल करवो गहगही ॥ त्यारे चोरें सजा मकार, श्लोक एक कह्यो तेणें गर ॥ ३५ ॥ “ श्लोक॥रा जन् मया निशींजेण, परव्यापहारिणा ॥ लुप्तं वि धिकृतं कर्म, रत्नं रत्नेन योजित्तं ॥ ३६ ॥” दोहा ॥ विधातायें विरQ कियु, सरिखा सरिखं न कीध ॥जे फल दीधां तूंबडी, तेह अंब नवि दीध ॥३॥१५४७॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ सरिखे सरिखां मेल्यां दोय, पहेलां अहिअण मिलतुं होय ॥ नर कालो नारी फूटरी, रात दिवस पडतां ते वढी ॥१॥श्रा नारी घर सुंदर नाह, न्हानानो सुत ते कहेवाय ॥नारी महोटानी दीकरी, For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) वढती नरशुं सामी फरी॥२॥सर्वगाथा ॥ १५४ए। ॥दोहा॥ ॥ नर जलेरो शुं करे, जिहां घर नार कुनार ॥ शीवे दो अंगुलां, उ फाडे अंगुल चार ॥ १॥मांचे माकण घर अहि, जिण वन विखनी वेति ॥ रूगे राय कुनारजा, पांचे सूतां मेल ॥२॥ “लोक ॥ कुग्रामवासः कुनरेंजसेवा, कुनोजनं क्रोधमुखी च नार्या ॥ कन्याबहुत्वं च दरिता च, षड् जीवलोके नरकानि संति ॥३॥ सर्वगाथा ॥ १५५५ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ टाली नर सरखां कियां दो श्रण मिलतुं होय ॥ नर कालो नारी फूटरी, रात दिवस पडतां ते वढी ॥१॥श्रा नारी घर सुंदर नाह, न्हानानो सुत ते कहेवाय ॥ नारी महोटानी दीकरी, वढती नरशुं साहामी फरी ॥॥ एहने में उपाडी करी, महोटाने घर मूकी फरी। एहनी स्त्री न्हानानी धीय, न्हानाने घेर मूकी तेह ॥३॥ जो वर माग्यो मुझने देह, तो एम राखो खामी एह ॥ राय कहे तुं सबल सुजाण, तें कीधुं तें मुऊ परिमाण ॥४॥ सरिखे सरिखां निजघर गयां, जली कियां दोय, पहेला अहिं For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८५ ) जलो वे एकai रह्यां ॥ इण दृष्टांतें समजो सहु, आणो यो घर विमासी बहू ॥ ५ ॥ जो ऋण मिलतां ढुंतां दोय, जूजूए मारग चाव्यां सोय ॥ देखी चोरने ईर्ष्या, नूपें मिलतुं कीधुं सही ॥ ६ ॥ इस्या नाव सुणे नर तेह, पंकित पासें बेसे जेह ॥ घणुं जमे ने मो पडे, तेहने बोल ए क्यांथी जडे ॥ ७ ॥ सांगणसुत कहे हित शिक्षाय, सुणतां कुमति कदा ग्रह जाय ॥ न सुणे ते नर रहे निटोल, रुषज कहे उपगारी बोल ॥ ८ ॥ सर्वगाथा ॥ १५६० ॥ ॥ ढाल || चाली चतुर चंद्राननी ॥ ए देशी ॥ ॥ राग मल्हार ॥ घर तो जार सुतने दिये, करी आप परीक्षाय रे ॥ राज्य श्रेणिकने या पियुं, जिम प्रसेनजित राय रे ॥ घर तो जार सुतने दिये ॥ ए. कणी ॥ १ ॥ एकशो पुत्र बे रायने, घाट्या रडा मां रे ॥ सुखडी करं किया जल जरी, मूके राय वली त्यांहिं रे ॥ घर० ॥ २ ॥ म म बोडो करंरुनां ढांक यां, खाज्यो सुखडी वीर रे ॥ कुंज मुखमोर म उघाड शो, पीज्यो शीतल नीर रे ॥ घर० ॥ ३ ॥ १५६३ ॥ ॥ दोहा ॥ नित्य नरणुं ने जवो मुख्युं, ठाम न मूके ठेठ ॥ For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) मोडं वहेलुं मागशे, पापी. वलगुं पेट ॥ १॥ रुधिर मांस बल बुधि गई, काया तेहज ज्ञान ॥ एक दुधा आगे आवतां, गश् लज्या गयुं मान ॥२॥ ॥ ढाल ॥ तेहीज ॥ ॥मान मूकी सुत ऊठीया, खाधु कांश नवि जाय रे॥ बुद्धि दिये तब निर्मली,जाता श्रेणिकराय रे ॥ घर त णो जार सुतने दीये ॥ ए श्रांकणी॥१॥"लोक ॥ यस्य बुद्धिर्बलं तस्य,निर्बुद्धेश्च कुतोबलम्॥ वने सिंहो मदोन्मत्तः, शशकेन निपातितः " ॥२॥ बुद्धि श्रेणिक-तिहां आपतो, तले पाथरो चीर रे॥ सबल खंखेरजो करंमिया, जूको वावरो वीर रे॥१०॥३॥ मारता पाटु करंमिये,धंधोले बहु धीर रे॥ पेट जरी खाये सुखडी, पण केम पीये नीर रे ॥१०॥४॥ शालु तणी जे पजेडियें, वींटे कुंचने त्यांहिं रे॥ जल नस्यां वस्त्र ले करी, नीचो मुखमांहिं रे ॥ १० ॥ ॥५॥ तात उघाडतो उरडो, पूजे नूखनी वात रे॥ सुत कहे श्रेणिक जातथी, सुखीया सहु अमें थात रे ॥ ५० ॥६॥ माण श्रेणिक वखोडियो, खंखेरी क\ खात रे॥ तुमो सुत आण न लोपतां, नहिं उहवतां तात रे॥१०॥ ७॥ एक दिन नोजन कार For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (209) णें, बेसारया सोइ वीर रे ॥ कनक थालमां पीरशीयां, घृत खां ने खीर रे ॥ घ० ॥ ८ ॥ श्वान शिकारीने मूकिया, नाठा मूकी ते थाल रे ॥ श्रेणिक बुद्धि विचा रतो, देखी कूतरा काल रे ॥ घ० ॥ ए ॥ थाल कर एक कोलियो, मूके श्राप मुखमांहे रे ॥ पात्र उमाडी नाखतो, श्वान सघलां बे ज्यांहिं रे ॥ घ० ॥ १० ॥ श्वान वलगे ति थालिये, श्रेणिक कोलिया लेय रे ॥ थाल बीजो वली नाखतो, श्वान तो त्यां वलगेय रे ॥ घ० ॥ ११ ॥ एकेक कवल एम थालथी, लइ पढे नाखेह रे ॥ प्रसेनजितराय मनें जाणियुं, रा ज्यायोग्य वे एह रे ॥ घ० ॥ १२ ॥ राज्य श्रेणिकने पियुं, बीजाने दिये देश रे | आप संयम लीये तातजी, मूक्या सकल कलेश रे ॥ घ० ॥ १३ ॥ च तुर सांगता, जेम कांचली नाग रे ॥ मूर तें ख लगी रह्या जोगमां, जिम माखी घसती पाग रे ॥ घ० ॥ १४ ॥ अंजलि जल जिस्युं श्राउखु, लची गजतो कान रे || नदीपूर वड़े जोबनुं, जीव की जीयें शान रे ॥ घ० ॥ १५ ॥ समय न चेत्या जे वली, साध्यो नहिं परलोक रे || तेणें नव दोय वि पासिया, गयुं श्रजखं फोक रे ॥ घ० ॥ १६ ॥ इ For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) स्युंध जाणी नृप बंमतो, राज रमणी सुखलोग रे॥ राज्य श्रेणिकने देश करी, लीधो संयमयोग रे॥१० ॥ १७ ॥ शास्त्रना नेद ए ते लहे, सेवे पंमित पाय रे ॥ षन कहे हितशीखडी, सुणतां तो सुख थाय रे॥१०॥ १० ॥ सर्वेगाथा ॥ १५०३ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ सुख थाये तस अंगें घएं, उचित साचवे पु त्रज तणुं ॥ नगिनी जोजाई निज वहू, उचित एहनां साचवे सह ॥१॥ वदनी परीक्षा करी अपार, सों पवो निजघरनो जे जार ॥ जेम धन्नावे परीक्षाकरी, चार वह हंती तस खरी॥॥एक दिन ससरेकह्यो विचार, कोने देशुं घरनो नार॥परीक्षा काज तेड्यो परिवार, नक्ति करे त्यां कुटुंबनी सार ॥ ३ ॥ चारे वहु तेडी तेणी वार, पांच पांच कण शालिज सार॥ एकेक वहूने ससरो देह, मुफ थापण राखेजो तेह ॥४॥ मागुं तव मुऊ देजो मली, सुणी वचनने चारे वली ॥ वाटे वडीयें कस्यो विचार, गरढां अकल न होय निरधार ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ दांत बत्रीश खशी गया, नयणे दीधो दाय॥ For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१ए) काने मांमयां रूषणां, गयो जब जोबन राय ॥१॥ मुंगर डंगर हुं नमी, वन वन जोऊ माय ॥ जडी एक न पायें, जेणें जोबन स्थिर थाय ॥२॥श्रा णंद कहे परमाणंद, नर नमिया ते काय ॥ जेणे वाटें जोबन गयुं, पगलां निहाले त्यांय ॥३॥ श्रावी सोहागण लकडी, हम तुम थयो पीयार ॥ जे कुब था सो चल गया, तुऊ शिर दीना नार॥४॥श्रावी सोहागण लकडी, तुफ विण आगल शून्य॥जे दाहाडा तुफ विण गया, ते वासर मुफ धन्य ॥ ५ ॥ जरा धूतारी धोबणी, धोया देश विदेश ॥विण पाणी विण पबरें, उजाल कीधा केश ॥६॥ सर्व गाथा ॥१५॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ उजालकेश जिवारें थाय, जरा श्राविने यौव न जाय ॥ गति मति बल तस उढुंज्ञान, जाये शान अने वली वान ॥१॥ घरघरणी बेठी घरघरे, लोक घणां ते हासी करे ॥ प्रायः केण न माने कोय, हाथ पाय शिर भ्रूजे सोय ॥२॥ जरातणां लकण ए जोय, वृक्ष हु मुझ ससरो सोय ॥ दाणा पंच शालिना जेह, लोक देखतां दीधा तेह ॥३॥ श्रा गल जातां नाखी दीध, वली विचार बीजीयें कीध ॥ For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ससरे हित करी थाप्या एह, पण साचवतां दोहिला तेह ॥४॥ फोली खाधा तेणी वार, त्रीजी वढू त्यां करे विचार॥पोतानुं शय्या घर जांहि, मूके जश ते माबडा मांहि ॥५॥ चोथीनी बुद्धि अति घणी, दाणा मोकल्यां पीयर जणी ॥ एक अलगो लाश क्यारो करी, रोपेजो पंच दाणा व्रीहि ॥६॥उगेते अलगा राखजो, आगल फरीने ते वावजो ॥ पहेले वरसें श्रधवाली थया, बीजे वरसें श्राप दश कया ॥ ॥७॥ त्रीजे वरसें दोय हजार, चोथे वरसें तो वृ कि अपार ॥ पांचमे वरसें नस्या कोगर, लख्युं बे नने कही जूहार ॥ ॥ एणे अवसरें ससरे शुन परें, कुटुंब आपणुं तेड्युं घरें ॥ वहूरो चारने तेडी करी, दाणा पांच माग्या ते फरी॥॥ प्रथम वडी पांच दाणा देह, ससरो कहे नवि होये तेह ॥सम देश्ने पूरे जिस्ये, ए न होय वढू नांखे तिस्थे ॥१॥ शुं कीधुं कहे में नाखिया, उःख लागुं ससरो खीजी या॥ एहथी वडुं न लेलं नाम, नाखवा तणुं जला व्युं काम ॥ ११॥ वेगें तेडी बीजी वह, माहारी थापण लावो सहु ॥ दाणा पांच श्राणीने देह, कहे ससरो जूआ के तेह ॥ १५ ॥ खामी ते में खाधा For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सही,तव ससरे तस मी कही ॥ पहेलीथी ए रूडी घणुं, काम नलाव्युं खावा तणुं ॥ १३॥ त्रीजी वह कने मागी बीहि, बोडी गांठ दीधी ते सही॥ रूडी सासरे नांखी तिस्ये, राखवा सरव नलाव्यो श्स्यें ॥ १४ ॥ चोथी तव तेडी रोहिणी, माग्या दाणा वहूअर नणी ॥ वढूअर कहे श्म नावे सोय, तो श्रावे गाडां सय दोय ॥ १५ ॥ गाडां मोकल्यां पीयर नणी, आण्या घर जिहां ससरो धणी ॥ सस रे ख्याति करी नलि वह, वडी करी तस सोंप्यूं सह ॥ १६ ॥ तुं उघनियुक्तिमा जोय, एह कथा कहि तिहां किणे सोय॥ जिन शिष्यने जांखे उपदेश,जुर्ड जावना तिहां मिलेश ॥१७॥शेठ परें यहां गुरु होय, तिहां कुटुंब यहां संघ जोय ॥ जिम वहु तिम शि ष्यनो संच, पंच शालि ते वरतज पंच ॥ १७ ॥ जेणे वधास्यां व्रत वली जेह, हुआ गीतारथ जगमां तेह ॥ जेणे राख्यां ते सूधा यति, गरढाने वांदो गुणमती ॥ १ए ॥ जेणे खाधां पांचे वरत वली, वेषधारी तस कहे केवली ॥ खावा माटें राख्यो वेश, नवि मान्यो तेणे हित उपदेश ॥२०॥ जे व्रत पांचे नाखी गया, तेह पतित नर फुःखीया For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) थया ॥ जिम ते उनिया पहेली बहू, नांखे घरनुं एवं सहु ॥ २१ ॥ खाधावती सोंप्यं रांधणं, त्रीजी रखियाने राखणं ॥ चोथी रोहणीने घरनो जार, वधारतां आचारज सार ॥ २२ ॥ ए दृष्टांत सुणी शुभ शिखी, धर्म वधारे सूधो कृषि || लोढी वहूनी पेरें वली, तेह तणी मन इछा फली ॥ २३ ॥ करी परीक्षाने सोंप्यो जार, अन्यपुरुषने एह प्रकार ॥ सांग सुतहित शिक्षा कहे, सुणे सोय एक ध्यानें रहे ॥२४॥ ॥ ढाल ॥ गुरु गीतारथ मारग जोती ॥ ए देशी ॥ ॥ एम वहू सुतनी परीक्षा करीने, सोंपे घरनो जारो ॥ सुत शिष्यने प्रशंसे मोढे, होये निमान पारो हो ॥ विका, सांजलजो हित शिक्षा ॥ १ ॥ ए कणी ॥ श्रीदेवगुरुनी मुखें स्तुति कीजें, मित्र नाई नी पूंठे ॥ सेवकना मुख उपर कीजें, सुतनी न करे जूठे हो ॥ ज० ॥ २ ॥ स्त्रीनी स्तुति करवी स्त्री यागें, जेम नर जगति करेय || राउलमांहे जाय पिताजी, पुत्रने पूंठे लेय हो ॥ ज० ॥ ३ ॥ देश विदे शनी वात सुणावे, तेणें सुत माह्यो थाय ॥ सकल विद्या सुतने शीखवजे, जेम बेतस्यो नवि जाय हो ॥ ज० ॥ ४ ॥ उचित सगानुं सवि साचवीयें, पगर For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९३) ण होय तव तेडे ॥ जूहार व्यवहार सन्मान साच वीयें, तेडे दूरथी नेडे हो ॥ ज० ॥ ५॥ श्राप सु खीने साजन दोहिलो, तो तस सुखीयो कीजें ॥ नहिं कर हीनपणुं आपणने, लाजें नाम ते लीजें हो ॥ ज० ॥६॥ लोकमांहे निंदा पण लहियें, सुण ध्वजनो दृष्टांतो ॥ देव विमानदंग उपर ऊंचो, बेसी त्यां नाचतो हो ॥ ज० ॥ ७ ॥ कहे कविता जुंनी गुं कूदे, वंशे करे बाया ॥ अन्य पुरुषने शकि देखाई, निज कुलना होये जाया हो ॥ जण ॥७॥ श्ण दृष्टांतें समजो पुरुषो, श्रावो साजन कामें ॥ साजन सोय कह्यो जगमांहिं, आवे एटले गमें हो ॥ ज० ॥ए॥ दौर्जिय श्राकरे व्यसने पडियो, शत्रु ने संकटें पासें ॥ राजनुवनें समशाने पासें, साजन त्यां नवि नासे हो ॥ ज ॥१॥ स्या जनने सुखी या कीजें, जाणे श्राप उझारो॥अरहट न्याय जिस्यु घन जाणे, खाली थतां नहिं वारो हो ॥ ज० ॥१९॥ हुँ डकार करुं जो एहनो, एढ करे मुझ कामो॥सर खो काल न जाये कहेनो, जु पांमव हरि रामो हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ कार्य करे पंच साजन पूढी, रुषज कहे हितशिक्षा ॥श्रांगुलीनो दृष्टांत न जाणे, हि. १३ For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) ते नर मागे निदा हो ॥ ज० ॥ १३ ॥ १६३१ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥शीख एक देऊ सुण वली, एक दिन कहे तर्ज नी गांगुली ॥ ढुं सघलामांहे बुं वडी, लिखित चित्र कामिक रूयडी ॥१॥ मध्यम कहे हुँ महो टी खरी, जे सघला मांहे उंची करी ॥ संकेत चाप टी वालं तांत, मध्ये बेसुं हुं ऊंची पांत ॥२॥थ नामिका कहे जूतुं एह, तुं लोको शिर टाकर देह ॥ नंदावर्त पूजाने काम, हुं श्रावु शुजकारज गम ॥३॥ वास वारि बेहुश्मंतरु, बीजां काम घणां पण करुं ॥ कहे कनिष्ठा बेठी रहे, सर्व काम कांश तुं नवि लहे ॥४॥ सूक्ष्म काममां मुझने मान, करुं जाप खणुं हुं कान ॥ कष्टं लोही श्रावे काम, अनामिका बेठी रहे गम ॥ ५॥ तव बोली चारे श्रांगुली, श्याने वाद करो जो वली॥ श्रापण चारे बहेन्यो सार, अंगूगे खीज्यो तेणि वार ॥६॥ जूमी तमो मुफ घरनी नार, पुरुष विना शूनो संसार । नारी घणीयें न होये काज, पुरुष तणी सहु माने लाज ॥७॥ हुँ अंगूठगे नर अवतार, संघपतिने ति लक करनार ॥ तीर्थंकर मुफ धावे सही, राज्याभिषे For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) क करुं गहगही ॥ ॥ सनामांहे राख्युं में नीर, गौतम तणी वधारी खीर ॥अंगूठे गुणतां नवकार, तेह मुक्ति पामे निरधार ॥ ए ॥ पशली कोलियो रज मूकवी, मुष्टि वालवी न होय तुम थकी ॥ शस्त्र गांठ कांटो काढवो, सघले कामें वडो हुँ हवो ॥१०॥ चोशठ सहस जे अंतेउरी, वारांगना त्यां बमणी करी॥सघली जरत तणी किंकरी, अनेक नारी एक सरगें हरी ॥ ११॥ सहस हाथणीमां एकज करी, जुए पुरुषने सघली खरी ॥ एम दृष्टांत अनेरा जोय, अंगूठगेज वडेरा होय ॥ १२॥ बोली तव चारे शांगुली, फोकट वाद करो शुं मली॥ एक ले कोणें कांयें न थाय, पांचे पहोंचानी शोजाय ॥ १३ ॥ ते माटें नर जाजा मली, करे काम होय निश्चे वली ॥ सांगणसुत हितशिदा कहे, सुणे सोय उघंतो रहे ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ १६४५ ॥ ॥ ढाल ॥ एणी परें राज्य करंता रे॥ए देशी ॥ ॥राग गोडी ॥ तजी जंघ सुणो संत रे, हित शिक्षा कडं ॥ उचित साचवो गुरुतणुं ए ॥१॥ वंदन ते त्रण काल रे, जक्ति करे स्तवे ॥ कर्मकथा नित्य सांजले ए ॥ पडिकमणुं गुरु संगें रे, शिर For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९६) वहे श्रागना ॥ न करे निश्चे अवगणा ए॥शा गुरुने दिये बहुमान रे, स्तुति परगट कहे ॥ ढांके मा बो लतो ए॥३॥ मिथ्यात्वी नर कोय रे, करतो अव गणा ॥ वारे सर्व शक्तं करी ए ॥४॥ कुमारसंभव मांहि रे, त्यां पण एम कयु ॥ निंदकने वारे सही ए ॥५॥एक दिन ईश्वर ध्याने रे, बेगे वनें जई॥नारी कहे वर किहां गयो ए ॥६॥ वनमां चाली ताम रे, जोती वर तणे ॥ दीगे ध्याने नर रह्यो ए॥७॥ विकूरवियो वसंत रे, शंकर तव जूवे ॥कुण चला वा आवियो ए॥७॥ दीठी नारी ताम रे, राग थयो बहु ॥ पारवती पाबी वली ए ॥ ए॥ हृदय विचारे ईश रे, जो मुझ उपरें॥ राग किस्यो नारी तणो ए॥ १० ॥ धघु बटुकनुं रूप रे, उमयाघर गयो ॥ बोले नूंहुं ईशनु ए॥११॥ सर्वगाथा ॥१६५६॥ ॥बप्पय ॥ ॥ ईश न पूजो देव, हुवो नितीनो रागी ॥ जोरु आगेनाचि, हुई सो बडो अजागी॥अफिम उर ब नाग, जंग बहु खावे नंगी ॥ जोगी कहावे आप, पूजावे लोककुं लिंगी ॥ काम जलाया जग कहे, त्रिया बिना नहिं एकलो, संघवी ऋषन एम उच्चरे, For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१ए) ईश देव नांही जलो ॥१॥ सर्वगाथा ॥१६५७ ॥ ॥ ढाल ॥ तेहीज ॥ ॥ वारे नारी ताम रे, लव नवि कीजीयें ॥ गाल न प्रजुनें दीजीयें ए॥१॥ वास्यो न रहे तेह रे, उमया उठता ॥ जश्ने दासी मोकला ए॥५॥ एहने हांकी काढ रे, करतो अवगना ॥ शंकरनी निंदा करे ए ॥३॥ निंदकने होय पाप रे, तेहमां शुं कहे, ॥ पण सुणतां पातक सही ए ॥४॥ए उमयानी वाणी रे, सुणि निवारीयें ॥ गुरुना अव गुण बोलतो ए॥५॥ वारी न शके जोय रे, श्रव णे नवि सणे ॥ बिन जुए गुरुतणां ए॥६॥ गुरु सुखें सुख होय रे, उःखें उःख लहे ॥ कहे ते करे गुरुनु कयु ए॥७॥ एम उचित गुरु सार रे, श्रावक जे करे ॥ सांगणसुत कहे ते तरे ए ॥ ७॥१६६५॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥तरे जीव संसारी तेह, शासनविरोधने टाले जेह ॥ साधु वडा, प्रत्यनीकपणुं, करतो वारे तो पुण्य घणुं ॥ १॥ जेम सगरें कीधी बहु सार, पूर्व नवें हुँतो कुंजार ॥ मानव सुंदर शाठ हजार, यात्रा काज चाल्या तेणि वार ॥२॥ चोर लूंटवा जव्या For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) जिस्ये, सगर जीव ते धायो तिस्ये॥घणा पुरुषने पूलेह, तस्करगुंते जश्व वढेह ॥३॥ नागा चोर गया उसरी, सुखें जातरा संघे करी॥ एम श्रागम गुरुनो प्रत्यनीक, वारे वेगें न गणे बींक ॥४॥ राय जणी जो जावू थाय, तो दश पुरुष मलीने जाय ॥ अण मिलतो जाये एकलो, तो कूटाये गाढो जलो॥५॥ घणां रांक मली करे काम, जय पामे तस वाधे माम ॥ सुण दृष्टांत घणा तणखलां, मली बांधे गजयूथज जलां ॥ ६ ॥ संप विना सिसि क्यां नवि थाय, नारंग पंखी सुणो कथाय ॥ उदर एकनें माथां दोय, युगल जीव तिहां कणे होय ॥७॥ बेहुने फलनी श्वा हती, बेहुए चाले एके चित्ति ॥ ज्यारें बेहु बेचिंता थाय, ततदण दोव मरीने जा य॥ ॥ण दृष्टांतें संपें सुखी, मरम प्रकाशे थाये फुःखी ॥ वाल्मिक उदर सर्पनी परें, मरे मरम प्रगट ते करे ॥ए॥वसंत पुरे एक वाल्मिकराय, ज्यारें जल पीधुं एक दाय ॥ नाहानो अहि उदरें आवियो, मांहिंथकी वाधे ते जीयो ॥ १० ॥ पेट वध्युं तव राजा तणुं, अंगें वेदन वाधी घणुं ॥ नूपें अन्न न खायूं जाय, दूध शाकरें शाता थाय ॥११॥ For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) वाध्यो सापाने वेदना, नृप मरवा हुआ एक मना ॥ नगरबाहेर गया तेणी वार साथै राणी बहु परि वार || १२ || निशा समय सूतो वनमांहि, निजराणी. पासें बे त्यांहिं ॥ रायवदन जव पहोलुं करे, तव मणिधर बाहिर नीसरे ॥ १३ ॥ न्यग्रोध तले एक बीजो. साप, मल्या एकता बिहुये साप ॥ वाल्मिक उदर स पैने कहे, कां तुं राय उदरमां रहे || १४ || निकल बाहिर नृप थाये सुखी, पृथवीपतिने म कर दुःखी ॥ सर्प कहे नवि मूकुं गर, शाकर दूध पामुं नित्य सार ॥ ॥ १५ ॥ त्यारें मर्म प्रकाशे साप, सरु मल्यो नी तु आप ॥ विषकोचलां जो तुमने पाय, तो तुं महीकोही जाय ॥ १६ ॥ उदर साप बोल्यो आरडी, तुकने न मख्यो को गारुडी ॥ ऊनुं तेल बि लमांदे धरे, मरे तुंहि कढा करी करे ॥ १७ ॥ मर्म प्रकाशे मांहो मांह, राणी जागे सुणती त्यांह ॥ वा हाणे षड बेन करे, सर्पयुगल सहि क्षणमां मरे ॥ १८ ॥ नागे राय तपो तिहां रोग, नूपति पूबे औषध योग ॥ राणी कहे मांगीने वात, सर्प दोयनो को निपात ॥ १९ ॥ राय कहे तुं चूकी आप, कां मारयो उपगारी साप ॥ पण राणी नहिं ताहा For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) रो वांक, शास्त्रमांहि अडे श्म श्रांक ॥२०॥ मर्म प्रकाशे मांहोमांहिं, तेहने जय नवि. होये क्यांहि ॥ नाग तणी परें पामे मरण, राजा प्रव्य करे तस हरण ॥२१॥सं वाधे सखरो रंग, आप वरगनो न तजे संग ॥ जो पोतें धन जानुं होय, निर्धनने नवि मे सोय ॥ २२ ॥ एक दिन चोखे धरी अनिमान, फोतरांने दी● अपमान ॥ श्या कामें श्रावो फोतरां, मुझने मूकी जा परां ॥३॥ तुम जाते मुफ वाधे लाज, माथे वेश् चोडे वरराज॥ जिनवर आगल मुऊने धरे, गुरु आगल जगहूंली करे ॥२४॥ शकुन जुवे मुफ हाथे करी, बलि वेश जाये थावे जरी ॥ सजन जमतां मूके थाल, तेणें फोतरां मुफ संगति टाल ॥ २५ ॥ बोल्यां फोतरां सुण चोखाय, श्रमो करूं ताहारी रक्षाय ॥ अम श्री अलगा थाश्यो जदा, घणां मूशलां खाशो तदा ॥६॥ घरटीमांहे घालीने दले, चरुवामांहे चूले जश बले ॥ काचा चावल बोले जलमांहि, अम मूके फुःख तुमने प्राहि ॥ २७॥ चोखा कहे शी करो जगाट, तुमो जाउँ तुमारे वाट ॥ त्यारें फोतस्यां खोज्यां बहु, देशरापने चाल्यां सहु ॥ ॥ नसं For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (०१) तान जाउँ तुम तणुं, तुम संतान म होजो जणुं ॥ वचन फोतरांनुं त्यां थाय, वाव्या नवि ऊगे चोखा य ॥ए ॥ श्ण दृष्टातें सुणजो सहु, संपें रहेतां सुख लहे बहु॥आप वरगने मेजेह,चोखापरें कूटा ये तेह ॥३०॥ को एक समय जल परबत धरा, फा डे पाले पर आकरा ॥ को एक समय बहु तर णां मली, बांधे ने जो जलने वली ॥३१॥ ए ह टांत ते हियडे धरो, श्रावक एकगं रहेQ करो ॥ वर्गमांहि वढो म म कोय, सजन उचित साचव यूँ जोय ॥३२॥ उचित हवे अन्य दरिसण तणुं, कांक वित्त आपे श्रापणुं ॥ नूपति माने वली जेह ने, विशेष थकी श्रापे तेहने ॥ ३३ ॥ किंचित् दा न तो देवू खरे, नमस्कार तेहने नवि करे ॥ तेहनो पक्ष करे नहिं कदा, कहेतां अनुमोदन होय सदा ॥ ३४ ॥ गुण नवि बोले तस गहगही, घरे श्रावे तो आपे सही ॥ मीतुं बोले श्रासन देह, एम उचि त तेहy साचवेह ॥ ३५ ॥ करे चोलणा शिष्य उ चरे, सूधो श्रावक ए किम करे ॥ गुरु कहे ए डे जलो उपाय, जैनधर्मने साहामो थाय ॥३६॥ एणे दृष्टांतें देवु सही, वीर वात करीने कही। सम For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ( २०२ ) कितदृष्टिनुं ए लिंग, उचित उपरें राखे रंग ॥ ३७ ॥ चोमासें श्रालस परिहरे, अष्टप्रकारी पूजा करे ॥ नित्य नैवेद्य करे सुसार, विनैवेद्य करे नहिं आहार ॥३८॥ चोमासे दीपक दिन शिरें, अष्ट मंगल देहेरामां करे ॥ चाले तो नित्य मुनिने देह, पोतें पण ते श्राहार करेह ॥ ३९ ॥ नहिं कर पवें दीये ते जला, वरषमांहि दिव सकेटला || श्री देव गुरुनी जक्तिज करी, पढें आ हार लिये परवरी ॥ ४० ॥ चाले तो नित्य करे स नात, नहिं कर मासें वावरे हाथ ॥ एक सनात वरसें पण करे, ध्वजा चढावे ते नर तरे ॥ ४१ ॥ चाले तो नित्य पूजे प्रासाद, चोमासें म करो पर माद ॥ नहिं कर वरसें केटलीक वार, पूजी पामे न वनो पार ॥ ४२ ॥ वालाकूंची वस्तर धरे, चाले तो नित्य दीवो करे ॥ धूपादिक देहरे मूकीयें, धर्मामें नर नवि चूकीयें ॥ ४३ ॥ नोकरवाली नें चरवला, पोशालें मूको ऊजला ॥ पाट पाटला पोतें करे, ध र्मामें पंतां तरे ॥ ४४ ॥ प्रजावना संघवात्स ल्य करे, केटलो एक काउस्सग्ग नित्य धरे ॥ त प सफाय करे पच्चरकाण, सचित्त तजे ते पंक्ति जाण ॥ ४५ ॥ धाणा जीरुं श्रजमो धान, राई Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०३) सूश्रा सचित्तनुं मान ॥ वरियाली खसखस फल पान, खारुं खूण तजे जो शान ॥ ४६ ॥ खारं रातुं सैंधव जेह, संचलादिक अकीधां जेह ॥ माटी खडी वरणादिक जोय, सचित्त दातण नीलां होय ॥४॥ गहूंथ पलायो सचित्त संजाल, मग चणादिक केरी दाल ॥ मिष्ट होय ते नहिं श्रावती, सोइ न व होरे साचो यति ॥ ४ ॥ लवणादिक पट देई क री, उकालतां श्रचित्त होय फरी॥ वेलूयें शेक्यां अचित्तज हुवां, बाकी मिष्ट सहू जाणवां ॥ ४ ॥ उला लंबी ने वालोलिया, एह सचित्त म जरो कोलि या ॥ शेकी पापड शेकी फली, लवण विना सचि त्त ए वली ॥५०॥ चिनडा प्रमुख वधास्यां जेह,म रियातां रास्तां तेह ॥ मीतुं दीधुं ते पण मिष्ट, जे न लिये ते जननो इष्ट ॥५१॥ रुषन कहे हित शिक्षा सही, श्रावक जनने काजें कही। वली एक कडं उपदेश, सुखीया जनने श्यो उपदेश ॥ ५५ ॥ ॥ ढाल ॥ जिम सहकारें कोयल टहके ॥ ॥ए देशी ॥ ॥नर परदेशे म जाशो कोश, धर्म काम सीदाये दो॥ संदेह अर्थ तणो सही ए ॥ १॥ अहिं नवि सूजे For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०४) जास उपाय, ते नर जो परदेशे जाय ॥घणो काल त्यां नवि रहे ए ॥॥ चोमासे रहे एकज गमें, श्रावक न जमे गामो गामें॥ होये जीव विराधना ए ॥३॥ पोते पण नर दोहिलो थाय, लागे वृष्टिने सबला वा य॥ टाढें हाडां खड खडे ए॥४॥ मारे फूकणी दोहि लो थाय, नदी उतरतो जाय तणाय ॥चूके धनने ध मथी ए ॥५॥ तेणें कारण चाले जेहनें, शेषो काल जलाव्यो तेहने ॥ चंज वार जोश् चालजे ॥६॥गु रुवारें नर गमन न कीजें, दक्षिण दिशिये पाय न दीजें ॥ दिशाशूल होये तदा ए ॥७॥ सोम अने वलि शनिश्चर वार, पूरव पासें म करे विहार ॥ बुध मंगल उत्तर नदिए ॥॥ हवे शुक्र ने आदित्य वार, पश्चिम पासें गमन असार॥काज न सीके चिंतव्यु ए ॥ए ॥ जरुर चालवू होये जारें, एक उपाय करे नर त्यारें ॥ सुखड टीळ श्रादित्यें ए॥१०॥ सोमें दहिनुं तिलक बणावे, मंगलें मांटीनुं मन नावे॥बुधे टीतुं धृत तणुं ए ॥११॥ लोट तणुं टीबुं गुरुवारें, शुकें तेल तणुं करी त्यारें ॥ शनिवारें खलनुं करे ए ॥१॥चं मंगल साहामो ते चाले, जिमणो मूक्यो बहु सुख आले ॥ नेद कहुं हवे तेहनो ए ॥१३॥मेष For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०५ ) सिंह धन राशि विचारे, एणि राशि होये चंद्र जिवारें ॥ शशि मंगल पूरव दिशें ए ॥ १४ ॥ वृष राशि क न्या ने मक्कर, त्या दक्षिण दिशि ते शुनकर ॥ मंगल त्यांहिं मयंकनुं ए ॥ १५ ॥ मिथुन तुला त्रीजी कुंन राशें, पश्चिम दिशें रहे चंद्र श्रावासें ॥ घर साहामुं कनुं चाल ए ॥ १६ ॥ कर्कराशि वृश्चिक ने मीन, इस राशियें होये सुकुलीन ॥ शशिमंगल उत्तर दिशें ए॥ १७ ॥ मावो तथा पूंग्नो चंड, प्रवेशनो न करे श्रानंद ॥ गुण वाधे नर समजतां ए ॥ १८ ॥ शनि शुक्र ने सोमवार, साडा आठ पगलां जरी सार ॥ गमन फले तस प्रति घणुं ए ॥ १५ ॥ श्रादित्यें प गला अगीयार, बुद्धे आठ मंगल नव सार, साडा सात गुरुवासरें ए ॥ २० ॥ चोघडीयानो करे विचार, जो गिनी चक्र जुवे वली सार ॥ जोजन दहिं करी चाल बुं ए ॥ २९ ॥ श्रीदेव गुरु वंदीने चाले, कांइक मा गण जनने ले | दानें दारिद्र कापीयें ए ॥२॥ जोजन करे जोई शुभ ामो, प्रथम करे वली पुण्य नां कामो ॥ जोजन करे नर देई करी ए ॥ २३ ॥ याचक जन दोहिलांने आापे, नलो आहार शुन स्थान थापे ॥ मुक्तिपंथ नर ते लहे ए ॥ २४ ॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) दीन दीण जोगी संन्यासी, कडी कापडी ने मठवा सी॥अन्नदान तस दीजियें ए ॥३५॥ तेहy कुल न वि जुए जाति, तपविद्या धर्म पूजे म ज्ञाति ॥ यथा योग्य तस दीजियें ए ॥२६॥ एणी पेरें पंथें जोजन कीजें, अणसमजे घर नवि सूईजें ॥ वणज करे व्यवहारनो ए ॥२७॥ जला पुरुषने वस्त वहो रावे, धन उपार्जी वहेलो श्रावे ॥ रुषल कहे हित शीखडी ए ॥ २७ ॥ सर्वगाथा ॥ १७४५ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ नवि दीजें बहुइजिय फुःख, अति लाली नवि की जें सुख ॥ धर्म अर्थ काम जिहां नहिं, सोय काम म करजो कहीं ॥१॥ विषमुं श्रासन पुरुषने बार, म कर कुचेष्टा सना मकार ॥ घणो म लेजे माले नार, सांकें म करीश दहिनो आहार ॥२॥ चंड सूर्यनुं ग्रहण म जोय, व्यंतर बल पाडे सहि कोय ॥ मम निरखे गर्नवंती सोय, बालक ग्रहणे घेलो होय ॥ ॥३॥ म म चांपे तुं पाये पाय, खणे नूमि अपल कण थाय ॥ पगें करी म म सोजो धूल, ए अप लकण महोटुं मूल ॥४॥ मैथुन लण ने निझाय, मकर सवार पामत राय ॥ संध्याकाबाहार, For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) चारे बोलनो कडं विचार ॥ ५ ॥आहार करंतां होये रोग, क्रूर गर्न करंतां जोग ॥ निसा करतां ल खमी जाय, मरण दोष आपे ससाय ॥६॥ तेणें कारणे चारे परिहरे, सांक समय पडिकमणुं करे॥ धूवे पाप दिवसनां सहू, वली पुण्य पोतें होय बहु ॥७॥ गुरु समीपें श्रावी पडिकमे, घडी दोय शुन ध्याने रमे ॥ मुसा त्रणनो जाणे नेद, आलस-अंग थी करे निषेध ॥ ७॥ वली खमासण दीये पंचां ग, जो पडिक्कमणां साथें रंग ॥ रजोहरणो उछाल मुहपत्ती, अलगी न करे ते मुहथी ॥ ए॥ उज्ज्व ल पाडुंज अखंम, नहिं संधीयुं नहिं त्यां दंग ॥ करि पडिसेहण पडिकमणुं करे, अर्थ सूत्र तणा म न धरे ॥ १० ॥ सुणे स्तवन पोते पण कहे, लागी लय तो पातक दहे॥सुणतां कहेतां होय कषाय, तो पातक बांधी घर जाय ॥ ११ ॥ शांति गुणी क रवो सनाव, पोरसी सांजलीने घर जाय ॥ए हितशि क्षा षनें कही, सांऊ समय पडिकम, सही॥१२॥ ॥ ढाल ॥ कुंगरियानी देशी॥ ॥ सांऊ समय रे दीवो करे, मांगलिक होये तस घरे रे ॥ दान स्नान देव पूजवा, नहिं ते निशि न For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) रें रे॥ सांऊ लमय रे दीवो करे ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ जोजन तेह रातें नहिं, नांगो खाटलो मूके रे॥ मां कड जूयें मूंजे जस्यो, रखे सुश्रतो ढुंके रे ॥ सांग ॥ ॥२॥ खाटलो वांशनो वर्जजे, वव्यो ज्यांहिं बहु मेल रे ॥ बल्यो अशल्यो ने काथे जस्यो, सूए ते नर घेल रे ॥ सांग ॥३॥सबल त्रूट्यो ने कोलोथयो,नथि जिहां पांगेत रे ॥ पाथस्या विण नवि पोढियें, सुणो पुरुष संकेत रे ॥ सां०॥४॥रूछियो राय कुनार जा, घरे अहि विषवेली रे॥ जेहमांचे जस्या मांकडा, नर तेहने तुंमेल रे॥सांग ॥५॥ कनक चंदन तणो ढो लियो, वली शीशम सागरे॥हीरनी पाटें तेह जस्यो, पामे पुरुष महाजाग रे॥ सां०॥६॥केश रूथ हीरें जरी, इसी गोदडीज्यांहिंरे॥अतलशलास उशीशडं, सुवे पुण्यवंत त्यांहीं रे॥सांग ॥७॥पाय तले रे तकियो धरे, जलां फूल बहु धूप रे ॥ रेशम गालम शूरियां, जून पुण्य सरूप रे ॥सां० ॥ ॥ मोरना पिबना वीजणा, चामर त्यांहिं ढलाय रे॥गाहा शलो क कहे सुंदरी, चांपे प्रेमशुं पाय रे ॥ सांग ॥ ५ ॥ पोढ्या पुरुष ते मालिये, वाये चिहुंदिशि वाय रे ॥ शानु असारनां पहेरणां, शाकर दूध कढाय रे ॥ For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०ए) ॥ सांग ॥१०॥ चंदन अंगें विलेपना, पासें शीतल नीर रे ॥ ऊष्णकालें सुख जोगवे, नारी पहेरण चीर रे॥सां० ॥ ११॥ कनक प्याला कूपा काचना, श्रा रीसा बहु थाल रे ॥ केशरपाक पण वावरे, श्रा व्यो मेघनो काल रे ॥ सांग ॥ १२ ॥ शीदने पाय जोयें धरे, शय्या उपर वास रे ॥ पुण्यवंत खाट पा म्या इसी, पहोंचे श्रातमाश रे ॥ सांग ॥ १३ ॥ बांधिया रेशमी चंडवा, दीवा तस वली दोय रे ॥ देवनां सुख नर ए सही, सरगने कोण जोय रे ॥सांग ॥ १४ ॥ अगरने तापणे तापता, चूा तेल धूपेल रे ॥ रेशमी शिरखो उढता, जूर्व पुण्यना खेल रे ॥ सांग ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ १७७२ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ तेल तलाई ताप, तप्त आहार तंबोल ॥ त डको तरुणी शीतकाल, सात तत्ते कबोल ॥२॥ चंद चीर चंपक चरण, चंदन चतुर कुवार ॥ चतुरा स्त्री ग्रीषम रुतें, सात चच्चा जग सार ॥२॥ पय पीतां बर पाउका, पत्र पूर्ण घर पुराण ॥पाक चोमासें पा मिये, पुण्य तणुं एंधाण ॥३॥ सर्वगाथा ॥ १७७५ ॥ हि० १४ For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ॥ ढाल ॥ चेतन चेत रे प्राणीया ॥ तथा ॥ ॥ चाल चतुर चंजाननी ॥ अथवा ॥ वाल ॥ ॥म वदेखेरा श्रावजो॥ ए देशी ॥ ॥पांचे अंगुळे पूजीया, गुण जिन तणा गाय रे॥ दान दीधांजेणें दीपतां, लहे लोग शय्याय रेसेजना नाव सहु सांजलो॥१॥ए आंकणी॥ जीव जाणी नवि राखीया, करे परनी निंदाय रे ॥ परघरैवाढताजांखरां, अणुश्राणा उजायरे ॥से॥२॥ दत्त विना रे दुःखी या जमे, होंश सांजले थाय रे ॥ हाथनी खाटली दोहेली, इसी क्याहिं शय्याय रे ॥ से ॥३॥सेज टाले घणा दोषने, कफ पित्त वली वाय रे ॥ अन्न पचे तन निर्मj, थाक ऊतरी जाय रे ॥ से॥४॥ घोडले पाय न दीजीयें, न सुश्ये पग हेवरे॥नगन पणे सूए मूरखा, दरिखी थाये नेउ रे ॥ से॥५॥ पूर्व दिशें शिर कीजियें, वली कीजें दक्षिण शीश रे॥ विदिशि चारे जोई परिहरो, लहो परम जगीश रे॥ ॥से ॥६॥पूरव दिशें जो माथु करे, विद्या तेह ने होय रे ॥ दक्षिण दिशि धन पामियें, चिंता प श्चिमें जोय रे ॥ से० ॥७॥ मृत्यु ने हाणि होय उत्तरें, न सुए नर कोय रे ॥ सेजनो नाव सह For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सुणे, सुश् जागतो सोय रे॥से॥७॥ पहोर पढ़ें सेजें सूश्ये, गणी नित्य नवकार रे ॥ पाप अढार वोसिरावियें, कीजें शरण ते चार रे ॥ से ॥ ए॥ चउद नियम संदेपियें, करो वली चौविहार रे॥पर्व तिथियें व्रत पालजे, मासें दिवस ते बार रे॥से० ॥ ॥ १० ॥ सबल कामी खुए देहने, होये पातक पोष रे॥ जीव बेसी घणा मरे, नव लाखनो दोष रे॥ से०॥११॥ नव लाख पंचेंडी हणे, मानव ते असं ख्यात रे ॥ सोय संमूर्बिम जिन कह्या, जोगें तेहनो घात रे ॥ से० ॥ १२ ॥ तेणें घणो काम न सेवियें, सेवे ताम नीराग रे ॥ अलप पातक होये तेहने, नहिं तीव्र राग रे ॥ से० ॥ १३ ॥ जावे अशुचि तिहां जावना, जीव उपनो अहिंय रे ॥ चर्मने हाम मंसें वस्यो, आहार रगतना तहिंय रे॥ से० ॥१४॥ घोर अंधार वेदन घणी, पड्यो नरगमां जीव रे ॥ एम चिंती नजे जोगने, नूख्यो तेह सदीव रे ॥से० ॥ १५ ॥ ब्रह्मचारी नर नीपजे, जंबू नेमी कुमार रे ॥ गज सुकुमारने जोगर्नु, पाप नहींज लगार रे ॥ से० ॥ १६ ॥ षन दीये हित शीखडी, सरे पु रुषy काम रे ॥ उंघ सेई नर जागतो, जपे जिनतj For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) नाम रे ॥ से० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ १७ए ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ सूतो नर ऊठे वली तदा, ब्राह्म मुहरत होये जदा ॥ पडे पुरुष पडिक्कमणुं करे, रयणीनुं पातक परिहरे ॥ १ ॥ नहिंतर काउस्सग्ग करजे सार, लो गस्स उजोयगरे ते चार ॥ लागुं पाप पुःखपनज तणुं, धूए सोय पुरुष आपणुं ॥२॥ सुपन अनुन व्युं लेखे नहि, सुण्यु सुनावें दी तहिं ॥रोगे दी चिंत्युं हिए, बए सुपन लेखे नवि कहे॥३॥ देव सु पन देखाडे जेह, पुण्यप्रजावें लाधुं तेह ॥ कर्मादि क पा– जे थयु, ए त्रणेनुं फल पण कर्वा ॥४॥सु पन दोष लागो होय जेह, पडिकमतां धोवाये तेह ॥ पच्चरकाण करे बहु परें, नोकारसीने मांमे धुरें ॥५॥ नोकारसीनां बे आगार, पोरसी साडू पोर सी षट सार ॥ पूरिमड्ढे आगार डे सात, गंठसहिए चारे विख्यात ॥ ६॥ नीवी करतां नव आगार, ए कासणे आज कहुं सार ॥ बेत्रासणे पण आगार ज श्राउ, देखाडे शिवमंदिर वाट ॥७॥आंबिलमां श्राज श्रागार, पाणस्सना षट जांख्या सार ॥ उपवासें पांचज श्रागार, देशावगासिलं करता चार For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) ॥ ॥ तप करतो समजे आगार, ते नर वहेलो पामे पार ॥ जिम जिम वृद्धावस्था थाय, तेम तेम पातक गंमतो जाय ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ १७०१ ॥ ॥ ढाल ॥ धन्याश्री रागमां ॥ ए देशी ॥ ॥ मी काम गुरुसंगें जाये, सुणवा मधुरी वाणी रे ॥ क्रोध मान माया ने लोनज, मूके नविजन प्राणी रे ॥१॥ जीवघात अति चोरी मूके, मैथुन परिग्रह जेह रे॥ दिशिनां मान करे वली न नखे, अनदय बावीश तेह रे ॥२॥ अनंतकाय बत्रीश ने मूके, चउद नियम संजारे रे॥पन्नरे कर्मादान न सेवे, लाधो जव नवि हारे रे ॥ ३॥ अनरथ दंग नां पाप निवारे, हास्य कुतूहल जेह रे॥ शस्त्रादिक नापे नवि जूवे, सतीश बलंती तेह रे॥४॥सामायि क व्रत सूधुं पाले, नित्य दिशिमान करेह रे ॥ श्रा उम पांखी पोषध करवो, बीजे दिन पडिलेह रे॥५॥ पात्र दान दीये नर नित्ये, ज्ञान लखावी दीजें रे॥ समकितसार ते शुरु राखीजें, नित्य पच्चरकाण करी जे रे ॥ ६ ॥ सात क्षेत्र तणुं पोखे, कीजें दीन उ कारो रे ॥ पर उपगारें वचन वदीजें, मुखें म बोल असारो रे ॥ ७॥ परनिंदा नर म करीश कहि For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२४ ) यें, राग द्वेष म म राखे रे ॥ श्र श्रावकनो जव पाम्यो बो, जमतां जवने लाखें रे ॥ ८ ॥ श्री गुरुवाणी सुणी ए कीजें, खबर साधुनी लीजें रे ॥ श्रौषध वस्तु अनेरी जोश्यें, पूढी आणी दीजें रे ॥ ॥ ए ॥ आमंत्र ए कीजें मुनिवरने, आवो स्वामी घेर रे ॥ घृत खंग पायस अन्नादिक, दीजें ते बहु पेर रे ॥ १० ॥ रुष कहे हित शिक्षा सहुने, वृद्ध काल जब थाय रें ॥ मन चाले तो स्त्री धन बंकी, लेजे तुं दिरकाय रे ॥ ११ ॥ आराधना साची वली करजे, संलेषण तु लगाय रे ॥ तें तुं अस आराधे, जो जाणे निज आय रे ॥ १२ ॥ सर्वगाथा || १८१३ ॥ ॥ ढाल || चोपाईनी देशी ॥ ॥ श्राखुं जोवा खप करे, ते कुंमी लेइ नीरें फरे ॥ तेहमां सूर प्रतिबिंबे जिस्ये, पेखी परीक्षा करतो तिस्ये ॥ १ ॥ दक्षिण पासुं खांऊं जोय, तो षट म हिना आयु होय || पश्चिम पासुं खांऊं तास, तो ऊखु बेण मास ॥ २ ॥ उत्तर पासुं खांऊं होय, तो आयु तस महिना दोय ॥ पूरव पासुं खांऊंजदा, एक मास ऊखुं तदा ||३|| बिद्र मध्य देखे नर को य, दश दाहाडानुं श्रजखं होय ॥ धूम सहित तरणी For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१५ ) दीसतो, एक दिवस श्राखुं तस बतो ॥ ४ ॥ सुपनें नि मित् यु विचार, प्रकृति फेर घटे जब अहार ॥ तव श्रावक tree श्रादरे, जनम मरण ते बां करे ॥ ५ ॥ उत्कृष्टो मुनिवर होय जास, पंकित मरण कयुं वे तास ॥ सकाम मरण तेने पण कहे, मुगति पंथ तेणें जवि लड़े ॥ ६ ॥ उत्कृष्टा जव सात के , पढी लहे मुगतिनी वाट ॥ पंकित मरण जे को नर करे, जनम मरणनुं दुःख नवि धरे ॥ ७ ॥ विरति श्रावक जिननुं शरण, तेहने कह्युं बाल पंकि त मरण || व्रत विना श्रावक होय जेह, मरण बाल करे नर तेह ॥ ८ ॥ बाल मरण सुरने प जोय, पंमित मरणें मुगतिज होय || तेणें कारण चेतो नर सदु, रुषन कहे हित शिक्षा बहु ॥ ए॥ ॥ ढाल || ऊलालानी देशी ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ कह्यो हित शिक्षानो रास, पहोती मनडा तणी आश ॥ मंदिर कमलानो वास, उत्सव होये बारे मास ॥१॥ सुतां सुख बहु याय, माने महोटा ए राय ॥ संप बहु मंदिरमांय, लहे हय गय वृषजो ने गाय ॥ २ ॥ पुत्र विनीत घरे बहु अ, शीलवंती जली वढूा ॥ शकट घणां घरें न हु For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१६ ) , कीरति करे जग सहु ॥ ३ ॥ ए हित शिक्षानो रास, सुणतां सबल उल्लास ॥ कस्यो खंजायतमां तास, जिहां बहु मानव वास ॥ ४ ॥ सर्व० ॥ १८२६ ॥ ॥ ढाल || चोपाईनी देशी ॥ ॥ घणां लोक वसे बे त्यांहिं, रास रच्यो बाव तीमांहिं ॥ सकल नगरने नगरी जोय, त्रंबावती ते अधिक होय ॥ १ ॥ सकलदेश तणो शिणगार, गुर्जर देश जिहां पंमित सार ॥ गुर्जर देशमां नगर ज बहु, हारे खंजायत गलें सहु ॥ २ ॥ जिहां विवेक विचार अपार, वसे लोक जिहां वरण चढार ॥ उलखीयें जिहां वर्णावर्ण, साधु पुरुषनां पूजे चरण ॥ ३ ॥ वसे लोक वारु धनवंत, पढेरे पटो लां नर गुणवंत ॥ कनक तथा कंदोरा जड्या, त्रण यांगुल ते पहोला घड्या ॥ ४ ॥ हीर तणो कंदो रो तले, कनक तणां मादलियां मले ॥ बांधी खल खलती हायें खरी, सोवन सांकली गले उतरी ॥ ५ ॥ वडा व्यवहारी जिहां दातार, शालु पाघ डी बांधे सार ॥ लांबी गज जांखुं पांत्रीश, बांधतां हरखें करी शीश ॥ ६ ॥ जैरवनी एगताइ जांहि, जीणा जंगा पहेरे ते मांहिं ॥ बही रेशमी केडें For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७ ) जजी, नवगज लांबी सवा ते गजी ॥ ७ ॥ उपरें फा वियुं बांधे कोय, चार रूपैय्यानुं ते होय ॥ कोइ पढे डी कोइ पांजरी, त्रीश रूपैय्यानी ते खरी ॥ ८ ॥ प हेरी रेशमी जेह कजाय, एक शत रूपैय्ये ते थाय ॥ हाथे बरखा बहु मुद्रिका, श्राव्या नर जाएं सरग थका ॥ ५ ॥ पगे वाण हि अति सुकुमाल, श्याम वरण सबली ते जाल | तेल पुष्प सुगंध सनान, विलेपन तिलक ने पान ॥ १० ॥ एहवा पुरुष वसे जेणें ठाय, स्त्रीनी शोजा कही न जाय ॥ रूपें रंजा बहु शणगार, नित्य उठी वंदे अणगार ॥११॥ इस्युं नगर ते त्रंबावती, सायर लहेर जिहां यावती ॥ वाहाण वखार ता नहिं पार, हाटें लोक करे व्यापार ॥ १२ ॥ नगर कोटने त्रिपोलियो, माणक चोक बहु माणस मिल्यो ॥ वहोरे कूणी मोमी शेर, थाले दोकडा तेहना तेर ॥ १३ ॥ जोगी लोक इस्या ज्यां वसे, दान वरे पाढा नवि खसे ॥ पंचाशी जिन नां प्रासाद, इंद्रपुरीशुं करतां वाद ॥ १४ ॥ पोषध शाला जिहां बहु ताल, करे वखाण त्यां कृषि वाचा ल ॥ पुण्यवंत पोषध धरता त्यां हि, साहम्मीवत्सल होये प्राहि ॥ १५ ॥ ए नगरीनी उपमा घणी, जाहांगीर For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१८ ) पादशाह जेहनो धणी ॥ ते त्रंबावती मांडे रास, जोडतां मुऊ पहोती यश ॥ १६ ॥ युगल सिद्धि अने तु चंद, जुड़े संवत्सर (१६८२) धरी आनंद ॥ माधव मास उकल पंचमी, गुरुवारें मति होये समी ॥ १७ ॥ में गायो हित शिक्षा रास, ब्रह्म सुतायें पूरी खाश ॥ श्री गुरु नामें अति श्रानंद, वंदूं विजयसेन सूरींद ॥ १८ ॥ ॥ ढाल ॥ श्रारतीनी देशी मां ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ वंदियें विजयसेनसूरि राय, नाम जपंतां सुख सबल थाय ॥ वंदियें विजयसेन सूरि राय ॥ ए कणी ॥ १ ॥ तप गछ नायक गुण नहिं पारो, उसवंरों दुआ पुरुष अपारो ॥ वंदि यें० ॥ २ ॥ शाह कमाकुल हंस गयंदो, उद्योतकार जिम दिनचंदो | वंदियें० ॥ ३ ॥ कोडमदे सुत सिंह सरीखो, नविक लोको मुख गुरु तणुं निरखो ॥ वंदि यें० ॥ ४ ॥ गुरु नामें मुफ पहोती श्रशो, जोड्यो हितशिक्षानो रासो ॥ वंदियें० ॥ ५ ॥ प्रागवंशे सं घवी महिराजो, तेह करतो जिनशासन काजो ॥ वं दियें ॥ ६ ॥ संघपति तिलक धरावतो सार, शत्रुं जय पूजी करे सफल अवतार ॥ वंदियें० ॥ ७ ॥ समकित शुद्ध व्रत बारनो धारी, जिनवर पूज करे For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१ए) नित्य सारीदियें॥॥ दान दया धर्म उपर राग, तेह साधे नर मुक्तिनो मार्ग ॥ वंदियें ॥॥ महिराज तणो सुत अति अनिराम, संघवी सां गण तेहy नाम ॥ वंदियें ॥ १० ॥ समकित सा र ने व्रत जस बार, पास पूजी करे सफल अवता र ॥ वंदियें ॥ ११ ॥ संघवी सांगणनो सुत वारु, धर्म श्राराधतो शक्तिज सारु ॥ वंदियें ॥ १२ ॥ षन कवि तस नाम कहावे, प्रह ऊठी गुण वी रना गावे ॥ वंदियें ॥ १३ ॥ समज्यो शास्त्र त णाज विचारो, समकितअ॒ व्रत पालतो बारो॥ वंदि यें ॥ १४ ॥ प्रह उठी पडिकमणुं करतो, बे आस एं व्रत ते अंगें धरतो॥ वंदियें ॥ १५॥ चनदे नियम संजारी संदे', वीरवचन रसे अंग मुक लेपुं ॥ वंदियें ॥ १६ ॥ नित्य दश देरां जिनतणां जूहारूं, अदत मूकी निज आतम तारूं ॥ वंदियें ॥ १७ ॥ श्रापम पाखी पोषधमांहिं, दिवस राति सजाय करं त्यांहिं ॥ वंदियें ॥ १७ ॥ वीर वचन सुणी मनमां नेटुं, प्रायें वनस्पति नवि चूटुं ॥ वंदि यें ॥ १५ ॥ मृषा अदत्त प्राय नहिं पाप,शील पाएं मनवयकाय आप ॥ वंदियें ॥ २० ॥ पाप परिग्रहें For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) न मिबुं मांहि, दिशितणुं मान धरुं मनमांहि ॥ दियें ॥ २१॥ अजय बावीशने कर्मादान, प्रायें न जाये त्यां मुझ ध्यान ॥ वंदियें ॥ ॥ अनरथ दंग टाकुं हुं आप, शस्त्रादिकनां नहिं मुफ पाप ॥ ॥ वंदियें॥२३॥सामायिक दिशिमान पण करियें, पौषध अतिथि संविनागवत धरीयें॥वंदियें॥॥ सात देत्र पोखी पुण्य खेड, जीवकानें धन थोडंक देखें ॥ वंदियें ॥ २५ ॥ श्म पालुं श्रावक श्राचारो, कहेतां लघुता होये अपारो ॥ वंदियें ॥२६॥ पण मुक मन तणो एह परिणाम, कोश्क सुणि करे श्रातम काम ॥ वंदियें ॥ २७ ॥ पुण्यविनाग होये तिहां महारे, श्स्युंथ षन कवि आप विचारे॥वंदि यें ॥ २७ ॥ परउपकार काज कहिवात, धर्म करे ते होये सनाथ ॥ वंदियें ॥ ए ॥ षनदासें ए जोडियो रासो, संघ सकल तणी पहोती श्राशो॥ वदियें ॥३० ॥ सर्वगाथा ॥१४॥ ॥ इतिश्री हितशिदानो रास संपूर्ण ॥ For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only