Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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हीरा जेसो मनुष्य नव, कवडी बदले जाय ॥१॥ काम क्रोध तृष्णा घणी, कंधल जाजो आहार ॥ मान घणुं निमा बहु, मुर्गति जावण हार ॥२॥ निषा आलस परहरी, करजे तत्त्वविचार॥ शुनध्याने मन राखजे, श्रावक तुक श्राचार ॥३॥ सर्वगाथा ॥७॥ ॥ ढाल ॥ ए ठिमी क्यां राखी ॥ ए देशी ॥
॥ श्स्युं विचारीने उठीजें, निजनाकें मन दीजें॥ वहेती होये ते गमनो पग, प्रथम नूमि ग्वीजें हो ॥१॥ नविका, शीख देखें तुम सारी ॥ ए यां कणी ॥ पवित्र गमें उन्नो रहे बेसे, पूरव उत्तर सा मो॥ नमस्कार जपे मंत्रादिक, मूकी घरनां कामो हो ॥२॥ नवि० ॥ निजमन ठाम राखवा गुणतो, नंदावर्त नवकारो ॥ कमलबंध शंखावर्त कहिये, अंगुलि अग्र अपारो हो ॥३॥ नवि॥ स ॥ ७ ॥
॥दोहा॥ ॥सार वचन श्रवणें सुणि, पढ़ेरी अंबर सार॥ षन कहे नित्य समरियें, आदिमंत्र नवकार ॥१॥
॥ ढाल ॥ राग प्रजाती॥ ॥पंच परमेष्ठी नवकार जप जीवडा, जाप ‘सम पुण्य नहिं श्रवर कोई ॥ ध्यान नवकार मन निश्चल
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