Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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७७
ज्ञानानन्द रत्नाकर। बाड़े महिमा विशाला लहो सुयश धरनी॥ ४॥ जैन भक्त नाथूराम, कहते यही सार काम॥ यासे मिले परमधाम मिटे राह मरनी॥५॥
सामन॥१॥ सामनाये चेतान नहीं आये मोहे कुमति कुनारि ॥(टेक) पंच करण रस प्याय के, स्ववश किये करप्यार ॥१॥ धन वर्षत भीगी धरा, जलता हृदय हमार ॥२॥ सुमति सदामग जोवती, कब आवे भरतार ॥३॥ नाथूराम शोकित खड़ी, सुमति विरहके भार ॥४॥
सामन ॥२॥ स्वामी तोहमारे गिरि चढ़ि योगी भये, हमहू धरे तप सार (टेक) पशु बंधन लखि नेमि जी, दया धरी अधिकार॥ मुकुट पटकि कंकण तजे, वस्त्राभरण उतार ॥२॥ राजुल प्रभु तट जाय के, ली दिक्षा सुखकार ॥३॥ नाथूराम धन्य रजमती, हेय गिना संसार ॥ ४ ॥
होली ॥१॥ फाग रची जिन धाम स्वरंगी, भविजन मिल खेलत होरी।
(टेक) अष्ट द्रव्य ले पूजत प्रभुको दाहत बसु कमन कोरी ॥१॥ ज्ञान गुलाल लागिरहो अनुपम, गावत यश जिनवर कोरीर

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