Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 93
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। . ८९ तीरथपतिसे पतिको पाके, औरनसे पति कैसे कहों में ॥२॥ . तारण तरण जान प्रभु पाके, भवसागरमें कैसे वहों में ॥३॥ नाथूराम त्रिजगति-पति पाके, औरनके पद कैसे गहों में ॥४॥ चेतकर मन मेरे अरज़ प्रभुसे अब कोनै । ( टेक) और देवकी सेवसेजी, धर्म गिरहका छोजे ॥१॥ वे त्रिभुवन नाथ हैंजी, कार्य तेरा साजै ॥२॥ अवं जिनके सुप्रताप सेजी, रूप निज लखि लीजै ॥३॥ नाथूराम दृढ़ राखके चित, प्रभु चरणोंमें दीजै॥४॥ हे प्रभु हजै दयाल, अरज जनकी सुन लीजै ॥ (टेक) आठ कर्म प्रभु है बली ये, इलसे कुछ न वशीने ॥ १॥ ये हमको दुःख देत हैं जी, इनको क्षय कर दीजै ॥२॥ . तुम प्रसाद निश्चय प्रभूनी, कार्य मेरा सीजै ॥३॥ नाथूराम निज दासकोनी, प्रभु अविचल पद दीनै ।। ४ ॥ द दी % 3D श्री आदीश्वर भगवान, भव दुःख दूर करो। (टेक) भ्रमत २ चारा गतिमाही, बहुत भयो हरान॥१॥ और कुदेवनकी सेवासे, भुगते दुःख महान ॥२॥ अब आयो प्रभु शरण तुम्हारे, राखो सेवक जान ॥३॥ नाथूराम प्रभु थारी भक्तिसे, जांचन पद निर्वान ॥ ४ ॥

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