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ज्यामितिका एक विभाग।-कोणक-पुत्रिभुज ।-क्षार- 'त्रिवेणी' -भंग-वि० तीन जगहोंसे झुका हुआ जिसमें पु० तीन क्षारोंका समाहार-जवाखार, सज्जी तथा तीन जगह टेढ़ापन हो । पु० खड़े होनेकी एक मुद्रा जिसमें सुहागा। -गर्त-पु. उत्तरभारतका वह प्राचीन प्रदेश गरदन, कमर और दाहिने पाँवमें बल पड़ता है ( कृष्णके जिसमें वर्तमान पंजाबके जालंधर और काँगड़ा आदि वंशी बजानेका वर्णन इसी रूपमें मिलता है)। -भजजिले सम्मिलित हैं। इस प्रदेशका निवासी। -गुण- पु० (ट्राइएंगिल) वह समक्षेत्र जो तीन भुजाओंसे घिरा हो पु० सत्त्व, रज, तम-इन तीन गुणोंका समाहार । वि० तथा जिसमें तीन कोण हों, त्रिकोण । -भुजलंब-पु० तीन गुना, तिगुना जिसमें सत्त्वादि तीनों गुण हों; तीन (आल्टीट्य ड) त्रिभुजके शीर्षसे आधारतक खींची जानेवाली धागोंवाला। -गुणा-स्त्री० माया; दुर्गा । -गुणातीत- वह सरल रेखा जो आधारपर लंब ( पर डिक्यूलर ) हो वि० जो सत्त्वादि तीनों गुणोंसे परे हो। पु० परमात्मा। ( इसे त्रिभुजकी ऊँचाई भी कहते हैं)। -भुवन-पु० -गुणात्मक-वि० जिसमें सत्त्वादि तीनों गुण हों। स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल-इन तीन भवनोंका समाहार । -गणित-वि० तिगुना किया हुआ । -चक्रयान-पु० -भुवन सुंदरी-स्त्री० दुर्गा, पार्वती । -मात-वि० (ट्राइसिकिल) एक तरहकी तीन पहियोंवाली गाड़ी जो दे० 'त्रिमात्र'। -मात्र,-मात्रिक-वि० जिसमें तीन प्रायः बाइसिकिलकी तरह पैडल मारनेसे चलती है। मात्राएँ हों, प्लुत। -मुनि-पु० पाणिनि, कात्यायन -चक्षु (स)-पु० शिव । -जग*-पु० तीनों लोक- और पतंजलि-ये तीनों मुनि, मुनित्रय । -मुहानीस्वर्ग, पृथिवी और पाताल, दे० क्रममें । -जगती-स्त्री० स्त्री० दे० 'तिमुहानी' । -मूर्ति-पु. वह जिसकी ब्रह्मा, -जगत्-पु० तीनों लोक । -जटा-स्त्री० अशोकवाटिका- विष्णु और शिव-ये तीन मूर्तियाँ हैं, परमेश्वर; सूर्य । में जानकीके साथ रहनेवाली एक राक्षसी । -जाता- -यान-पु० बौद्धधर्मके अंतर्गत महायान, हीनयान तथा जातक-पु० इलायची, दारचीनी और तेजपत्ता-इन
मध्यमयान-ये तीन यान ।-यामा-स्त्री० रात्रि; हल्दी; तीनोंका समाहार । नागकेसर मिलाकर इसे चतुर्जातक यमुना नील; काला निसोथ। -युग-पु० तीन पीढ़ियाँ कहते हैं। -जामा*-स्त्री० दे० 'त्रियामा' ।-जीवा,- तीनों ऋतुएँ-वसंत, वर्षा तथा शरद् तीनों युग-सत्य, ज्या-स्त्री० (रेडिअस) वृत्तके केंद्रसे परिधितक खिंची हुई द्वापर और त्रेता विष्णु । -रेख-पु० शंख । वि० जिसमें सीधी रेखा (यह लंबाई में व्यासकी आधी होती है)। तीन रेखाएँ हों, तीन रेखाभोंसे युक्त । -लघु-पु० (वह -ताप-पु० दे० 'तापत्रय' । -दंडी(डिन्)-पु० जिसमें तीनों वर्ण लघु हों) नगण । -लवण-पु० सेंधा, वह जिसने वाणी, मन और शरीर-इन तीनोंको वशमें साँभर और सोचर नमक ।-लोक-पु. स्वर्ग, मर्त्य और कर लिया हो, संन्यासी, परिव्राजक। -दल-पु० पाताल-ये तीनों लोक । -लोकनाथ,-लोकपति-पु० बेलका पेड़ -दश-पु० देवता जीव । -दश गुरु-पु० तीनों लोकोंका स्वामी,ईश्वर राम, कृष्ण आदि विष्णुका कोई देवगुरु, बृहस्पति । -दशपति-पु० इंद्र । -दशवधू- अवतार; सूर्य।-लोकी-स्त्री०दे० त्रिलोक-लोकीनाथस्त्री० अप्सरा। -देव-पु. ब्रह्मा, विष्णु और महेश- पु० दे० 'त्रिलोकनाथ'।-लोचन-पु. शिव ।-लोचना ये तीनों देव । -दोष-पु० तीनों दोष-वात पित्त -स्त्री० दुर्गा; असती, व्यभिचारिणी स्त्री ।-लोचनीऔर कफ; इन तीनोंके प्रकोपसे उत्पन्न रोग, सन्नि- स्त्री० दुर्गा । -वर्ग-पु० धर्म, अर्थ और काम; त्रिफला; पात ।-दोषज-पु० सन्निपात । वि०तीनों दोषोंसे उत्पन्न । त्रिकटु सत्व, रज और तम (सांख्य०); ब्राह्मण, क्षत्रिय -नयन-पु. शिव। -नयना-स्त्री० दुर्गा, पार्वती। और वैश्यः क्षय, स्थिति और वृद्धि (राजनीति)।-विक्रम -पथ-पु० ज्ञान, कर्म और उपासना-ये तीनों मार्ग: पु० तीन डग (विष्णुके); विष्णु; वामन ।-विध-वि०तीन आकाश, पृथ्वी और पाताल; वह स्थान जहाँ तीन रास्ते प्रकारका ।-विध बहिष्कार-पु० (ट्रिपिल बॉयकॉट) तीन मिले हों।-पथगा,-पथगामिनी-स्त्री० (स्वर्ग,मर्त्य और तरफका या तीन चीजोंका बहिष्कार (भारतके असहयोग पाताल तीनों लोकोंमें बहनेवाली) गंगा। -पदस्तंभ- आंदोलनके समय इसका अर्थ विदेशी अदालतों, विदेशी पु० (ट्राइपॉड) एक तरहकी तिपाई या तीन पाँवोंवाला शिक्षालयों तथा विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार लिया जाता आला जिसपर रखकर कोई वस्तु गरम की जाय । -पदी था)। -वेणी-स्त्री० वह स्थान जहाँसे तीन नदियाँ तीन -स्त्री० गायत्री छंद; तिपाई; हाथीका पैर बाँधनेका रस्सा। ओर बही हों; तीन नदियोंके मिलनेका स्थान; प्रयागमें -पाठी(ठिन्)-वि० तीनों वेदोंका ज्ञाता । पु० ब्राह्म- गंगा, यमुना और सरस्वतीके मिलनेका स्थान । -वेदणोंकी एक उपजातिकी उपाधि-तिवारी, त्रिवेदी। -पिटक पु० तीनों वेद-ऋक्, यजुः और साम; इन तीनों वेदोका -पु० बौद्धोंका मूल ग्रंथ जो विनय, सुत्त और अभिधम्म- शाता ।-वेदी(दिन)-पु० तीनों वेदोंका ज्ञाता; ब्राह्मणोंका तीन पिटकों( भागों) में विभक्त है ।-पुंड पु०[हिं०],-पुंड- एक उपभेद, त्रिपाठी। -वेनी*-स्त्री० दे० त्रिवेणी' । पु०एक तिलक जिसमें ललाट आदिपर भस्म अथवा चंदनकी -शंकु-पु० एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जी हरिश्चंद्रके तीन आड़ी या अर्ध चंद्राकार रेखाएँ बनाते हैं। -पटी- पिता थे । ( इनके बारेमें कहा जाता है कि स्वर्ग और स्त्री० छोटी इलायची; ज्ञाता, शेय और ज्ञान; ध्याता; पृथ्वीके बीच उलटे लटके हुए हैं ।)-शत-वि० तीन सौ । ध्येय और ध्यान: द्रष्टा, दृश्य और दर्शन आदि तीन-तीन -शाल-पु० तीन कमरोंवाला मकान।-शिरा(रस)का समाहार; * दे० 'त्रिकुटी'। -पुरारि-पु० महादेव । पु० एक राक्षस जिसे रामने दंडकारण्यमें मारा था। -फला-पु० आँवला, हड़ और बहेड़ा। -बली कुबेर । -शुल-पु० तीन फलोंका एक प्रसिद्ध अस्त्र जो
पेटपर पड़नेवाले तीन बल । -बेनी*-स्त्री० दे० शिवका प्रधान अस्त्र है।-शूलधारी(रिन)-पु० शिव ।
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