________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्विरूढा-धक्का द्विरूढा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसने पूर्व पतिके मरने निक सिद्धांत जो जीव और ब्रह्म तथा भूत और चिच्छक्ति
आदिपर दूसरेको अपना पति स्वीकार कर लिया हो। में भेद मानता है । वेदांतको छोड़कर शेष पाँचों आस्तिक द्विविद-तु० [सं०] सुग्रीवका एक मंत्री।
दर्शन इसी सिद्धांतके पोषक हैं। -वादी(दिन)द्वीप-पु० [सं०] स्थलका वह भाग जिसके चारों ओर पानी पु० तिवादको माननेवाला।
हो। पुराणोंके अनुसार जंबू आदि बड़े भूभागोंमेंसे हर एक। द्वत्रिज्य-पु० [सं०] (सेक्टर ऑफ ए सरकिल) वह आकृति द्वीपांतरण-पु० [सं०] (ट्रांसपोटें शन) भारी अपराध करने- जो दो त्रिज्याओं और उनके बीच पड़नेवाले चापसे घिरी वाले किसी बंदीको समुद्रके उस पार किसी अन्य स्थान रहती है। या द्वीपमें रखनेके लिए भेज देना। (भारतमें ऐसे बंदी द्वैध-पु० [सं०] दो प्रकारका होनेका भाव; भिन्नता; परअब बाहर नहीं भेजे जाते।)
स्पर विरुद्ध होनेका भाव; राजनीति में दुरंगी नीति बरद्वेष-पु० [सं०] चित्तका वह भाव जो अप्रिय वस्तु या तनेका गुण:संदेह । -शासनप्रणाली-स्त्री० वह शासनव्यक्तिका नाश करनेकी प्रेरणा करता है, रागका विरोधी पद्धति जिसमें सत्ता दो वर्गों में विभक्त हो। भाव; शत्रुता, वैर ।
द्वैधीकरण-पु० [सं०] दो भागों में बाँटना । द्वेषी(पिन्)-वि० [सं०] द्वेष-भाव रखनेवाला । पु० शत्रु। द्वैधीभाव-पु० [सं०] दे० 'वैध'; निश्चयका अभाव । द्वेष्य-वि० [सं०] द्वष करने योग्य । पुरुषका पात्र; शत्रु । द्वैपायन-पु० [सं०] महाभारत, पुराणों आदिके रचयिता _ *-वि० दो दोनों।
वेदव्यास । इनका जन्म एक द्वीपमें हुआ था इसीसे इनका द्वैक*-वि० दो-एक ।
यह नाम पड़ा। द्वैगुणिक-वि० [सं०] जो दूना ब्याज ले । पु० शत-प्रति- द्वैमातुर-पु० [सं०] गणेश; जरासंध । वि०जिसके दो शत सूद लेनेवाला महाजन ।
माताएँ हों। द्वैज*-स्त्री० द्वितीया, दूज ।
द्वैराज्य-पु० [सं०] (कंडोमीनियम) दुराज, दो-अमली; द्वैत-पु० [सं०] दो होनेका भाव; जोड़ा, युगल; भेद- दो राजाओं में विभक्त देश । भावना दूतवाद; अशान, मोह । -वाद-पु. एक दार्श-! द्वी*--दोनों।
ध-देवनागरी वर्णमालाका १९वाँ व्यंजन वर्ण । (धउरहरी-पु० दे० 'धौरहर'। धंका-पु० धक्का; आघात, चोट ।
धक-स्त्री० हृदयका सवेग स्पंदन, दिलकी जोरकी धड़कन धंध*-पु० बखेड़ा, झंझट, झमेला ।
* उमंग, उल्लास । * अ० एक-ब-एक, सहसा । -पकधंधक-पु० जंजाल, झंझट ।
स्त्री० दे० 'धकधकी'; भय । अ० बरत हुए। धंधरक*-पु० दे० 'धंधक' । -धोरी-पु० दुनियाके धकधकना-अ० क्रि० दे० 'धकधकाना' । जंजालमें लगा रहनेवाला।
धकधकाना-अ० क्रि० भय, घबड़ाहट आदिके कारण धुंधला-पु० छल-कपट ढोंग ।
कलेजेका तेजीसे धड़कना; * धधकना; चमकना। धुंधलाना-अ० क्रि० ढोंग करना; छल करना ।
धकधकाहट-स्त्री० धकधकानेकी क्रिया, धड़कन । धंधा-पु० काम-काज; पेशा, रोजगार, व्यवसाय । | धकधकी-स्त्री० धड़कन; धुकधुकी; खटका, अंदेशा ।मु०धंधार*-स्त्री० ज्वाला।
धरकना*-दिल धड़कना, सहसा आशंका उत्पन्न होना। धंधारि*-स्त्री० दे० 'धंधारी'।
धकपक-स्त्री० धड़कन, भय । धंधारी-स्त्री० गोरखधंधा
धकपकाना-अ० क्रि० भय खाना; आतंकित होना। धंधोर-स्त्री० ज्वाला, आगकी लपट; होली ।
धकपेल-स्त्री० धक्कमधक्का, रेलपेल । धुवना*-स० कि० धौंकना।
धका*-पु० धक्का, झोका; आघात ।-धूम-स्त्री० रेलपेल; धंसन-स्त्री० फँसनेकी क्रिया या ढंग।
चढ़ाऊपरी। -पेल-स्त्री० दे० 'धकपेल'। धंसना-अ० क्रि० किसी कड़ी या नुकीली वस्तुका दबाव धकाना*-स० क्रि० जलाना, दहकाना । पाकर भीतर घुसना, गड़ना; पैठना, प्रवेश करना, भीतर धकारा*-पु० धकधकी; खटका, अंदेशा । घुसना; नीचेकी ओर दब जाना या बैठ जाना; उतरना; धकियाना-स० क्रि० धक्का देना, ढकेलना। नीचे खसकना; * नष्ट होना; तबाह होना।
धकेलना-स० क्रि० ढकेलना, धक्का देना । धंसनि*-स्त्री० दे० 'धंसन'।
धकैत-वि० धक्का देनेवाला। धंसान-स्त्री० धंसनेको क्रिया या ढंग; ऐसी धरती जिसमें धक्कमधक्का-पु० भारी भीड़में मनुष्योंका परस्पर बहुत पाँव फंसें, दलदल; ढालू जमीन ।
___ अधिक धक्का देना ठेलाठेल, रेलपेल । धंसाना-स० क्रि० किसी कड़ी या नुकीली वस्तुको जोर धक्का-पु० वह दबाव जो किसी वस्तु या व्यक्तिको किसी देकर भीतर घुसाना, गाड़ना; प्रविष्ट कराना, पैठाना; स्थानसे दूसरी ओर हटानेके लिए उसपर डाला जाय; दो नीचेकी और उतारना।
वस्तुओं या व्यक्तियों में एकके दूसरेसे या दोनोंके परस्पर धंसाव-पु० दे० 'धंसान' ।
वेगपूर्वक गमनक्रियासे छू जाने या टकरा जानेसे एक या
For Private and Personal Use Only