Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 136
________________ गुरु-शिष्य १२५ लगाकर बैठें, परंतु हम नहीं समझ जाएँ? इतना-सा आटा काँटे में लगाकर मछुआरा तालाब में डालता है, उसमें मछुआरे का दोष है या खानेवाले का दोष? जिसे यह लालच है उसका दोष है या मछुआरे का? जो पकड़ा जाए उसका दोष! ये अपने लोग फंसे हुए ही हैं न, इन सब गुरुओं से। लोगों को पूजा जाना है इसलिए संप्रदाय बना दिए हैं। इसमें इन ग्राहकों का सारा दोष नहीं है बेचारों का। इन दलालों का दोष है। इन दलालों का पेट भरता ही नहीं और जगत् का भरने नहीं देते। इसलिए मैं यह बताना चाहता हूँ। यह तो दलाली में ही एशो-आराम और मौज मनाते रहते हैं और अपनीअपनी सेफसाइड ही ढूँढी है। परंतु उन्हें कहना मत कि आपका दोष है। कहने से क्या फायदा भाई? सामनेवाले को दुःख होता है। हमलोग दुःख देने के लिए नहीं आए हैं। हमें तो समझने की ज़रूरत है कि कमियाँ कहाँ पर है! अब, दलाल क्यों खड़े रहे हैं? क्योंकि ग्राहकी बहुत है इसलिए। ग्राहकी यदि नहीं हो तो दलाल कहाँ जाएँगे? चले जाएंगे। परंतु ग्राहकी का दोष है न, मूल तो? इसलिए मूल दोष तो अपना ही है न! दलाल कब तक खड़े रहते हैं? ग्राहकी हो तब तक। अभी इन मकानों के दलाल कब तक भाग-दौड़ करेंगे? मकानों के ग्राहक होंगे तब तक। नहीं तो बंद, चुप! लालच ही भरमाए प्रश्नकर्ता : अभी तो गुरु पैसों के पीछे ही पड़े होते हैं। दादाश्री : वह तो ये लोग भी ऐसे हैं न? लकड़ी टेढ़ी है, इसलिए यह आरी भी टेढ़ी आती है। यह लकड़ी ही सीधी नहीं है न! लोग टेढ़े चलते हैं इसलिए गुरु टेढ़े मिलते हैं। लोगों में क्या टेढ़ापन है? 'मेरे बेटे के घर पर बेटा चाहिए।' यानी लोग लालची हैं इसलिए ये लोग चढ़ बैठे हैं। अरे, वह क्या बेटे के वहाँ बेटा देनेवाला था? वह कहाँ से लानेवाला था? वह खुद बिना पत्नी और बच्चोंवाला है, वह कहाँ से लानेवाला था? किसी बेटेवाले से कह न! यह तो 'मेरे बेटे के घर बेटा हो जाए' इसलिए उसे गुरु बनाते हैं। यानी लोग लालची हैं, तब तक ये धूर्त चढ़ बैठे हैं। लालची हैं, इसलिए गुरु के पीछे पड़ते हैं। हमें लालच नहीं हो और तब गुरु बनाएँ तो सच्चा!

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