Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ आखिर पुराणी ने पूछा कि भाई कौनसी बात रह गई। श्रोता ने कहा कि महाराज ! 'सीताजी हरण भया' ऐसा मैंने सुना था वह मिटकर पीछे सीताजी हुए या नहीं ?। पुराणी तो उसकी बात सुनकर हँसने लगा और कहा कि अरे मूर्ख ! तूं इसका तात्पर्य नहीं समझा, इसका आशय यह है कि सीता को रावण उठा ले गया। परन्तु तूं समझता है वैसा कोई जंगली जानवर नहीं हुआ। इस बात को सुनकर श्रोता निःसंशय हो गया, यदि वह फिर पूछकर खुलाशा नहीं करता तो इस विषय में दूसरों के साथ में तकरार किये बिना नहीं रहता। इसी से धर्मश्रवण में बुद्धि के आठ गुणों की आवश्यकता है। बुद्धि के आठ गुण इस प्रकार हैंशुश्रूषा श्रवणं चैव, ग्रहणं धारणं तथा । ऊहापोहाविज्ञानं, तत्वज्ञानं च धीगुणाः ।।२।। भावार्थ-शुश्रूषा) सुनने की इच्छा १ (श्रवणं) सुनना, २ (ग्रहणं) सुने हुए अर्थ को धारण करना, ३ (धारणं) धारण किये हुए अर्थ को नहीं भूलना, ४ (ऊहा) जाने हुए अर्थ को अवलम्बनकर उसके समान अन्य विषय में व्याप्ति के द्वारा तर्क करना, ५ (अपोह) अनुभव और युक्तियों से विरुद्ध हिंसादि अनर्थ-जनक कार्यों से अलग होना, ६ अथवा सामान्य ज्ञान सो 'ऊहा' और विशेषज्ञान सो 'अपोह' कहाता है। (अर्थ विज्ञानं) तर्क वितर्क के बल से मोह, सन्देह तथा विपर्यास रहित वस्तु की पहिचान करना, ७ (तत्वज्ञानं) अमुक वस्तु इसी प्रकार है, ऐसा निश्चय करना; ये आठ बुद्धि के गुण हैं। अष्टगुणों से जिसकी बुद्धि प्रौढ़भाव को प्राप्त हुई है वह कदापि अकल्याणकारी नहीं बन सकता; इसी से बुद्धिगुण पूर्वक धर्मश्रवण करने वाला पुरुष धर्म के लायक कहा गया है। यहाँ धर्म श्रवण विशेष गुणों का दायक है, बुद्धि के गुणों में जो 'श्रवण' गुण है वह श्रवणमात्र अर्थ का बोधक है, इससे एकता का शंसय करना उचित नहीं है। धर्मश्रवण करने वालों को अनेक गुण प्राप्त होते हैं। कहा भी है कि-'यथावस्थित सुभाषितवाला मन दुःख को नष्ट करता है, खेद रूप दावानल से संतप्त पुरुषों को शान्त बनाता है, मूखों को बोध देता है और व्याकुलता को मिटाता है अर्थात् सुन्दर धर्मश्रवण उत्तमोत्तम वस्तुओं को देने वाला होता है। अतएव अनेक सद्गुणों की १४२ श्री गुणानुरागकुलक

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200