Book Title: Granth Pariksha Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 10
________________ ग्रन्थ- परीक्षा | हो सकता । एक नामके अनेक व्यक्ति भी होते हैं; जैन साधुओं में भी एक नामके धारक अनेक आचार्य और भट्टारक हो गये हैं; किसी व्यक्तिका. दूसरेके नामसे ग्रंथ बनाना भी असंभव नहीं है । इस लिए जवतक किसी माननीय प्राचीन आचार्यके द्वारा यह ग्रन्थ भगवान् उमास्वामिका बनाया हुआ स्वीकृत न किया गया हो या खुद ग्रन्थ ही अपने साहित्यादि से उसका साक्षी न दे, तबतक नामादिकके संबंधमात्रसे इस ग्रंथको भगवदुमास्वामिका बनाया हुआ नहीं कह सकते । किसी माननीय प्राचीन आचार्यकी कृतिमें इस ग्रंथका कहीं नामोल्लेख तक न मिलनेसे अब हमें इसके साहित्यकी जांच द्वारा यही देखना चाहिए कि यह ग्रंथ, वास्तवमें, सूत्रकार भगवदुमास्वामिका बनाया हुआ है या कि नहीं ? यदि परीक्षासे यह ग्रंथ सचमुचही सूत्रकार श्रीउमास्वामिका बनाया हुआ सिद्ध हो जाय तब तो ऐसा प्रयत्न होना चाहिए. जिससे यह ग्रंथ अच्छी तरहसे उपयोग में लाया जाय और तत्त्वार्थसूत्रकी तरह इसका भी सर्वत्र प्रचार हो सके । अन्यथा विद्वानोंको, सर्व साधारणपर, यह प्रगट कर देना चाहिए कि, यह ग्रंथ सूत्रकार भगवदुमास्वामिका बनाया हुआ नहीं है; जिससे लोग इस ग्रंथको उसी दृष्टिसे देखें और वृथा भ्रममें न पड़ें। ग्रंथको परीक्षा-दृष्टिसे अवलोकन करनेपर मालूम होता है कि इस ग्रन्थका साहित्य बहुतसे ऐसे पद्योंसे बना हुआ है जो दूसरे आचाय के बनाये हुए सर्वमान्य ग्रंथोंसे या तो ज्योंके त्यों उठाकर रक्खे गये हैं या उनमें कुछ थोडासा शब्द-परिवर्तन किया गया है । जो पद्म ज्योंके त्यों उठाकर रक्खे गये हैं वे ' उक्तं च ' या ' उद्धृत ' रूपसे नहीं लिखें गये हैं और न हो सकते हैं; इसलिए ग्रन्थकर्तानें उन्हें अपने ही प्रगट किये हैं । भगवान् उमास्वामि जैसे महान आचार्य दूसरे आचार्योंके बनाये हुए ग्रन्थोंसे पद्य लेवें और उन्हें अपने नामसे प्रगट करें, यह ६

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