Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 834
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमगारधामृतवर्षिणी टी० श्रु० २ ३०१ शुभानिशुंभाविदेवीवर्णनम् १५ वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-सुंभा निसुंभा रंभा निरंभा मयणा, जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दोच्चस्त वग्गरस पंच अज्झयणा पण्णता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ?, एवं खल्लु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा जिग्गया जाव पज्जुवासइ, तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभादेवी बलिचंचाए रायहाणीए सुंभवडेंसए भवणे सुभंसि सीहासणंसि कालीगमएणं जाव णट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगया, पुठवभवपुच्छा, सावत्थी णयरी कोटुए बेइए जियसत्तू राया सुंभेगाहावई सुंभसिरी भारिया सुंभा दारिया सेसं जहा कालीए णवरं अधुटाइं पलिओवमाइं ठिई एवं खलु जंबू ! निक्खेवओ अज्झयणस्स एवं सेसावि चत्तारि अज्झयणा सावत्थीए नवरं माया पिया सरिसनामया, एवं खल्लु जंबू ! निक्खेवओ बिईयवग्गस्स२ ॥ सू० ७ ॥ ॥बीओ वग्गो समत्तो ॥ टीका-जम्बूस्वामीपृच्छति-यदि खलु हे भदन्त ! श्रमणेन यावत्सम्प्राप्तेन द्वितीयस्य वर्गस्य उत्क्षेपकः । सुधर्मास्वामीपाह-एवं खलु हे जम्बूः श्रमणेन यावत् -दितीयवर्गप्रारंभः'जइणं भंते ! समणेणं' इत्यादि । टीकार्थ:-जंबू स्वामी श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि (भंते ! जाणं समणेणं जाव संपत्तणं दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ-एवं खलु भी 4 प्रार' जइण भाते ! समणेण ' इत्यादिટકાથ–બૂ સ્વામી શ્રી સુધર્મા સ્વામીને પૂછે છે કે– ( भंते ! जइणं समयेणं जाव संपत्तेणं दोबस्स वग्मस्स उक्खेरओ-एवं खलु For Private and Personal Use Only

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