Book Title: Gautam Pruccha Vrutti Author(s): Shravak Hiralal Hansraj Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गौतम पञ्चावल ॥६॥ अंशी, नातायाता? तयोक्तं नो श्रेष्टिन मया जिनवाणी वने श्रुता, तसेन च मदीया क्षु- - तृषा च प्रशांता; तेन कारणेन चाहं शीघ्रं नायाता. पश्चानया श्रीजिनधर्मोपरि नावः समुत्पादितः, तेन च सा सुखिनी जाता. अत एव धर्मेच्छुन्निर्जिनवाणी श्रोतव्या. अथ श्रीमहावीरस्वामी पूर्वोक्ताऽटचत्वारिंशत्प्रधानामुत्तराणि श्रीगौतमगणधरंप्रति कश्रयत्ति, तत्र प्र मो यथा-केन कर्मणा जीवो नरके याति? तस्योत्तरं त्रिजिर्गाथानिराइ-गाया-जो घाय सत्ताई। अलियं जपेई परधनं हर ॥ परदारं चिय वजा बहुपावपरिग्गहासत्तो ॥ १४॥ चंडो माणी कुशे । मायावी निहुरो खरो पावो ॥ पिसुणो संगहसीलो । सादूर्ण निंदन अहमो ॥ १५ ॥ आलप्पालपयंपी। सुदुतुबुद्धी य जो कयग्यो य ॥ वहुदुरकतोगपनरो । मरिन नरयंमि सो या ॥ १६ ॥ व्याख्या-यो जीवः सत्वान् मारयति, पुनरसत्यवचनं ब्रूने, पुनरदनं वस्तु यो गृह्णाति, पुनः परदारेषु गमनं करोति, पुनई परिग्रई मेलयात, पुनर्यश्चमो नयंकरो, मानी अहंकारी कुशे मायावी निष्टुरः खरःकठोर चित्तः पापी पिशुनोऽनंगशीलः कुसंगकृत्, साधूनां निंदकः, अधर्मी, असंबवचनप्रज. For Private And PersonalPage Navigation
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