Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 239
________________ आ नाळं उल्लंघी जाउं आम प्रमादथी आ प्रमाणे विचारी जेवी पग पहोळो कर्यो के तरतज ते यक्षिणीए छिद्र जोईने तेमनो पग साथळमांथी कापी नाख्यो अने मिथ्या दुष्कृत देतां देतां मुनि जळनी बहार उडी पड्या. आ दृश्य जोई नजीकमा रहेल सम्यग्दृष्टि देवीए ते यक्षिणीने नसाडी मूकी अने तेमना चरण सारां कर्यां. बाद ते समकिती देवीए ते मुनिने कह्यं के-तमारे कदापि वाव, कूवा के खालनुं उल्लंघन न करवुं. 9 वस्त्र- पात्र प्रत्ये ममत्वभाव पण न दर्शाववो तेमज अवर्णवाद पण न उच्चारवा, कारण के ते दुर्लभबोधिपणानं लक्षण छे. श्रीस्थानांगजीमां कह्यं छे के – “पंचर्हि ठाणेहिं जीवा दुल्लभबोहियत्ताए कम्मं पगरंति । ते अरिहंताणमवन्नं वदमाणे १, अरिहंतपन्नत्तस्य धम्मस्स अवण्णं वदमाणे २, आयरियउवज्झायाणमवन्नं वदमाणे ३, चाउवण्णास्स संघस्य अवन्नं वदमाणे ४, विवक्कतवबंभचेराणं देवाणं अवण्णं वदमाणे ५ ।” १ अरिहंतना, २ अरिहंतप्ररूपित धर्मना, ३ आचार्य तथा उपाध्यायना, ४ चतुर्विध संघना अने ५ तप तथा ब्रह्मचर्यनो जेने उदय आव्यो छे ते देवना अवर्णवाद बोलवाथी दुर्लभबोधिपणुं प्राप्त थाय छे. आ संबंधमां वराहमिहिरनुं वृत्तांत बोधदायक छे वराहमिहिरनुं वृत्तांत— प्रतिष्ठानपुरमा चौद विद्यानो पारगामी अने विचक्षण भद्रबाहु नामनो पंडित हतो. तेने वराहमिहिर नामनो लघुबंधु हतो. एकदा ते नगरना उद्यानमा चौद पूर्वधर, नव तत्त्वना ज्ञाता अने महाकल्याणकारी श्रीमान् यशोभद्रसूरि विराज्या एटले लोकोनो समूह तेमने वंदन करवा गयो. लोकोने जतां जोईने हर्ष पामीने भद्रबाहु पण पोताना बंधु साथे वंदवा गयो. वांदीने बने भाईओ पोताने उचित जग्या ऊपर बेठा. गुरुमहाराजे देशना प्रारंभतां कह्यं के-चार गति अने चोराशी लाख जीवयोनिरूप आ संसार दुःखमय ज छे; कारण के जीवित तृणनी टोच ऊपर रहेला जळबिंदुनी जेम चंचळ छे. अने संपत्ति वीजळीना झबकारानी जेम क्षणिक छे. जेओ धर्मकर्ममां चतुर थशे तेज आ दुस्तर भवसागरने तरशे. आ संसारसागरने तरवा माटे क्षमादिक दश प्रकारना यतिधर्मरूप नावनुं आलंबन ग्रहण करवुं जोईए. दश दृष्टांते दुर्लभ मानवभवने सफल करवा इच्छता हो तो साधुधर्म अने ते न बने तो छेवटे श्रावकधर्म स्वीकारो आ गुरुराजनी देशना सांभळी भवभीरू भद्रबाहुने दीक्षा-ग्रहणनी तल्लीनता थई. तेणे लघु बंधु वराहमिहिरने कह्यं के- हुं तो संसारसागर तरवा माटे आलंबनभूत प्रव्रज्या ग्रहण करवा इच्छु छु. तमे संसारमा रही व्यवहारमां विचक्षण जो. वराहमिहिरे कह्यं के-साकर नाखेली क्षीर तमने एकलाने ज मीठी न लागी शके, ते तो जो कोई चाखे तेने मीठी लागे, माटे हुं पण आपने ज अनुसरवा मागुं छं. छेवटे बने भाईओए श्रीयशोभद्रसूरि पासे दीक्षा अंगीकार करी. क्रमशः शास्त्राभ्यास करतां भद्रबाहु मुनि चौद पूर्वना ज्ञाता थया. भद्रबाहुस्वामीनुं शुद्ध चारित्रपालन, शासनप्रेम अने गंभीरता जोई गुरुमहाराजे तेमने सर्व सुविहितम अग्रणी स्थाप्या. यशोभद्रसूरिने एक सम्भूतिविजय नामना क्रियापात्र अने निर्मळ श्रीगच्छाचार - पयन्ना- २२४

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