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द्वितीयशाखा-रौद्रध्यान.
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ख्याल तमाशादेखनेमें मजा मानते हैं. कुर्कट, भेसें, मेंढे या मनुष्यादि की लडाइ देख मजा मानते हैं. सो भी हिंशानुबन्ध नामे रौद्रध्यान है. . किनक जीवोंके संहार के लिये, सत्यनी, (तोप) बंदूक, धनुश्य-बाण, खड्ग, कटार, छुरी, चत आदीका संग्रह करते हैं; या शस्त्र देख, जीवों के संहारकी इच्छा करते हैं. कित्नेक' घट्टा, घट्टी, हल्ल,बखर, कुदाली, पावडी ऊखल,मुशल, सरोता, दांतरडा, कातर, वगैरेका संग्रह करते हैं. तथा इन को देख संहारकी इच्छा करते हैं. हाथ में आये चलाने की इच्छा करते हैं. खाली चलाके देखते हैं, सो भी हिंशानुबन्ध रौद्रध्यान. . औरभी किसीका बुरा चिंतना, अपनसे अधिक रूपवान, धनेश्वरी, गुणीजन, पुण्यप्रतापी, बहुल परवारी, सुखी देखके ईर्षा करे, उनको दुःख होनेका विचार करे, की इस के पीछे मुजे कोइ नहीं पूछता है, यह मेरे सुखमें या लाभमें हरकत कर्ता है. मुजे हरवक्त दबाता है सताता है, यह कब मरे और पाप कटे, वगैरे विचार करे सो भी