Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ करने पर एक उनके भक्तने २९००) में ले लो। इसका उपस्थित जनता और अध्यक्ष मध्यप्रदेशके तत्कालीन गृहमंत्री पं० द्वारकाप्रसाद मिश्रपर बड़ा प्रभाव पड़ा। वर्णीजीकी करुणाके ऐसे-ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जगत्कल्याणकी सतत भावना वर्णीजीमें जो सबसे बड़ी विशेषता थी वह है जगत्के कल्याणकी सतत भावना । विहारसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और दिल्लीकी पदयात्रामें उन्होंने लाखों लोगोंको शराब न पीने, मांस न खाने और हिंसा न करनेका मर्मस्पर्शी उपदेश दिया और उन्होंने उनके इस उपदेशको श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया। उनकी इस पदयात्रामें लोगोंने उन्हें बड़ा आदर दिया और उनके प्रति अपूर्व श्रद्धा व्यक्त की । अनेक जगह उनका श्रद्धापूर्वक उन्होंने आतिथ्य किया। आजके विश्वको त्रस्त देखकर वे हमेशा कहते थे कि 'एक हवाई जहाज लो और साथमें १०११५ मर्मज्ञ विद्वानोंको लो और यूरोप में जाकर अहिंसा और अपरिग्रह धर्मका प्रचार करो । साथमें हम भी चलनेको तैयार हैं। जहाँ शराब और मांसकी दुकानें हैं और नाचघर बने हुए हैं वहाँ जाकर सदाचार और अहिंसाका उपदेश करो । आज लोगोंका कितना भारी पतन हो रहा है । देशके लाखों मानवोंका चरित्र इन सिनेमाघरोंसे बिगड़ रहा है, उन्हें बन्द कराओ और भारतीय पुरातन महापुरुषों के सदाचारपूर्ण चरित्र दिखाओ।' यह थी वर्णीजीकी विश्वकल्याणकी भावना । पूज्य वीजीमें ऐसे-ऐसे अनेकों गुण थे, जिनका यहाँ उल्लेख करना शक्य नहीं। वास्तवमें उनका जीवन-चरित्र महापुरुषका जीवन-चरित्र है। इसी लिए उन्हें करोड़ों नर-नारी श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं । उनके गुण हम जैसे पामरोंको भी प्राप्त हों, यह भावना करते हुए उन्हें मस्तक झुकाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560