Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा MRI मैं पालौं हुकुम तुम्हारो । दिवराकौं विष दै मारौं ॥३॥ १४ | फिर मेरे बचनकों कन्थ । तुम यादि करोगे तुरन्त ॥ है इतनी सुनि करिक कुमार । सुख पायो ताने अपार ॥३२॥ दोहा-इस विधिसौं तब दुष्टने , ताको करै उपाय ॥ और कथन अागे अबै , सुनौ सबै मन लाय ॥३३॥ चौपाई। रुदन करै अधिको वह नारि । मनमैं दुक्ख करौसु अपार ॥ 11 जवहीं प्रात भयो ततकाल । तहँतै नारि चली तब हाल ॥३४॥ 3 पहुँची भोजन साला माहिं । ताने रसोई दई चढाय ॥ विष डारो व्यंजनके मझार । बिष डारै पकवान मझार॥३५॥ | विषकी करी रसोई जबै । और सुनौ नर नारी तबै ॥ AverVAAAAAAAAAVA For Private And Personal Use Only

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