Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ३१ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब भूप कहै मनमाहीं । कैसें जु बिचार कराहीं ॥ जह न्यायवंत अधिकारो । जातैं राज चलै सु हमारो ॥ ६ ॥ तुरतहिं गजराज मगायो । कुमरा असवार करायो ॥ कानन कुंडल पहिराए । हातन मैं कड़ा डरबा ॥ १० ॥ गल में गजमोतिन माला । पहिराए साल दुसाला ॥ मंत्रीपद ताहि दयो है । सबमें शिरमौर भयो है ॥। ११ ॥ सब राज काजको भार | सौंपो ताक भुपाल ॥ बहुत बात को कहै बढ़ाई | दयो बांटि राज चौथाई ॥ १२ ॥ देखो दान तनो फल सोई । कैसो जो ततछन होई ॥ तातें नरनारि सुनीजै । नित दान चतुर्विधि दीजै ॥ १३ ॥ जह दान समान न कोई । जासों जन्मसुफल होई ॥ सुरगादिकके सुख पावै । अनुक्रम शिवपुरको जावै ॥ १४ ॥ 1 For Private And Personal Use Only कथा ३१

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