Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
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अने चउरंद्रीने विषे अनुक्रमे (सत्त) के सात लाख,) (अड) के० आठ लाख, अने (नव )के० नव लाख कुलकोटी जाणवी. वली (जल) के० जलचर, (खह) के० खेचर, (चउप्पय) के० चतुष्पद, ( उरग) के० उरपरि सर्प अने ( भुयगे ) के० भुजपरिसर्प ए पांचेने अनुक्रमे ॥ ४५८ ॥ (अद्धतेरस ) के० साडावार लाख, (वारस) के० बार लाख, (दस) के० दश लाख, (दस) के० दश लाख, अने ( नवगं ) के० नव लाख कुलकोटी जाणवी. एमज (नरामरे निरये) के० मनुष्य, देवता अने नारकीने विषे अनुक्रमे (बारस) के० बार लाख, (छवीस) के० छवीश लाख अने ( पणवीस ) के पचीस लाख (हूंति कुलकोडि लक्खाई ) के० कुलकाडी जाणवी. ॥४५९ ॥ ए सर्व संख्या एकठी करीय त्यारे ( इगकोडि ) के० एक कोडा काडी, अने ( सानवइ लकवा सहा ) के० साडोस. त्ताणु लाख कोडी एटली (कुलाण कोडीग) के० कुलकोटी एटले एटली जीवोने उपजवानी योनिमांहे कुलकोडो छे.
हवे बीजे प्रकारे योनी कहे छे. संवुडजोणि सुरेगिदि-नारया वियड विगल गभु
___ भया ।। ४६० ॥ .. अर्थ-(सुर ) के चार प्रकारना देवता, (एगिदि ) के० एकंद्री ते पृथ्वी आदि पांच स्थावर, अने ( नारया ) के० नारकी ए सर्वे ( संवुडजोणि ) के० ढांकेली योनिवाला होय छे. त्यां देवताना देवदुष्ये ढांकेला देवशयनीय होय, एकंद्रिय जीवोनी योनि स्पष्ट जाणां शकोय नहीं, नारकीने ढाकेला गोखने आकारे आला छे. वला ( विगल ) के० विकलेंद्रीने तथा संमूच्छिम तिर्यंच अने संमूच्छिम मनुष्यने (वयड ) के० प्रगट जलाशय सरोवर विगेरे

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