Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 259
________________ २५४ अने चउरंद्रीने विषे अनुक्रमे (सत्त) के सात लाख,) (अड) के० आठ लाख, अने (नव )के० नव लाख कुलकोटी जाणवी. वली (जल) के० जलचर, (खह) के० खेचर, (चउप्पय) के० चतुष्पद, ( उरग) के० उरपरि सर्प अने ( भुयगे ) के० भुजपरिसर्प ए पांचेने अनुक्रमे ॥ ४५८ ॥ (अद्धतेरस ) के० साडावार लाख, (वारस) के० बार लाख, (दस) के० दश लाख, (दस) के० दश लाख, अने ( नवगं ) के० नव लाख कुलकोटी जाणवी. एमज (नरामरे निरये) के० मनुष्य, देवता अने नारकीने विषे अनुक्रमे (बारस) के० बार लाख, (छवीस) के० छवीश लाख अने ( पणवीस ) के पचीस लाख (हूंति कुलकोडि लक्खाई ) के० कुलकाडी जाणवी. ॥४५९ ॥ ए सर्व संख्या एकठी करीय त्यारे ( इगकोडि ) के० एक कोडा काडी, अने ( सानवइ लकवा सहा ) के० साडोस. त्ताणु लाख कोडी एटली (कुलाण कोडीग) के० कुलकोटी एटले एटली जीवोने उपजवानी योनिमांहे कुलकोडो छे. हवे बीजे प्रकारे योनी कहे छे. संवुडजोणि सुरेगिदि-नारया वियड विगल गभु ___ भया ।। ४६० ॥ .. अर्थ-(सुर ) के चार प्रकारना देवता, (एगिदि ) के० एकंद्री ते पृथ्वी आदि पांच स्थावर, अने ( नारया ) के० नारकी ए सर्वे ( संवुडजोणि ) के० ढांकेली योनिवाला होय छे. त्यां देवताना देवदुष्ये ढांकेला देवशयनीय होय, एकंद्रिय जीवोनी योनि स्पष्ट जाणां शकोय नहीं, नारकीने ढाकेला गोखने आकारे आला छे. वला ( विगल ) के० विकलेंद्रीने तथा संमूच्छिम तिर्यंच अने संमूच्छिम मनुष्यने (वयड ) के० प्रगट जलाशय सरोवर विगेरे

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