Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 434
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुद्रणा ८४९ मुमुक्षा मुनिधर्म (पुं०) साधुधर्म, महाव्रतादि पालन का धर्म। मुनिधामः (पुं०) साधुओं का एकान्त स्थान। उपाश्रय, उपासना स्थला मुनिनन्दः (पुं०) मुनियों का आनंद। ०श्रमण स्वभाव। मुनिनाथः (पुं०) आचार्य, मुनि समूह का प्रमुख। (जयो० १/८२) व्यतीश्वर, मुनीश्वर। मुनिनायकः (पुं०) आचार्य व्यतिपति (जयो० १/९४) (जयो वृ० ३/४५) गणि, व्यतीश्वर। मुदिपदं (नपुं०) साधुपद। ०श्रमणाचरण। मुनिपादः (पुं०) साधु के चरण। मुनिपुंगवः (पुं०) प्रमुख मुनि, श्रेष्ठ मुनि, महाव्रत की अनुपालना में कुशल। मुनिबांधव (वि०) महाव्रत रूप मित्र, समता। मुनिभाव (पुं०) साधु भाव। मुनिमनोरञ्जनाशीति (स्त्री०) आचार्य ज्ञानसागर की रचना, जिसमें ८० श्लोकों में मुनियों के गुणों का गुणगान किया गया है। मुद्रणा (स्त्री०) मुद्रितावस्था, मूर्छा। (जयो०वृ० १८/१९) मुद्रय (अक०) अंकित करना, चिह्नित करना, मुहर लगाना-मुद्र यति (जयो०वृ० ६/५५) ढकना, मूंदना। मुद्रा (स्त्री०) [मुद्+र+टाप्] छवि, प्रसन्नचित्त भाव (सुद० २/३३) सुमानसस्याथ विशांवरस्य मुद्रा विभिन्नाऽस्य सरोरुहस्य। (सुद० ३३) आकृति। (सुद० ३/४०) मुहर, छाप, चिह्न। ०पदक, प्रतिभा चिह्न। मुद्रा, सिक्का। ०प्रवेश पत्रा बन्द करना, मूंदना। मुद्रागत (वि०) प्रवेश को प्राप्त हुआ। मुद्राधारक (वि०) प्रसन्नता धारण करने वाला। (जयो० १२/५४) मुद्रिका (स्त्री०) [मुद्रा+कन्+टाप्] अंगूठी। (समु० ३/४३) मुद्रित (वि०) [मुद्रा+इतच्] चिह्नित, अंकित, मुद्रित हुआ। मुद्रितनेत्रं (नपुं०) निमीलिताक्ष। (जयो०वृ० १३/१०८) मुद्रितपत्रं (नपुं०) छाप युक्त पत्र। मुद्रितपदकं (नपुं०) प्रतिभा पदक। रजत-स्वर्ण आदि पदक। मुद्रितभावः (पुं०) छिपे हुए भाव। मुधा (अव्य०) व्यर्थ, निष्प्रयोजन। (जयो० ८४८७) विरुद्ध। (जयो० ७/१०) गलतरीति से, मिथ्यारूप से। मुधादरी (स्त्री०) मिथ्यादर, उन्मार्ग चारित। (जयो० २०/२८) मुनिः (पुं०) [मन्+इन्-उच्चै मनुते जानाति य] ०ऋषि, सन्त, श्रमण, साधु। (सुद० २/४१) यति। भूयान्मौनिमनौ भवोक्ति विभवादस्मान्मुनि स्यात्तदात्मानं सम्प्रति साध येत्स्वयमितः समर्थः सदा। दुर्भावं प्रयतेत रोद्भुमितियो रौद्र तथात यति: नाम्येनैव नशेमुवीश पुनरप्येषाऽस्ति मे सम्मतिः। (मुनि० ३२) योगी, वर्णी, तपस्वी, नि:स्पृही। (सम्य०१४२, मुनि०३३) निर्गन्था (सम्य० १४२) (सुद० ४/१६) ०मन्यतेमनुते वा मुनिः । (जैन०ल० ९२७) मुनिचर्या (स्त्री०) भ्रामरीवृत्ति। (जयो० २३/४६) मुनिजनः (पुं०) साधु समूह। (जयो०वृ० १/२२) मुनित्व (वि०) साधुत्व, साधुपना। (सुद० ३/२५) मुनिदर्शनं (नपुं०) साधुश्रद्धा, श्रमण दर्शन, यति का देखना। | मुनिमनोरञ्चनं तावदिदमञ्जनम्। मोहिजन चक्षुषोर्दु:खभरमञ्जनम्।। श्री जिनेन्द्रोरूपाश्रयतु सखञ्जनम्। भावनाधीनभक्त्या प्रतीतं जनम्॥ (मुनि वृ० ३४) मुनिराट् (पुं०) मुनिराज। (सुद० १००) (भक्ति० २१) सिंहचन्द्रमुनिराट् चरमेसग्रीवकेष्वजनि नाम सुरेश। (समु०४/१६) ०योगिभूप। (भक्ति० २९) ०आचार्य। मुनिराज देखो ऊपर। मुनिवरः (पुं०) मुनिपुंगव, श्रेष्ठ मुनि। (सुद० ४/२) पुनिश्चर्या (स्त्री०) साधुचर्या, श्रमणचर्या। (दयो० ११४) मुनिसुव्रतः (स्त्री०) मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर। (भक्ति० १९) जैनधर्म के बीसवें तीर्थंकर। मुनीन्द्रः (पुं०) आचार्य, मुनिर, मुनिराज। (सुद० २/२५) मुनीशः (पुं०) मुनिवर, आचार्य, यतिवर। (सुद० २/३३) मुनीश! सच्चारुचकोरचन्द्रमस्तमोऽन्तरुच्छेत्तु मुताद्भर्यामन्। भवाम्वुद्यौ पोत इवोत्तम! प्रभो! निवेदनं मे नतिपूर्वकं च भो। (समु० ४/२०) मुमुक्षवर्गः (पुं०) परमार्थ इच्छुक। (भक्ति० ११) मुक्ति के चाहने वाला। मुमुक्षा (स्त्री०) [मोक्तुमिच्छा मुच्+सन्+अ+टाप] मोक्ष की अभिलाषा। For Private and Personal Use Only

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