Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 257
________________ ap HASE USE INGYENGENANVANKENTINIANPENDANTSERRA PS JUBA SUDA je de de de de de 278.1/ पंचेंद्रियसंवाद. ras Soda steps So २५१ इन्द्रित मन मारियर, जोरियं आतम माहिं ॥ तोरिये नातो रागसार, फोरिये चल क्यों थाहिं, प्राणी० ॥ १३४॥ इन्द्रिन नेह निवारियेरे, टारिये क्रोध कपाय ॥ धारिये संपति शास्त्रतीरे, तारिये त्रिभुवन राय प्राणी० ॥ १३५ ॥ गुण अनंत जामें उसरे, केवल दर्शन आदि || कंवल ज्ञान विराजतोरे, चेतन चिह्न अनादि, प्राणी० ॥ १३६ ॥ थिरता काल अनादिकार, राज जिहुँ पढ़ माहिं ॥ मुख अनंत स्वामी चहरे, दूजो कोऊ नाहिं, प्राणी० ॥ १३७ ॥ शक्ति अनंत विराजतीर, दोष न जामहि कोय ॥ समकित गुणकर सोभितोरे, चेतन लखिये सोय, प्राणी० १३८ || वढ घंटे कवह नहीरे, अविनाशी अविकार ॥ भिन्न रहे परद्रव्यसारे, सो चेतन निरधार, प्राणी० ॥ १३९ ॥ पंच वर्णम जो नहींरे, नही पंच रस माहिं ॥ " आठ फरसंत भिन्नंहरे, गंध दोक कोड नाहि, प्राणी० ॥१४०॥ जानत जो गुण द्रव्यकेरे, उपजन विनम्रन काल ॥ सो अविनाशी आतमारे, चिह्नह्न चिह्न दयाल, प्राणी० ॥ १४१॥ गुण अनंत या ब्रह्मकेरे, कहिये कि विधि नाम ॥ "मैंया' मनवचक्रायसोरे, कीजे तिपरिणाम, प्राणी० ॥ १४२ ॥ दोहा. परद्रव्यनसों भिन्न जो, स्वकिय भाव रसलीन ॥ सो चेतन परमातमा, देख्यो ज्ञान प्रवीन ॥ १४३॥ जो देखें गुण द्रव्यके, जॉन सबको भेद ॥ कहा करत हैं खेद ॥ १४४ ॥ चिदानंद भगवान ॥ सोया घटमें प्रगट हैं, सुल अनंतको नाथ वह, ÚGAT JASKOA Toda da da da ANTENA 30-30s je die je do te da je det

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