Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 279
________________ .............................. . म आन लस ब्रह्मलागार आन जीव त छिपाये आप, का KNOmpranasenarenamawesonanAONORAMAYA ...... फुटकर कविता. स्वभाव ध्रुव चारितमें कहिये ।। तेरो ही स्वभाव अविनाशी सदा दीसत है तेरो ही स्वभाव परभाव न गहिये । तेरो ही स्वभाव सब आन लसै ब्रह्ममाहिं यात तोहि जगतको ईश सरदहिये ॥२॥ मोह मेरे सारेने विगारे आन जीव सव, जगतके वासी तैसे वासी कर राखे हैं। कर्मगिरिकंदरामें वसत छिपाये आप, क१रत अनेक पाप जात कैसे भाखे हैं । विपैवन जोर तामे चोरको है निवास सदा, परधन हरवेके भाव अभिलाखे हैं । तापै जिनराज से जके वन फौजदार चढे, आन आन मिले तिन्हें मोक्ष देश दाखे। Craorsparenconoramo/Santos PREPREDAARRESEANUARorestsASHISABINETVartance/DASTAINEDABAANEEYARIBINISTS ६ जोलों तेरे हिये भर्म तोलो तू न जानै मर्म, कौन आप कौन है कर्म कौन धर्म सांच है। देखत शरीर चर्म जो न सह शीत धर्म, . ताहि धोय मान धर्म ऐसे भ्रम माच है।नेक हुन होय नर्म वात है वातमाहिं गर्म, रहो चाह हेम हर्म वसनाही पांच है। एते पैन गहै है। है शर्म कैसे द्वे प्रकाश पर्म, ऐसे मूढ भर्ममाहिं नाचै कर्म नाचहै। — अमल सुपी रहेरी अमल सुपीरहरी, अमल वही रहैरी अमल सु पीर है । वानी जो गहीरहैरी वानी जो वही रहैरी, वानी न कही लहरी वानी न कही रहै । परको शरीरहैरी परको नहीं, रहरी, परको नही रहरी वह दुख भीर है । भौदधि गहीरहरी आयो तिह तीरहरी, चेतै निज घां कहीरी पर है सही रहै ॥४॥ अरिनके ठट्ट दह वह कर डारे जिन, करम सुभट्टनके पट्टन उजारे हैं। नर्क तिरजंच चट पट्ट देके बैठ रहे, विपै चौर झट है झट्ट पकर पछारे हैं ।। भी वन कटाय डारे अहमद दुइ मारे, मदनके देश जार क्रोध हु संहारे हैं। चढत सम्यक्त सूर वढत प्रताप पूर, सुखके समूह भूर सिद्धके निहारे हैं ॥५॥ महल. o napramanaDrenacarGDVEGORopatel RampowappeapoPROPEReapp १८

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