Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 13
________________ तीनों ही प्रकार के आगम प्रमाण मानना, ये सच्चे जैन का लक्षण है । उसमें शंका-संदेह करना ये मिथ्यात्व होने का लक्षण है। समझने के लिए प्रश्न करना उचित है लेकिन पंचांगी में कही गयी बातें सत्य होगी या गलत ? ऐसा संदेह जो सत्य ज्ञान से दूर ले जाने वाला होने से मिथ्यात्व है। इस ग्रंथ की रचना उपरोक्त दर्शाये हुए पांचो ही अंगो के आधार पर की गयी है इसलिए प्रमाणभूत है । 'सूयाणुसारेण' इस पद को रखकर आचार्य भगवंत ने आगम• परंपरा और गुरु परंपरा के अनुसार इस ग्रंथ की रचना की है ऐसा गर्भिततौर से सूचन किया है। अन्य विस्तृत ग्रंथ विद्यमान होने पर भी स्वयं का और अन्य बालजीवों का कल्याण हो, इस आशय से संक्षेप में इस ग्रंथ की रचना करना ये प्रयोजन है। मंगलाचरण व विषय, संबंध, प्रयोजन और अधिकारी ये चार अनुबंध, इस प्रकार ये पांच विषय (इस प्रथम गाथा में बताये गये है ।) चैत्य:- शब्द के बहुत सारे अर्थ है । यहां जिनमंदिर और जिनप्रतिमा जिसका मुख्य अर्थ है । चित्यायां भवम चैत्यम = अर्थात् निर्वाण को प्राप्त तीर्थकरों की चिता के स्थान पर बनाये गये स्तूप और चरण पादुकाएँ या प्रतिमारूप में स्मारक और अन्य भी उसके अनुकरण रूप जितने भी स्मारक हो उसे भी चैत्यमिव चैत्यं = इस अर्थ के आधार से चैत्य कहा जाता है। अर्थात् मंदिर और प्रतिमा के लिए चैत्य शब्द सार्थक है । इस दोनों के निमित्त से I परमोपकारी तीर्थकर परमात्माओं के प्रति परम लोकोत्तर विनय दर्शाना है । उसे दर्शाने के लिए आचार की विधि बतानेवाली और उसमें आनेवाले मूलसूत्रों के विषय में संक्षेप में भावार्थ रूप में विवेचन करने वाली ये गाथाएँ चैत्यवंदन भाष्य की कही जाती है। चिड़वंदणाड़ :- शब्द में आदि शब्द से गुरुवंदन और प्रत्याख्यान भाष्य भी समझ लेना चाहिये । श्री तीर्थंकर परमात्माओं के चरित्र का वांचन करते उनमें परम श्रेष्ठ चारित्र, तप, वीर्य और अनंतज्ञान है ऐसा हमें ज्ञात होता है तथा प्राणीमात्र के कल्याण के लिए उन्होंने परमार्थ का जो महान उपदेश दिया था जिसकी असर आज भी विश्व में देखने को मिलती है। स्वयं कृत-कृत्य थे फिर भी, धर्मतीर्थ रूप- जैनशासन की स्थापना करके, जीवों के चारित्र और सदाचार की पवित्रता की सुवास दीर्घ काल तक रहे, इसके लिए श्रेष्ठत्तम साधन की व्यवस्था कर हमें दी है। 3

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