Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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प्रकाशकीय वक्तव्य
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्ने गत मार्च १९८२ में, अपने भूतपूर्व अध्यक्ष, स्व० डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, एम० ए०, डी० लिट्० के अप्रकाशित तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें यत्र तत्र बिखरे शोध निबन्धोंको 'भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन-वाङ्मयका अवदानका प्रथम खण्ड ग्रन्थके रूपमें प्रकाशित किया गया था। अब उसके द्वितीय खण्डको प्रस्तुत ग्रन्थ के रूपमें प्रकाशित कर परिषद् गौरवका अनुभव कर रही है ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशनकी योजना २६-५-७९ को मदनगंज किशनगढ़ ( राजस्थान) में सम्पन्न विद्वत्परिषद्को कार्यसमितिकी बैठक में स्वीकृत की गयी थी । वहाँ एक प्रस्ताव द्वारा स्व० डॉ० नेमिचन्द्रजी शास्त्रो द्वारा लिखित 'तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' के चारों भागोंसे प्राप्त धनराशि में से २५००१) रु० के द्वारा 'डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री स्मारकनिघि' की स्थापनाकी गई, तथा अन्य प्रस्ताव द्वारा स्व० शास्त्रीजीके अद्यावधि अप्रकाशित शोष-निबन्धोंके प्रकाशनका निश्चय किया गया। तत्पश्चात् डॉ० राजारामजी आरा तथा डॉ० देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री, नीमच, ग्रन्थके सम्पादक नियुक्त किए गए। प्रस्तुत ग्रन्थ इसी योजना का सुन्दर, सुखद एवं सफल परिणाम है ।
कलकत्ता में 'वीर शासन जयन्ती महोत्सव' के अवसर पर २ -११-४४ को "अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्” की स्थापना हुई थी । इसका उद्देश्य, जैन शासनका संरक्षण, प्रचार एवं विद्वानोंका सामयिक सहयोग तथा उन्नति करना था । परिषद्ने १९४७ के सोनगढ़ अधिवेशन में जैन साहित्यके निर्माण और प्रकाशनका भी निर्णय लिया गया । तब से आज तक विद्वत्परिषद्, एक ओर, विद्वज्जनोंके सर्वाङ्गीण विकास और साहित्य पुरस्कार आदि द्वारा उनके प्रति सम्मान एवं सहयोग जागृत करनेका प्रयत्न करती रही और दूसरी ओर, स्वयं साहित्यके प्रकाशन द्वारा विद्वानोंके मनोबल एवं जैन साहित्य के अभ्युत्थानका कार्य कर रही है । जितना भी साहित्यके द्वारा प्रकाशित किया गया उसका न केवल जैन समाज में अपितु देश-विदेशके समग्र प्रबुद्धवर्ग में अच्छा सम्मान हुआ ।
परिषद्का प्रथम प्रकाशन था - 'आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार - व्यक्तित्व और कृतित्व और इसके लेखक थे डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री । तत्पश्चात् 'श्रुत सप्ताह नवनीत' का प्रकाशन हुआ, जिसके सम्पादक डॉ० पन्नालाल जी साहित्याचार्य थे ।
तदनन्तर परिषद् द्वारा, न्यायवाचस्पति, गुरुणां गुरुः पं० श्री गोपाल दास जी बरैयाके जन्म शताब्दी समारोह के अवसरपर १९६७ में 'गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ' का प्रकाशन किया गया। इसमें पूज्य गुरुजी के विशाल व्यक्तित्व संबंधी संस्मरण आदिके साथ ही जैनधर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व और संस्कृति से सम्बद्ध अनेक महत्त्वपूर्ण शोष निबन्ध प्रकाशित किए गए। यह ग्रन्थ भारत के समस्त विश्वविद्यालयोंको निःशुल्क भेंट किया गया था। इसके सुन्दर सम्पादन में अन्य विद्वानोंके साथ स्व० डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्रीका प्रमुख हाथ था ।