Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 351
________________ २२६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं को दुःखी बने रहने का कारण प्रस्तुत करते थे पर आज योग्यवस्तुओं की सुलभ उपलब्धि से विज्ञान ने बहुत-सी समस्याओं का समाधान किया है। इस प्रकार नया कर गुजरने का साहस नये विचार दर्शन को भी पैदा कर सकता है । बीच में स्वतन्त्र चिंतन पर हस्तक्षेप करते हुए कहा -- राग द्वेष मुक्त होकर सत्यान्वेषण आवश्यक है होता था जिसका अर्थ शाश्वत मूल्यों का आविर्भाव था समस्याओं का चिंतन नहीं होता था । । डा० रमाकान्त त्रिपाठी ने वह धर्म के मार्ग से पहले इसमें दैनन्दिन जीवन की प्रो० कृष्णनाथ ने कहा- वर्णाश्रमधर्म पर आधारित दर्शन से भिन्न आज का दर्शन बनेगा, कर्मफल एवं जातिव्यवस्था आज मूल्यहीन हो गये है । विश्व में शस्त्रीकरण के कारण अहिंसा का मूल्य बढ़ा है, स्वतन्त्रता समृद्धि, शान्ति के लिये श्रेय और प्रेय पर विचारना होगा । आज अध्यात्म और व्यवहार की खाई बढ़ी है । इसमें प्रमाणभूत शास्त्र के दवदवे को तोड़ना पड़ेगा । आग्रहरहित चिन्तन प्रस्तुत करना पड़ेगा । परोक्षण से आग्रह टूटेंगे । प्रो० करुणापतित्रिपाठी ( कुलपति, सं. सं. वि. वि. ) ने कहा - सम्पूर्णानन्दजी ने दर्शन, विज्ञान तथा जीवन में की समन्वय स्थापना की बात कही थी । विज्ञान से अन्वेषित सत्यों का प्राचीन चिन्तन से समाधान हो सकता है या नहीं । यदि नहीं हो सकता है तो उनके परिग्राहक की नवीन परम्परा में विकास होना चाहिए । प्रो० बदरीनाथशुक्ल ने कहा- दर्शनों ने जिस जीवन का प्रतिपादन किया है। वह हमारे व्यवहारमें नहीं है । विषमता हमारे चिन्तन में नहीं दिखती है पौराणिक आख्यानों में धर्म शास्त्रों में विषमता अवश्य है । यह विचारणीय है कि दर्शन का काम समत्व की प्रतिष्ठा करना है पर समाज में विषमता है इसके विरुद्ध दार्शनिक लोग क्यों नहीं बोलते हैं । क्या हमारे चिन्तन की यह कोई त्रुटि तो नहीं है । प्रो० रमाकान्तत्रिपाठी ने कहा- सामाजिक विषमता प्रवृति मार्ग में दीख पड़ती है निवृत्ति मार्ग में यह सब टाल दिया जाता है । हमको प्राचीन जीवनपद्धति अपनानी चाहिए ताकि समस्याओं का समाधान हो सके । प्रो० देवराज ( का हि० वि० वि० ) ने कहा - प्रगतिशील समाज की संरचना में हमारे दार्शनिकों को सहायता करनी चाहिए। दर्शन समग्र मानव मात्र के लिए यदि है तो उसके सिद्धान्त सब के लिए प्रायोगिक भी बनना चाहिए। ईश्वर अब काम नहीं परिसंवाद - ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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