Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गांधीदर्शन परिचर्चा की पृष्ठभूमि भी होती है । पर इस लक्ष्य की प्राप्ति का हमारा पथ तब तक साफ नहीं हो सकेगा. जब तक हम सम्पूर्ण मानव जाति के हित की रक्षा के लिए अहिंसक उपायों का अवलम्बन न करें। महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी थे, यह अहिंसा हमारी विरासत है, उसकी पुनः स्थापना के लिए हमको गांधी जी को भाँति दत्तचित्त होना होगा। और सत्य के मार्ग से असत्य का प्रतीकार करना होगा। कहा जाता है कि हम अहिंसक मार्ग का कम अवलम्बन करते हैं. पर बात ऐसी नहीं है, हम अब भी अपेक्षाकृत सरल है, इसलिए हम होने वाली घटनाओं की सरलता के साथ शीघ्र प्रतिरोध कर देते हैं, जिससे लगता है कि हम व्यावहारिक सत्यता को बनावटी रूप न देते हुए परमार्थ रूप ही दे देते हैं। इससे हमारे प्रति लोगों की कुछ अन्यथा दृष्टि पनपती है। हमें इस पर ध्यान देना चाहिए तथा सत्यमार्ग में गाँधी के रास्ते का अनुगमन करना चाहिए। गांधी जी ने अहिंसा की शक्ति का संगठन किया और उसका सामाजिक विनियोग किया। वह व्यक्ति तथा समाज का अविनाभाव सम्बन्ध मानकर सम्पूर्ण समाज में व्यक्ति के अहिंसक वृत्ति को प्रतिष्ठा पर बल देते थे, जिससे वह व्यक्ति तथा समाज में समान रूप से लागू हो सके ।
शास्त्रों में समाज की रागात्मक वृत्तियों के समापन के उपाय बहुत सुझाये गये हैं, पर वे उपाय व्यक्तिनिष्ठ होते हैं। इन उपायों का सामाजिक विनियोग गांधी ने बतलाया था फलतः वह जनजीवन से कष्ट के अपनोदन के लिए एकादश व्रतों पर ध्यान देते हैं, वे हैं
अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य असंग्रह। शरीरश्रम अस्वाद सर्वत्र भयवर्जन ॥ सर्वधर्मसमानत्व स्वदेशी स्पर्शभावना।
विनम्र व्रत-निष्ठा से ये एकादश सेव्य हैं । हमारे समाज में विशेष रूप से संस्कृतसमाज में शरीरश्रम पर अधिक जोर न देकर तप, त्याग, व्रत-उपवास पर अधिक बल दिया जाता है। यह अपने में सही है पर गांधी जी की धारणा थी कि जिसका शरीर काम कर सकता है उन सभी पुरुषों को अपना रोजमर्रा का सभी काम, जो खुद करने लायक हो, खुद ही करना चाहिए । और विना कारण दूसरों से सेवा न लेनी चाहिए। जो खुद मेहनत न करे, उन्हें खाने हक क्या है ? इस आधार पर ही गांधी जी तप, संयम, अहिंसा, सत्य आदि का परिपालन करते हुए शरीरश्रम भी करते थे। वह नित्यचर्या में कृषिकार्य भी सम्मिलित करते थे तथा स्वयं सफाई कार्य भी किया करते थे। हम
परिसंवाद-३
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