Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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| नहिं थाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे तमे शा हेतुथी कहो छो के 'बधाय पण भवसिद्धिको सिद्ध थशे, अने लोक भवसिद्धिका म्याख्या
जीवोथी रहित नहीं थाय' १ [उ०] हे जयंती जेमके सर्वाकाशनी श्रेणी होय, ते अनादि, अनंत, बन्ने बाजुए परिमित अने बीजी अप्रप्तिः श्रेणीओथी परिवृत होय, तेमाथी समये समये एक परमाणु पुद्गलमात्रखंडो काढतां काढतां अनन्त उत्सर्पिणी अने अनन्त अबस:15
उद्देशार ॥१०३५॥ पिणी सुधी काढीए तोपण ते श्रेणि खाली थाय नहीं; ते प्रमाणे हे जयंती ! ते हेतुथी एम कहेवाय डे के, बघाय भवसिद्धिक जीवो
PIसिद्ध थशे, तो पण लोक भवसिद्धिक जीवो विनानो थशे नहि. 81 सुत्तत्तं भंते ! साह जागरियत्तं साही, जयंती ! अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्थेगतियाणं जीवाणं
जागरियत्तं साह, से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जाब साह ?, जयंती!जे हम जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्मपलजमाणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, एए णंजीवा सुत्ता समाणा नो बहूण पाणभूयजीवसत्ताणं दुक्खणयाए जोयणयाए जाव परियावणयाए वहृति, एगणं जीवासुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वातदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एएसि जीवानां सुत्तत्तं साहू, जयंती ! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव विति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाण जागरियत्त साह, एएण जीवा जागरा समाणा बट्टणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणियाए वदंति, ते णं जीवा जागरमाणा | अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एए ण जीवा जागरमाणा
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