Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ५५४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरुणे जाव तुरए विसज्जेति पडसंथारगं दुरूह पडसंधारगं दुरूहित्ता पुरस्थाभिमुद्दे जाव अंजलि कहुँ एवं वयासी-जाई णं भंते! मम पियबालवयस्सस्स वरुणस्स नागनरायस्स सीलाई वयाई गुणाई वेरमणाई पञ्चक्खाणपोस होववासाई ताई णं ममंपि भवंतुत्तिकद्दु सन्नाहपडं मुयह २ सल्लुद्धरणं करेति सल्लुद्धरणं करेता आणुपुब्बीए कालगए, तए णं तं वरुणं णागणत्तयं कालगयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्वे सुरभिगंधोदगवासे वुढे दसद्धवन्ने कुसुमे निवाडिए दिव्वे य गीयगंधव्वनिनादे कए यावि होत्था, तए णं तस्स वरुणस्स णागनत्तुयस्स तं दिव्यं देविड्ढीं दिव्वं देवज्जुतिं दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासिता य बहू | जणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ जाव परूवेति एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा जाव उबवत्तारो भवंति ॥ ( सूत्रं ३०२ ) ॥ [प्र० ] हे भगवन्! घणा माणसो परस्पर ए प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपणा करे छे के अनेक प्रकारना संग्रामोमांना कोइपण संग्राममां सामा (युद्ध करता) हणायेला घायल थयेला घणा मनुष्यो मरणसमये काळ करीने कोइपण देवलोकमां देवपणे उत्पन्न याय छे, हे भगवन्! ए प्रमाणे केम होय! [उ०] हे गौतम! ते बहु मनुष्यो परस्पर जे ए प्रमाणे कहे छे के यावत् तेओ देवपणे उत्पन्न थाय छे; पण जेओए ए प्रमाणे कछु छे तओए ए प्रमाणे मिथ्या कबु छे. हे गौतम! हुं तो आ प्रमाणे कहुं हुं, यावत् प्ररूपणा करूं छु. हे गौतम! ते आ प्रमाणे ते काळे अने ते समये वैशाली नामे नगरी हती. वर्णन. ते वैशाली नगरीमां वरुणनामे नागनो पौत्र रहतो हतो, ते धनवान्, यावत् जेनो पराभव न थइ शके एवो (समर्थ) हतो. ते श्रमणोनो उपासक, जीवाजीव तत्त्वने जाणनार, यावत् [ आहारादिवडे ] For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः ९ | ॥५५४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248