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चक्रवर्ती वज्रनाभि और कुरंग भील । [ २५
और सजल सरोवर देखे । प्रातः होते ही वह अपने प्रियतम राजा वज्रवीर के पास पहुंची और बड़ी विनयसे रातके स्वप्नोका सब हाल उनसे कह सुनाया । राजा इन स्वप्नोंका हाल सुनकर बहुत खुश हुआ । उसने रानी से कहा कि तेरे एक प्रधान पुत्र होगा । स्वप्नों का यह उत्तम फल सुनकर रानीको भी बड़ा हर्ष हुआ । नियत समय पर भाग्यवान पुत्रका जन्म हुआ; जिसका नाम इन्होंने वज्रनाभि रक्खा और यह जीव अच्युत स्वर्गका देव ही था । यह भगवान पार्श्वनाथका छट्टा पूर्वभव समझना चाहिए ।
क्रमकर राजपुत्र वज्रनाभि युवावस्थाको प्राप्त हुये । इस अवस्थाको पहुंचते २ इन्होने शस्त्र - शास्त्र आदि विद्याओमें पूर्ण निपुणता प्राप्त कर ली थी। आजकल के रईसोकी भांति इनके पिताने इनका वालपनमे विवाह करके ही इन्हें विद्या और स्वास्थ्यहीन नही बना दिया था बल्कि यह जब सब तरहसे निष्णात होगये थे, तब इनका विवाह संस्कार राजाने कराया था । विवाह
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होनेपर यह अपनी सुन्दर रानियोके साथ मनमाने भोग भोगने लगे । अन्तमें राज्यभार इनको प्राप्त हुआ और यह बड़ी कुशलता पूर्वक राज्यप्रबंध करने लगे थे ।
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वज्रनाभि नीतिपूर्वक राज्य कर रहे थे, कि इनको समाचार मिले कि राजाके आयुधगृहमे चक्ररत्न उत्पन्न होगया है । यह सुनकर इनको - बडा हर्ष हुआ और यह छहों खंड पृथ्वीको विजय करके धर्मराज्य स्थापित करनेके लिये घरसे निकल पड़े । लोकके पाणियोंकी हित चिन्तनासे वह व्यग्र हो उठे और धर्मचक्रका माहात्म्य वह चहुंओर फैलाने लगे । जैनशास्त्रोके अनुसार चक्र